List of top five famous sportsman’s of the World (written in Hindi Language).

Contents:

  1. सचिन तेंदुलकर |
  2. डिएगो माराडोना |
  3. विश्वनाथन आनन्द |
  4. पैले |
  5. कैसियस क्ले उर्फ मोहम्मद अली |

Famous Sportsman’s of the World

1. सचिन तेंदुलकर |  Sachin Tendulkar

1. प्रस्तावना ।

2. प्रारम्भिक जीवन व उपलब्धियां ।

3 उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

सचिन रमेश तेंदुलकर का नाम क्रिकेट जगत् गे भारत ही नहीं, विश्व में भी इतना विख्यात है कि इनकी तुलना आस्ट्रेलिया के सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी सर डोनाल्ड बैडमैन से की जाती है । ये एक दिवसीय क्रिकेट में तो रिकॉर्डों के बेताज बादशाह ही हैं ।

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर पूरे संसार में क्रिकेट के कारण आदर व सम्मान के पात्र है । इनका व्यक्तित्व शान्त, गम्भीर होने के कारण इनके छोटे कद से कहीं अधिक बड़ा प्रतीत होता है । इन्हें रन मशीन कहा जाता है ।

2. प्रारम्भिक जीवन व उपलब्धियां:

सचिन का जन्म 24 अप्रैल, 1973 को बम्बई के बांद्रा के में हुआ था । चार भाई-बहिनों में सबसे छोटे सचिन को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का बहुत ही शौक था । इनके पिता रमेश तेंदुलकर जो कि कॉलेज में एक प्रोफेसर थे, उन्होंने ही सचिन के शौक को आगे बढ़ाया ।

इनके पिता तथा इनके कोच रमाकान्त आचरेकर ने सचिन को ऐसा क्रिकेट का चमकता सितारा बनाया कि दुनिया देखती ही रह गयी । 16 वर्ष की अवस्था में इन्होंने अपनी श्रेष्ठ बल्लेबाजी से इमरान खान, वसीम अकरम, अकुल कादिर के छक्के छुड़ा दिये ।

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17 वर्ष की अवस्था में इन्होंने वेस्टइण्डीज के खिलाफ खेलते हुए अपने क्रिकेट जीवन की शुराआत की । इनकी बल्लेबाजी जितनी विलक्षण है, वहीं ये उतनी ही कुशलता से गेंदबाजी तथा क्षेत्ररक्षण भी करते हैं । एक दिवसीय क्रिकेट में अपना पहला शतक सन् 1994 में लगाया था ।

कोलम्बो और आस्ट्रेलिया में लगाये गये शतकों के कारण इन्हें आज भी स्मरण किया जाता है । सचिन ने कुल मिलाकर 92 शतक लगाये हैं, जिसमें टेस्ट मैचों में तथा 16 हजार 499 रन बनाकर इन्होंने टेस्ट मैचों में पूरे किये ।

ये 2 बार भारतीय टीम के कप्तान मी रह चुके हैं । स्कूली जीवन में तो इन्होंने अपने मित्र विनोद कांबली के साथ भागीदारी करते हुए 664 रन बनाकर एक विश्व कीर्तिमान ही बना डाला । इनकी उपलब्धियों पर सर डॉन बैडमैन ने इनकी कई बार तारीफ की और इन्हें सदी का महान् खिलाड़ी बताया । जब इन्होंने क्रिकेट की शुरुआत की, तो कई दर्शक इन्हें दुधमुंहा कहकर चिढ़ाया करते थे, किन्तु इन्होंने अपने क्रिकेट कौशल से सबके मुंह पर ताले जड़ दिये ।

3. उपसंहार:

सचिन अपने अच्छे शॉट व रिकॉर्डों के लिए जाने जाते हैं । इनके द्वारा खेली जानी वाली हर गेंद एक रिकॉर्ड होती है । कितनी बार तो ये मैन ऑफ द मैच बन चुके हैं । इस समय ये एक करोड़पति एवं धनपति खिलाड़ी हैं । ये विज्ञापनों की दुनिया के बादशाह हैं । टेस्ट क्रिकेट में इन्होंने 42 शतक लगाये तथा एक दिवसीय मैच में 50 अर्द्धशतक लगाये हैं ।


