यदि हमारा निजी जीवन न होता पर निबन्ध | Essay on If There Were no Privacy in Our Lives in Hindi!

‘निजी’ काफी अस्पष्ट शब्द है । अपने परिवार अथवा निकट-मित्रों के अलावा हम अपने अंतरंग जीवन, पसंदों का जिक्र भी अन्य लोगों में नहीं करते हैं ।

समाज ने मनुष्य के विचारों, भावों एवं प्रवृतियों पर कई प्रतिबंध लगाए है, अथवा स्वयं मनुष्य ही उन बंधनों में जकड़ गया है । तथापि, हम सभी निजीपन को महत्व देते हैं । हमारा निजी व्यक्तित्व सामाजिक व्यक्तित्व से भिन्न होता है । बाह्य रूप से हम जिस व्यक्ति की प्रशंसा करते हैं तथा आदर व्यक्त करते हैं, उसी की अन्दर से निंदा एवं भर्त्सना करते हैं ।

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व्यक्तिगत रूप से हम जिन बातों अथवा विचारों का समर्थन करते हैं, उनका सामाजिक दबाव के कारण विरोध करना पड़ता है । हमें अपने सामाजिक ढांचे के अनुसार जीवन व्यतीत करना पड़ता है । जीवन में गोपनीयता को महत्व देने के कारण हमें रूढ़िवादी समझा जाता है ।

गोपनीयता तथा एकान्त में खलल का सभी विरोध करते हैं, क्योंकि इन्हीं क्षणों में हम अपने निकट पहुँचते हैं, तथा हमारी विचारक्रिया गतिशील होती है । यदि हम किसी प्राकृतिक दृश्य का आनंद ले रहे होते हैं, तो हम कामना करते हैं कि प्रकृति के इस रमणीय दृश्य का आस्वादन करते समय कोई विघ्न न डाले । यदि टेलीविजन में हमारी पसंद का कोई कार्यक्रम आ रहा हो, तो मेहमानों का आना हमें अरुचिकर लगता है ।

विशेषकर एकान्तवासी के लिए गोपनीयता का बहुत अधिक महत्व होता है क्योंकि उस समय वह शांति चाहता है, इसलिए वह दूसरों की उन्मुक्त हँसी में शामिल नहीं हो पाता । यदि कोई स्त्री शाम को नियमित रूप से मंदिर जाती है और एक शाम को उसके घर में कोई पार्टी चल रही होती है, तो इसका मन उस पार्टी में नही लगता, क्योंकि उसका नियमित क्रम टूट गया है । मनुष्य कुछ एकान्त, गोपनीय क्षणों को चाहता है, जिनके बिना जीवन सूना-सूना प्रतीत होता है ।

मनुष्य की वैयक्तिता अथवा गोपनीयता में राज्य का हस्तक्षेप भी होता है । सरकार कठोर नियम बनाकर हर व्यक्ति को आदेश का पालन करने के लिए मजबूर टेलीफोन टेप करना, पत्रों का निरीक्षण, निर्दोष लोगों की जासूसी आदि कार्यो का विरोध प्रत्येक शांतिप्रिय नागरिक करता है । क्योंकि इनसे उनकी वैयक्तिकता को धक्का पहुँचता है । इसके कारण देश में असंतोष की भावना प्रसारित होती हैं, क्योंकि कुछ गतिविधियों में मनुष्य गोपनीयता की अपेक्षा करता है ।

यह सच है कि मनुष्य एक द्वीप की भांति एकाकी जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है । एक सामाजिक प्राणी होने के नाते वह अन्य लोगों पर निर्भर है और अन्य व्यक्ति उस पर निर्भर हैं । वह कई सामाजिक बंधनों में जकड़ा होता है । लेकिन यदि वे उसके निजी जीवन में हस्तक्षेप करते हैं, तो वह उनके प्रतिरोध में आवाज उठाता है । हर व्यक्ति अपने जीवन के निजी भाग को महत्व देता है, इसके बिना तो जीवन निरर्थक है ।

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