यथार्थ की बजाय हवाई किले बनाना अधिक आनंदप्रद होता है (निबन्ध) | Essay on There is More Pleasure in Building Castles in the Air than on the Ground in Hindi!

मानव आनंदप्रिय प्राणी है । उसे अन्य प्राणियों की अपेक्षा मनोरंजन की अधिक आवश्यकता महसूस होती है । उसे ईश्वर ने जानवरों से अधिक मनोरंजन की सुविधाएं प्रदान की है ।

विभिन्न प्रवृत्तियों के लोग भिन्न-भिन्न माध्यमों जैसे संगीत, कविता, विज्ञान, खेल, मांस, मद्यपान, प्रेम एवं यौनाचार आदि से आनंदित होते है । कुछ साहसी व्यक्ति विशाल समुद्र की दूरी नापने में आनंद का अनुभव करते है । कुछ व्यक्ति प्रकृति की रूकावटों को पार कर पर्वतों पर विजय प्राप्त करने में ही आनंदित होते है ।

इन व्यक्तियों को जिस उत्तेजना, उत्साह का अनुभव होता है, वह उनकी आत्मा को परितुष्ट करने में अधिक सक्षम नहीं होता है । यदि वे ये कहें कि उन्हें तो इन कामों से अतिरिक आनंद की अनुभूति होती है लेकिन यथार्थ में उनकी कठिनाईयों को देख कर कोई भी विचारवान व्यक्ति उनकी बात पर यकीन नहीं करेगा ।

जो व्यक्ति कल्पना की उड़ान अर्थात् हवाई किले बनाने की कला में पारंगत होता है, वही चरम आनंद का अनुभव कर सकता है । हवाई किले बनाने से मनुष्य के मन में कभी नैराश्य या कुंठा की भावना उत्पन्न नहीं होती है ।

मनुष्य में हवाई किले बनाने की योग्यता स्वमेंव आ जाती है । प्रागैतिहासिक युग में मानव विचार की दो प्रवृतियाँ दृष्टिगोचर होती है । एक ओर तो उस युग का मानव जीवन की कठोर वास्तविकताओं से जुड़ा था तो दूसरी ओर उनका मस्तिष्क चेतन अथवा अचेतन अवस्था में भ्रम द्वारा प्रेरित काल्पनिक चित्रों में डूबा रहता था । आज भी, असमान्य मन:स्थिति वाले व्यक्ति, ऐसे काल्पनिक चित्रों के असाधारण प्रभाव को अनुभव करते हैं ।

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वास्तविक और अवास्तविक में अंतर करना तब तक बहुत कठिन था, जब तक मानव विवेक का विकास नहीं हुआ था और उसने कार्य कारण सिद्धान्त को समझना शुरू नहीं किया था । जब ऐसा हुआ तो वास्तविक और काल्पनिक जगत की भिन्नता स्पष्ट हुई और काल्पनिक जगत के विषय में भी एक स्पष्ट विचारधारा बन गई और उसके अस्तित्व को भी मान्यता दी गई । कई अर्थो में इसकी महत्ता यथार्थ जगत से अधिक मानी गई ।

भाषा के विकास से पहले भी मनुष्य प्रकृति के सौंदर्य से प्रभावित होकर अपनी उन्मुक्त कल्पना द्वारा भांति-भांति के चित्र उकेरता था । कई वर्षो तक कल्पना के माध्यम से सौन्दर्य बिम्बों का आनंद उठाने के बाद उसने उन्हें शब्दाकार प्रदान किया और साहित्य और कविता का सृजन किया । शब्द-चयन के साथ-साथ कल्पना की ऊँचाईयों के कारण ही उमर ख्याम, वर्डस्वर्थ, तानसेन, टैगोर, शैले, शेक्सपियर आदि कवि अमर हुए ।

कविता को शब्दों में उतारने से पहले ये कवि रमणीय दृश्यों को अपनी कल्पना में उतार लेते थे । उनके द्वारा खींचे गए चित्रों की स्पष्टता झलकती है । अत: उनकी कृतियाँ सुन्दर और अमर है और चिरकाल तक मानवीय संवेदनाओं को स्कूर्ति देती रहेंगी ।

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इसी प्रकार, विभिन्न युगों में लिखी गई श्रेष्ठ कृतियाँ मानव-कल्पना का ही परिणाम है । अजन्ता एलोरा की गुफाओं में सौन्दर्य, यथार्थ शिल्पकार की कल्पना का अनूठा परिणाम है । उनका सौन्दर्य और प्रभाव क्षमता को देखकर हम उनकी कला की उत्तमता और कल्पना की गइराई पर दंग रह जाते है ।

