वायु प्रदूषण पर निबंध | Vaayu Pradooshan Par Nibandh! Read this Essay on Air Pollution in Hindi

Essay # 1. वायु प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Air Pollution):

वायु पृथ्वी पर जीवन का एक आवश्यक तत्व है, जो वायु मण्डल के रूप में पृथ्वी को आवृत्त किये हुए है । इसी से प्राणियों एवं जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन प्राप्त होती है, जो जीवन का आधार है और इसी से वनस्पति को कार्बन-डाई-ऑक्साइड मिलती है जिससे उसका पोषण होता है ।

यह वायु ही है जो आर्द्रता को समाहित रखती है तथा उसका वितरण करती है । वायु मण्डल एक कम्बल के समान है जिसके न होने से तापमान अधिक या अति न्यून हो जाएगा । वायु मण्डल ही हमारी अल्ट्रावायलेट किरणों से रक्षा करता है और उल्काओं को जला कर नष्ट कर देता है ।

वायु मण्डल की रचना मूलत: विभिन्न प्रकार की गैसों से हुई है । वायु कोई पृथक पदार्थ नहीं है अपितु अनेक गैसों का आनुपातिक सम्मिश्रण है । इसमें गैसों का अनुपात इतना संतुलित है कि उसमें तनिक-सा व्यतिक्रम संपूर्ण व्यवस्था अथवा चक्र को प्रभावित कर देता है और इसका सीधा प्रभाव पृथ्वी के जीव जगत पर पड़ता है ।

वास्तव में वायु में उपस्थित गैसों पर बाहरी प्रभाव (प्राकृतिक अथवा मानवीय) ही वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है । वायु प्रदूषण की विशद् चर्चा से पूर्व, वायु संरचना को जानना आवश्यक है । नाइट्रोजन और ऑक्सीजन से वायु की संरचना अधिकांशत: होती है, अन्य गैसों की मात्रा एक प्रतिशत के लगभग है ।

वायु की यह संरचना सामान्य रूप से सर्वत्र एक-सी होती है किंतु ऊँचाई के साथ इनका अनुपात बदलने लगता है । इसके अतिरिक्त धूल के कण एवं वाष्प की मात्रा भी ऊँचाई के साथ समाप्त होने लगती है । उपर्युक्त संरचना में बाहरी हस्तक्षेप अथवा कतिपय अन्य गैसों एवं पदार्थों के मिश्रण से इसका संतुलन समाप्त होने लगता है, फलस्वरूप वायु प्रदूषण होना प्रारंभ हो जाता है ।

Essay # 2. वायु प्रदूषण की प्रकृति (Nature of Air Pollution):

जीव मण्डल का आधार वायु, प्रकृति की अनुपम देन है जो सर्वत्र व्यास है । वायु में उपस्थित ऑक्सीजन पर ही जीवन निर्भर है । प्राणी एवं पौधे वायुमण्डल से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन-डाई-ऑक्साइड निष्कासित करते हैं जिसे हरे पौधे ग्रहण कर लेते हैं और एक संतुलित चक्र चलता रहता है ।

किंतु इस संतुलन में उस समय व्यतिक्रम आ जाता है जब उद्योगों, वाहनों एवं अन्य घरेलू उपयोगों से निकलता धुआँ एवं अन्य सूक्ष्म कण, विभिन्न प्रकार के रसायनों से उत्पन्न विषैली गैस, धूल के कण, रेडियोधर्मी पदार्थ आदि वायु में प्रवेश कर से स्वास्थ्य के लिये ही नहीं अपितु समस्त जीव-जगत् के लिये हानिकारक बना देते हैं ।

यही वायु प्रदूषण या वायु मण्डलीय प्रदूषण कहलाता है । जैसा कि मैक्सवेल ने लिखा हैं- “हमारा वायु मण्डल का अत्यधिक दुरुपयोग स्वास्थ्य के लिये खतरा एवं जीवन के लिये संकट बन गया है जिसके फलस्वरूप पौधे एवं अन्य जीवों का विषैली गैस, धूल एवं धुआँ से प्रदूषित क्षेत्रों में विनाश हो रहा है ।”

ADVERTISEMENTS:

वायु प्रदूषण उसी समय प्रारंभ होता है जब वायु में अवांछित तत्व एवं गैस आदि समाविष्ट हो जाते हैं, जिससे उसका प्राकृतिक स्वरूप विनष्ट हो जाता है और उससे हानि होने की संभावना अधिक हो जाती है । ”वायु प्रदूषण में प्रदूषण के रूप में गैसें, ठोस एवं तरल कण सम्मिलित होते हैं जो कार्बनिक एवं अकार्बनिक श्रेणी के होते हैं ।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण को परिभाषित करते हुए लिखा है- वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जहाँ बाहरी परिवेशी वायु मण्डल में दूषित पदार्थों की सान्द्रता मनुष्य तथा पर्यावरण को हानि पहुँचाने तक बढ़ जाती है । वास्तव में वायु प्रदूषण वायु के भौतिक और रासायनिक स्वरूप में ऐसे परिवर्तन से होता है जो न केवल मनुष्य अपितु प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक सम्पदा को हानि पहुँचाता है ।

वायु प्रदूषण कोई नवीन प्रक्रिया नहीं है अपितु अनेक प्राकृतिक कारणों जैसे ज्वालामुखी का विस्फोट, तेज हवाओं से मिट्टी के कणों का वायु में मिलना या जंगल की आग से प्राचीन काल से होता आ रहा है । जब से मानव ने आग का प्रयोग प्रारम्भ किया तभी से प्रदूषण का प्रारम्भ हो गया, पशुचारण से उड़ने वाली रेत, खनन से प्रदूषित वायु मण्डल या गन्दगी से सूक्ष्म जीवाणुओं का वायु में फैल जाना प्राचीन काल से होता रहा है ।

किन्तु तब तक यह समस्या नहीं थी, क्योंकि जनसंख्या सीमित थी, आवश्यकतायें कम थीं, ईंधन का उपयोग अल्प था, प्राकृतिक वनों का पर्याप्त विस्तार था जिसके कारण प्रदूषित पदार्थ पर्यावरण में स्वत: विलीन हो जाते थे, उनसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती थी, क्योंकि वायुमण्डलीय प्रक्रिया में स्वत: शुद्ध एवं सन्तुलित होने की अपूर्व क्षमता होती है । किन्तु औद्योगिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने इस गणित को गलत कर दिया, क्योंकि मानव तीव्र गति से वायु मण्डल में अवशिष्ट पदार्थ विस्तारित करने लगा जो वायु प्रदूषण का मूल कारण है ।

वर्तमान सदी में वायु प्रदूषण की वृद्धि के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

i. उद्योगों का अत्यधिक विकास और उनसे निकलता विषैला पदार्थ एवं गैस,

ii. वाहनों के प्रयोग में अत्यधिक वृद्धि और उनसे निःसृत धुआँ,

iii. रासायनिकों के प्रयोग में वृद्धि और उनका वायु मण्डल में मिश्रित होना,

iv. पेट्रो-रसायनकों के प्रयोग में वृद्धि,

ADVERTISEMENTS:

v. नगरों में जनसंख्या का अत्यधिक जमाव,

vi. वनों का निरंतर विनाश होना,

vii. अवशिष्ट पदार्थों की मात्रा में अत्यधिक जमाव,

viii. परमाणु अस्त्रों का परीक्षण,

ADVERTISEMENTS:

ix. युद्ध में प्रयुक्त अथवा परीक्षण में गोला-बारूद के प्रयोग में वृद्धि,

x. आकाशीय शोध में प्रयुक्त उपग्रहों द्वारा छोड़ा गया प्रदूषित पदार्थ,

xi. जैविक एवं रासायनिक हथियारों का प्रयोग/परीक्षण,

xii. अनियंत्रित खनन, वायु परिवहन में वृद्धि एवं अन्य प्रदूषक कारक तत्वों का हवा में विलीन हो जाना आदि ।

ADVERTISEMENTS:

उपयुक्त कारणों से वर्तमान सदी में वायु प्रदूषण में न केवल वृद्धि हुई है अपितु यदि यह प्रक्रिया चलती रही तो और अधिक वृद्धि होगी । वायु प्रदूषण की समुचित प्रकृति को जानने के लिए वायु प्रदूषण के स्रोतों का विस्तृत विवेचन अपेक्षित है ।

Essay # 3. वायु प्रदूषण के स्रोत (Sources of Air Pollution):

वायु प्रदूषण विविध प्रकार के स्रोतों का परिणाम होता है जो सामूहिक रूप से वायु मण्डल को प्रदूषित करते रहते हैं ।

वायु प्रदूषकों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:

1. उत्पत्ति के स्रोत के आधार पर:

ADVERTISEMENTS:

उत्पत्ति के आधार पर इन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है- (i) प्राकृतिक, (ii) मानवीय । इसी आधार पर मानवीय स्रोतों को पुन: दो भागों में विभक्त किया जाता है- (i) प्राथमिक, (ii) द्वितीयक  |

प्राथमिक प्रदूषक वे हैं जो भूमि स्रोतों से विभिन्न मानवीय क्रियाओं द्वारा वायु मण्डल में छोड़े जाते हैं जिनमें दहन क्रिया द्वारा छोड़े गये कण, औद्योगिक अवशिष्ट, खनन क्रिया द्वारा उत्पन्न कण आदि । दूसरी ओर द्वितीयक प्रदूषण रासायनिक क्रिया का परिणाम होते हैं, जो विभिन्न प्रकार की गैस एवं फोटो रसायन क्रिया द्वारा उत्पन्न होकर खतरनाक प्रदूषण कारक बनते हैं ।

a. वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत:

कुछ प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भी वायु प्रदूषण होता है, यद्यपि यह सीमित एवं क्षेत्रीय होता है । इसमें ज्वालामुखी का उद्गार एक प्रमुख प्राकृतिक क्रिया है जिससे विस्फोट के क्षेत्र का वायु मण्डल प्रदूषित हो जाता है ।

ज्वालामुखी उद्गार के समय विशाल मात्रा में धुआँ, राख एवं चट्टानों के टुकड़े तथा विभिन्न प्रकार की गैसें तीव्र गति से वायु मण्डल में प्रवेश करती हैं और वहाँ प्रदूषण में वृद्धि हो जाती है । यदि यह उद्गार सीमित समय होता है तो प्रदूषण भी कम होता है और यदि लगातार चलता रहता है तो अधिक प्रदूषित होता है । इसी प्रकार उद्गार की शक्ति पर भी प्रदूषण की मात्रा निर्भर करती है ।

वनों में लगने वाली आग (जो कभी-कभी हजारों वर्ग किलोमीटर में फैल जाती है) भी वायु प्रदूषण का कारण बनती है क्योंकि इससे धुआँ और राख के कण विस्तीर्ण हो जाते हैं । इस प्रकार की आग घास के मैदानों में भी लग जाती है ।

तेज हवाओं एवं अंधी-तूफान से जो धूल के कण वायु मण्डल में फैलते हैं वे प्रदूषण के कारण बनते हैं । इसी प्रकार समुद्री लवण के कण, खनिजों के कण भी वायु प्रदूषण में योग देते हैं । दलदली प्रदेश में पदार्थों के सड़ने से ‘मिथेन गैस’ प्रदूषण फैलाती है ।

कुछ पौधों से उत्पन्न हाइड्रोजन के यौगिक तथा पराग कण भी प्रदूषण का कारण हैं । कोहरा प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बनता है । प्राकृतिक स्रोतों से होने वाला वायु प्रदूषण सीमित एवं कम हानिकारक होता है क्योंकि प्रकृति स्वयं विभिन्न क्रियाओं से इसमें संतुलन बनाये रखती है ।

b. वायु प्रदूषण के मानवीय स्रोत:

यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि मानव ने अपनी विभिन्न क्रियाओं से वायु मण्डल या वायु को अत्यधिक प्रदूषित किया है और करता जा रहा है । ऊर्जा के विविध उपयोग, उद्योग, परिवहन, रसायनों के प्रयोग में वृद्धि आदि ने जहाँ मानव को अनेक सुविधायें प्रदान की हैं वहीं वायु प्रदूषण के रूप में संकट को भी जन्म दिया है ।

वायु प्रदूषण के विभिन्न मानवीय स्रोतों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:

(1) दहन द्वारा:

(i) घरेलू कार्यों में दहन,

(ii) वाहनों में दहन,

(iii) ताप विद्युत ऊर्जा हेतु दहन

(iv) अन्य दहन क्रियाएँ

(2) उद्योगों द्वारा,

(3) कृषि कार्यों द्वारा,

(4) विलायकों का प्रयोग,

(5) रेडियोधर्मिता द्वारा ।

(1) दहन क्रियाओं द्वारा:

मनुष्य अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऊर्जा उपयोग में लेता है । अपनी प्रारंभिक आवश्यकता भोजन तैयार करने से लेकर, उद्योगों को चलाने, विद्युत उत्पादन करने, वाहनों को परिचालित करने आदि कार्यों के लिये ऊर्जा उपयोग में लेता है और इस क्रिया से विभिन्न प्रकार की गैसें एवं सूक्ष्म कण वायु में प्रविष्ट होकर उसे प्रदूषित कर देते हैं । दहन क्रिया में प्रमुखत: घरेलू कार्यों में दहन, वाहनों में दहन एवं ताप विद्युत हेतु दहन सम्मिलित हैं ।

