List of most popular Hindi stories for Leaners!


Contents:

  1. जिन्न का शिकंजा |
  2. नीलम परी का वरदान |
  3. सूरत न देखो सीरत देखो |
  4. परियों का मेहमान |
  5. मछली बोली |
  6. चमत्कारी फूल |
  7. सबसे अच्छा अपना घर |

Hindi Story # 1 (Kahaniya)

जिन्न का शिकंजा |

पुराने समय में मद्र देश मेंएक राजा राज करता था । उसका नाम था रक्ताम । उसके पास भगवान का दिया हुआ सब-कुछ था, लेकिन संतान कोई नहीं थी । एक दिन उसका एक मंत्री एक मंदिर में गया । वहां उसने चढ़ावा बढ़ाने के बाद मंदिर के आस-पास के निर्धन लोगों को बहुत सारा धन दान में दिया ।

फिर भगवान से प्रार्थना की कि हमारे राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो । मंदिर में एक महात्मा रहते थे । उन्होंने मंत्री से कहा: ”भगवान राजाओं का भी राजा है । उसने तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार कर ली है । शीघ्र ही तुम्हारे राजा के यहा पुत्र पैदा होगा ।”

मंत्री यह सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ । महात्मा ने अपनी झोली में से थोड़ी सी भस्म निकाली और मंत्री की हथेली पर भस्म की चुटकी रखते हुए कहा : ”लो, भस्म की यह चुटकी ले लो और रानी को खिला देना । एक घड़े में पानी भरना । उसमें से एक कटोरा पानी निकालना ।

उस पानी में भस्म मिलाना और रानी को पिला देना । रानी एक सुदर बच्चे को जन्म देगी । उस राजकुमार का नाम ‘अनमोल’ रखना ।” मंत्री महल को लौट गया । उसने वैसा ही किया, जैसा महात्मा ने कहा था । एक दिन महात्मा के आशीर्वाद से ‘अनमोल’ का जन्म हुआ । समूचे राज्य में खुशियां छा गई ।

धीरे-धीरे अनमोल बढ़कर जुबक बन गया । राजकमार के इक्कीसवें जन्म दिन पर मंत्री ने राजा से कहा: “महाराज ! राजकुमार अनमोल अब बड़ा हो गया है । आप आज्ञा देतो मैं उसे उन महात्मा से मिलाकर ले आऊं, जिनके अश्घिर्वाद से वह पैदा हुआ था ।”

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राजा ने मंत्री की बात मान ली । मंत्री राजकुमार को लेकर महात्मा के पास गया । महात्मा भगवान के ध्यान में मग्न थे । ज्यों ही आंखें खोली, त्यों ही वे बुदबुदाए : ‘अब सुंदरी परी को अपने संताप से मुक्ति मिलेगी ।’ मंत्री और राजकुमार महात्मा के कथन का कोई मतलब नहीं समझ पाए ।

महत्मा ने उन्हें कुछ नहीं कहा । वे दोनों को लेकर पडोसी राज्य में गए । जब वे तीनों रात के समय राजमहल के पास से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि महल में से बिजली की चमक निकल रही है । वे तीनों हक्के-बक्के होकर यह तमाशा देखने लगे ।

इतने में ही राजमहल के एक झरोखे पर एक दासी प्रकट हुई । उसने पूछा : “तुम लोग यहा खड़े-खड़े क्या देख रहे हो ? किसी मंदिर में जाकर विश्राम करो । यहां रात में इस तरह खड़ा रहना माना है ।” राजकुमार ने पूछा : “ठीक है, हम यहां से चले जाएंगे, किन्तु यह तो बता दो कि कि बिजली की यह चमक राजमहल में से कैसे उठ रही है ?”

दासी ने उत्तर दिया : “तुम इस राज्य में नए आए लगते हो । इस राजमहल दें राजकुमारी ‘सुंदरी परी’ प्रत्येक शुक्रवार की रात को स्नान करती है । वह बह्म कुंर है । यह बिजली की-सी चमक उसके चेहरे की है ।” ‘सुंदरी परी ! सुंदरी परी!’ राजकुमार अनमोल उस सुंदरी परी की कल्पना करता और रोमांचित हो उठता ।

तब से उसके मन पर सुंदरी परी छा गई । उसने महात्मा कहाआप पहुंचे हुए महात्मा हैं । कृपया मेरा विवाह मुंदरी परी से करा दें ।” महात्मा ने कहा : ”भगवान की भी यही इच्छा है कि तुम्हारा विवाह सुंदरी परी से हो ।” मंत्री हैरान था । उसके बाद वे वहां से लौट आए ।

महात्मा ने अपनी कुटिया की राह ली । मंत्री और राजकुमार अपने राज्य की ओर चल पड़े । महल पहुंचकर उन्होंने राजा को सारी बातें बताईं । यह सुनकर राजा रक्ताम ने मंत्री से कहा-जुम पड़ोसी राजा के यहा जाओ और उसे हमारा सदईश दो कि हम अपने बेटे का विवाह उसकी बेटी से करना चाहते हैं ।

मंत्री पड़ोसी राजा के यहां पहुंचा । उसने अपने राजा का संदेश उसे सुनाया । सुनकर राजा असमंजस में पड़ गया । उसने मन-ही-मन सोचा : ‘सुंदरी परी जिन परिस्थितियों से गुजर रही है, उनमें न जाने वह राजकुमार अनमोल से विवाह स्वीकार करेगी या नहीं ।’

उसने मंत्री से कहा : ”मेरी बेटी अट्‌ठारह वर्ष की हो गई है । मैं उसका विवाह बिना उसकी इच्छा को जाने किसी से नहीं करूंगा । आप कुछ देर ठहरे, मैं अभी आता हूं ।” राजा अपने महल में गया । उसने सुंदरी परी से बात की । सुंदरी परी सोच में पड़

गई । फिर बोली : ”पिताजी ! आप तो जानते ही हैं कि मैं सफेद जिन्न के चंगुल में फंसी हुई हूं । वह मुझे हर शुक्रवार की रात को बुलाता है । मैं सज-धजकर उसके पास जाती हूं । वहां वह मुझे फिर अगले शुक्रवार की रात को आने के लिए कह देता है । आप ही बताइए ऐसी स्थिति में मैं क्या करूं ?”

राजा ने अपनी बेटी को ढाढ़स बंधाया : ‘सब ठीक हो जाएगा । तुम्हें सफेद जिन्न के चंगुल से बाहर निकालना होगा । शायद अनमोल से तुम्हारा विवाह हो जाने के बाद कोई रास्ता निकल आए ।”  ”हां, लेकिन जब तक मैं सफेद जिन्न से पूरी तरह छुटकारा नहीं पा लेती, मैं अनमोल की विवाहिता होकर भी उसकी पत्नी नहीं हो सकती ।

मुझे एक शर्त पर यह विवाह करना स्वीकार है ।” सुंदरी परी ने कहा । ”किस शर्त पर बेटी?” राजा ने पूछा । ”विवाह के बाद मेरी ससुराल के राजमहल में आमने-सामने ये कोठियां होंगी ।”  सुंदरी परी ने कहा : ”उन कोठियों के चारों तरफ चार खुले दरवाजे होंगे एक कोठी मेरी और दूसरी अनमोल की होगी ।

दोनों कोठियों के बीच एक चारपाई बिछी हुई होगी, जिस पर हम उस दासी के द्वारा बातें करेंगे । हम दोनों के बीच कोई सीधा सम्पर्क नहीं होगा । अगर उन्हें मेरी यह शर्त मंजूर है तो मैं तैयार हूं ।”  सुंदरी परी के पिता ने यह बातें मंत्री को बताईं ।

मंत्री यह समाचार लेकर राजा रक्ताम के यहां पहुंचा । राजकुमार अनमोल को इस शर्त का पता चला । उसने इसे स्वीकार कर लिया । राजा रक्ताम तो इस विवाह के लिए तैयार था ही । कुछ दिन बाद ही सुंदरी परी और अनमोल का विवाह हो गया ।

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पर वे दोनों दो अलग-अलग कोठियों में रहते थे और दासी के द्वारा ही उनमें आपस में बातचीत होती थी । अनमोल ने यह भी देखा कि हर शुक्रवार को उसकी पत्नी रात के समय नहाती है तो बिजली की तरह चमक उठती है । वह बन-ठनकर सज-संवरकर पर फैलाए आसमान में न जाने कहां उड़ जाती है ।

उसके पीछे-पीछे उसके जादू से एक पीपल का पेड़ भी उड़कर जाता है, जिस पर वह दासी सवार होती है । एक दिन अनमोल उस महात्मा के पास गया, जिसके आशीर्वाद से उसका जन्म हुआ था । उसने महात्मा को सारी कहानी सुनाई ।

महात्मा ने कहा : ”कोई बात नहीं । तुम मेरा यह अंगवस्त्र ले लो । इसे पहनकर दासी के साथ उस पीपल के पेड़ पर सवार होकर सुंदरी परी के पीछे-पीछे जाना । जब तक तुम यह अंगवस्त्र पहने रहोगे, सबको देखते रहोगे है कि परी तुम्हें कोई नहीं देख पाएगा, किंतु तुम ।

बहुत मुमकिन सुंदरी किसी विवशता के कारण किसी जगह जाती हो, वैसे वह तुम्हें हृदय से प्रेम करती है ।” यह सुनकर राजकुमार का चेहरा खिल उठा । वह महात्मा के चरण छूकर अपने महल में चला आया । अब अनमोल बहुत प्रसन्न था । वह अब बेसब्री से शुक्रवार का जार करने लगा ।

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इंतजार खत्म हुआ और वह शुक्रवार के दिन महात्मा का दिया हुआ अंगवस्त्र पहनकर सुंदरी परी और दासी के साथ हो लिया । आगे-आगे सुंदरी परी उड़ी जा रही थी । उसके पीछे-पीछे पीपल के पेड़ पर सवार होकर दासी और वह आसमान से बातें करते हुए जा उड़े रहे थे ।

वे छ: समुद्रों के ऊपर से गुजरे । जब सातवां समुद्र आया तो सुंदरी परी और पीपल का पेड़ उस समुद्र के तल में उतर गए । सुंदरी परी सफेद जिन्न के दरबार में गई । बाहर पीपल के पेड़ पर बैठी दासी इंतजार करने लगी । अनमोल से रहा न गया ।

वह अपने शरीर पर महात्मा का दिया हुआ अंगवस्त्र पहने हुए था, वह भी सुंदरी परी के पीछे-पीछे जिन्न के दरबार में जा पहुंचा । वहां उसने देखा कि एक सफेद जिन्न सिंहासन पर बैठा हुआ था । एक सौ परियां उसके सामने नाच-गा रही थी । जब सुंदरी परी उसके पास पहुंची तो जिन्न की बांछें खिल गईं ।

