शिव रात्रि पर निबंध | Essay on Shiv Ratri in Hindi!

हिन्दुओं के व्रत, पर्वों में शिवरात्रि का एक प्रमुख स्थान है । अन्य पर्व वर्ष में एक बार आते हैं, जबकि यह पर्व फाल्गुन माह व श्रावण माह में वर्ष में दो-बार मनाया जाता है । हिन्दुओं के तीन प्रधान देवों में यह तीसरे स्थान पर आते हैं । ब्रह्म सृष्टि की रचना, विष्णु सृष्टि का पालन और शिव इस सृष्टि का संहार करते हैं । कैसा विचित्र संयोग है शिव अर्थात् कल्याणकारी और देवता संहार के ।

हिन्दुओं के सबसे प्राचीन देवता शिव हैं और सर्वाधिक पूजा भी इन्हीं की होती है । शिव मन्दिर में उनके शिवलिंग के साथ उनका परिवार, वाहन-बैल, पत्नी-पार्वती, पुत्र गणेश व कार्तिकेय भी सम्मिलित होते हैं । महाशिव रात्रि के दिन शिव का जलाभिषेक होता है । कुछ श्रद्धालु हरिद्वार से गंगा आदि पवित्र नदियों का जल कांवरों में भरकर पैदल लाते हैं और उसे समीप के शिवालयों में जलाभिषेक करते हैं ।

भक्तजन जल में दूध मिलाकर बेल के पत्तों को शिवलिंग पर चढ़ाते हैं । इससे शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं, ऐसी मान्यता है । हर-हर महादेव और बम-बम भोले की ध्वनि से शिव मंदिर गूंजने लगते हैं । शिव ने गंगा को धरती पर उतारा, समुद्र मंथन से निकले जहर को स्वंय पिया ।

वे गले में सर्प-माला, शरीर पर भस्म और बाघम्बर धारण करते हैं । शिव को नृत्य का सम्राट माना जाता है । माना गया है कि उन्होंने 108 प्रकार के नृत्यों की रचना की, जिनमें ताण्डव नृत्य विशेष प्रसिद्ध है । यह शिव का प्रिय नृत्य है । शिव ने यह नृत्य कुद्ध पार्वती को मनाने के लिए किया था ।

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शिव मन्दिरों के निर्माण में राजाओं ने भी विशेष दिलचस्पी ली । सातवाहनों के शासन काल में एलोरा का कैलाश मन्दिर विशेष प्रसिद्ध रहा । यह मन्दिर एक ही चट्‌टान को काटकर बनाया गया है । ऐसा मन्दिर आज तक दूसरा नहीं बना । विश्व के सबसे बड़े मन्दिरों में यह गिना जाता है ।

इस कला का यह मन्दिर अपने आप में विलक्षणता की मिसाल है जो विश्व में और कहीं नहीं है । शिव के वाद्य-यंत्र डमरू से पाणिनि के चौदह सूत्रों का सूत्रपात हुआ । जिससे- ‘अष्टाध्यायी’ नामक संस्कृत व्याकरण लिखा गया । जो आज भी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है ।

शिवरात्रि शिव की अर्चना का पर्व है । काशी, उज्जैन, हरिद्वार, रामेश्वर में यह पर्व विशेष उल्लास से मनाया जाता है । राजधानी के मन्दिरों में विशेषकर ‘गौरी शंकर’ और बिरला मन्दिर में दर्शनार्थियों की बड़ी भीड़ होती है । पुरुष स्त्रियाँ और बच्चे जल के कलश लिए बेल पत्र और माला सजाये भगवान शिव का पूजन करते हैं और उनका अभिषेक करते हैं ।

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भगवान शिव की उपासना देव और दानव दोनों ही समान भाव से करते हैं । एक और रावण उनका परम उपासक है तो दूसरी ओर भगवान राम उनके गुण गाते नहीं थकते । वे रामकथा के प्रणेता हैं । परशुराम के गुरु हैं । भोले इतने कि भस्मासुर को बिना सोचे समझे वरदान दे दिया ।

औघड़ दानी ऐसा कि लंका रावण को दे दी । हमें शिवरात्री पर संकल्प लेना चाहिए कि अपने अशिव संकल्पों का त्याग कर शिवसंकल्प करें । अपनी वासनाओं पर विजय प्राप्त करें और ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करते हुए अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करें ।

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