इनसे विभिन्न प्रकार से वायु प्रदूषण होता है:

(i) घरेलू कार्यों में दहन:

नियमित घरेलू कार्य जैसे भोजन बनाने, पानी गर्म करने आदि में ईंधन, जैसे-लकड़ी, कोयला, गोबर के कण्डे, मिट्टी का तेल, गैस आदि का प्रयोग होता है । इस जलाने की क्रिया में कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन-मोनो-ऑक्साइड, सल्फर-डाई-ऑक्साइड आदि गैसें उत्पन्न होती हैं जो वायु को प्रदूषित करती हैं ।

इस दहन क्रिया में ऑक्सीजन का उपयोग होता है, अत: वायु में ऑक्सीजन की कमी आ जाती है । अपूर्ण दहन के फलस्वरूप अनेक हाइड्रो कार्बन तथा साइक्लिक पाइरिन यौगिक भी उत्पन्न होते हैं, जो प्रदूषण का कारण हैं । भारत जैसे देश में परंपरागत ईंधन जैसे- लकड़ी, गोबर, खेतों का कचरा, झाड़ियाँ, घास-फूस आदि का उपयोग घरेलू कार्यों में अधिकांशत: किया जाता है । अत: यहाँ वायु अपेक्षाकृत अधिक प्रदूषित होती है ।

(ii) वाहनों में दहन:

वर्तमान युग में परिवहन के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई है, फलस्वरूप तीव्रगामी परिवहन के साधन जैसे- कार-मोटर, टूक, स्कूटर, मोटर साइकिल, डीजल चलित रेल, वायुयान आदि की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि न केवल विकसित देशों में अपितु विकासशील देशों में भी हुई है ।

इससे आज जहाँ दूरियाँ सिमट कर रह गई हैं वहीं वायु प्रदूषण का संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है । समस्त ऊर्जा चालित वाहनों में आंतरिक दहन से शक्ति प्राप्त होती है और साथ में धुआँ निकलता है जो विषैली गैसों एवं हानिकारक प्रदूषण तत्वों से युक्त होता है ।

इनमें हाइड्रोजन, कार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर के विभिन्न ऑक्साइड मिले रहते हैं जो वायु मण्डल में प्रवेश कर जाते हैं । इनसे निकले धुएँ में हानिकारक कार्बन मोनो ऑक्साइड और सीसे के कण भी होते हैं जो वायु प्रदूषण में वृद्धि करते हैं ।

धूम कुहरे का जन्म भी पेट्रोल एवं डीजल से निकले नाइट्रोजन के ऑक्साइड से होता है जो सूर्य के प्रकाश में हाइड्रो कार्बन से क्रिया कर घातक प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे को जन्म देता है । इस संदर्भ में 1952 में हुए ‘लंदन स्मोग’ का उल्लेख आवश्यक है जहाँ पाँच दिन तक इस प्रकार का धूम कुहरा छाया रहा, हजारों लोगों की मृत्यु हुई और सैकड़ों श्वास एवं हृदय रोग से ग्रसित हो गये ।

कुल अमेरिकी वायु प्रदूषण का लगभग 42 प्रतिशत केवल परिवहन द्वारा ही होता है । टोकियो जैसे शहर में वाहनों में वायु प्रदूषण इतना अधिक होता है कि अनेक बार यातायात पुलिस वालों को ऑक्सीजन लेनी पड़ती है ।

विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में वाहनों की संख्या कम है किंतु वायु प्रदूषण कम नहीं क्योंकि यहाँ के वाहनों के इंजन पुराने होते हैं, उनका रख-रखाव ठीक नहीं होता और सामान्य वाहन वाले उनसे होने वाले पर्यावरण प्रदूषण के प्रति उदासीन हैं ।

(iii) ताप विद्युत ऊर्जा हेतु दहन:

जहाँ कोयले को जला कर ताप ऊर्जा प्राप्त की जाती है वहाँ वायु प्रदूषण का खतरा अधिक हो जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में अत्यधिक कोयला जलाया जाता है । फलस्वरूप प्रदूषण फैलाने वाली गैसें जैसे सल्फर-डाई-ऑक्साइड, कार्बन के ऑक्साइड तो वायुमण्डल में फैलती ही हैं, इसके अतिरिक्त कोयले की राख एवं कार्बन के सूक्ष्म कण इसके चारों ओर के वायु मण्डल में फैल जाते हैं ।