उसने सुंदरी परी से कहा : ”आओ, आओ । मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था । अपना नाच-गाना शुरू करो ।” जिन्न ने संकेत किया तो उन परियों ने अपना नाचना-गाना बद कर दिया । सुंदरी परी नाचने-गाने लगी । अनमोल ने महसूस किया कि सुंदरी परी सफेद जिन्न के वश में थी ।

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वह नाच-गा तो बेशक रही थी, लेकिन विवशता के वशीभूत होकर । सफेद जिन्न उसके दुख में सुख का अनुभव कर रहा था । उसे सफेदके जिन्न पर बहुत गुस्सा आया । उसने चिल्लाकर सफेद जिन्न से कहा : ”अरे जिन्न! तो ही पापी है, जो मेरी पत्नी को सताकर उसके से आनंद उठा रहा है ।”

दुष्ट तू बहुत दुख सफेद जिन्न ने चारों तरफ देखा, पर कोई उसे दिखाई न दिया । इस कारण वह थोड़ा-सा भयभीत हो गया । अनमोल ने अपना अंगवस्त्र उतार दिया तो वह सभी को दिखाई देने लगा । सफेद जिन्न के पहरेदारों के हाथों में भाले थे, उन्होंने उसे घेर लिया ।

अनमोल वहां निडर भाव से खड़ा हुआ था । उसने सफेद जिन्न को ललकारते हुए कहा: ”अरे जिन्न! तेरे शरीर में तो सफेद खून है, इसलिए तू सफेद जिन्न कहलाता है, इतनी परियों के होते हुए भी तुझे उंगलियों पर नचाने के लिए सुंदरी परी चाहिए ।

तू उसे झूठे दिलासे देकर हर शुक्रवार की रात को यहा बुलाता है, उसे डराता है और उसे पीड़ा पहुंचाता है । उसके पिता के राज्य को तहस-नहस कर डालने की धमकी देता है, पर अब सुंदरी परी मेरी पत्नी है । मैं उसके लिए अपना बलिदान देने के लिए भी तैयार हूं ।”

जिन्न ने तब अनमोल से पूछा : ”अरे मानव! तू तो बहुत बढ़-चढ़कर बातें कर रहा है । अच्छा, यह तो बता कि क्या तूइन सारी परियोंमें अपनी पत्नी की पहचान कर सका है ? यदि तू उसे पहचान ले तो मैं उसे अपने चंगुल से मुक्त कर दूंगा ।”

सफेद जिन्न ने इतना कहा ही था कि वहां मौजूद सभी हस्त-सुर और उनकी वेशभूषा सुंदरी परी जैसी हो गई । वे सब परियां एक बार कुकरी स्थ्य के ना फिर सब-की-सब पंक्तिबद्ध होकर खड़ी हो गईं । राजकुमार अनमोल वहां उपस्थित परियों कि तरफ बढ़ा, जिन्न अनमोल को चमकदार आंखों से देख रहा था ।

आज अनमोल की परीक्षा की घड़ी थी । अनमोल हर परी के सामने जाता, उसका मुख देखता, उर वह पहचान नहीं सका । आखिर वह एक ऐसी परी के सामने जा खड़ा हुआ, जिसके मुखमडल रु पसीने की बूंदें थीं । अनमोल ने तब चिल्लाकर कहा : ‘यही मेरी सुंदरी परी है ।’

सफेद जिन्न बाजी हार गया था । उसने अनमोल और सुंदरी परी को अपने राजमहल से जाने की इजाजत दे दी । विदाई के समय उसने दोनों को बहुत-से उपहार भी दिए सुंदरी परी सफेद जिन्न के चंगुल से आजाद हो गई । उसके बाद उन दोनों का बाकी का समय आनंदप्रूवक व्यतीत हुआ ।

शिक्षा:

हिम्मत और लगन से बड़े-हें-बड़े असंभव कार्य अई सहज सप से संपन्न किए जा सकते हैं । अत: हमें अपने जीवन में इननुमों समावेश अवश्य करना चाहिए ।


Hindi Story # 2 (Kahaniya)

नीलम परी का वरदान |

बहुत बेटियां थी । सबसे छोटी बेटी का नाम था गुलाबो । गुलाबो सचमुच युग स्वभाव की थी । माली बहुत ही गरीब था । कभी-कभी तो उसके घर इन्के करने जें-टेल रस आ जाती थी । एक दिन की बात है । माली की तीनों बेटियां भोजन कर रही वीं देनी के बाद भोजन बना था ।

तीनों भूखी थी । इतने में एक भिखारिन उनके दरवाजे पर आ पहुन्ध भिखारिन बहुत बूढ़ी थी, उसे कोढ़ निकला हुआ था । शरीर पर जगह-जगह मक्खियां भिनभिना दी यी । बूढ़ी भिखारिन ने माली की बड़ी बेटी से कहा : ”बेटी! मैं कई दिनों से भूखा हूं अपने भोजन में से थोड़ा-सा भोजन मुझे भी दे दो ।”

माली की सबसे बड़ी लड़की बड़े कठोर हृदय की थी । वह झगड़ालू भी वहुत थी । अपने स्वार्थ के आगे वह कछ सोच ही नहीं पाती थी । वह अलाकर बोली : ”भाग जा चुड़ैल! तू कहां से टपक पड़ी । कुछ नहीं मिलेगा । नहीं जाएगी तो तेरी चोटी पकड़कर निकाल दूंगी ।

दूसरी लड़की बहुत अभिमानी थी । अपने सामने किसी को कुछ समझती ही नहीं थी । किसी के साथ भलाई करना तो उसने सीखा ही नहीं था । वह बोली : ”खुद ही हम तीन दिन से भूखे हैं । हम तुझे कुछ नहीं दे सकते । चाहो तो ठडा पानी पीकर अपना रास्ता नापो ।”

अब बुढ़िया तीसरी लड़की गुलाबो की ओर मुड़ी और बोली: “कुछ मिलेगा बेटी !” गुलाबो ने अपने हिस्से की खाने की थाली बुढ़िया को दे दी और स्वयं ठंडा पानी पीकर रह गई । बुढ़िया उस सुशील और दयालु लड़की को ढेरों आशीर्वाद देकर चली गई । जाते-जाते बुढ़िया कहती गई-ईश्वर तुम्हें इस नेकी का फल देगा बेटी ! किसी दिन तुम रानी बनोगी ।’

बुढ़िया की बात सुनकर दोनों बड़ी बहनें खिल-खिलाकर हंस पड़ी : “यह बनेगी रानी । अरी बुढ़िया ! सठिया गई है क्या ? जा अपना काम देख ।” बुढ़िया के जाने के बाद बड़ी बहन गुलाबी से बोली-अब तुम क्या खाओगी रानीजी !’

दूसरी बहन बोली : “खुद भूखी रहकर यह बेवकूफी का काम क्यों किया तुमने ?” गुलाबो कुछ न बोली । उदास होकर सामने देखने लगी । तभी वहां एक चमत्कार हुआ । जहां बैठकर लुढ़इया ने रोटी खाई थी, वहां की जमीन चांदी की तरह चमकने लगी ।

जहां पानी गिरा था, वहां एक बहुत सुंदर गुलाब का पौधा उग आया । उसके फूल की महक ने गुलाबो की भूख-प्यास मिटा दी । उस देश के सुंदर राजकुमार ने शहर में यह मुनादी करवा दी कि नगर की सभी । गाने वाली होगी, राजकुमार उसी लड़की के साथ अपना हँ और चित्रकारी में भी निपुण होना चाहिए ।

माली की तीनों लड़कियां सुंदर थी । थोड़ा-बहुत नाचना-गाना और खाना बनाना भी जानती थी, पर उनके पास सुंदर पोशाकों नहीं थी । बेचारी बड़ी दुखी थी । करें क्या, तब बड़ी तो अपने लिए कहीं से एक सुंदर-सी पोशाक चुरा लाई । दूसरी ने किसी से उधार मांग जेट सबसे छोटी बहन गुलाबो मन मारकर उदास होकर बैठ गई । कहाँ जाए वह मांगने ?

कौन टेगा से बेचारी तालाब के किनारे बैठकर औसू बहाने लगी । अब एक ही दिन तो रह गया है । शाम हो गई थी । सूरज डूब रहा था । उसकी लाली से तालाब का पानी ला गया था । दूर पेड़ पर कोयल कूक रही थी । तालाब के खिले कमल मुंद गए थे, तभी उसे ऐसा लगा जैसे पास की एक लता काप रही है ।

पास में एक बत्तख पंख फैला रही है । उसने मुड़कर देखा तो एक नीले रग की परी उसकी ओर मुस्कराकर देख रही थी । तभी वह बत्तख उसकी गोदमें आकर बैठ गई । परी ने उसके आसूपोंछते हुए कहा-रो क्यों रही है पगली ! मैं जो हूँ तेरे साथ ।”

गुलाबो ने पूछा : ”तुम कौन हो ? और यह बत्तख…?” परी बोली : “मैं वही बुढ़ीया हूं जिसे उस दिन तुमनेरोटियांखिलाई थी । तुले-सनी बननेका आशीर्वाददिया था औरयह बत्तखजायुारनी है । हमदोनों तुम्हारी सहायता करेंगी । तुम घबराना नहीं ।”  गुलाबो बोली-पर यह सब तो कला से होगा । और में तो कोई कला जानती भी नहीं हूं।”  ”समय आने पर सब सही हो जाएगा ।” परी बोली-हम तुम्हें जादू से गायब किए देते हैं ।”

”वह क्यों?” गुलाबी ने पूछा । ”डरी मत बिटिया! तुम बिकल मत डरो । तुम्हारी बहने तुमसे जलती-कुढ़ती है । वे तुम्हारी जान की ग्राहक हो रही है । वह देखो सामने ।”  बत्तख ने कहा-हम अपने जादू के जोर से तुम्हें छिपा देते हैं और तुम्हारी सूरत की नकली गुलाबो को तालाब के किनारे खड़ा कर देते हैं ।

उसे यह धक्का देकर तुम्हारे सामने ही तालाब में डुबा देंगी ।” तब नीलम परी ने अपने जादू के जोर से गुलाबो की आकृति की एक मूर्ति पैदा कर दी और असली गुलाबो को गायब कर दिया । थोड़ी ही देर बाद दोनों बहनों ने नकली गुलाबो को पकड़कर रस्सी से बांधा और उसे तालाब के गहरे जल में धकेल दिया ।

नकली पानी में समा गई । संतुष्ट होकर बड़ी बहन ने कहा-अब निश्चिंत हुए इला टल देखें अब कैसे बनेगी रानी ?”  दूसरी ने कहा-वह बुढ़िया मुझे कुछ जादूगरनी-सी लगी थी ।” ”होगी, पर अब तो गुलाबी को हमने अपने रास्ते से हटा दिया है चलो, चलें ।”

