भूमि प्रदूषण पर निबंध | Bhoomi Pradooshan Par Nibandh! Read this land Pollution Essay in Hindi:- 1. भू-प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Land Pollution) 2. भू-प्रदूषण के स्रोत (Sources of Land Pollution) 3. समस्या (Problem).

भू-प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Land Pollution):

पृथ्वी के धरातल के एक-चौथाई भाग पर भूमि है किंतु उसमें मानव उपयोग की भूमि केवल 280 लाख वर्ग मील (448 लाख वर्ग कि.मी. है) । इस भूमि का समुचित एवं सही उपयोग आज संपूर्ण विश्व का उत्तरदायित्व है, किंतु विश्व में हो रही जनसंख्या वृद्धि से भूमि उपयोग में विविधता एवं सघनता आई है ।

फलस्वरूप उसका अनुपयुक्त तरीके से उपयोग किया जा रहा है । परिणामस्वरूप ‘भू-प्रदूषण’ की समस्या का जन्म हुआ है जो आज विश्व के अनेक भागों में एक प्रमुख समस्या बन गई है । ‘भूमि’ अथवा ‘भू’ एक व्यापक शब्द है, जिसमें पृथ्वी का संपूर्ण धरातल समाहित है, किंतु मूल रूप से भूमि की ऊपरी परत, जिस पर कृषि की जाती है एवं मानव जीविका उपार्जन की विविध क्रियायें करता है, वह विशेष महत्व की है ।

इस परत अथवा भूमि का निर्माण विभिन्न प्रकार की शैलों से होता है जिनका क्षरण मृदा को जन्म देता है जिसमें विभिन्न कार्बनिक एवं अकार्बनिक यौगिकों का सम्मिश्रण होता है । वहीं से भू-प्रदूषण का प्रारंभ होता है । इसे पारिभाषिक रूप में हम कह सकते हैं- ”भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई अवांछित परिवर्तन जिसका प्रभाव मनुष्य एवं अन्य जीवों पर पड़े या भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो भू-प्रदूषण कहलाता है ।”

भू-प्रदूषण के स्रोत (Sources of Land Pollution):

भू-प्रदूषण विभिन्न प्रकार के अनुपयोगी अपशिष्ट पदार्थों के जमा होने का परिणाम है । यह अपशिष्ट पदार्थ, घरेलू सार्वजनिक, औद्योगिक, खनिज खनन एवं कृषि अपशिष्ट के रूप में होता है ।

इसी आधार पर भू-प्रदूषण के स्रोतों की निम्न श्रेणियाँ की जा सकती हैं:

(i) घरेलू अपशिष्ट,

(ii) औद्योगिक एवं खनन अपशिष्ट,

(iii) नगरपालिका अपशिष्ट,

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(iv) कृषि अपशिष्ट ।

(i) घरेलू अपशिष्ट:

भू-प्रदूषण का एक वृहत् भाग घरेलू अपशिष्ट होता है । घरों में प्रतिदिन सफाई करने के पश्चात् गंदगी निकलती है । इसमें जहाँ एक ओर धूल-मिट्टी होती है, वहीं दूसरी ओर कागज, गत्ता, कपड़ा, प्लास्टिक, लकड़ी, धातु के टुकड़े आदि भी होते हैं ।

इसके साथ ही सब्जियों के बचे भाग, फलों के छिलके, चाय की पत्तियाँ, अन्य सड़े-गले पदार्थ, सूखे फूल-पत्तियाँ, खराब हुए खाद्य पदार्थ आदि भी सम्मिलित होते हैं । यदा-कदा होने वाले समारोह, पार्टियों आदि में इन पदार्थों की मात्रा अधिक हो जाती है ।

ये सभी पदार्थ घरों से सफाई के समय एकत्र कर किसी स्थान पर (जो इसके लिये निर्धारित होता है) वहाँ डाल दिया जाता है । विकसित देशों में इस कूड़ा-करकट को ढकने एवं निस्तारण की व्यवस्था होती है । परंतु भारत या अन्य विकासशील देशों में अधिकांशत: इस प्रकार की व्यवस्था का अभाव होने से, यह अपशिष्ट पदार्थ सड़ता रहता है, इसमें विभिन्न जीवाणु उत्पन्न होते रहते हैं जो प्रदूषण और अंत में रोग का कारण बनते हैं ।

(ii) औद्योगिक एवं खनन अपशिष्ट:

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औद्योगिक संस्थानों से वृहत् मात्रा में कूड़ा-करकट एवं अपशिष्ट पदार्थ निकलता है । यह कचरा प्रत्येक उद्योग में चाहे वह धातु उद्योग हो या रासायनिक उद्योग से निकाला जाता है और उद्योग के निकट खुले में छोड़ दिया जाता है । इसमें अनेक गैसें एवं रासायनिक तत्व न केवल वायु मण्डल अपितु भूमि को भी प्रदूषित करते हैं ।

अनेक उद्योगों से वृहत् मात्रा में राख निकलती हे । अनेक विषैले, अम्लीय एवं क्षारीय पदार्थ भूमि को अनुपयोगी कर देते हैं । कभी-कभी ये पदार्थ उद्योगों के निकट गर्त में दबा दिये जाते हैं जो भू-प्रदूषण के रूप में भूमि को अनुपयोगी बना देते हैं ।

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(iii) नगरपालिका अपशिष्ट:

नगरपालिका अपशिष्ट से तात्पर्य है सार्वजनिक रूप से एकत्र होने वाली गंदगी । इसमें घरेलू अपशिष्ट तो सम्मिलित हैं ही जिन्हें सार्वजनिक रूप से एकत्र किया जाता है, साथ में मल-मूत्र का एकत्र हो जाना प्रमुख है । इसके अतिरिक्त विभिन्न संस्थानों, बाजारों, सड़कों से एकत्रित गंदगी, मृत जानवरों के अवशेष, मकानों आदि के तोड़ने से निकले पदार्थ आदि हैं । वास्तव में शहर या कस्बे की संपूर्ण गंदगी नगरपालिका अपशिष्ट की श्रेणी में ही आती है ।

इस संबंध में पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं किंतु एक अनुमान के अनुसार भारत के 45 बड़े नगरों में कुल मिलाकर प्रतिदिन लगभग 50,000 टन नगरपालिका अपशिष्ट निकलता है जो भू-प्रदूषण का प्रमुख कारण है ।

(iv) कृषि अपशिष्ट:

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यह कृषि क्षेत्रों में होता है । इसमें कृषि के उपरांत उसका बचा भूसा, डंठल, घास-फूस, पत्तियाँ आदि एक स्थान से एकत्र कर दिया जाता है या फैला रहता है । इस पर पानी गिरने से यह सड़ने लगता है तथा जैविक क्रिया होने से यह प्रदूषण का कारण बन जाता है । वैसे अन्य स्रोतों की तुलना में यह अधिक गंभीर समस्या नहीं है क्योंकि अब अधिकांश कृषि अपशिष्टों को किसी न किसी रूप में उपयोग में ले लिया जाता है ।

भारतीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान, नागपुर ने भारत में विभिन्न जनसंख्या समूहों के नगरों में होने वाले कूड़ा-करकट के स्वरूप का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया है:

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उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि हमारे देश में नगरों में मिश्रित पदार्थ, राख एवं अग्नि मिट्टी तथा कार्बन के रूप में लगभग 90 प्रतिशत कूड़ा-करकट होता है । जबकि विकसित देशों में इसकी प्रकृति भिन्न है । संयुक्त राज्य अमेरिका में 42 प्रतिशत कागज एवं उससे संबंधित वस्तुएँ, 24 प्रतिशत धातु, ग्लास-चीनी मिट्टी के टुकड़े एवं राख, 12 प्रतिशत अपशिष्ट खाद्य एवं शेष अन्य वस्तुएँ होती हैं । वास्तविकता यह है कि अपशिष्ट की मात्रा नगरों के आकार एवं विकास तथा विस्तार के साथ अधिक होती जाती है ।

भू-प्रदूषण की समस्या (Problem of Land Pollution):

स्पष्ट है कि भूमि की रासायनिक, भौतिक एवं जैविक संरचना में परिवर्तन अथवा विकृति आ जाने के फलस्वरूप भू-प्रदूषण होता है । यदि इस तथ्य को विस्तृत रूप में अध्ययन किया जाये तो इसमें मृदा-अपरदन, वनों के विनाश द्वारा भू-क्षरण, मिट्टी की लवणता या क्षारीयता में वृद्धि द्वारा भूमि का कृषि योग्य न रहना, भूमि में जल एकत्र हो जाने की समस्या, गहन कृषि द्वारा अथवा रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग द्वारा भू-प्रदूषण हो जाना भी सम्मिलित किया जाता है, किंतु वर्तमान समय में भू-प्रदूषण से संबंधित मूल समस्या है- ठोस अपशिष्ट अथवा कूड़ा-करकट द्वारा भू-प्रदूषण एवं इसको समाप्त करने की ।

वास्तव में भू-प्रदूषण की समस्या यथार्थ में ठोस अपशिष्ट के निस्तारण की समस्या ही है । मानव की आवश्यकताओं की अत्यधिक वृद्धि, विभिन्न वस्तुओं की उपलब्धता, जीवन स्तर में वृद्धि जनसंख्या की तेजी से वृद्धि, नगरीकरण की अत्यधिक प्रवृत्ति, आदि के कारण वर्तमान समय में अनुपयुक्त पदार्थों को हम बाहर सड़क के किनारे या एक निर्धारित स्थान पर एकत्रित करते जाते हैं ।

इसमें एक ओर घरेलू उपयोग की वस्तुएँ जैसे- फटे पुराने कपड़े, प्लास्टिक के थैले एवं अन्य वस्तुएँ, काँच, गत्ता, धातु के तार आदि अनेक वस्तुएँ होती हैं तो दूसरी ओर उद्योगों से निकले अवशिष्ट पदार्थ, खदानों से निकला व्यर्थ मलबा, कृषि का कूड़ा-करकट और उन सबसे अलग मल-मूत्र की गंदगी होती है ।

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ये सभी पदार्थ अलग-अलग अथवा मिश्रित रूप से पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनते हैं । इनकी मात्रा देश-देश में भिन्न होती है । इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिवर्ष इसकी मात्रा 4.34 करोड़ टन होती है । भारत जैसे देश में जहाँ कूड़ा-करकट एकत्र करने और निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं है इसकी मात्रा कई गुना अधिक है, जिसके द्वारा उत्पन्न प्रदूषण से स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है ।

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