2. डिएगो माराडोना |  Diego Maradona

1. प्ररतावना ।

2. प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

डिएगो माराडोना को फुटबाल की दुनिया का सुपर स्टार उार्जेटीना का अदभुत लड़का, छोटा पैले, फुटबाल का जादूगर, करोड़पति फुटबॉलर आदि कई नामों से अलंकृत किया गया है । यह इनके खेल कौशल का ही परिणाम है । अकेले के दम पर तेरहवें विश्व कप फुटबॉल प्रतियोगिता में इन्होंने उार्जेटीना को विजयश्री दिलवाई थी ।

2. प्रारम्भिक जी वन एवं उपलब्धियां:

डिएगो उार्मेडो माराडोना का जन्म 30 अक्तूबर, 1960 को अर्जेटीना में हुआ था । ये अपने निर्धन माता-पिता की 8 सन्तानों गे से पांचवें क्रम पर थे । दुनिया के अचल दर्जे के फुटबॉल खिलाड़ी के पास जब फुटबॉल न होती थी, तो ये बचपन में टिन के डिब्बों, रही कागजों तथा बेकार कपड़ों से बनाई गेंद से खेला केरते थे ।

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फुटबाल प्रशिक्षक फ्रांसिस कारनेजो ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और ”जार्ज सिजटेर स्लीपर” ने माराडोना को सुपर स्टार बनाने में सहयोग दिया । 1976 में मात्र 16 वर्ष को अवस्था में हंगरी के खिलाफ अपने देश का प्रतिनिधित्व किया ।

ये 1978 में भी वर्ल्ड कप के लिए चुने जाते, किन्तु इनके एक प्रशिक्षक ने इन्हें  ”कच्चा खिलाड़ी” कहकर इससे वंचित कर दिया । 1978 में हर अन्तर्राष्ट्रीय मैच में माराडोना ने अपना उम्दा प्रदर्शन किया । 1979 की युवा फुटबाल विश्व कप चैमिपयनशिप इन्हीं की बदौलत हासिल हुई । 1980 और 1981 में इन्होंने दक्षिण अमेरिका द्वारा प्रदत्त सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर का अवार्ड जीता ।

सन् 1986 में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में चुने गये माराडोना ने 1 उवें विश्व कप के हर मैचों में अपना बेमिसाल खेल दिखाकर देश को विश्व चैम्पियन बनाया । इनकी खेल प्रतिभा को देखकर पैले ने कहा था: ”इस लड़के को रोकना बहुत गुश्किल है ।” ये अपने खेल पर इतना नियन्त्रण रखते थे कि इनके होते हुए विपक्षी के पास गेंद को पा जाना मुश्किल होता था ।

3. उपसंहार:

आज डिएगो माराडोना फुटबॉल के सबसे महंगे खिलाड़ी माने जाते हैं । इनके हर प्रदर्शन पर इन्हें सोने की गेंद भेंट की जाती रही । ऐसा कहा जाता है कि हर प्रदर्शन मैच के लिए इन्हें 1 लाख की रकम यूं ही मिला करती थी ।

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इस महान् फुटबॉल खिलाडी पर समय-समय पर उमरोप लगते रहे हैं कि यह नशीले पदार्थो के आदी हैं । 19 अप्रैल, 2004 को जूनसआर्यस में दिल का दौरा पड़ने पर इन्हें गहन चिकित्सा कक्ष में रखा गया था, जहां प्रशंसकों की अपार भीड़ एकत्र हुआ करती थी, जो इनके प्र ति प्रशंसकों की सम्मान भावना का परिचायक ही है ।


3. विश्वनाथन आनन्द |  Viswanathan Anand

1. प्रस्तावना ।

2. प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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शतरंज का खेल भारत न्में काफी प्राचीन रूप में रहा है । इसे पहले चौसर के नाम से जाना जाता था । शतरंज का बोर्ड समान अकार के 64 वर्गाकार खानों में विभाजित रहता है, जिसके काले तथा सफेद रंग के बने खानों में मोहरें रखी जाती है ।