घर पहुंचकर बड़ी बहन ने कहा : ”मैं तेरे लिए मिठाई लाई थी । मैं तो खा चुकी हूं तू खा ले और शर्बत पीकर सो जा ।” दूसरी बहन ने मिठाई खाई और शर्बत पीकर सो गई । सुबह उठकर घरवालों ने देखा कि वह मरी पड़ी है । बाप सिर पीटकर रह गया ।

बड़ी बहन सोचने लगी : ‘गुलाबो तो गई तालाब के गहरे जल में और यह बीच की जहरीली मिठाई खाकर मर गई । अब मैं ही रानी बनूंगी और राजकुमार से विवाह करके खूब आनंद करूंगी ।’ दूसरे दिन बहुत जल्दी उठकर बड़ी बहन सज-धजकर बड़ी उमग के साथ तैयार हुई ।

उसने मृगार किया । दर्पण में अपना मुख देखा तो प्रसन्न हो गई । फिर वह समय से पहले ही राजा के महल के गन में पहुंच गई । वहां पर उसने सैकड़ों एक-से-एक सुदर लड़कियां देखीं, जो बहुत पोशाकें पहने थी । आभूषणों से उनकी शोभा बढ़ गई थी । उसकी आखें चौंधियाने सुदर-सुर हुए लगी ।

सभी एक से बढ़कर एक सुंदर थी । यह देखकर उसे निराशा ने घेर लिया । ठीक समय पर राजकुमार आया । एक-एक करके सुंदर कन्याएँ उसके सामने नाचने-गाने लगी । माली की बड़ी लड़की ने भी गाया-बजाया और नाचा, पर किसी की नजर उसकी ओर न उठी ।

इतने में एक अत्यत रूपवती कन्या बहुत ही सुँदर पोशाक पहने उसे दिखाई पड़ी, जिसके सिर पर सोने का रत्नों से जड़ा हुआ मुकुट था । उसके मुख पर तेज था और आखों में नई ज्योति थी । उसके हे में गुंथे हुए फूलों से मादक सुगंध आ रही थी । राजकुमार भी बार-बार उसकी ओर ही देख रहा था ।

उसने ऊंची एड़ी के सैंडल पहने हुए थे । उसकी शक्ल-सूरत उसकी छोटी बहन गुलाबो से बहुत मिली-जुलती थी, पर सुदरता में वह उससे कहीं बढ्‌कर थी । उसकी गोद में एक बत्तख थी । बत्तख कोलेकर उस कन्या ने नाचना-गाना शुरू किया ।

उसकी सुरीली मीठी आवाज नेसबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया । सब मुग्ध हो गए, मानो किसी जादू से बंध गए हों । टकटकी लगाकर सब उसी को देखने लगे । उसकी सुंदरता ने सभी को अपने वश में कर लिया । राजकुमार ने कहा : ”बस, अब और किसी को नाचने-गाने की कोई जरूरत नहीं है ।”

इस लड़की के भाग्य की सराहना सब करने लगे । अब दूसरे दिन उसके खाना बनाने और चित्रकारी की परीक्षा होने वाली थी । राजकुमार ने अपने णिनों का भोजन तथा उनके चित्र बनाने का कार्य उस लड़की को सौंपा । नीलम परी चुपके से उस लड़की के पास पहुंची और बोली: “घबराना नहीं बेटी मैं तुम्हारा साथ दूंगी ।”

जब गुलाबो चित्र बनाने बैठी तो उसे लगा जैसे वह नहीं, नीलम परी ही उसकी जगह चित्र बना रही है । राजकुमार के चौदह मित्रों के अत्यत सुंदर चित्र उसने घंटे-भर में ही तैयार कर दिए । उसके हाथ बड़ी तेजी से चल रहे थे ।

अपने में वह कुछ नयापन पा रही थी । राजकुमार उसकी चित्रकारी की कुशलता से बहुत प्रभावित हुआ । उसके मित्रों ने उन चित्रों की बहुत तारीफ की । वे सब अपने-अपने यहां के बहुत मशहूर चित्रकार थे । गुलाबो के बनाए हुए भोजन पर छिपे-छिपे नीलम परी ने अपने नीचे पंखों की छाया करदी ।

उसकी मुस्कराहट के रस से सभी खाने की वस्तुएं रसीली हो गईं, मानो अमृत में डुबो दी गई हों । सभी ने उसके बनाए भोजन को बहुत पसंद किया । राजा-रानी ने खड़े होकर गुलाबो के नाचने-गाने, चित्रकारी और खाने की प्रशंसा की । राजकुमार ने गुलाबो के गले में जयमाला डाल दी ।

धीरे-धीरे यह बात सब जगह फैल गई कि माली की लड़की का भाग्य जाग उठा । वह रानी बन जाएगी । गुलाबो की बड़ी बहन को जब यह मालूम हुआ तो वह जल-भुनकर राख हो गई । अब वह कर ही क्या सकती थी ? बाजी उसके हाथ से निकल चुकी थी । बस, दांत किटकिटाकर रह गई ।

अब तो वह ईर्ष्या से अंधी हो गई । छिपकर हाथ में तलवार लेकर राजमहल में जा घूसी । उस समय राजकुमार बगीचे में टहल रहा था । गुलाबो फूल चुन रही थी । उसकी बड़ी बहन ने उस पर वार करना चाहा । वह चुपचाप आगे बड़ी ही थी कि राजकुमार इक गोद में बैटी बत्तख नागिन बनकर उसके पैरों में लिपट गई । गुलाबो की बड़ी बहन की तलवार उसके हाथ से डिटक्कर दूर जा गिरी ।

अचानक कहीं से नीलम परी प्रकट हो गई । उसने गुलाबो की बड़ी बहन से कहा : “अब तेरी बारी है । बोल क्या चाहती है । तूने अपनी एक बहन को मार डाला, एक को तालाब ने डूबा दिया । अब तो यह नागिन तुझे डंसकर ही रहेगी ।”

गुलाबो की बड़ी बहन के होश-हवास गायब हो गए । वह थर-थर कांपने लगी । उसने हाथ जोड़कर कहा : ”मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई । माफ कर दो ।” राजकुमार ने जब कड़ककर उससे सारी बातें पूछी तो टा के मारे गुलाबो की बहन सब-कुछ बताती चली गई ।

सुनकर राजकुमार ने कहा : “यह तो बेहद दुष्ट है । इसे सजा जरूर मिलेगी ।” गुलाबो बोली : “फिर भी यह मेरी बहन है । इसका तो ध्यान रखना ही पड़ेगा ।” ”तुम्हारा ख्याल करके ही तो इसे फांसी पर नहीं लटकवा रहा । अब मैं इसे दूर देश के एक जंगल में भेज रहा हूं ।” नीलम परी ने जादूगरनी बत्तख से कहा : ”इसे सात समुंदर पार के द्वीप में छोड़ आओ, जहां यह तड़प-तड़पकर मर जाएगी ।

शिक्षा:

बच्चो ! बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा ही निकलता है । जो किसी के लिए कुआं खोदता है, उसके लिए खाई तैयार मिलती है । अत: हमें सदैव बुरे कार्यों से दूर ही रहना चाहिए ।


Hindi Story # 3 (Kahaniya)

सूरत न देखो सीरत देखो |

बहुत पुराने समय की बात है । एक राजा के यहां एक लड़का पैदा हुआ । वह इतना कुरूप और बेढंगा था कि उसे देखकर रानी को बहुत निराशा हुई । ऐसे बच्चे को जन्म देकर रानी अत्यंत दुखी हुई ।

रानी के दुख से द्रवित होकर एक परी उसके पास आई और रानी से बोली : “रानी ! तुम इतना दुख मत मानो । तुम्हारा पुत्र अत्यधिक चतुर और बुद्धिमान होगा । इसे सभी लोग प्यार करेंगे ।”  रानी ने पूछा : ”किंतु इसका विवाह कैसे होगा और कौन लड़की इससे प्यार करेगी ?”

”इसे प्यार भी मिलेगा रानी।”  परी ने उत्तर दिया: ”मैं इसे वरदान देती हू कि जिस लड़की को यह सबसे अधिक प्यार करेगा, उसे यह अपने समान ही चतुर और बुद्धिमान बना लेगा ।” परी के वरदान से रानी को कुछ शांति-सी मिली । परी का कहना सच साबित हुआ ।

जब राजकुमार ने बोलना आरम्भ किया तो वह ऐसी प्यारी-यारी बातें करने लगा कि जो कोई भी सुनता, प्रसन्न हो उठता । राजकुमार का नाम रखा गया बुद्धिवर्धन । उसके जन्म से सात-आठ वर्षपश्चात पड़ोसी देश के राजा की रानी की कोख से दो लड़कियों ने जन्म लिया ।

पहली लड़की अत्यंत सौंदर्यमयी थी, इतनी सुंदर कि मां की प्रसन्नता का पारावार नहीं रहा । उसे इतनी प्रसन्नता हुई कि लोगों को यह लगने लगा जैसे रानी प्रसन्नता से पागल हो जाएगी । वह परी, जो राजकुमार बुद्धिवर्धन के जन्म पर प्रकट हुई थी, वह आई और रानी से कहने लगी : “हो सकता है कि तुम्हारी यह खुशी ज्यादा देर न रहे ।

यह लड़की जितनी सुदर है, उतनी ही मूर्ख साबित होगी ।”  यह सुनकर रानी को बहुत आघात लगा । इससे भी अधिक दुख उसे उस समय हुआ, जब उसने दूसरी बेटी को जन्म दिया । यह लड़की अत्यत बदसूरत थी । इस बार लोगों को लगा कि रानी दुख की अधिकता से पागल हो जाएगी ।

इस बार भी वही परी फिर आई और बोली : “रानी ! दिल को छोटा मत करो । तुम्हारी यह पुत्री इतनी अधिक बुद्धिमान होगी कि कोई उसकी कुरूपता के विषय में विचार भी न करेगा ।” रानी बोली : ”मेरी भी यही अभिलाषा है, किंतु क्या ऐसा कोई उपाय नहीं हो सकता कि बड़ी पुत्री, जो इतनी सुंदर है, उसे थोड़ी-सी ही बुद्धि प्राप्त हो जाए ?”

