Read this article in Hindi to learn about the six important Schemes for Women Empowerment in India. The projects are:- 1. राष्ट्रीय महिला आयोग 2. महिला विकास परियोजनाएं 3. केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड and a Few Others.

देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने से सम्बर्धित अनेक योजनाएं संचालित हैं ।

जिनमें से कुछ का विवरण अग्रलिखित है:

1. राष्ट्रीय महिला आयोग:

राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के अनुपालनार्थ भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक उच्चाधिकार प्राप्त स्वायत्तता प्राप्त निकाय के रूप में 31 जनवरी, 1992 को किया गया ।

आयोग की स्थापना का उद्देश्य महिलाओं के हितों और अधिकारी की सुरक्षा करना, उन्हें दर्जे में समानता प्रदान कराना और उनके विरुद्ध भेदभाव को समाप्त करना है । आयोग में एक अध्यक्ष, पाँच सदस्य तथा एक सदस्य सचिव है ।

आयोग, महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों, अभिरक्षा में रह रही महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति की महिलाओं तथा अन्य विशेष वर्गों की महिलाओं की समस्याओं तथा उनकी स्थिति की स्पष्ट जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न राज्यों के व्यापक दौरे करता है ।

आयोग महिला शक्ति सम्पन्नता से सम्बन्धित विभिन्न सामाजिक, आर्थिक तथा कानूनी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए संगोष्ठियाँ/सम्मेलन/कार्यशालाएं आयोजित अथवा प्रायोजित करता है । आयोग का मुख्य कार्य महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करना है । राष्ट्रीय महिला आयोग ने महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में सचेत बनाने के लिए बहुआयामी कार्यनीति अपनायी है ।

जिसमें निम्नलिखित कार्यकलाप शामिल है:

I. कानूनी जागरूकता कार्यक्रम ।

ADVERTISEMENTS:

II. शिकायत, मुकदमा, पूर्व सलाह तथा परामर्श कक्ष ।

III. कार्य स्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से सम्बन्धित आचार संहिता ।

IV. पारिवारिक महिला लोक अदालतें ।

V. कानूनों और विधायी उपायों की समीक्षा ।

इसी प्रकार के आयोग कुछ अन्य राज्यों जैसे- असम, दिल्ली, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मिजोरम, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, त्रिपुरा, तमिलनाडु तथा पश्चिम बंगाल में भी स्थापित किये गये हैं ।

2. महिला विकास परियोजनाएं:

i. महिला एवं बाल विकास विभाग:

a. परियोजना का नाम:

महिलाओं के लिए प्रशिक्षण तथा रोजगार कार्यक्रम हेतु सहायता (स्टेप) ।

उद्देश्य:

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i. महिलाओं को छोटे व्यवहार्य दलों में संगठित करना तथा प्रशिक्षण और ऋण के माध्यम से सुविधाएं उपलब्ध कराना ।

ii. कौशल उत्थान के लिए प्रशिक्षण उपलब्ध कराना ।

iii. महिला दलों को सक्षम बनाना, ताकि वे पश्य एवं अग्र सम्पर्कों के माध्यम से स्वयं रोजगार तथा आमदनी बढ़ाने वाले कार्यक्रम चला सकें ।

iv. महिलाओं हेतु प्रशिक्षण तथा रोजगार की परिस्थितियों में और अधिक सुधार करने के लिए समर्थन सेवाएं उपलब्ध कराना ।

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लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

इस कार्यक्रम (स्टेप) के तहत शामिल किए जाने वाले लक्ष्य वर्ग में सीमान्त/सम्पत्ति विहीन ग्रामीण तथा शहरी निर्धन महिलाएं शामिल हैं । इनमें मजदूरी प्राप्त करने वाले श्रमिक, बिना मजदूरी दैनिक कार्मिक, महिला मुखिया वाले परिवार, सीमान्त श्रमिक, जनजातीय तथा अन्य बेदखल किए गये वर्ग शामिल हैं । इस परियोजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति तथा जनजाति परिवारों तथा गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों पर विशेष बल दिया जाता है ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

यह स्कीम सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1860 अथवा राज्य सरकार के समकक्ष अधिनियम के तहत पंजीकृत सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों, जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों, संघों, सहकारी व स्वैच्छिक संगठनों, गैर सरकारी स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से चलाई जाती है । इस स्कीम के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले निकाय, संगठन अथवा अभिकरण ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत होने चाहिए भले ही उनके मुख्यालय शहरी क्षेत्रों में स्थित हों ।

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b. परियोजना का नाम:

महिलाओं के लिए रोजगार सह आयोत्पादक इकाई स्थापित करना (नोराड) ।

उद्देश्य:

महिलाओं को प्रशिक्षित करना, अधिमानत: गैर परम्परागत क्षेत्रों में उन्हें प्रशिक्षण देना तथा महिलाओं का रोजगार सुनिश्चित करना ।

ADVERTISEMENTS:

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

शहरी झोपड़-पट्टियों तथा ग्रामीण क्षेत्र की निर्धन और जरूरतमंद महिलाएं तथा समाज के कमजोर वर्ग जैसे अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों की महिलाएं ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

यह स्कीम सार्वजनिक उपक्रमों / निगम / विश्वविद्यालयों / गैर सरकारी संगठनों के महिला विकास केन्द्रों के माध्यम से क्रियान्वित की जाती है, जो सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1860 अथवा राज्य सरकार के समतुल्य अधिनियम के तहत पंजीकृत हों ।

c. परियोजना का नाम:

बच्चों के लिए दिवस देखभाल केन्द्र सहित कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल भवनों का निर्माण/विस्तार ।

उद्देश्य:

अपने घरों से दूर रहने वाली कामकाजी महिलाओं को सस्ता एवं सुरक्षित आवास उपलब्ध कराना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

एकल कामकाजी महिलाएं, विधवाएं, तलाक शुदा, परित्यक्त तथा ऐसी कामकाजी महिलाएं जिनके पति शहर में नहीं रहते ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

महिला / समाज कल्याण / महिला शिक्षा के क्षेत्र में कम से कम दो वर्षों से कार्यरत ऐसे स्वैच्छिक संगठन, स्थानीय निकाय तथा सहकारी संस्थाएं ।

d. परियोजना का नाम:

महिलाओं तथा लड़कियों के लिए अल्पावास गृह ।

उद्देश्य:

i. ऐसी महिलाओं और लड़कियों को अस्थायी आवास और सहायता उपलब्ध कराना, जिनके पास कोई सामाजिक सहायता प्रणाली उपलब्ध नहीं है ।

ii. महिलाओं और लड़कियों को कौशल प्रशिक्षण और परामर्श प्रदान करके उनका सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पुनर्वास करना ।

लक्ष्य वर्ग / लाभार्थी:

I. जिन्हें जबरदस्ती वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया जा रहा है ।

II. पारिवारिक तनाव अथवा अनबन के कारण आजीविका के साधनों के बिना जिन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा तथा शोषण के विरूद्ध जिनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है अथवा जो विवाह सम्बन्धी विवादों के कारण मुकदमेबाजी की शिकार हैं ।

III. जिनका यौन शोषण किया गया है तथा वे परिवार अथवा समाज में पुन: समायोजन के लिए समस्याओं का सामना कर रही है ।

IV. मानसिक कुसंमजन, भावनात्मक विकृति/सामाजिक बहिष्कार की शिकार ।

V. ऐसी महिलाएं जो पारिवारिक समस्याओं, मानसिक/शारीरिक उपचार के लिए अपने घरों से निकल आई हैं तथा परिवार/समाज में पुनर्वास तथा पुर्नसमायोजन के लिए जिन्हें परामर्श की आवश्यकता है ।

VI. 15-35 वर्ष के बीच के आयु वर्ग की महिलाओं को प्राथमिकता प्रदान की जाती है ।

VII. माताओं के साथ आने वाले बच्चे तथा संस्थान में जन्मे बच्चे केवल 7 वर्ष की आयु तक गृहों में रह सकते हैं, तत्पश्चात उन्हें बच्चों की संस्थाओं में स्थानान्तरित कर दिया जाएगा अथवा पालन-पोषण, देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराई जायेंगी ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

स्वैच्छिक गैर सरकारी संगठन, तत्कालीन प्रभावी किसी भी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत सार्वजनिक न्यास, स्थानीय निकाय अथवा समय-समय पर परियोजना संस्वीकृति समिति द्वारा विनिर्दिष्ट अन्य निकाय ।

e. परियोजना का नाम:

महिलाओं पर अत्याचारों की रोकथाम के लिए शिक्षात्मक कार्य ।

उद्देश्य:

महिलाओं पर होने वाले बलात्कार, दहेज मृत्यु, पत्नी के साथ मारपीट, शराबखोरी, छेड़खानी आदि अत्याचारों की रोकथाम के लिए प्रचार, प्रकाशन तथा अनुसंधान कार्य का संवर्धन करना ।

लक्ष्य वर्ग / लाभार्थी:

महिलाओं का वह वर्ग, जो नृशंसता और लूट-खसोट का शिकार तथा वंचित रहा है ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

स्वैच्छिक संगठन, विश्वविद्यालय, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान तथा उच्च शिक्षण संस्थान ।

f. परियोजना का नाम:

बालिका समृद्धि योजना ।

उद्देश्य:

1. जन्म के समय बालिका तथा उसकी माता के प्रति परिवार एवं समुदाय के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना ।

2. बालिकाओं के स्कूलों में प्रवेश तथा पढ़ाई जारी रखने की दर में वृद्धि करना ।

3. अप्रत्यक्ष रूप से बालिकाओं की उत्तरजीविता सुनिश्चित करना, बालिका शिशु भ्रूण हत्या तथा बालिका हत्या को हतोत्साहित करना ।

4. घर तथा घर के बाहर बालिका श्रमिकों की संख्या में कमी करना ।

5. बालिकाओं के समग्र स्तर को उन्नत करना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

बालिका समृद्धि योजना के अन्तर्गत सम्पूर्ण भारत के सभी ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में 15.08.97 को अथवा उसके बाद जन्म लेने वाली बालिकाएँ शामिल होंगी ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

स्कीम का निष्पादन जिला पंचायतें / जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों / जिला शहरी विकास अभिकरणों / जिला महिला विकास अभिकरणों अथवा राज्य सरकार द्वारा सृजित अन्य जिला स्तरीय प्रमुख अभिकरणों के माध्यम से तथा संचालन ग्राम पंचायतों / नगर निगमों के माध्यम से किया जायेगा ।

g. परियोजना का नाम:

राष्ट्रीय शिशु गृह कोष स्कीम, 1994 ।

उद्देश्य:

शिशु गृहों की बढ़ती हुई माँग को पूरा करना तथा 0-5 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को दिवस देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

5 वर्ष से कम आयु वर्ग के ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता की मासिक आय 1,800.00 रु. से कम है, कृषि श्रमिकों के बच्चे, अ.जा. / अ.ज.जा तथा रोजगारोन्मुख स्कीमों, जैसे महिलाओं के लिए प्रशिक्षण तथा रोजगार सहायता (स्टेप) तथा अन्तर्राष्ट्रीय विकास के लिए नार्वेजियन एजेन्सी (नोराड) में कार्यरत महिलाओं के बच्चे एवं साम्प्रदायिक दंगों के शिकार परिवारों के बच्चे इस स्कीम के तहत सहायता / लाभ प्राप्त करने के पात्र हैं ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

यह स्कीम स्वैच्छिक संगठनों / महिला मण्डलों तथा राज्य / संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों के माध्यम से चलाई जा रही है ।

h. परियोजना का नाम:

महिलाओं तथा बच्चों के विकास के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं को संगठनात्मक सहायता ।

उद्देश्य:

महिलाओं तथा बच्चों के लिए कल्याण स्कीमों का कार्यान्वयन कर रहे स्वैच्छिक संगठनों के केन्द्रीय कार्यालयों की अनुरक्षण लागत की कमी को पूरा करना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

महिलाओं तथा बच्चों के कल्याणार्थ कार्य करने वाले ऐसे स्वैच्छिक संगठन, जिनके पास केन्द्रीय कार्यालय के अनुरक्षण के लिए कम राशि उपलब्ध है ।

i. परियोजना का नाम:

अनुसंधान, प्रकाशन तथा प्रबोधन के लिए सहायता अनुदान ।

उद्देश्य:

i. अनुसंधान / मूल्यांकन अध्ययन प्रायोजित करना ।

ii. शोधकर्त्ताओं को अनुसंधान अध्ययनों का प्रायोजन ।

iii. संगोष्ठियों / कार्यशालाओं / सम्मेलनों का प्रायोजन ।

iv. प्रकाशन अनुदान उपलब्ध कराना ।

v. प्रबोधन कार्यकलापों / कार्मिकों के प्रशिक्षण / नवीन कार्यकलापों को प्रोत्साहन हेतु अनुदान उपलब्ध कराना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

संस्थान में अनुसंधान / मूल्यांकन प्रबोधन अध्ययन तथा संगोष्ठियों / सम्मेलनों एवं क्षमता निर्माण से महिलाओं / बच्चों के कल्याण तथा विकास के लिए कार्यक्रमों स्कीमों, नीतियों के निरूपण में आयोजनकारों, नीति निर्माताओं को मदद मिलेगी ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

महिला एवं बाल विकास के क्षेत्र में अनुसंधान आयोजित करने में सक्षम विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्थान, स्वैच्छिक संगठन, व्यावसायिक संघ तथा शोधकर्ता / केन्द्र सरकार / राज्य सरकारों / सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा स्थापित तथा पूर्णतया वित्त पोषित संस्थान ।

j. परियोजना का नाम:

राष्ट्रीय बाल कोष ।

उद्देश्य:

विशेष रूप से स्कूल पूर्व बच्चों के पुनर्वास सहित बच्चों के कल्याणार्थ स्वैच्छिक संगठनों को यह अनुदान सहायता उपलब्ध करवाता है ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

बच्चे, विशेषकर अ.जा. / जनजाति तथा पिछड़े वर्गों के बच्चे ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से राष्ट्रीय बाल कोष ।

3. केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड:

i. परियोजना का नाम:

जागृतिवर्द्धक कार्यक्रम ।

उद्देश्य:

1. महिलाओं से सम्बद्ध मुद्दों पर जागृतिवर्द्धक शिविर आयोजित करना ।

2. महिलाओं के दर्जे, अधिकार और समस्याओं के मुद्दों पर समुदाय में महिलाओं की जागृति बढ़ाना ।

3. विशेष रूप से समुदाय के पुरुषों और जन सामान्य में महिला मुद्दों के सम्बन्ध में जागरूकता लाना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

ग्रामीण तथा निर्धन महिलाएं ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

गैर सरकारी संगठन ।

ii. परियोजना का नाम:

महिलाओं के लिए शिक्षा के संक्षिप्त पाठ्यक्रम ।

उद्देश्य:

a. पढ़ाई छोड़ देने वालों या फेल हो जाने वाली महिलाओं को उनकी स्कूली शिक्षा पूरी करवाना ।

b. शिक्षा और सम्बद्ध कौशल प्रदान कर महिलाओं को सामाजार्थिक रूप से शक्ति सम्पन्न बनाना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

विशेष रूप से पढ़ाई छोड़ देने वाली 15+ आयुवर्ग की महिलाएं तथा लड़कियां ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

गैर सरकारी संगठन ।

iii. परियोजना का नाम:

सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम (उत्पादन इकाई) ।

उद्देश्य:

1. ऐसी उत्पादन इकाईयों की स्थापना के लिए, महिला संगठनों की सहायता करना जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं नियुक्त हों ।

2. इस प्रकार की इकाईयों में जरुरतमंद महिलाओं को रोजगार का अवसर प्रदान करना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

गरीब तथा जरूरतमंद महिलाएं ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

गैर सरकारी संगठन ।

iv. परियोजना का नाम:

कामकाजी / बीमार माताओं के बच्चों के लिए शिशुगृह / दिवस देखभाल केन्द्र ।

उद्देश्य:

0-5 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए दिवस देखभाल सेवाएं प्रदान करना ।

4. राष्ट्रीय महिला कोष:

i. परियोजना का नाम:

मुख्य ऋण स्कीम ।

उद्देश्य:

1. महिलाओं के विकास हेतु वित्तीय तथा सामाजिक विकास सेवाओं के एक पैकेज के प्रावधान के माध्यम से सामाजिक आर्थिक परिवर्तन और विकास के उपाय के रूप में ऋण प्रदान करना अथवा उसके संवर्द्धन के लिए गतिविधियों शुरू करना अथवा उन्हें बढ़ावा देना ।

2. महिलाओं को उनके मौजूदा रोजगार को बनाए रखने, रोजगार के अन्य अवसर पैदा करने, परिसम्पत्ति पुनर्प्राप्ति तथा खपत, सामाजिक और आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए महिलाओं को ऋण सुविधाओं में सुधार के लिए स्कीमों को बढ़ावा देना और समर्थन प्रदान करना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

शहरी/ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में निर्धनता रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाएं ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

गैर सरकारी संगठन ।

ii. परियोजना का नाम:

ऋण संवर्धन स्कीम ।

उद्देश्य:

1. मुख्य ऋण स्कीम के अन्तर्गत पात्रता के मानदण्ड पूरा न कर पाने वाले छोटे संगठनों के माध्यम से अधिक महिलाओं के लाभार्थ राष्ट्रीय महिला कोष ने ऋण और बचत के क्षेत्र में प्रबन्धन का अनुभव प्राप्त करने के लिए छोटे संगठनों के लिए ऋण संवर्धन स्कीम शुरू की है ।

2. यह स्कीम गैर सरकारी संगठनों को ऋण और बचत के कार्यक्रम चलाने में आत्मविश्वास पैदा करने ओर अन्ततोगत्वा अपने संगठनों को सामाजिक-आर्थिक विकास की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार करने हेतु व्यावहारिक प्रशिक्षण का कार्य भी करती है ।

iii. परियोजना का नाम:

चक्रीयन विधि ।

उद्देश्य:

1. गैर सरकारी संगठनों / संगठनों की ऐसी महिलाओं को अपना कार्यक्षेत्र बढ़ाने के लिए सहायता प्रदान करना, जो अब तक स्कीम के अन्तर्गत सहायता प्राप्त नहीं कर सकी हैं और इस प्रकार स्कीम का विस्तार करना ।

2. भागीदारी गैर सरकारी संगठनों / संगठनों को तीन वर्ष तक राशि का प्रयोग करने की छूट देना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

ऋण ओर बचत के कार्य में अवस्थापना क्षमता तथा 5 वर्षों का अनुभव (कम से कम 2 वर्ष राष्ट्रीय महिला कोष के साथ) रखने वाले संगठन चक्रीयन निधि स्कीम के अन्तर्गत सहायता के पात्र हैं । यह ऋण 18वें महीने से शुरू करके चार अर्द्धवार्षिक किश्तों में तीन वर्षों में वापस किया जायेगा ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

राष्ट्रीय महिला कोष ऐसे अभिनिर्धारित और सुव्यवस्थित संगठनों को स्कीम के अन्तर्गत अधिकतम 50 लाख रुपये स्वीकृत करता है, जिनके पास कार्यक्रम को सही तरीके से कार्यान्वित करने के लिए अपेक्षित अवस्थापना होती है ।

iv. परियोजना का नाम:

स्व-सहायता दलों के विकास तथा स्थायित्व हेतु स्कीम ।

उद्देश्य:

उन गैर सरकारी संगठनों को प्रोत्साहन देना, जिन्होंने स्व-सहायता दलों के आकार में प्रशासनिक ढाँचे का विकेन्द्रीकरण किया है, ताकि प्रभावी वसूली तथा ऋण देने के कार्य को आसान किया जा सके ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

स्व-सहायता दल ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

गैर-सरकारी संगठन ।

v. परियोजना का नाम:

मरणोपरान्त सहायता तथा पुनर्वास निधि स्कीम ।

उद्देश्य:

राष्ट्रीय महिला कोष से ऋण प्राप्त करने वाली महिला की मृत्यु हो जाने पर बकाया ऋण को माफ करना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

राष्ट्रीय महिला स्कीम के अन्तर्गत लाभान्वित ऋण प्राप्तकर्ता महिलाएं ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

राष्ट्रीय महिला कोष से ऋण प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठन तथा अन्य अभिकरण ।

vi. परियोजना का नाम:

नोडल अभिकरण स्कीम ।

उद्देश्य:

1. यह स्कीम गैर सरकारी संगठनों से सम्पर्क द्वारा राष्ट्रीय महिला कोष की ऋण सुविधाओं की पहुंच का विस्तार करने हेतु अभीष्ट है ।

2. महिला स्व-सहायता दलों को ऋण सुविधाएं देने के लिए राष्ट्रीय महिला कोष के साथ उनके सम्पर्क से अच्छी छवि वाले तथा अनुभवी संगठनों की सहायता से सम्भावित गैर सरकारी संगठनों को तैयार करना तथा उनकी पहचान करना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

गैर सरकारी संगठन राष्ट्रीय महिला कोष के ऋण प्राप्तकर्ता प्रतिभागी के रूप में होते हैं । गैर सरकारी संगठन राष्ट्रीय महिला कोष से ऋण लेंगे और स्व-सहायता दलों के माध्यम से निर्धन महिलाओं को देंगे । निर्धन महिलाएं स्कीम के अन्तर्गत लाभार्थी होंगी जो अपनी आयोत्पादन गतिविधियों हेतु ऋण लेंगी ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

राष्ट्रीय महिला कोष स्कीमों के कार्यान्वयन / अल्प ऋण / स्व-सहायता दलों / प्रशिक्षण के क्षेत्र में अनुभव तथा क्षमता के आधार पर राष्ट्रीय महिला कोष द्वारा नियुक्त अभिकरण ।

vii. परियोजना का नाम:

विपणन वित्त स्कीम ।

उद्देश्य:

महिला ऋण प्राप्तकर्ताओं / विभिन्न स्व-सहायता दलों के सदस्यों द्वारा निर्मित / उत्पन्न वस्तुओं की माँग का स्थानीय बाजार या नजदीकी बाजारों या उपभोक्ता केन्द्रों के नजदीकी कुछ अन्य स्थानों में आंकलन करवाकर उनके विपणन की सुविधा देना ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

गैर सरकारी संगठन ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

राष्ट्रीय महिला कोष के अन्य सहयोगी तथा गैर सरकारी संगठन ।

5. अन्य स्कीमें:

i. परियोजना का नाम:

समेकित बाल विकास सेवा ।

उद्देश्य:

पूरक पोषाहार, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच, पूर्व स्कूल शिक्षा, सन्दर्भ सेवाएं, पोषाहार तथा स्वास्थ्य शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

स्कीम के अन्तर्गत शिशुवती तथा गर्भवती माताएं तथा 15-45 वर्ष के आयु वर्ग की महिलाओं को भी लाभ पहुँचाया जाता है । देश में 4200 आई.सी.डी.एस. परियोजनाओं के माध्यम से इसका कार्यान्वयन किया जा रहा है ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

स्कीम के अन्तर्गत, केन्द्रीय सरकार परिचालन आवश्कताओं को पूरा करने की पूरी लागत वहन करती है । पूरक पोषाहार पर होने वाला व्यय राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है ।

ii. परियोजना का नाम:

किशोरी बालिका स्कीम ।

उद्देश्य:

महिलाओं तथा बालिकाओं की समस्याओं को बेहतर तरीकों से सुलझाने के लिए, महिला एवं बाल विकास विभाग ने आई.सी.डी.एस. अवसंरचना का उपयोग करते हुए किशोरी बालिकाओं द्वारा बीच में ही पढ़ाई छोड़ने, स्वयं के विकास, पोषाहार, स्वास्थ्य शिक्षा, साक्षरता तथा मनोरंजन तथा कौशल बढ़ाने की आवश्यकताओं को पूरा करने पर ध्यान दिया जाता है । स्कीम में किशोरी बालिकाओं तथा सामाजिक परिवर्तकों की क्षमता को बढ़ाने तथा संगठित करने का प्रयास किया जाता है ।