मोहरे चालों के रूप में खेली जाती हैं । इसमें लम्बाई में खानों की 8 लाइन फाइल्स तथा चौड़ाई में रैक्स कहलाती हैं । एक ही रंग की खानों की लाइन डायगल्स कहलाती हैं । सफेद मोहरों से खेलने वाला खिलाड़ी पहली चाल चलकर खेल की शुरुउघत करता है ।

मोहरों की चालों में बादशाह केवल एक खाने में चल सकता है । यदि उसे किला बनाना है, तो वह उसे छोड्‌कर चल सकता है । शर्त यह है कि किसी विपक्षी मोहरों का जोर न हो । वजीर सीधा और टेढ़ा कैसे भी चलता है । हाथी सीधा, ऊंट तिरछा, घोड़ा ढाई चाल चलता है ।

प्यादा सीधा चलकर तिरछी चाल चलता है । वह एक ही बार में केवल एक ही चाल चल सकता है । विपक्षी मोहरा यदि बादशाह को जोर डालकर मारना चाहता है, तो उसे शह कहा जाता है । अगली चाल में बादशाह को उस मार के दायरे से हटना ही पड़ता है ।

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यदि वह नहीं हटता, तो उसे मात कहा जाता है । दूसरे को मात देने वाला खिलाड़ी जीता कहलाता है । जब चाल चलने का कोई रास्ता शेष नहीं रहता, तो उसे जिच या ड्रा कहते हैं । आजकल इसके नये-नये नियम बनते जा रहे हैं ।

विश्व शतरंज की चैम्पियनशिप और ओलम्पिक शतरंज की विभिन्न प्रतियोगिताएं हैं । इसमें विश्व के महानतम ग्राण्ड मास्टर-बाबी फिशर, कारपोरोव, कास्पोरव तथा हमारे देश के विश्वनाथन आनन्द रहे हैं ।

2. प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां:

विश्वनाथन आनन्द ने ग्राण्ड मास्टर बनकर भारत की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुन: वापस किया । इनका जन्म दक्षिण भारत में सन् 1969 को हुआ । 17 वर्ष की अवस्था में इन्होंने ग्राण्ड मास्टर का खिताब हासिल किया । 27 वर्ष की अवस्था में विश्व के 2 नम्बर के खिलाड़ी बन गये । 1988 में इन्होंने यह खिताब हासिल किया ।

लियेनर्स अन्तर्राष्ट्रीय शतरंज टूर्नागेन्द में आनन्द को वां स्थान मिला । इसी प्रतियोगिता में इन्होंने विश्व चैम्पियन कारपोरोव तथा ब्रिटेन के जानाथन स्पीलमैन को पराजित किया । आनन्द एक तेज तर्रार खिलाड़ी हैं ।

इनकी चालें बहुत गुप्त नहीं होती हैं, फिर भी ये अपने प्रतिहन्ही पर दबाव डालकर उसे गलती करने पर मजबूर कर देते हैं । अपनी चालों के लिए ये ज्यादा समय नहीं लेते । ये परम्परागत शैली में खेलते हैं । जिस प्रकार क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर हैं, वैसे ही शतरंज में विश्वनाथन आनन्द । मुम्बई में “ए” राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतकर इन्होंने अपनी प्रतिभा सिद्ध की ।

इस चैम्पियनशिप में इन्होंने फीडा से मान्यता प्रदान खिलाड़ियों में फीडा रेटिंग 16 वर्ष की अवस्था में प्राप्त की । आनन्द ने 5 वर्ष की अवस्था से ही शतरंज खेलना शुरू कर दिया था । माता-पिता से खेल की बारीकियां सीखीं । 1982 में इन्होंने जूनियर चैम्पियनशिप की राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती ।

1984 में विश्व जूनियर स्पर्धा में 50 खिलाड़ियों में इन्हें 10वां स्थान मिला । इन्होंने लंदन लायड्‌स बैंक जूनियर का खिताब जीतकर अपनी छाप छोड़ी । वहीं ग्राण्ड मास्टर में छठा स्थान प्राप्त कर सबको चौंका दिया । इजराइली ग्राण्ड मास्टर ग्रीनफील्ड को हराकर इन्होंने अपना पहला अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का खिताब जीता । हांगकांग में एशिया जूनियर प्रतिस्पर्द्धा में अन्तर्राष्ट्रीय मास्टर का खिताब पाया ।