परी ने उत्तर दिया : ‘नहीं, रानी ! बुद्धि मैं उसे दे नहीं सकती, किंतु एक वरदान देती हूं कि वह जिस भी पुरुष से सबसे अधिक प्यार करेगी, उसे अपने समान ही सुंदर बना लेगी ।’ समय के साथ-साथ दोनो राजकुमारियाँ बड़ी होती गईं और उनके गुण भी उजागर होते गए ।

सपूर्ण देश में बड़ी राजकुमारी की सुंदरता और छोटी राजकुमारी की बुद्धिमता की खुशबू फैलने लगी, किंतु उम्र के हर कदम के साथ-साथ उनके अवगुण भी प्रकट होने लगे । छोटी राजकुमारी तो दिनों-दिन बदसूरत होती चली गई । बड़ी दिन प्रतिदिन मूर्ख होती चली गई ।

यदि कोई उससे कुछ पूछता या कुछ कहता, तो तब या तो वह चुप रहती या फिर कोई मूर्खता भरा उत्तर देती । इसके अतिरिक्त वह इतनी फूहड़ थी कि यदि चार फूलदान सजाने होते तो एक उसके हाथ से गिरकर अवश्य टुकड़े-टुकड़े हो जाता । पानी पीती तो उसके कपड़ों पर पानी अवश्य छलक जाता ।

सुंदरता में बड़ा आकर्षण होता है । जब दोनो बहने एक साथ कहीं जातीं तो लोग छोटी की अधिक कद्र करते । पहले तो सब लोग सुंदर राजकुमारी के चारों ओर फिर आते, उसे देखते और उसकी सुंदरता की सराहना करते, किंतु शीघ्र ही बड़ी की कलई खुल जाती और लोग उसे छोड़कर छोटी को घेर लेते, क्योंकि उसकी प्यारी-प्यारी बातें सुनने में उन सबको अपूर्व आनंद आता था ।

यद्यपि बड़ी लड़की मूर्ख थी, अपनी इस उपेक्षा को समझती थी । वह सोचती थी कि कितना अच्छा हो कि कोई चाहे उसकी सारी सुन्दरता ले ले, किन्तु उसकी बहन की आधी बुद्धि उसे दे दे ।  रानी उसे प्यार करती थी । उसकी मूर्खताओं के लिए उसे कभी-कभी डाट भी देती थी, तब विवश राजझारी अत्यंत दुखित और निराश हो जाती ।

एक दिन अपने दुख को हल्का करने के लिए वह चुपके से वन की ओर चली गई । वहां अकेले में उसके हृदय का दुख आंसू बन कर फुट निकला, तभी अकस्मात वहां उसे एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया । वहां अकेले में उसके हृदय का दुख आंसू बनकर फूट निकला, तभी अकस्मात वहां उसे एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया ।

वह व्यक्ति शक्ल-सूरत और चाल-ढ़ाल से बेहद बदशक्ल था, किंतु उसका लिबास राजकुमारी जैसा शानदार था । वह कुरूप व्यक्ति राजकुमार बुद्धिवर्धन था । राजकुमार नेराजकमारी कोपहचान लिया, क्योंकि उसने राजकुमारी के रूप की चर्चा सुन रखी थी ।

राजकमारी के समीप पहुंचकर बुद्धिवर्धन ने अत्यंत आदरपूर्वक उसका अभिवादन किया और उससे पूछा : ”क्या कारण है, जो आप इतनी उदास और निराश नजर आ रही हैं ? मैंने अपने जीवन में अनेक रूपवती स्त्रियां देखी है, किंतु ऐसा रूप एवं आकर्षण किसी और स्त्री में नहीं पाया ।”

“हो सकता है यह सही हो, किंतु…।” कहते कहते राजकुमारी चुप हो गई । बुद्धिवर्धन ने कहा : ‘रूप एक ऐसी वस्तु है, जो व्यक्ति की सारी कमियों को गुम कर देता है । इसलिए सदर लोगों के दुखी होने का ऐसा क्या कारण हो सकता है ?’

राजकुमारी ने उत्तर दिया : “कारण? कारण मैं क्या बताऊ? मैं जितनी सुंदर हूं, उतनी ही मूर्ख भी हूँ । इससे अच्छा तो यही होता कि मैं आपकी भांति कुरूप होती, किंतु थोड़ी-सी बुद्धि अवश्य होती ।” राजकुमार बुद्धिवर्धन ने समझाया : “राजकुमारी ! कम बुद्धिमान होने की अनुभूति होना ही बुद्धिमान होने की सबसे बड़ी निशानी है ।

बुद्धि तो ऐसा गुण है, जिसके पास यह जितना अधिक होता है, वह उसकी उतनी ही कमी का अनुभव करता है ।” ”यह सब तो मेरी समझ से परे की बातें हैं, किंतु मैं इतना अवश्य जानती हूं कि मैं मूर्ख हूं और इसलिए मैं इतनी दुखी हूं ।” ”बस, इतनी-सी बात है । मैं तुम्हारा दुख दूर कर सकता हूं ।” राजकुमारी ने प्रश्न किया : “वह किस प्रकार ?”

राजकुमार ने उत्तर दिया : ”मुझे वरदान प्राप्त है कि मैं जिस लड़की से सबसे अधिक प्यार करूंगा, उसे अपने जैसा बुद्धिमान बना लूंगा और तुम वही लड़की हो जिसे में सबसे अधिक प्यार करता हूं । मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूं ।  वचन दो कि तुम मुझे अपना पति स्वीकार करोगी ।”

राजकुमारी ठगी-सी रह गई । उसके मुँह से कोई शब्द न निकला । बुद्धिवर्धन बोला : ”मैं समझ गया । ऐसा वचन देना तुम्हारे लिए कठिन होगा । वचन न देने में मुझे कोई आपत्ति भी नहीं है, फिर भी विचार करने के लिए मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूं ।”

राजकुमारी एक तो वैसे ही मद बुद्धि थी और दूसरे उसके मन में बुद्धि प्राप्त करने की इतनी उक्का थी कि उसे लगा, जैसे एक वर्ष तोएक युग के समान लम्बा है, जो कभी समाप्त ही नहीं होगा, इसलिए उसने बुद्धइवर्धन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया ।

उसने राजकुमार बुद्धिवर्धन को यह वचन दिया कि वह एक वर्ष बाद उससे विवाह कर लेगी । ज्योंही राजकुमारी ने यह वचन दिया, त्योंही उसे यह आभास होने लगा जैसे वह एकदम बदल गई है । उसे अनुभूति हुईकि उसके मस्तिष्क में अब जो भी बात आती है, उसे वह सहज और सरल रूप से कह सकती है ।

तुरंत ही वह बुइद्धवर्धन के साथ हंस-हंसकर ऐसी समझ से भरी बातें-करने-लगी कि राजकुमार को लगा : ‘कहीं उसने राजकुमारी को अपनी बुद्धि से अधिक बुद्धि तो नहीं दे दी है ।’  जब वह महल में लौटी तो लोग राजकुमारी का बदला रूप देखकर चकित रह गए ।

वह अब उतनी ही चतुर और हाजिर जवाब हो गई थी, जितनी कि पहले छड़ और मूर्ख थी । पूरे राज परिवार की प्रसन्नता का पारावार न रहा, किंतु उसकी छोटी बहन को बड़ी का यह परिवर्तन जरा भी नहीं सुहाया । उसने सोचा कि अब उसे कौन घास डालेगा । अब तो वह अपनी बड़ी बहन के सामने अत्यधिक बदसूरत और फूहड़ लग रही थी ।

उसके बाद राजा अपने राज-काज में अपनी बड़ी बेटी से सलाह लेने लगा । यह समाचार बहुत तेजी से चारों तरफ फैल गया । पड़ोसी राज्यों के अनेक राजकुमार उससे विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त करने लगे, किंतु राजकुमारी ने किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उनमें से एक भी उसके बराबर बुद्धिमान नहीं था ।

तब एक ऐसा राजकुमार भी आया जो इतना शक्तिशाली, धनी, बुद्धिमान और सुंदर था कि राजकुमारी उस पर आसक्त हो गई । यह देखकर रानी ने कहा : ”बेटी! जिसे तुम पसंद करोगी, उसी से तुम्हारा विवाह कर दिया जाएगा ।” कहते है कि जो जितना बुद्धिमान होता है, उसे किसी बात का निर्णय करने में उतनी ही देर लगती है ।

इसलिए राजकुमारी ने अपने पिता से कहा : ”इसका निर्णय मैं कुछ दिन बाद करूंगी ।”  इस समस्या पर अत्यधिक गंभीरतापूर्वक मनन करने के लिए राजकुमारी एक दिन जंगल में गई । उसी वन में जहां राजकुमार बुद्धिवर्धन से उसकी भेंट हुई थी । वन में उसने देखा कि वहा किसी के विवाह की बड़ी धूमधाम से तैयारियां हो रही हैं ।

राजकुमारी ने एक व्यक्ति से पूछा : ”यहां किसके विवाह की तैयारियां चल रही हैं ?” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया : ”आप नहीं जानती ? कल हमारे राजकुमार बुद्धिवर्धन का विवाह है ।”  राजकुमारी चकित रह गई । अकस्मात उसे स्मरण हो आया कि बुद्धिवर्धन से मिले कल उसे एक रह पूरा हो जाएगा ।

याद आते ही उसके शरीर में सिहरन-सी दौड़ गई वह सोचने लगी : ‘क्या 2 ऐसे बदसूरत व्यक्ति से विवाह करूंगी ?’ उसी समय सामने से राजकुमर आता दिखाई दिया । उसने दूल्हे के वस्त्र पहने हुए थे । राजकुमारी को देखकर वह बलो : ”वाह, राजकुमारी ! यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि तुमकी अपना वचन याद रहा ।” नजरुमारी ने अनजान बनते हुए कहा : ”वचन! कैसा वचन ?”

राजकुमारी के शब्दों को सुनकर राजकुमार आश्चर्यचकित होकर बोला : ”अजीब बात है । तुम्हें याद नहीं ? इसी स्थान पर तुमने मुझे वचन दिया था कि एक वर्ष पश्चात तुम मुझसे विवाह कर लोगी ।”  राजकुमारी हंस पड़ी और बोली : ”ओह ! वह वचन ? देखो, तुम्हारे स्थान पर कोई मूर्ख और गंवार व्यक्ति होता तो वह अवश्य कहता कि तुमने वचन दिया था ।

अत: तुम्हें मुझमें, विवाह अवश्य करना होगा, किंतु तुम तो बुद्धिमान हो, इसलिए तुम स्वयं सोच सकते हो कि जिस समय मैंने यह वचन दिया था, उस समय मैं मूर्ख थी और अपने अच्छे-जुटे का विचार नहीं कर सकती थी ।

तुम्हारी कृपा से जो आज मुझे मिला है, यदि वह वचन देते समाज पास होता तो क्या में वैसा कोई वचन तुम्हें दे सकती थी ? जरा सोचो तो । यदि नुउम मुझने वास्तव ने ही विवाह करना चाहते थे तो मुझे मूर्ख ही रहने देते ।”

राजकुमार बोला : ”क्षमा करना । कोई मूर्ख और अबोध व्यक्ति जो कहता, वही मैं तुमसे बहुरा, क्योंकि मेरे जीवन की सारी खुशियां दाव पर लगी हैं । फिर तुम मूख और वृद्धिमान व्यक्ति में कैसे अंतर कर सकती हो ?