लक्ष्य वर्ग/लाभार्थी:

स्कीम (गर्ल दु गर्ल अप्रोच) के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में रुपये 6,400.00 प्रतिवर्ष आय वाले परिवारों से सम्बन्धित 11 से 18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरी बालिकाएँ 6 माह की अवधि हेतु आंगनबाड़ी केन्द्र पर अनुभव प्राप्त करने, शिक्षा सत्रों तथा पूरक पोषाहार जैसी सेवाएं प्राप्त करने की पात्र हैं ।

कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण:

बालिका मण्डल स्कीम के अन्तर्गत 6 माह की अवधि हेतु बालिका मण्डल की गतिविधियों में प्रतिभागी 11-18 वर्ष की आयु वर्ग की बालिकाएँ होती हैं । स्कीम के अन्तर्गत गतिविधि घटकों में अनुभव के माध्यम से सीखना, व्यवसायिक कृषि आधारित कौशलों का प्रशिक्षण, घरेलू कौशलों सम्बन्धी समुचित तकनीक शामिल की जायेगी तथा बालिका मण्डल में किशोर बालिकाओं को पूरक पोषाहार भी प्रदान किया जायेगा ।

6. स्वयं सहायता समूह पर आधारित कुछ परियोजनाएं:

i. स्व-शक्ति परियोजना:

स्व-शक्ति परियोजना (ग्रामीण महिला विकास तथा सशक्तिकरण परियोजना) विश्व बैंक / अन्तर राष्ट्रीय कृषि विकास कोष से सहायता प्राप्त एक केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम है ।

यह परियोजना, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश के 35 जिलों में कार्यान्वित की जा रही है । इसके कार्यान्वयन अभिकरण उक्त उल्लिखित राज्यों के महिला विकास निगम होंगे ।

इसका उद्देश्य स्वयं सहायता समूहों के गठन के माध्यम से महिला शक्ति सम्पन्नता हेतु उपयुक्त वातावरण का सृजन और प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करना है ।

परियोजना के विशिष्ट उद्देश्य हैं:

a. प्रत्येक 15-20 सदस्य वाले 7,400 से 12,000 आत्मनिर्भर स्वयं-सहायता समूहों का गठन जो स्रोतों तक पहुँच व नियंत्रण के माध्यम से अपने जीवन स्तर में सुधार करेंगे ।

b. महिलाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पहले से ही स्थापित सहायता अभिकरणों की संस्थागत क्षमता को सुदृढ़ करना तथा संचेतना लाना ।

c. आयोत्पादन गतिविधियों हेतु ऋण सुविधाओं तक महिलाओं की सतत् पहुँच सुनिश्चित करने के लिए ऋण संस्थानों तथा स्वयं सहायता समूहों के बीच सम्पर्क विकसित करना ।

d. समय बचाने वाले उपकरण लाने तथा शारीरिक मेहनत में कमी करके जीवन की बेहतर गुणवत्ता के लिए महिलाओं की संसानों तक पहुँच बढ़ाना ।

e. आयोत्पादन गतिविधियों में उनकी भागीदारी के माध्यम से अधिक आय तथा खर्च विशेषकर निर्धन महिलाओं के पूंजी पर नियंत्रण में वृद्धि जिससे गरीबी उन्मूलन में परोक्ष रूप से सहायता होगी ।

ii. स्वयं सिद्धा:

परियोजना विवरण:

१. पृष्ठभूमि:

महिलाओं की शक्ति सम्पन्नता के लिए एक समेकित कार्यक्रम के रूप में इन्दिरा महिला योजना का संशोधन किया जा रहा है । जिसका नाम स्वयं सिद्धा (आई.डब्ल्यू.ई.पी.) है तथा नौवीं योजना के अन्त तक (31.03.2002) इसका विस्तार करते हुए इसे मौजूदा 238 बाकी से 650 ब्लाकों तक बढ़ाने की योजना थी ।

२. संकल्पना:

स्वयं सिद्धा परियोजना की संकल्पना शक्ति सम्पन्न महिलाओं का विकास करना है, जो:

i. परिवार, समुदाय तथा सरकार से अपने अधिकारों की माँग कर सके,

ii. जिनकी भौतिक, सामाजिक तथा राजनैतिक संसाधनों तक पहुँच और नियंत्रण हो,

iii. जागरूकता तथा कौशल में सुधार तथा

iv. संघटन तथा नेटवर्किंग के माध्यम से सामान्य मुद्दों को उठा सके ।

उद्देश्य:

समस्त घटकों के संकेन्द्रण की सतत् प्रक्रिया के माध्यम से महिलाओं की संसाधनों तक सीधी पहुँच तथा नियंत्रण को सुनिश्चित करते हुए विशेषकर सामाजिक तथा आर्थिक रूप से महिलाओं को सभी क्षेत्रों में शक्ति सम्पन्न बनाने का इसका दीर्घकालीन उद्देश्य है ।

इसके तात्कालिक उद्देश्य नीचे दिए गये हैं:

i. महिलाओं के आत्म निर्भर स्वयं सहायता समूहों की स्थापना,

ii. महिलाओं की स्थिति, स्वास्थ्य, पोषाहार, शिक्षा, स्वच्छता तथा आरोग्यता, कानूनी अधिकारों, आर्थिक विकास तथा अन्य सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक मुद्दों के सम्बन्ध में स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों में विश्वास तथा जागरूकता पैदा करना,

iii. ग्रामीण महिलाओं में बचत की आदत डालने तथा आर्थिक संसाधनों पर उनके नियंत्रण को सुदृढ़ करना तथा संस्थागत बनाना,

iv. अल्प ऋण तक महिलाओं की पहुँच में सुधार करना,

v. स्थानीय स्तर के नियोजन में महिलाओं की भागीदारी,

vi. महिला एवं बाल विकास विभाग तथा अन्य विभागों की सेवाओं में तालमेल ।

४. विशेषताएं:

i. महिलाओं को उनके सामाजिक आर्थिक स्तर तथा उनकी आवश्यकताओं के अनुसार समूह बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा । जिसके पश्चात वे अन्य दलों के साथ नेटवर्किंग करेंगी ।