3. उपसंहार:

देश के सबसे युवा खिलाड़ी के रूप गे विश्वनाथन आनन्द का नाम निःसन्देह हमारे लिए गौरव का विषय है । ये भारतीय शतरंज के प्रकाशवान सितारे हैं ।


4. पैले |  Pale

1. प्रस्तावना ।

2. प्रारम्भिक जीवन एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

फुटबाल भी विश्व का प्रमुख लोकप्रिय खेल है । इस खेल में 11-11 खिलाडियों की टीम 45-45 मिनट की सगयावधि में खेला करती हैं । निर्धारित समय पर खेल न खत्म होने पर 15-15 मिनट अतिरिक्त समय दिया जाता है या फिर पेनॉल्टी किक दी जाती है ।

यह खेल 100 मीटर लम्बे और 73 मीटर चौड़े आयताकार मैदान गे होता है । मैदान के हर कोने पर 1 फुट ऊंची झण्डी लगाकर टत लाइनें और गोल लाइनें बनायी जरती हैं । 1 रेफरी के साथ 2 लाइनमैन होते हैं । पैर, सिंग, जांघ व सीने का प्रयोग वैध है । हाथ से बॉल को पकडना फाउल है ।

जबरदस्ती धकेलने, गिराने, गोल करने पर बाधित करने पर येलो, सीन, रेड कार्ड दिखाया जाता है । गोल लाइन में गेंद भेजकर ज्यादा गोल करने वाला विजयी होता है । हमारे देश में फुटबाल का खेल राष्ट्रीय स्तर रार अधिक खेला जाता है । यदि हम फुटबाल के जादूगर की बात करें, तो ब्राजील के उस्। उाश्वेत खिलाड़ी कइा नाग उघता है, जिसे पैले कहा जाता है ।

2. प्रारम्भिक जीवन व उपलब्धियां:

एडसन उारांतोरा नेरिसमेंटे डी॰ अर्थात् पैले का जन्म ब्रज्ग्रिल के बाउर नाग के एक छोटे से नगर में 23 अक्टूबर, 1940 को हुआ था । जब ये 10 वर्ष की उावरथा में थे, तभी से इन्होंने फुटबाल खेलना शुरू कर दिया था । इलाके पास फुटबाल खेलने के लिए जूते शी नहीं थे । ये नंगे पाव ही खेल करते थे ।

11 वर्ष की अवस्था में इन्होंने बाउस क्लब की और से खेलने का मन बनाया । पैले के पिता फुटबाल के पेशेवर खिलाडी थे । 16 वर्ष की अवस्था में इन्होंने “सान्तोस क्लब” से खेलना शुरू कर दिया । ये स्कूल छोड़कर राष्ट्रीय टीम में शामिल हो गये थे ।

फुटवाल के जादूगर पैले के पैरों में असाधारण रगन्तुलन था । ये दोनों पैरों से समान रूप से खेलते थे । इनकी सतार बडी तेज थी । गेंद पर अद्वितीय काबू रखने वाले खिलाडी थे । कठिन-से-कठिन मौके पर भी ये अपना धैर्य नहीं खोते थे ।

इनके बारे में कुछ ऐसी कहानियां प्रचलित हैं कि ये अपनी पूरी ताकत से फॉल्दा जग्य लगाया करते थे और क्याकी नजर बॉल पर ही टिकी रहती थी । इस तरह छकाकर ये गोल मार ही लेते थे । विपक्षी टीम का पूरा ध्यान पैले को घायल करने में लगा रहता था, ताकि पैले के खेल रो बाहर जाते ही विपक्षी टीम की जीत सुनिश्चित हो जाये ।

पैले हमेशा खिलाड़ी भावना से ही खेलते थे । 1964 में अर्जेन्टाइना के विरुद्ध खेलते हुए इन्हें विपक्षी टीम का खिलाडी बार-बार किक मारता था । रैफरी ने उस खिलाडी को निकालने की बजाय पैले को निकालकर यह साबित करना चाहा कि लोग उरो पैले को निकालने वाले रैफरी के रूप में पहचानें ।