मूर्ख और अबोध आदमी क्या मानव नहीं होते ? तुम सज एक वर्ष पहले क्या थी ? खैर, तुम यह बताओ कि मेरी कुरूपता को छोड्‌कर मुझमें ऐसी कौन-सी चीज है, जो तुम्हें पसंद नहीं है । क्या तुम मेरी शिक्षा, मेरी बुद्धि, मेरे चरित्र या मेरे व्यवहार से सतुष्ट नहीं हो ?” ”तुम्हारे यह सब गुण मुझे पसंद हैं ।”

”यदि यह बात है तो चिंता कैसी ? तुम चाहो तो मुझे विश्व का सबसे सुदर व्यक्ति बना सकती हो ।”  ”यदि ऐसा है तो मैं सच्चे हृदय से चाहती हूं कि तुम दुनिया के सबसे सुदर व्यक्ति बन जाओ ।”  जैसे ही राजकुमारी के मुख से यह शब्द निकले, वैसे ही बुद्धिवर्धन उसे अत्यधिक सुदर दिखाई पड़ने लगा ।

उसके बाद परी का वरदान पुन: सही साबित हुआ ।  बुद्धिवर्धन की कुरूपता गायब हो राजकुमारी उसकी इतनी मोहित गई और वह अत्यधिक सुंदर राजकुमार बन गया । स्वयं सुदरता पर हुई कि वह उससे विवाह करने के लिए तैयार हो गई ।

शिक्षा:

व्यक्ति की सुदंरता उसके गुणों में निहित रहती है । अत: हमें व्यक्ति की सूरत पर न जाकर उसके गुणों का सम्मान करना चाहिए ।


Hindi Story # 4 (Kahaniya)

परियों का मेहमान |

बहुत समय पहले की बात है । दूर देश में एक राजा राज करता था । राजा की एक रानी थी, एक राजकमार था । नीली-नीली आखों वाला राजकुमार स्वस्थ शरीर और नाटे कद का था । सुंदर इतना कि प्रजा के लोग-उसे-नानी देवता कहते थे ।

रानी अपने बेटे को बेहद प्यार करती थी । वह सदैव उस पर अपना सब-कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार रहती थी । उस राजकुमार का नाम था आर्थर । एक दिन आर्थर के मन में विचार आया कि दुनिया को देखा जाए । रानी भला अपनी आखों के तारे को दूर कैसे जाने देती, लेकिन राजा तो हा कह चुके थे ।

रानी ने सोचा कि बहादुर सैनिकों की एक टुकड़ी और बहुत-सा सामान राजकुमार के साथ कर देंगे । उसे रास्ते में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी । इसी हिसाब से तैयारियां होने लगी, लेकिन आर्थर तो किसी को भी और कुछ भी साथ ले जाने को तैयार न हुआ ।

वह जितना सुंदर था, उतना साहसी भी था । फिर भला कैसा डर ? आर्थर नेएक शर्त और रख दी कि उसे जातेसमय खुशी-खुशी विदा किया जाए । बेटे से बिछते हुए रानी का दिल बैठा जा रहा था, फिर भी उसने आर्थर को मुस्कराते हुए विदा किया ।

चलते-चलते उसके हाथ में तारों-सितारों से जड़ी एक थैली जरूर पकड़ा दी । भला आर्थर मां से वह थैली लेने से कैसे इंकार करता? आर्थर चल पड़ा । वह आगे-आगे चलता ही रहा । राह में जैसा जो कुछ मिल जाता, खा-पी लेता । कहीं भी आराम करलेता । रास्ते में उसे एक झोपड़ी दिखाई-पड़ी ।

उसमें रहती थी एक गरीब छुट्टिया । बूढ़िया बीमार थी । आर्थर ने उसकी देख-भाल की तो बुढ़िया ठीक हो गई । कहने लगी : ”मेरा भी एक बेटा था । न जाने कहां चला गया । तू मेरे पास ही रह, मेरे बेटे की तरह ।” आर्थर ने कहा : ”मुझे तो बहुत दूर जाना है, मैं रुक नहीं सकता ।”

बुढ़िया ने उसे ढेरों आशीष देकर विदा किया । चलते-चलते वह एक जगल में पहुचा । वहां उसने एक महल देखा । महल ऐसा शानदार कि धरती पर किसी ने देखा-सुना न था । महल के द्वार पर पहरेदार नहीं थे । हां, दो शेर जरूर पहरा दे रहे थे । पत्थर के थे ।

आर्थर भीतर गया । महल खूब सजा-धजा था, पर कहीं कोई चहल-पहल नहीं थी । वहां सब-कुछ जैसे पत्थर का था । एक के बाद एक आर्थर कई कमरों में गया । किसी में तरह-तरह की पोशाके । कहीं पलंग बिछे थे तो कहीं अलमारियां लगी थी ।

आगे बढ़ने पर एक रसोई घर था । उसमें खाने-पीने की सब्जियां-फल और तरह-तरह के पेय थे । आर्थर भूखा तो था ही । उसने कुछ फल उठाकर खाने चाहे, पर यह क्या ? वे तो जैसे पत्थर के बने थे । आगे बढ़ने पर उसने एक बहुत बड़ा भवन देखा ।

यहां कीमती कालीनों में हीरे-मोती दमक रहे थे । कुछ वाद्य-यंत्र भी रखे थे, पर सब-कुछ पत्थर का था । आर्थर हैरान था । इतना बड़ा महल, पर कोई आदम-जात नहीं । जैसे चहकता-चहकता महल फूंक मारने पर पथरीला हो गया हो । वह सोचने लगा : ‘इसमें रहने वाले कहां गए ? कौन थे वे ?’

घूमते-भटकते सांझ घिर आई । सूने महल में सूनापन सांय-सांय करने लगा, लेकिन वहा अंधेरा नहीं हुआ । रात में जिस तरह आकाश-गंगा की रोशनी होती है, ठीक वैसी ही रोशनी की झिलमिल वहां हो गई । आर्थर ने सोचा : ‘शायद रात में यहां कोई आए ।’

वह सभा भवन में सिंहासन पर जा बैठा । जागता रहा, जागता रहा, फिर सो गया । सवेरा हुआ । आर्थर की नींद टूटी । महल में कहीं कुछ न हुआ, न कोई आया । बीतते जाते, पर आर्थर जो-जो कुछ सोचता, कुछ भी न होता । उसे घर की याद आती, रानी मां की याद सताती ।

पर वह तो दुनिया देखने के लिए निकला था । अब उसने तय कर लिया कि अधिक दिन यहां नहीं ठहरेगा । अचानक उसका ध्यान उस थैली की ओर गया जो मां ने दी थी । उसने थैली खोली । परंतु यह क्या ? उसमें तो काले-भूरे रंग की मिट्‌टी-सी थी । वह हथेली पर रखकर उसे देर तक देखता रहा । ऐसा लगा जैसे काली-नीली पेंसिलों का सुरमा हो, चूरा किया हुआ ।

उसे लगा : ‘मां ने गलती से हीरे-जवाहरात की किसी थैली की जगह यह थैली दे दी होगी ।’  आर्थर ने थैली में से एक-एक मुट्‌ठी भरकर वह चूरा जहां-तहां छिड़क दिया । कुछ देर बाद वहा जैसे कोई भूचाल-सा आ गया । तभी वहां चांदी की तरह चमकता एक बड़ा-सा तारा रथ आ उतरा । तारा-रथ खुला । उसमें से परी-सी कोई सुँदर स्त्री उतरी वह इधर-उधर जैसे कुछ ढूंढने लगी ।

आर्थर एक ओर छिप गया, यह देखने के लिए कि देखें अब आगे क्या होता है ? फिर तारे की एक पंखुडी और खुली, फिर तीसरी पंखुडी खुली । अब तीन परियां सभा भवन में खड़ी थी । तीनों के सिर पर मुकुट सजे हुए थे । शरीर पर सफेद दूधिया पोशाकें थी ।

वे आईं तो पूरा महल जैसे नींद से जाग उठा । पहले सभी कुछ पत्थर का था, अब वैसा नहीं रहा । वहां छोटे कद के कई नौकर भी आ गए । आथर समझ नहीं पाया कि वे कहां से और कब आ गए । बौने फुर्ती से काम करने लगे । कोई खाना तैयार करने क्म ह्मे कोई सजावट करने लगा ।

घंटों बाद तीनों परियां खाने की मेज पर बैठी, लेकिन बौनों ने मेज पर चार लोगों का खाना लगाया । परियों ने खाना शुरू नहीं किया, मानो किसी की प्रतीक्षा कर रही ही । देर हो गइ तो उनमें से एक परी ने ताली बजाई, फिर प्यानों जैसी मधुर आवाज सुनाई दी ।

हम अपने मेहमान के बिना खाना कैसे खाए ? आर्थर तो अभी तक छिपा हुआ था । वह बाहर नहीं आया । परी ने अपनी बात दोहराई । तीसरी बार उसने कहा : ”हम चाहते हैं कि राजकुमार आर्थर भोजन में हमारा साथ दे ।” अब तो आर्थर को झिझकते हुए उनके सामने आना ही पड़ा ।

मेज पर तरह-तरह के फूलों जैसे रंग-बिरंगे बर्तनों में एक से बढ्‌कर एक खाने की चीजें थी । आर्थर ने ऐसा स्वादिष्ट भोजन कभी नहीं किया था । काफी दिन हो गए थे, आर्थर को स्वादिष्ट भोजन नहीं मिला था । उसने खूब डटकर भोजन किया, फिर एक परी ने आर्थर से पूछा-”तुमने हमें यहां किसलिए बुलाया है ?”

आर्थर बोला : ”मैं तो महल का रहस्य जानना चाहता था, परंतु मैंने आपको तो नहीं बुलाया ।”  परी बोली: ”तुमने परी-लोक की मिट्‌टी यहां फैलाई थी न, हमें आना ही पड़ा । बहुत पहले यह मिट्‌टी हमने तुम्हारी रानी मां को दी थी, क्योंकि उन्होंने संकट में घिरी एक परी की मदद की थी ।

हमने उनसे कहा था कि जब वह दो मुट्‌ठी मिट्‌टी बिखेरेंगी, हम आ जाएंगी ।” आर्थर तो उस महल का रहस्य जानने को उत्सुक था । परी ने उसे बताया : ”यह महल कभी परियों ने बनवाया था । वह यहां आकर रात-रात-भर नाचा करती थी, किंतु किसी तरह यह रहस्य यहां के राजा को पता चल गया ।

एक रात उसकी सेना ने यह महल घेर लिया । परियां झटपट उड़ गईं, पर एक परी कैद कर ली गई । कई बौने भी पकड़े गए । बाद में तुम्हारी माता ने हस्तक्षेप करके किसी प्रकार उस परी को राजा की कैद से मुक्त कराया । तब से हमने यहा आना ही छोड़ दिया ।”

धीरे-धीरे आर्थर की समझ में आ रहा था कि यह भव्य महल इतना सूना क्यों था ? हर वस्तु पत्थर क्यों हो गई थी ? वह सोच में डूबा हुआ था । परियां एकटक उसे देख रही थी । फिर एक परी ने आर्थर से पूछा : ”तुम्हारी कोई समस्या हो तो बताओ ?”