ii. प्रतिभागियों / सुगमकर्ताओं के रूप में सरकार तथा पंचायत कर्मचारियों / पदाधिकारियों का सहयोग ।

iii. ब्लाक स्तर पर इस परियोजना के कार्यान्वयन के लिए सरकार के विभागों / अभिकरणों तथा गैर सरकारी संगठनों दोनों को तथा जिला / मध्य स्तर की पंचायत संस्थाओं को भी पात्र माना जायेगा ।

iv. स्वयं सिद्धा कार्यक्रम सोसायटियों के पदाधिकारियों को पदेन महिला सदस्यों के साथ-साथ महिला सदस्यों में से चुना जायेगा ।

v. स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को शक्ति सम्पन्न बनाने के अतिरिक्त, महिलाओं की शक्ति सम्पन्नता अधिकारों के लिए मजबूत लॉबियों / प्रेशर समूहों का संधीकरण और नेटवर्किंग किया जायेगा ।

vi. महिलाओं की शक्ति सम्पन्नता के लिए अनुदानमुक्त दृष्टिकोण अपनाया जायेगा तथा

vii. महिलाओं की शक्ति सम्पन्नता के लिए विभिन्न अभिकरणों में तालमेल तथा एकल केन्द्र से विभिन्न स्कीमों के संवितरण की पहुँच वाली समेकित परियोजनाएं ।

५. स्कीम:

राज्य सरकारें स्वयं सिद्धा कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए नोडल विभागों की पहचान करेंगी तथा स्कीम के कार्यान्वयन हेतु पहचान किए गए नोडल विभागों के माध्यम से कार्य करेंगी । ये नोडल विभाग परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण (पी.आई.ए.) नामक ब्लाक स्तर के कार्यान्वयन अभिकरणों की पहचान करेंगे ।

गैर सरकारी संगठनों अथवा सरकार के विभागों / संगठनों के रूप में जिला / मध्य स्तर की पंचायत संस्थाओं सहित सरकारी अथवा गैर सरकारी कोई भी उपर्युक्त अभिकरण परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण हो सकता है ।

परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण ब्लाक विशिष्ट परियोजनाएं प्रस्तुत करेंगे, जिसमें न केवल स्वयं सिद्धा परियोजनाओं के अन्तर्गत स्वयं सहायता समूह बनाने / संघटन के मुख्य मुद्दों को शामिल करने वाली परियोजनाओं को शामिल किया जायेगा बल्कि विभिन्न स्कीमों के अन्तर्गत अन्य गतिविधियों जिनका स्वयं सिद्धा कार्यक्रम की मुख्य गतिविधियों में संकेन्द्रण किया जाना परिकल्पित है, को भी सम्मिलित किया जायेगा । परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों द्वारा परियोजनाओं को तैयार करने में नोडल विभागों को सक्रिय रूप से शामिल किया जायेगा ।

तदनुसार, परियोजना कार्यान्वयन अभिकरणों द्वारा निम्नलिखित तीन तत्वों को शामिल करते हुए 4-5 वर्षों हेतु समेकित परियोजनाओं को प्रस्तुत किया जायेगा, जिनके लिए उन्हें इस परियोजना की स्वीकृति के मामले में 10,000.00 रुपये की प्रतिपूर्ति की जायेगी:

a. समूह गठन/संघटन गतिविधियाँ ।

b. समुदाय उन्मुख नवीन हस्तक्षेप ।

c. नोराड, स्टेप, सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम तथा ए.जी.पी. नामक महिला एवं बाल विकास विभाग की अन्य स्कीमें तथा इसके लिए यदि आवश्यकता महसूस हो तो अन्य स्कीमें और अन्य विभागों की स्कीमें, चाहे भारत सरकार के दिशा-निर्देशों अथवा राज्य सरकार की पहल पर संकेन्द्रित की गई हों ।

परियोजना प्रारम्भ करने से पूर्व कारगर पर्यवेक्षण तथा प्रबोधन प्रणाली बनाना । परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण का उत्तरदायित्व होगा गया परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण प्रस्तावित परियोजना में पृथक रूप से इसी प्रकार के पूर्ण ब्यौरे उपलब्ध करायेगा ।

iii. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना:

यद्यपि इस योजना का उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है तथापि यहाँ उसका विस्तृत विवरण दिया जा रहा है । गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में एकीकृत ग्राम्य विकास योजना, ट्राइसेम, ग्रामीण क्षेत्र में महिला एवं बालोत्थान कार्यक्रम (डवाकरा), उन्नत टूल किट योजनाएं संचालित की जा रही थी ।

एक ही उद्देश्य की पूर्ति हेतु विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन उनके अलग-अलग प्राविधानों, वित्तीय एवं कार्यक्रम प्रबन्धन से जो जटिलता उत्पन्न हो रही थी, वह मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति में बाधक थी । कहीं-कहीं यह स्थिति थी कि एक ही प्रयोजन हेतु दो-दो कार्यक्रम संचालित थे, उदाहरणार्थ- प्रशिक्षण एवं रोजगार हेतु ट्राइसेम और डवाकरा तथा सिंचाई के क्षेत्र में गंगा कल्याण योजना और दस लाख कूप योजना । योजनाओं के प्राविधानों में भी एकरूपता नहीं थी ।

जहाँ उन्नत टूलकिट योजना में राज्यांश की कोई व्यवस्था नहीं थी और दस लाख कूप योजना अन्तर्गत सभी सुविधाएँ पूर्णतया अनुदानित नि:शुल्क थी, वहीं दूसरी ओर अन्य स्वरोजगार कार्यक्रमों में ऋण एवं अनुदान दोनों का प्राविधान था, अनुदान की भी कई श्रेणी थी, इसी पृष्ठभूमि में उपर्युक्त सभी छ: कार्यक्रमों को विलीन कर स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का सूत्रपात हुआ, जिसके स्वरूप में समग्रता है । पूर्व योजनाओं के सभी लाभकारी प्राविधानों को इसमें समाहित किया गया है और अनुपयोगी अंशों का परित्याग किया गया है ।

योजना के मुख्य बिन्दु निम्नवत हैं:

1. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीबी को सामर्थ्य प्रदान करने के निमित्त बड़ी संख्या में छोटे उद्यमों की स्थापना है । इसके मूल में यह विश्वास है कि भारत के ग्रामीण गरीबों में क्षमताएं हैं और यदि उन्हें उचित सहायता प्रदान की जाये तो वे मूल्यवान वस्तुओं के सफल उत्पादक बन सकते हैं ।

2. सहायतित परिवार (जिन्हें आगे स्वरोजगारी कहा जायेगा) व्यक्ति अथवा समूह (स्वयं सहायता समूह) हो सकते हैं । समूह पद्धति पर बल दिया जाएगा ।

3. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का उद्देश्य प्रत्येक सहायतित परिवार को 3 वर्ष की अवधि में गरीबी की रेखा से ऊपर उठाना है ।

4. इस लक्ष्य की दिशा में स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना की संकल्पना छोटे उद्यमों के एक ऐसे सम्पूर्ण कार्यक्रम की हैं, जिसमें स्वरोजगार के सभी पहलू आच्छादित है जैसे ग्रामीण गरीबों का स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठन तथा उनकों सशक्त करना, क्रियान्वयन क्लस्टर, अवस्थापना सुविधाओं एवं तकनीकी का नियोजन करना ।

5. लघु उद्यमों की स्थापना में स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजन अन्तर्गत क्लस्टर पद्धति पर बल दिया गया है । इस हेतु प्रत्येक विकास खण्ड के लिए संसाधनों, व्यवसायिक क्षमताओं, विपणन सुविधाओं पर आधारित 4-5 मुख्य क्रियाकलापों को चिन्हित किया जायेगा ।

क्रियाकलापों का चयन खण्ड स्तर पर क्षेत्र पंचायत एवं जनपद स्तर पर डी.आर.डी.ए. के अनुमोदन पर आधारित होगा । स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना की सहायता का प्रमुख अंश क्रियाकलापों क्लस्टर के रूप में उपलब्ध होगा ।

6. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजनान्तर्गत प्रत्येक मुख्य क्रियाकलाप के लिए परियोजना पद्धति का अनुसरण किया जायेगा । चिन्हित क्रियाकलापों हेतु परियोजना रिपोर्ट तैयार की जायेगी ।

इन परियोजना रिपोर्ट की तैयारी में बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं को निकट एवं सक्रिय रूप से सहभागी बनाया जायेगा जिससे ऋण स्वीकृति में विलम्ब से बचा जा सके तथा वित्तीय सहायता की पर्याप्तता को सुनिश्चित किया जा सके ।

7. इस कार्यक्रम के माध्यम के आगामी 5 वर्षों में प्रत्येक विकास खण्ड में 30 प्रतिशत गरीबों को आच्छादित करने का एस.जी.एस.वाई. में प्रयास होगा । प्रमुख क्रियाकलापों के नियोजन में यह ध्यान रखा जायेगा कि कार्यक्रम की गुणवत्ता को नष्ट किये बिना अधिकतम संख्या में पंचायतों का आच्छादन सुनिश्चित किया जाये । कम से कम आधे समूह सम्पूर्ण रूप से महिला समूह होंगे । समूह क्रियाकलापों को प्राथमिकता दी जायेगी तथा शनै-शनै अधिकांश वित्त पोषण स्वयं सहायता समूहों के लिए किया जायेगा ।

8. गरीबी की रेखा के नीचे परिवारों के सर्वेक्षण में गरीबी की रेखा के नीचे के अभिज्ञापित परिवारों की सूची को ग्राम सभा द्वारा प्रमाणित किया जायेगा । प्रत्येक प्रमुख क्रियाकलाप के लिए उचित व्यक्तिगत परिवारों का अभिज्ञापन एक सहभागिता प्रक्रिया द्वारा किया जायेगा ।

9. एस.जी.एस.वाई. एक ऋण-सह-अनुदान कार्यक्रम है । एस.जी.एस.वाई. में बैंकों को अधिक सम्मिलित करने की कल्पना की गई है । वे निकट रूप से नियोजन एवं परियोजनाओं की संरचना, क्रियाकलापों क्लस्टर के अभिज्ञान, अवस्थापना, नियोजन, क्षमता विकास, स्वयं सहायता समूहों के क्रियाकलापों की रुचि, व्यक्तिगत स्वरोजगारियों के चयन, ऋण प्राप्ति के पूर्व के क्रियाकलापों तथा ऋण वसूली सहित ऋण प्रदत्त करने के पश्चात के अनुश्रवण में सम्मिलित होंगे ।

10. एस.जी.एस.वाई. के द्वारा एक बार ऋण प्रदत्त करने की व्यवस्था को विकसित किया जायेगा । स्वरोजगार के लिए ऋण की आवश्यकता का सावधानी पूर्वक आंकलन किया जायेगा । आगामी वर्षों में ऋण निवेश को बढ़ाने के लिए न केवल स्वरोजगारियों को अनुमति दी जायेगी वरन् वास्तव में उनको प्रोत्साहित किया जायेगा ।

11. एस.जी.एस.वाई. द्वारा भली प्रकार संरचित प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के द्वारा कौशल विकास पर बल दिया जायेगा । जिन व्यक्तियों को ऋण स्वीकृत किया गया है उनका आंकलन किया जायेगा ।

अभिज्ञानित क्रियाकलापों की आवश्यकतानुसार प्रशिक्षण की रूपरेखा, अवधि तथा पाठ्यक्रमों को निर्धारित किया जायेगा । एस.जी.एस.वाई. के 10 प्रतिशत आवंटन को प्रशिक्षण हेतु अलग से सुरक्षित करने के लिए जिला ग्राम्य विकास अभिकरणों को अनुमति दी जायेगी । ‘एस.जी.एस.वाई. प्रशिक्षण निधि’ के रूप में इसका रखरखाव किया जायेगा ।