पैले में देशप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी । इनका खेल देखकर इटली के एक क्लब ने इन्हें साल-नुार के लिए 25 लाख रुपये देने का प्र२त्ताव रखा । एक अल्लीयर्स क्लब ने तो इन्हें पेट्रोल और कोयले से पास एक जहाज देने का प्रलोभन भी दिखाया । पैले ने 14 वर्षो तक अपने देश का नेतृत्व किया ।

अपने खेल जीवन में पैले ने 1959 में 126 गोल किये । 1969 को इन्होंने 1 हजार 131 गोल करके फुटबाल से संन्यास लेने की घोषणा की । इनकी इस घोषणा से ब्राजीलवासी फूट-फूटकर रो पड़े थे । इनके देश में तो फुटबाल की ऐसी दीवानगी है कि लोग हारने पर आत्महत्या तक कर लेते हैं और जीतने पर नाचते, गाते, हुडदंग, करते सड़क पर नजर आते हैं ।

फुटबाल तो वहा का राष्ट्रीय खेल है । बचपन से निर्धन पैले ने फुटबाल खेलकर अपार धन कमाया । इनके दीवाने प्रशंसकों ने इन्हें 1 लाख 12 हजार 500 का मुकुट 1970 में पहनाकर सम्मानित किया । इनके उपस्थित होने मात्र से ही ब्राजील की टीम ने 3 यार विश्व विजेता होने का गौरव हासिल किया ।

लोकप्रियता का दम्भ इन्हें छू, तक नहीं गया था । सन् 1966 में इन्होंने एक गोरी युवती रोजमेरी डोरा से विवाह कर लिया । सच है कि गुणवान लोगों का कौशल ही देखा जा सकता है ।

3. उपसंहार:

“ब्लैक डायमण्ड” तथा ”फुटबाल किंग” के नाम से विभूषित किये जाने वाले पैले इतना धन, प्रसिद्धि पाकर भी अत्यन्त विनम्र, सहृदय व सहज हैं । विज्ञापनों, शराब तथा तम्बाकू सेवन से जीवन-भर दूर रहने वाले पैले ने जब संन्यास लिया, तो यूगोस्लोवाकिया के राष्ट्रपति टीटो ने इन्हें राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया ।


5. कैसियस क्ले उर्फ मोहम्मद अली |  Cassius Clay ( Mohammad Ali)

1. प्रस्तावना ।

2. प्रारम्भिक संघर्षमय जीवन एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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मुक्केबाजी विश्व का लोकप्रिय एवं प्राचीन खेल है । मुक्केबाजी में नोंक आऊट, अर्थात् 10 सैकण्ड तक रैफरी द्वारा गिनती गिनने तक रिंग के फर्श पर मुक्केबाज का न उठना कहलाता है । विपक्षी मुक्केबाज के खेल योग्य न रहने पर अंकों के आधार पर यह खेल जीता जाता है ।

यह खेल 610 वर्ग मीटर के रिंग में 3 रस्सों के घिरे स्थान में खेला जाता है । इसमें हैवी वेट की 11 श्रेणियां होती हैं । 1 जज, 1 रैफरी, 1 टाइमकीपर होता है । इसमें फाउल के अपने नियम हैं । मुक्केबाजी के इतिहास में जितना विवादास्पद, रोमांचक, असाधारण नाम कैसियस क्ले उर्फ मोहम्मद अली का था, उतना माइक टाइसन को छोड़कर किसी अन्य का नहीं ।

2. प्रारम्भिक संघर्षमय जीवन व उपलब्धियां:

नीग्रो परिवार में 17 जनवरी, 1942 को जन्मे कैसियस क्ले का नाम इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बाद मोहम्मद अली हो गया । अपने पेशेवर जीवन में 69 लाख डॉलर की रिकॉर्ड कमाई करने के लिए इन्हें 61 मुकाबलों गे 549 चक्र मुक्केबाजी करनी पड़ी ।

इन्होंने राम ओलम्पिक में ”लाइट हैवीवेट” का स्वर्ण पदक हासिल किया था । 25 फरवरी 1964 को बौव्यिता की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी । ये रिंग के भीतर व बाहर अपनी अनूठी जीवनशैली के कारण प्रसिद्ध रहे हैं ।