“कोई समस्या नहीं है ।” आर्थर ने झट से कह दिया । ‘है कैसे नहीं?’ परियों ने हंसते हुए कहा: ”तुम्हारी समस्या है कि तुम जल्दी-से-जल्दी दुनिया की सैर कैसे करो? उधर तुम्हारी माँ परेशान है । जब से तुम यात्रा पर निकले हो, उन्होंने तो जैसे खाना-पीना ही त्याग दिया है ।

हर समय तुम्हारी ही चिंता में डूबी रहती हैं ।” आर्थर की आखों के सामने मी का उदास चेहरा घूम गया । वह मां से तुरंत मिलने को बेचैन हो उठा, लेकिन फिर उसने सोचा कि यदि वह अभी वापस चल दिया तो फिर दुनिया की सैर कैसे कर पाएगा ? इसी में आर्थर सोच में पड़ गया ।

परियों ने जैसे उसके मन की उलझन समझ ली । एक परी ने कहा : ”आर्थर ! तुमने परी लोक की मिट्‌टी कुकर हमें बुलाया है इसलिए तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी । आओ, इस तारा-रथ में बैठ जाओ । हमारा यह रथ मन की गाती से उड़ता है । इसमें बैठकर तुम बहुत जल्दी दुनिया देख लोगे । यात्रा से लौटकर अपनी मां के पास चले जाना ।”

आर्थर कृतज्ञता से भर उठा । वह तारा-रथ में जा बैटा इससे पहले के वह कुछ पूछ पाता, तारा-रथ आकाश में उड़ने लगा । उस अद्‌भुत रथ के झरोखों में से एक से बढ़कर एक अनोखे दृश्य दिखाई दे रहे थे ।  समुद्र पार करके, नए-नए देशों, वनों और पर्वतों को लाघता तारा-रथ उड़ा जा रहा था ।

तारा-रथ में बैठकर आर्थर ने बहुत जल्दी ही पूरी दुनिया देख ली । और फिर एक शाम उसे कुछ परिचित आवाजें सुनाई पड़ी । वे आवाजें, जिन्हें वह खूब पहचानता था । तभी तारा-रथ धरती पर आ उतरा । आर्थर रथ से बाहर निकला । वह औखें फाड़-फाड़कर देखने लगा ।

तारा-रथ परी महल के पास नहीं, उसके अपने नगर में उतरा था । थोड़ी दूर उसके राजा के मंत्री और दरबारी खड़े थे । आर्थर को देखकर वे सब बहुत णुश हुए । पूछने पर उन्होंने कहा : ”कोई अनोखा संदेश-वाहक कह गया कि राजकुमार बस लौटने ही वाले हैं ।”

आर्थर सब समझ गया । प्‌रियों ने ही उसकी खबर करा दी होगी । आर्थर के लौट आने का समाचार पूरे नगर में फैल गया । वह माँ से मिलने के लिए महल की ओर चला तो उसने तारा-रथ को आकाश में उड़कर दूर जाते हुए देखा ।

सब हैरान थे कि आर्थर इतनी जल्दी कैसे लौट आया । मां ने पूछा तो आर्थर बोला : ”मां! यह सब तुमने किया । तुम्हारी दी हुई मिट्‌टी का ही चमत्कार है कि मैंने कुछ दिन में ही पूरी दुनिया घूम ली ।” आर्थर की मां हंस पड़ी । उसे मालूम था कि यह चमत्कार किसने किया होगा । उपकार का प्रतिफल हमेशा सुख-कारक ही मिलता है । अत: हम सबको सदैव उपकार के लिए तत्पर रहना चाहिए ।


Hindi Story # 5 (Kahaniya)

मछली बोली |

पहले समय में आर्यावर्त के एक प्रदेश में राजा ब्रह्मदत्त का शासन था । राजा ब्रह्मदत्त का एक पुत्र था, उसका नाम था प्रियम । प्रियम एक होनहार युवक था । वह राज-काज में अपने पिता को भरपूर सहयोग देता था । बड़ी-से-बड़ी समस्या को सुलझाने में वह अपने पिता का सहायक बन जाता था ।

उसे शिकार करने का भी बहुत शौक था । एक बार राजकुमार प्रियम ने अपने पिता से वन भ्रमण करने की आज्ञा मांगी । पिता ने उसे सहर्ष अपनी आज्ञा प्रदान कर दी । जाते समय उसने अपने पुत्र से कहा : ”बेटा! तुम जहां भी पड़ाव डालो, वहां का हाल-चाल किसी विशेष दूत के द्वारा मेरे पास जरूर भेजते रहना, ताकि मैं तुम्हारी ओर से निश्चिंत रह सकूँ ।”

राजकुमार ने हामी भर दी और अपने सेवकों को साथ लेकर शिकार के लिए चल पड़ा । उसके साथ पचास आदमियों का काफिला था । उन सबके पास भोजन की सामग्री के साथ-साथ तीर-कमान और दूसरे अनेक प्रकार के हथियार थे ।

अक्सर राजकुमार किसी जंगल में अपना पड़ाव डाल देता था । वह शिकार खेलते-खेलते धनुष विद्या में पूर्ण रूप से निपुण हो गया था । अनेक जंगलों से होता हुआ एक दिन राजकुमार सुंदर वन में पहुंचा । वह घोड़े पर सवार था ।

पीछे-पीछे उसके सेवक थे । संध्या का समय था । राजकुमार आखेट के लिए आगे बढ़ रहा था न जाने कैसे वह अपने साथियों से बिछुड़ गया । काफिला आगे बढ़ गया और वह पीछे रह गया । साथ ही वह किसी दूसरी दिशा में भटक गया ।

राजकुमार ने इधर-उधर घूमकर देखा, काफिले के साथियों का कोई अता-पता नहीं था । उसे प्यास लग आई, पर पानी भी तो उसके साथियों के पास ही रह गया था । इतने बड़े जंगल में अब वह अकेला था । वह अपने माता-पिता तथा गुरु का स्मरण करने लगा ।

कुछ रुकता, फिर आगे बढ़ता । सांय-सांय की आवाजें उसके कानों को बेध रही थी । अंधकार भी घिरने लगा था । धीरे-धीरे आकाश में तारे टिमटिमाने लगे । घोड़ा भी आगे बढ़ने से हिचकने लगा । इतने बड़े जंगल में वही तो उसका सहारा था । कुछ दूर चलने के बाद अब वह एक खुले स्थान में आ गया ।

रात्रि का आधा पहर समाप्त हो गया था । कुछ और दूर चला तो उसको एक नदी दिखाई दी । घोड़ा बहुत थक चुका था । उसके पैर भी लड़खड़ा रहे थे । अनायास ही उसके कानों में किसी की बातचीत का स्वर पड़ा । राजकुमार को आश्चर्य हुआ कि इस सुनसान जंगल में यह आवाज कहा से आ रही है ।

वह नदी के किनारे पहुचा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । अति सुंदर, श्वेत वस्त्र पहने एक लड़की नदी किनारे बैठी मछलियों से बातें कर रही थी । मछलियां भी पानी में उछल-उछलकर खेल रही थीं । प्रियम आश्चर्य में पड़ गया ।

कैसी आत्मीयता थी लड़की और उन छोटी-बड़ी मछलियों के बीच । दूर खड़ा राजकुमार यह सब देखता रहा । फिर वह साहस करके आगे बढ़ा । उसकी पद चाप सुनकर लड़की का ध्यान उसकी ओर गया । राजकुमार ने उसके पास पहुचकर उससे कहा : ”पहले अपने बारे में बताओ ।

उसके बाद मैं अपना परिचय दूंगा । इस समय मैं मुसीबत का मारा हूँ ।” लड़की बोली : ”आप खड़े क्यों हैं ? कृपया बैठ जाइए ।” राजकुमार उसके समीप ही बैठ गया । तत्पश्चात दोनों ने अपने-अपने बारे में  बताया । परिचय जानकर दोनों में घनिष्ठता हो गई । लड़की बोली : ”कभी मैं भी इन मछलियों की तरह ही एक मछली थी ।

एक दिन परियों की रानी अपनी कुछ सहेलियों के साथ पूर्णिमा की रात में इस नदी पर स्नान करने के लिए आई । वे सारी रात गाना गाती रहीं, नृत्य करती रहीं । सभी मछलियों को उनका नाचना-गाना बहुत अच्छा लगा । मुझे भी बहुत आनंद आया ।

मैं खुशी के मारे नाचने लगी । परियों की रानी मेरा नाच देखकर बहुत प्रसन्न हुई । उसने मेरी खूब प्रशसा की । उसने मुझसे परी लोक में चलने को कहा ।” राजकुमार प्रियम बड़े ध्यान से उस लड़की की बातें सुन रहा था ।

थोड़ी देर बाद वह लड़की पुन: बोली : ”परी रानी ने दो मिनट के लिए मौन होकर अपने देवता से मुझे परी बनाने की प्रार्थना की । उनके देवता ने परी रानी की प्रार्थना रचीकार कर ली । प्रार्थना के बाद मैं परी बन गई ।

उसी दिन से मैं उन सबके साथ रहती हूं । यहां कभी-कभी अपनी पुरानी सहेलियों से मिलने के लिए चली आती हूं ।” उसके बाद राजकुमार ने परी को अपनी समस्या बताई । परी के पास कुछ फल और मिठाई थी । उसने राजकुमार से कहा : ”आज से हम दोनों मित्र बन गए हैं ।

आप यह फल और मिठाई खाकर अपनी भूख मिटाइए, तब तक मैं आपके लिए नदी से जल ले आती हूं ।” उसके बाद राजकुमार पेट भर फल और मिटाइयां खाईं और पानी पिया । उसके बाद परी और राजकुमार बहुत देर तक बातें करते रहे ।

भोर होने को थी, इसलिए परी अपने परी लोक जाने की तैयारी करने लगी । उसे उड़ने के लिए तैयार होता देख राजकुमार बोला : ‘मुझे भी अपने साथ ले चलो ।’ परी ने कहा : ”ऐसा करना मेरे लिए सभव नहीं है । इसके लिए मैं आपसे माफी मांगती हूं ।

मैं तुम्हारा परिचय नदी की सभी मछलियों से करा देती हूं । अगर तुम कभी मुझसे मिलना चाहो तो इसी स्थान पर ठीक रात्रि के बारह बजे आ जाना । मैं तुमसे अवश्य मिलूंगी । अब तुम अपने घर जाओ । मार्ग में तुम्हारा काफिला तुम्हें मिल जाएगा ।”

इसके बाद वह परी तो अपने परी लोक की ओर उड़ चली और राजकुमार अपने घोड़े पर बैठकर अपने साथियों की खोज में चल पड़ा । कुछ आगे चलने पर उसे अपना काफिला दिखाई पड़ा । वह अपने काफिले में जा मिला । फिर वे सब अपने नगर को लौट गए । राजकुमार को खेद था कि वह परी के साथ उसके देश तो नहीं जा सका था, किंतु उसने उस परी से मित्रता अवश्य कर ली थी और सच्ची मित्रता ही जीवन में काम आती है ।