एक 200 मेगावाट के ताप विद्युत केन्द्र पर कम गंधक वाला कोयला जलने पर भी लगभग 50 टन सल्फर-डाई-ऑक्साइड और उससे भी अधिक राख फैलती है । राजस्थान में कोटा नगर में विगत वर्षों में स्थापित ताप विद्युत केन्द्र से नगर का पर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित हो रहा है ।

(iv) अन्य दहन क्रियाएँ:

उपयुक्त वर्णित दहन क्रियाओं के अतिरिक्त अवशिष्ट कचरे को जलाया जाना, आतिशबाजी, आग्नेय अस्त्रों का परीक्षण आदि से भी वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है ।

(2) उद्योगों द्वारा:

वायु प्रदूषण के लिये जहाँ एक ओर परिवहन उत्तरदायी है तो दूसरी ओर उद्योग । वास्तविक रूप से वायु प्रदूषण औद्योगिक क्रांति की देन है । उद्योगों में एक ओर दहन क्रिया होती है तो दूसरी ओर विविध पदार्थों का धुआँ जो औद्योगिक चिमनियों से निकलकर वायु मण्डल में विलीन हो जाता है तथा जिसका परिणाम वायु प्रदूषण होता है ।

रासायनिक उद्योगों से निकलने वाली गैस न केवल वायु प्रदूषण फैलाती हैं अपितु कभी-कभी असावधानी के कारण मृत्यु का कारण भी बन जाती हैं, जैसा कि 2 व 3 दिसम्बर, 1984 को भोपाल में गैस रिसाव से हुआ । इसमें अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कंपनी के भोपाल स्थित कीटनाशक बनाने के कारखाने में आइसोमिथाइल-आइसोसाइनाइड गैस के रिसाव से हुआ जो पानी के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक एसिड बनाती है ।

इस विषैली गैस के बादल ने भोपाल के एक भाग में 3000 से भी अधिक व्यक्तियों को मृत कर दिया और हजारों अन्य आज भी अंधापन, श्वास, चर्म रोग आदि से ग्रसित हैं । उद्योगों में भी कुछ उद्योग जैसे- कपड़ा, कागज, चीनी, उर्वरक, तेल शोधक, धातु उद्योग, रसायन उद्योग आदि से अपेक्षाकृत अधिक वायु प्रदूषण होता है ।

इन उद्योगों से निकलने वाली गैस, वाष्प कणिकाएँ आदि वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं । इनमें हाइड्रोजन, सल्फाइड, सल्फर-डाई-ऑक्साइड, कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्वन-मोनो-ऑक्साइड, सीसा, आर्सेनिक फ्लोराइड, बेरीलियम, केडमियम आदि वायु प्रदूषण कारक हैं ।

उद्योगों के कारण लॉस एंजिल्स शहर पर सदैव धुएँ का बादल छाया रहता है । जापान में जब वायु प्रदूषण अधिक होता है तो बच्चों को स्कूल जाते समय मुंह पर जाली पहना दी जाती है । भारत में यद्यपि उद्योगों द्वारा वायु प्रदूषण औद्योगिक देशों की तुलना में कम है किंतु कुछ नगरों में जहाँ पर्याप्त उद्योग हैं, इसका स्तर स्वास्थ्य को खतरा पैदा कर रहा है ।

इसी प्रकार अम्लीय वर्षा भी वायु प्रदूषण का एक खतरनाक प्रकार है । अम्लीय वर्षा तब होती है जब सल्फर-डाई-ऑक्साइड (SO2) वायु में पहुँच कर सल्फ्यूरिक एसिड (H2SO4) बन जाता है जो सूक्ष्म कणों के रूप में गिरता है जिसमें सल्फेट आयन अधिक होता है । इस प्रकार के जल का पी.एच. 5 और 6 से कम होता है जो सामान्य जल का होता है । यूरोप एवं अमेरिकी औद्योगिक नगरों में वर्षा के जल में 3 से 5 पी.एच. पाया गया । इसका अर्थ है वहाँ के जल में पहले से 100 से 1000 गुना तक अधिक अम्लता पाई जाती है । इस प्रकार का जल मानव एवं वनस्पति दोनों के लिये हानिकारक होता है ।

(3) कृषि कार्यों द्वारा:

वर्तमान समय में कृषि की प्रक्रिया से भी वायु प्रदूषण होने लगा है । यह प्रदूषण कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से हो रहा है । कृषि में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को रोकने के लिये विषैली दवाओं का छिड़काव किया जाता है, कभी-कभी यह छिड़काव हेलीकोप्टर या छोटे विमानों द्वारा भी किया जाता है ।

इस प्रकार के छिड़काव से रसायन वायु में समाहित हो जाते हैं । इनसे अनेक दबायें जो डी.डी.टी. के उत्पादन होती हैं स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होती हैं तथा उनसे अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं । इसी प्रकार अनेक बार खेतों में फसल निकालने के पश्चात् बचे हुए भाग को जला दिया जाता है, इससे वायु प्रदूषण होता है ।

(4) विलायकों का प्रयोग:

अनेक प्रकार के पेंट, स्प्रे, पॉलिश आदि करने के लिये जिन विलायकों का प्रयोग किया जाता है वे हवा में फैल जाते हैं क्योंकि इनमें हाइड्रो कार्बन पदार्थ होते हैं और वायु को प्रदूषित कर देते हैं । विभिन्न रसायन शालाओं में भी विलायकों का प्रयोग होता है जो प्रयोग के समय कभी-कभी असावधानी से वायु में पहुँच कर उसे प्रदूषित कर देते हैं ।

(5) रेडियोधर्मिता द्वारा:

परमाणु शक्ति का प्रयोग जहाँ एक ओर असीम शक्ति प्राप्त करने के लिये किया जा रहा है, वहीं तनिक-सी असावधानी न केवल वायु प्रदूषण अपितु मौत का कारण बन जाती है । आज विश्व के अनेक देशों में ऊर्जा हेतु परमाणु संयंत्र लगे हुए हैं यद्यपि इनमें पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध किये जाते हैं कि परमाणु ईंधन या रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर न जाने पाये किंतु तकनीकी एवं मानवीय कारणों से कभी-कभी रेडियोधर्मिता बाहर निकल जाती है ।

पूर्व सोवियत संघ जैसे देश में चेरेनोबिल परमाणु संयंत्र के रिसाव से हजारों व्यक्ति मौत के मुँह में चले गये । यही नहीं, जब परमाणु बमों का परीक्षण किया जाता है तो परमाणु धूलि वायु मण्डल में पहुँच जाती है । हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराये गये बमों से वहाँ का वायुमण्डल इतना अधिक प्रदूषित हुआ कि उसके कतिपय अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं । वास्तव में मानव ने उद्योग, परिवहन, ऊर्जा आदि के क्षेत्रों में जो प्रगति की है उसका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव वायु प्रदूषण के रूप में हो रहा है । यह संकट आज संपूर्ण विश्व पर गहराता जा रहा है ।

2. रासायनिक संगठन के आधार पर:

कार्बनिक प्रदूषक एवं अकार्बनिक प्रदूषक दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है । एक अन्य विभाजन के अनुसार इन्हें ठोस, तरल एवं गैसीय श्रेणी में विभक्त किया जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

3. आकार एवं घनत्व के आधार पर:

वायु प्रदूषकों की दो श्रेणियाँ हैं:

(a) विशिष्ट स्रोत:

जो वृहत् उद्योगों एवं अन्य प्रतिष्ठानों से संबंधित होते हैं, जैसे- प्रमुख औद्योगिक इकाइयाँ, वाष्प विद्युत प्लांट, थर्मल प्लांट आदि ।

(b) विविध स्रोत:

इसमें आटोमोबाइल, सार्वजनिक एवं निजी उपयोग से निःसृत धुआँ, पेट्रोल एवं अन्य रसायनों के वाष्पीकरण तथा अनेक प्रकार के स्प्रे, पेंट, छोटे उद्योग, विभिन्न वाहनों से जलने वाले पेट्रोल-डीजल आदि से होता है । नगरों की गंदगी, मृत जानवरों के गलने-सड़ने आदि से भी वायु प्रदूषण होता है ।

4. स्रोत प्रकार के आधार पर:

प्रदूषकों को निम्न प्रकार विभाजित किया जाता है:

(a) वाहनों में दहन द्वारा,

ADVERTISEMENTS:

(b) स्थिर दहन द्वारा,

(c) औद्योगिक प्रक्रिया द्वारा,

(d) ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा एवं

(e) अन्य स्रोतों से ।

अध्ययन की सुविधा हेतु वायु प्रदूषकों को प्राकृतिक एवं मानवीय श्रेणी में विभक्त कर उनका संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है ।

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