इनके नाम 3 बार विश्व हैवीवेट चैम्पियन आने का विश्व रिकॉर्ड रहा । इनका जीवन बहुत असाधारण व कठिनाइयों से भरा था । रंग-भेद नीति के कारण इन्हें कई अपमानजनक तथा अप्रिय घटनाओं का सामना करना पड़ा था ।

एक बार एक गोरे पत्रकार ने इनसे यह पूछा था कि-यदि आपको वियतनाम की लडाई में भेज दिया जाता और उस समय आपक बन्दूक में केवल एक ही गोली रहती, तो ऐसी पेशा में आप क्या करते ?” मोहम्मद अली का जवाब था-तो मैं उसे तुग पर चला देता ।”

बस फिर क्या था, अमेरिकी रंग-भेद नीति ने इन्हें कानूनी दुष्वकों में फंसाकर क्याका विश्व विजेता का पदक छीन लिया । बचपन में मुक्केवाजी की देसी आजमाइश की कि गुरके में एक अध्यापक पर मुक्का चला दिया । बुरी तरह से घायल अध्यापक से इस तरह के व्यवहार में इन्हें अनुशासनहीनता का दण्ड भुगतना पड़ा ।

इन्होंने स्वयं ही विश्व चैम्पियन बनने की भविष्यवाणी कर दी थी । 18 वर्ष की अवस्था में राष्ट्रीय चैम्पियन बनने का गौरव तथा 1960 में ओलम्पिक गोल्ड मैडल जीतने का गौरव इन्हें ही हासिल है । ये अपनी शेख चिल्ली की तरह शेखी बघारने की आदत की वजह से काफी चर्चित रहे हैं ।

तितली की तरह नाचकर, मधुगक्खी की तरह प्रहार कर खेलना इन्हें पसन्द है । अपने बारे में ये कहते हैं कि मैं सचमुच महान् हूं । महानतम हूं खूबसूरत भी इन्होंने हर मुकाबले में लगभग 15 लाख रुपये कोई धनराशि जीती, जो उाब इनकी पत्नी से हुए जीवन निर्वाह पर दिये खर्चे में जा रही है ।

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25 फरवरी, 1964 को उन्होंने सानी लिरटन को 1 मिनट से याग सगयावधि में हराकर विश्व विजेता का पद प्राप्त किया । 1965 को पहले ही राउण्ड में फिर इन्हें हराया । 22 नवम्बर, 1965 को पलाइड पेटरसन को बुरी तरह से घायल कर यह मुकाबला जीता ।

19 मार्च, 1966 को जार्ज चुवाले को हराकर कनाडा चैम्पियनशिप जीती । 21 मई, 1966 के मुकाबले में तो इन्होंने अपने जीतने की भविष्यवाणी करके इंग्लैण्ड के मुक्केबाज कूपर को खून से लथपथ कर दिया । उसका खून से भरा चेहरा देखकर संवेदना भी व्यक्त की ।

1966 के दो मुकाबलों में इन्होंने इंग्लैण्ड के ब्रायन को पराजित किया । 14 नवम्बर 1966 से 1971 तक के मुकाबलों गे इन्होंने विलियम, एरनी टेरेल, जोरा फोली, बोना बेना जैसे दिग्गज चैम्पियनों को परास्त किया । 8 मार्च, 1971 के रोमांचकारी मुकाबले में इन्होंने फ्रेजियर को हराने की गर्वोक्ति की थी ।

15 राउण्ड तक चलने वाले इस मुकाबले में फ्रेजियर जीते । फ्रेजियर को देखकर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचता था, किन्तु जब फ्रेजियर ने इनके खेल की प्रशंसा करते हुए अली की पीठ थपथपायी, तो वै शर्मिन्दा हुए बिना नहीं रह सके ।

3. उपसंहार:

खेल जीवन से संन्यास के बाद अली ने नौजवानों को यह सीख दी कि ये इस खेल को अपना पेशा न बनाये । इनका जीवन संघर्ष यही कहता है । मुक्केबाजी के दौरान दिमाग पर आयी गम्भीर चोटों के कारण ये पार्किन्सन रोग से ग्रसित हो गये । आजकल ये अपनी बेटी लैला को मुक्केबाजी में प्रवीण कर उसे मुकाबलों में उतरने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं ।


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