शिक्षा:

यह संसार स्वार्थी लोगों से भरा पड़ा है । यहां सच्चा मित्र क्षत मुस्किल से ही मिलता है, इसलिए जो व्यक्ति विपत्ति के समय में भी आपका साथ न छोड़े वही आपका सच्चा मित्र है ।


Hindi Story # 6 (Kahaniya)

चमत्कारी फूल |

बहुत पुराने समय की बात है । एक नगर में एक धोबी रहता था । नाम तो उसका बुख्सिकाश था, किंतु सब लोग उसे बुधुआ कहकर बुलाया करते थे । बुधुआ एक राजदरबारी के कपड़े धोता था, इसलिए पड़ोसी व उसके रिश्तेदार उसे कोई बड़ा आदमी समझते थे ।

उनके यहा कोई समस्या आती तो वे उससे कहते : ”भैया! तुम राजा से कहकर हमारा काम करवा दो ।” बुधुआ भी बड़े रौब से कहता : ”हां-हां, जरूर करवा दूंगा ।” एक दिन बुधुआ की बहन का लड़का दूर गाव से शहर में आया । उसका नाम था मोहन ।

उसकी मां ने मोहन को समझाकर भेजा था कि तेरे मामा बहुत बड़े आदमी हैं । वे राजमहल में तेरी नौकरी जरूर लगवा देंगे । मोहन भला युवक था । वह आकर अपने मामा के घर रहने लगा । वह रोज अआ का हाथ बंटाने घाट पर जाता और खूब मेहनत से काम करता ।

बुधुआ को ज्यादा कुछ न करना पड़ता । वह भांजे से खुश था । बस भांजे को उत्साहित करने के लिए बार-बार कह देता : ‘बस, इसी तरह से मन लगाकर काम करता चल । तुझे अच्छी नौकरी मिलेगी राजमहल में ।’ मोहन के मन में उत्सुकता थी, राजमहल देखने की ।

राजा के दर्शन करने की । एक दिन मोहन शहर में घूम रहा था । अचानक अफरा-तफरी मच गई । असवार लोगों से रास्ता माफ करने को कहते घूम रहे थे । सब लोग इधर-उधर भागने लगे । राजा की सवारी आ रही थी । राजा के दर्शन करने की इच्छा से मोहन एक तरफ खड़ा हो गया ।

उसे ध्यान न रहा कि इस तरह उड़ा होना अपराध था । एक सैनिक ने मोहन को कोड़ा मारा । वह पीछे हटा तो गिर पड़ा ।  उसके हाथ-पैर छील गए । वह उठने का प्रयास कर रहा था कि इतने में राजा का रथ निकल गया ।

मोहन चुप रह गया । उसकी समझ में न आया कि उसका दोष क्या था ? राजा के दर्शनों के चक्कर में मोहन को एक बार और ऐसे ही परेशान होना पड़ा । उस रात वह सो नहीं सका । सोचता रहा : ‘आखिर राजा में ऐसी क्या खास बात है ? क्यों, मैं राजा नहीं बन सकता ?’

अगले दिन सुबह होने से पहले अंधेरे में ही मोहन घर से चल दिया । अब उसका मन शहर में नहीं लग रहा था । वह नगर से बाहर एक जगल में जा पहुचा । चारों तरफ सन्नाटा था । वह चलते-चलते थक गया था । कुछ आगे चलकर उसे एक टूट-फूटा कुआ नजर

आया । मोहन उसी कुए की मुंडेर पर जा बैठा । उसे बहुत प्यास लगी थी । उसने कुएं में झाककर देखा, कुआ सूखा था । वैसे अगर उसमें पानी भी होता तो वह निकालता कैसे ? लोटा-डोर तो उसके पास थी ही नहीं । तभी दूर से उसे एक महात्मा आते दिखाई दिए । महात्मा नजदीक पहुंचे तो मोहन ने उठकर उन्हें प्रणाम किया ।

महात्मा ने कहा : ”वत्स! मैं तेरे लिए ही आया हूं । मुझे मालूम है, तुझे क्या चाहिए । तू बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता है न ?” मोहन आश्चर्य से महात्मा का मुंह देखता रह गया । यही तो उसके मन की इच्छा थी । साधु बाबा ने फिर कहा : ”बेटा! बड़ा आदमी वह होता है, जो बड़ा काम करे ।

उसके लिए राजा बनकर सिंहासन पर बैठना आवश्यक नहीं ।” ”जी ।” मोहन सिर्फ इतना ही कह सका । साधु बाबा ने फिर कहा : “यह सूखा कुआ देखता है न । इससे कुछ ही दूरी पर एक नदी है । क्या तू इस सूखे कुए को नदी के पानी से भर सकता है ?”

मोहन चुपचाप खड़ा रहा । भला सूखा कुआ कैसे भरा जा सकता था । साधु बाबा ने उसे अपना कमंडल दे दिया, फिर बोले : ”इसमें पानी भरकर ला और कुएँ में डाल, शायद भर जाए ।” इतना कहकर साधु बाबा चलने लगे । मोहन के मुह से निकला : ”फिर ?”

”पहले सूखे कुए में पानी तो डाल । बाकी फिर देखा जाएगा ।” इतना कहकर साधु बाबा वहा से चले गए । मोहन हाथ में कमंडल लिए सोचता रहा । उसे अपनी अंतरात्मा आवाज आई : ‘अरे, करके तो देखो, करके देखने में क्या हर्ज है ।’

मोहन नदी के तट पर जा पहुचा । कमंडल में पानी भरा और लाकर सूखे कुए में डाल दिया, तभी उसने फटी-फटी आखों से एक चमत्कार देखा । सूखा क्लुा लबालब पानी से भर गया, किंतु अगले ही पल पानी फिर गायब हो गया । कुआ पहले की तरह फिर सूखा दिखाई देने लगा ।

मोहन फिर कमंडल लेकर नदी की तरफ दौड़ गया । पानी लाकर कुए में डाला तो वह फिर ऊपर तक भर गया, लेकिन अगले ही पल फिर खाली नजर पाने लगा इस तरह पानी ला-लाकर डालते हुए उसे दोपहर हो गई, पर कुआ न भरा ।

मोहन बुरी तरह थक गया । वह सुबह से भूखा था, पर मन में संकल्प था सूखे कुए को भरने का । वह थका-थका सूखे क्उम के पास खड़ा था, तभी उसकी नाक में भीनी-भीनी सुगध आई । सुगध कुए में से आ रही थी ।

मोहन ने नीचे झाककर देखा, नीचे हल्की रोशनी में एक पौधे पर एक बहुत बड़ा द्य खिला हुआ था । मन में आया नीचे उतरकर देखना चाहिए । कुए की दीवारों में लताए उगी थी उन्हीं को पकड़कर वह करे-धीरे नीचे उतर गया ।

नीचे सुगंध बहुत तेज थी । पौधे पर एक ही द्य था । पहले तो मोहन असमजस में खड़ा रहा, फिर उसने हाथ बढ़ाकर वह क्य तोड़ लिया । स्त हाथ में लेते ही उसके मन में उमग का भाव आ गया । उसे लगा जैसे कोई बहुत बड़ा खजाना उसे मिल गया हो ।

फिर वह जैसे नीचे उतरा था, उसी प्रकार ऊपर आ गया । सामने साधु बाबा खडे मुस्करा रहे थे । बोले : ”देखा, अपने परिश्रम का फल । यह फूल तुम्हारी मेहनत से खिला है । मन में संकल्प हो तो सफलता मिलती ही है ।

इससे पहले मैंने जिससे भी यह सूखा कुओं भरने को कहा, वह भाग गया । तुमने दृढ़ता से काम लिया तो सफल हो गए । ”महाराज!” मोहन ने पूछा-कुआ भरने के बाद खाली क्यों हो जाता था ।” कुआं अगर पानी से भरा रहता तो तुम्हें यह फूल कैसे मिलता ? साधु बाबा ने कहा ।

”महाराज! इसकी खुशबू तो बहुत अच्छी है ।” साधु बाबा बोले : “यह फूल सदा खिला रहेगा । यह जिसके पास रहेगा, उसे कभी क्रोध नहीं आएगा । इसे सूंघने से कैसी भी थकान क्यों न हो, मिट जाएगी ।” ”पर मैं इसका क्या करूं?” मोहन ने पूछा ।

”आओ मेरे साथ ।” बाबा बोले । साधु बाबा के साथ मोहन एक ऊंची चट्‌टान पर चढ़ गया । चट्‌टान के नीचे गहराई में कुछ लोग उसे पत्थर तोड़ते हुए दिखाई दिए । साधु ने कहा : “ये निर्दोष है । इन्हें पत्थर तोड़ने का दंड मिला है । रात-दिन ये यही काम करते हैं, इन सबका बुरा हाल है । क्या तुम इनकी मदद नहीं करोगे ?”

मोहन नीचे खड्‌ड में पत्थर तोड़ते लोगों को देखता रहा । उसे उन लोगों पर तरस आ रहा था । उसने कुछ पल के लिए सोचा, फिर नीचे उतर चला । आगे का रास्ता चट्‌टान से बंद था । उसने वहां से कैदियों का हाल-चाल पूछा । एक कैदी ने कहा-हम निर्दोष हैं ।

सेनापति ने राजा को बताए बिना हमें यहा कैद कर दिया था । कितने ही समय से हम यह नरक भोग रहे हैं ।” मोहन ने पूछा : ”में आप लोगों के लिए क्या कर सकता हूं ?” ”कुछ नहीं । राजा को सच्ची बात का पता चले, तभी हमें मुक्ति मिल सकती है, लेकिन…।”

”मैं जाऊंगा राजा के पास । उनसे कहुंगा ।” मोहन ने कहा । उन्हें भरोसा देकर मोहन वापस आ गया । साधू बाबा वहा से जा चुके थे, किंतु उनका कमंडल वहीं रखा था । मोहन ने कमडल उठाकर उसमें वह फूल रख लिया फिर वह तेजी के साथ नगर की ओर लौट पड़ा ।

उसके मन में बस एक ही पुन तुरंत राजा से मिलूंगा और उन कैदियों के बारे में बताऊगा । मोहन अपने मामा अआ के पास नहीं गया । वह सीधा राजमहल के द्वार पर जा पहुंचा ।  प्रहरी चुस्त खड़े थे, किंतु आज मोहन को उनसे डर नहीं लगा ।

उसने प्रहरियों से कहा: ”महाराज से मिलकर उन्हें एक विचित्र फूल देना है ।” ”विचित्र फूल! कैसा फूल ?” प्रहरी ने पूछा । फूल की सुगंध का प्रभाव सब पर पर रहा था । एक प्रहरी अंदर जाने लगा तो मोहन ने वह उसके हाथ में देदिया । बोला : ”महाराज को यह फूल देकर कहना कि इसको लाने वाला बाहर खड़ा है ।”