कल्पना कला की जननी मात्र नहीं है, विभिन्न वैज्ञानिक खोजों, आविष्कारों का मूलभूत आधार भ्री कल्पना ही है । वैज्ञानिक अपनी पूर्व उपलब्धियों पर आधारित कल्पनाओं के माध्यम से नवीन आविष्कार, अनुसंधान आदि करते है । सभी प्रमुख आविष्कार मानव-सभ्यता का ही फल है । रेडियो, मोटरगाड़ी, हवाई जहाज, कम्यूटर, टेलीविजन तथा अन्य सभी प्रकार के वैज्ञानिक उपकरण उच्चस्तर की योजनाओं और उन्नत कल्पनाओं और उन्नत कल्पना के ही परिणाम हैं ।

वैज्ञानिक पहले से विद्यमान सिद्धांतों के आधार पर अन्वेषणीय यंत्र का काल्पनिक चित्र अपने मस्तिष्क में खींचता है । अभ्यास और असफलता की प्रक्रिया के बाद वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो जाता है । लेकिन इस दौरान वह अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाता ही रहता है ।

कल्पना कला और विज्ञान के उपयोगी लक्ष्यों की प्राप्ति में ही सहायक नहीं है, बल्कि इससे मानव मन को भावनात्मक संतुष्टि भी प्राप्त होती है । मनोवैज्ञानिक दृष्टि से, यदि चिंता और जटिलता से भरे मनुष्य-जीवन में कल्पना में उतारकर अपनी प्रेमानुभूति को संतुष्ट करता है ।

चिंतित व्यक्ति कल्पना में ही अपनी समस्याओं और उनके समाधानों के चित्र खींचता है । मनुष्य अपने बिछुड़े हुए मित्र से कल्पना की उड़ान द्वारा मिल जाता है और अलगाव को सहन कर लेता है । कल्पना के कारण भावनात्मक एकता बनी रहती हैं । इस प्रकार मनुष्य को सोच-विचार के मूल में कल्पना सदैव विद्यमान रहती है ।

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हवाई किले किस प्रकार बनाए जाते हैं? इसके लिए केवल आखे बंद करने की आवश्यकता होती है और व्यक्ति स्वप्नचित्रोँ और रंगीन कल्पनाओं के जगत में पहुँच जाता है । कल्पना के साम्राज्य में सभी कुछ संभव है, वहाँ सुन्दर गलीचे, सुसज्जित दीवारें, खिड़कियाँ और दरवाजे, विश्वप्रसिद्ध वास्तुकला के नमूने, हीरे जवाहरातों का अंबार सभी कुछ उपलब्ध हो सकता है ।

कल्पना की ऊँचाईयों की कोई सीमा नहीं होती । कल्पना के माध्यम से आप अपनी सभी आकांक्षाएं पूरी कर सकते हैं । कल्पना के माध्यम से सहृदय व्यक्ति प्रकृति की रमणीय छटा की अनुभूति का रसास्वादन कर सकता है ।

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कल्पना की उड़ान अत्यंत आकर्षक एवं सशक्त होती है । यह केवल मनोरंजक ही नहीं बल्कि उत्तेजित करने वाली भी होती है । कल्पना का संसार वास्तविक संसार से अधिक मनमोहक होता है । इसके लिए मन को उस ओर प्रेरित करने की आवश्यकता है और आप कल्पना की ऊँचाइयों को छूने में सफल हो सकते हैं ।

कल्पना जगत तक पहुँचने के लिए मन का सौन्दर्य हृदय की एकाग्रता और स्वभावगत प्रसन्नता की आवश्यकता होती है । मन को मात्र शांत होने दीजिए, वातावरण के प्रभावों को ग्रहण कीजिए और यथार्थ जगत से दूर होते जाइए । एक नए स्वर्गिक जगत की रचना होती चली जाएगी जो बहुत ही सुन्दर और उदात्त होगा ।

यदि मनुष्य के पास कल्पना शक्ति नहीं होती, तो उसका जीवन दुखद होता । कई बार इच्छाएं अपूर्ण ही रह जाती है । जब जीवन की असंतुष्टियाँ हमारी दृष्टि को धुंधला कर दे तो कल्पना से काम लेना चाहिए। जीवन में कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं, जिसमें मनुष्य को लगता है कि सब कुछ समाप्त हो गया । कल्पना मनुष्य को उस स्थिति से उबारती है । इसलिए अस्तित्व के लिए कल्पना की बहुत आवश्यकता है ।

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