12. अभिज्ञानित ‘क्रियाकलाप क्लस्टरों’ में प्राविधिकी को अद्यावधि करने का कार्य एस.जी.एस.वाई. के अन्तर्गत सुनिश्चित किया जायेगा । स्थानीय तथा गैर स्थानीय बाजारों के लिए प्राकृतिक तथा अन्य साधनों से स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री से तैयार वस्तुओं को सम्मिलित करते हुए स्थानीय संसाधनों के मूल्य में वृद्धि किये जाने के लिए प्राविधिकी का हस्तक्षेप कराया जायेगा ।

13. एस.जी.एस.वाई. के स्वरोजगारियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विपणन को प्रोत्साहित करने के लिए एस.जी.एस.वाई. में प्राविधान कराया जायेगा । इसके अन्तर्गत बाजार सूचना, बाजारों का विकास, परामर्शी सेवाएं तथा निर्यात को सम्मिलित करते हुए उत्पादों की बिक्री की संस्थागत व्यवस्था सम्मिलित होगी ।

14. एस.जी.एस.वाई. के अन्तर्गत अनुदान की दर समान होगी, जो परियोजना लागत की 30 प्रतिशत होगी । इसकी अधिकतम सीमा रु. 7,500.00 होगी । अनुसूचित जातियों / जनजातियों के मामलों में अनुदान का प्रतिशत 50 प्रतिशत होगा तथा इसकी अधिकतम सीमा रु. 10,000.00 होगी ।

स्वरोजगारियों के समूहों (स्वयं सहायता समूहों) के लिए अनुदान की दर परियोजना की लागत का 50 प्रतिशत होगी तथा इसकी अधिकतम सीमा रू. 1.25 लाख होगी । सिंचाई परियोजनाओं के लिए अनुदान की कोई वित्तीय सीमा नहीं होगी ।

15. ग्रामीण गरीबों के अति संवेदनशील समूहों पर एस.जी.एस.वाई. द्वारा विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया जायेगा । इसके लिए स्वरोजगारियों में से न्यूनतम 50 प्रतिशत अनुसूचित जाति / जनजाति के 40 प्रतिशत महिलाएं तथा 3 प्रतिशत शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति होंगे ।

16. पंचायत समितियों के माध्यम से जिला ग्राम्य विकास अभिकरणों द्वारा एस.जी.एस.वाई. का क्रियान्वयन किया जायेगा । नियोजन, क्रियान्वयन तथा अनुश्रवण की प्रक्रिया में बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं, पंचायती राज संस्थाओं गैर सरकारी संस्थाओं के साथ ही जनपद में प्राविधिक संस्थाओं को सम्मिलित किया जायेगा । जिला ग्राम्य विकास अभिकरणों को उचित रूप से गतिशील बनाया जायेगा तथा इनका सुदृढ़ीकरण किया जायेगा ।

योजनान्तर्गत स्वरोजगारी को सहायता दो प्रकार से दी जायेगी:

a. स्वयं सहायता समूह के माध्यम से,

b. व्यक्तिगत आधार पर ।

iv. महिला समाख्या:

महिला समाख्या कार्यक्रम मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित राष्ट्र स्तरीय कार्यक्रम है । वर्तमान में यह कार्यक्रम देश के 10 राज्यों के 53 जनपदों में फैला हुआ है । महिला समाख्या कार्यक्रम की शुरुआत नई महिला शिक्षा नीति 1986 के तहत की गई और शिक्षा को ही महिला सशक्तिकरण का माध्यम बनाया गया ।

महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु महिला समाख्या का प्रयास नयी पंचवर्षीय योजना (1997-2000) अभिलेखों में काफी सराहा गया है । सशक्तिकरण हेतु महिला समाख्या में तृणमूल स्तर पर महिला संघों की स्थापना की है जो सामुदायिक भागीदारी के आधार पर अपनी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करते हैं ।

भारत के सभी राज्यों में महिला संघों ने निम्नांकित विषयों/समस्याओं को सुलझाने हेतु पहल की है:

1. न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति ।

2. सार्वजनिक सुविधाओं का विकास ।

3. अपने स्वास्थ्य संसाधनों पर नियंत्रण ।

4. संसाधन संग्रह एवं नियंत्रण गतिविधियाँ ।

5. अपने बच्चों, विशेषकर अपनी लड़कियों को विद्यालय भेजना ।

6. राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी को बढ़ाना ।

ADVERTISEMENTS:

7. साक्षरता एवं संख्यात्मक सम्बन्धी कौशलता का विकास ।

8. सामाजिक कुरीतियों जैसे- महिला के प्रति हिंसा, बाल विवाह, नशा इत्यादि के विरूद्ध आवाज उठाना ।

9. महिला संघों द्वारा उपरोक्त कदमों का परिणाम उनके सदस्यों के जीवन पर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होता है ।

जिनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं, जैसे:

i. साक्षरता की माँग में वृद्धि ।

ii. महिला नेतृत्व का विकास एवं बहुत सी आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों का सफल संचालन ।

iii. सार्वजनिक सुविधाएं तथा सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने हेतु सामूहिक रूप से दबाव बनाना ।

iv. पंचायत एवं पंचायत गतिविधि में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोत्तरी ।

v. लैंगिक न्याय सहित समाज की परिकल्पना तथा उसे मूर्त रूप देने के प्रयास की आवश्यकता सम्बन्धी सोच का विकास होना ।

ADVERTISEMENTS:

सशक्तिकरण सम्बन्धी महिला समाख्या का बुनियादी दर्शन एवं सिद्धान्त निम्नलिखित हैं:

a. महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम महिलाओं के ज्ञान, अनुभव एवं कौशल पर आधारित होना ।

b. कार्यक्रम के प्रत्येक अवयव एवं गतिविधि का लक्ष्य सीखने हेतु वातावरण पैदा करना, ताकि महिलाओं को अपनी शक्ति एवं क्षमताओं का आभास हो तथा उनकी क्षमता में उत्तरोत्तर वृद्धि हो ।

c. ग्राम स्तर पर महिलाएं परियोजना गतिविधियों के स्वरूप एवं समय को स्वत: ही तय करती हैं ।

d. नियोजन, क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन सामूहिक निर्णय के आधार पर करना । सभी परियोजना कर्मियों का सचेतक की भूमिका निभाना तथा संघ सदस्यों को स्वत: निर्णय लेने हेतु प्रेरित करना ।

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