थोड़ी देर बाद प्रहरी लौट आया । उसने कहा : ”तुम्हें हमारे महाराज ने तुरत बुलाया है ।” प्रहरी के पीछे-पीछे मोहन राजा के कक्ष में चला गया । राजा के हाथ में वही फूल था । वह फूल की सुधि का आनद ले रहा था । राजा ने मोहन से पूछा : ”कहो युवक ! क्या बात है ? कहा से लाए यह फूल ।

हमारे सिर में तेज दर्द था । फूल सूंघते ही पीड़ा जाती रही । कहो, क्या कहना है ?”  अब तक मोहन को फूल की जादुई शक्ति पर पूरा विश्वास हो गया था । उसने बिना घबराए पत्थर तोड़ने वालेकैदियों के बारे में राजा को बताया । बोला : ”महाराज! उन्हें न्याय चाहिए । मैं बड़ी आशा लेकर आपके पास आया हूं ।”

राजा ने कहा : ”मैं स्वयं तुम्हारे साथ चलूगा ।” राजा ने उसी समय सेनापति की बुलवाया । कुछ देर बादराजा सेनापति और मोहन के साथ चलदिए । साथ में सैनिक भी थे । खड्ड के पास पहुंच ते ही सेनापति बहुत घबरा गया ।  राजा ने कै दियों को वही पत्थर तोड़ते देखा तो पूछा : ”सेनापति ! इन्हें हमने किस अपराध में और कब दिया था ।”

सेनापति निरुत्तर खड़ा था । वह क्या कहता भला । राजा ने उसी समय कैदियों की रिहाई का आदेश दिया । उसने तत्काल सेनपति को बंदी बना लिया । वहाँ से चलते समय राजा ने कहा : ”सेनापति को मेरे अगले आदेश तक यही बंदी बनाकर रखा जाए ।”

कैदियों ने महाराज की जय-जयकार की तो वे हंसकर बोले : ”मेरी जय मत बोलो । जय बोलो इस युवक की । इसी ने तुम्हें मुक्त करवाया है । मुझे तो कुछ पता भी नहीं था ।” फिर राजा ने मोहन से कहा : ”तुम्हें जो भी चाहिए, मैं दूगा । तुमने बहुत अच्छा काम किया है ।

इस फूल के बदले तुम मुझसे कुछ भी माग सकते हो ।” मोहन ने तब अपने मामा के बारे में बता दिया । उसने कहा: ”मुझे कुछ नहीं  चाहिए ।” राजा ने जब उससे राजधानी वापस चलने को कहा तो वह बोला : ”नहीं महाराज ! मैं अभी आपके साथ नगर में नहीं लौट सकता ।

मुझे उन साधु बाबा से मिलना है, जिनकी कृपा से मुझे यह फूल मिला है ।” राजा तथा अन्य सिपाही सब लौट गए । अब मोहन ने देखा, पत्थर तोड़ने की कैद से छूटे लोग वहीं खड़े थे । उन्होंने कहा : ”हे युवक! अब हमारा यह जीवन तुम्हारा है । तुम जो भी कहोगे, हम वैसा ही करेंगे ।’

मोहन हँस पड़ा । उसने कहा : ”तो चलो, सबसे पहले हम उन साधु बाव को ढूंढें । उन्हें प्रणाम करें, जिनकी कृपा से यह चमत्कार हुआ है ।” तभी उन्हें पीछे से साधु बाबा के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी । साधु बाबा बोले: ”मुझे हेटने के लिए तुम्हें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है ।

मैं तो यही खड़ा हूं । तुम सब लोगों के पास ।”  साधु बाबा ने मोहन को शाबाशी देकर उसे यह आशीष भी दिया कि अब से तुम्हारा जीवन नेक कार्य करने में ही व्यतीत होगा । साधु बाबा का आशीर्वाद पाकर मोहन अपने गाव लौट गया और परोपकार के कार्य करने लगा ।

शिक्षा:

हर रोज नियम से एक नेक काम करो । नेक काम करने वाले ही जीवन में हमेशा सुखी रहते हैं ।


Hindi Story # 7 (Kahaniya)

सबसे अच्छा अपना घर |

गहरे नीले समुद्र में दूर एक जलपरी अपनी ही पुन में मग्न, इठला-इठलाकर तैर रही थी । शाम का समय था । ठंडी हवा बह रही थी । ऊपर आसमान में चांदी की किनारी वाले बादल जैसे भाग-दौड़ कर रहे थे ।

सूरज की सुनहरी किरणें समुद्र के पानी पर पड़ रही थी । अनगिनत मछलियां जल की सतह के नीचे तेजी से इधर-उधर दौड़ती हुई खेल रही थी । परी का मन खुशी से झूम रहा था । तभी अचानक उसने चौंककर पीछे देखा ।

कुछ दूर एक नाव में दो मछुआरे मछलियां पकड़ने के लिए उसी तरफ आ रहे थे । वे आपस में बातें कर रहे थे । एक मध्वारा अपने साथी से कह रहा था : ”हमारी भी क्या जिंदगी है । दिन-भर हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी दो वक्त भर पेट खाना नसीब नहीं होता ।

ऊपर से तमाम दूसरे झंझट । कभी बेटा बीमार हो गया तो कभी बेटी की शादी की चिंता । हमारी तो रोजी-रोटी का भी अ पक्का नहीं । कभी समुद्र में तूफान आ गया तो नावें उलट जाती है घर बह जाते है । सच, हमसे अच्छी तो ये मछलियां है । देखो, क्सैए आनँद से पानी में तैरती रहती हैं ।

इन्हें न कोई फिक्र है और न ही कोई चिंता ।” उनकी बातें सुनकर परी की उक्मा जाग उठी । वह अपनी सखियों से मख्वुारों के बीच हुई बातचीत सुनाने लगी । परी की सखियों ने भी अपने-अपने अनुभव सुनाए । एक परी बोली : ”हां-हां, मैं भी एक दिन तट पर गई तो मैंने एक लड़की को रोते हुए देखा ।

पिता के मर जाने पर उसकी माँ ने दूसरा विवाह कर लिया था । वैसे तो उसका सौतेला पिता भी उसे खूब प्यार करता था, म्हिं वह अपने सगे पिता को भूल नहीं पा रही थी । रो-रोकर अपनी सखी को अपना दुख बता रही थी ।” तभी एक दूसरी परी बीच में बोल पड़ी लेकिन धरती पर केवल दुख-ही-दुख नहीं हैं ।

मैंने भी तट पर एक घटना देखी थी । मुझे लगा कि धरती पर रहने वाले लोग बहुत सुखी है । मैंने देखा, एक स्त्री और पुरुष चादर बिछाकर तट से कुछ दूर बैठे हुए थे । स्त्री छोटी-छोटी तश्तरियों में भोजन डालकर उसे दे रही थी । पुरुष बड़े सुरीले स्वर में गा-गाकर बच्चों को बहला रहा था ।

बच्चों की तोतली आवाजें सुनकर मुझे इतना अच्छा लग रहा था कि जी हुआ, उनके पास ही चली जाऊ ।” जलपरी बोली : ”हां, यही तो मैं देखना चाहती थी कि यह सुख-दुख है क्या ? धरती के लोगों का जीवन सचमुच मजे का होगा । कभी सुख, कभी दुख, कभी हसना, कभी रोना ।”

सभी ने उसे एक सुर में मना किया : ”सुन री जलपरी ! चाहे जैसा भी हो वहां का जीवन, तू वहां मत जाना । जो जहा रहता है, उसे वहीं अच्छा लग सकता है, दूसरी जगह नहीं ।” पर जलपरी नहीं मानी । वह बूढ़ी जादूगरनी सुंदर-सी लड़की बना दो ।

मैं धरती पर जाना चाहती हूं ताकि वहा दृढ-डूब खे कइगब से जान सकुं ।”  बूढ़ी जादूगरनी ने भी उसे धरती पर जाने से रोका । बहुत समझाया, पर जलपरी नहीं मानी, तब जादूगरनी ने उसे एक सुंदर-सी लड़की बना दिया । फिर आशीर्वाद देते हुए बोली : “जब तुम पर कोई मुसीबत पड़े तो मुझे याद करना, मैं फिर तेरा रूप बदलकर श्छे युठ त्री बना दूंगी ।”

तैरते-तैरते जलपरी समुद्र तट तक आ पहुंची । रात काफी हो चारों ओर एकदम सुनसान लग रहा था । तभी उसे दूर एक टिमटिमाता हुआ प्रकाश दिखाई दि लड़की बनी जलपरी उसी दिशा में बढ़ने लगी । घर के द्वार पर पहुंचकर उसने खटखटा एक खुबसूरत नवयुवक ने दरवाजा खोला ।

परी उसे देखते ही उस पर मोहित हो गई । वह बहाना स्थ्ये हुए बोली: “हमारी नाव डूब गई है । बहुत से लोग साथ थे, पता नहीं कोई बचा या नहीं ।”  मैं किसी तरह तैरकर किनारे तक आ पहुंची । क्या यहां रात-भर के लिए ठिकाना मिल सकेगा ? सुवह सवेरे ही चली जाऊंगी ।”

भीतर उस युवक की मा खाना बना रही थी । वह वहा से चिल्लाकर बोली बेटा! दुखियारी है बेचारी, अदर बुला लो ।” युवक और उसकी माने लड़की बनी जलपरी का खूब सत्कार किया । उसे पहनने के लिए दूसरेकपड़े दिए । भरपेट स्वादिष्ट भोजन कराया । सोने के लिए नर्म, मुलायम बिस्तर दिया ।

सुबह उठकर लड़की ने जाने का दिखावा किया तो युवक की मा ने उसे रोक लिया । वह उसे इतनी अच्छी लगी कि उसने उसे अपनी बहू बनाने का निश्चय कर लिया । वह अपने बेटे से बोली : ”अरे बेटा ! इतनी सुँदर और भोली लड़की तुझे फिर कहा मिलेगी और फिर बेचारी बेसहारा भी तो है ।

मैं तो आज ही गाव वालों को तुम दोनों के विवाह की सूचना देने जाऊंगी । कोई शुभ दिन तय करके इसे अपनी बहू बनाऊंगी ।’ सचमुच मां ने उन दोनों का विवाह धूमधाम से कर दिया । तीनों मिलकर आनंदपूर्वक रहने लगे ।

पर कुछ दिन बाद जलपरी का मन उचटने लगा । उसे समुद्र में खेलने-तैरने की बड़ी इच्छा होने लगी । अपनी सहेलियों की याद सताने लगी । इधर युवक और उसकी मा से भी उसका लगाव बहुत बढ़ गया था । बेचारी दिन-भर बड़ी उलझन में रहती ।

आखिर उसे एक उपाय सूझ गया । रात मेंजब सब गहरी नींद मेसोजाते, वह घर सेनिकलती । परी बनती और उड़कर समुद्र मेपल जाती । पानी मेंखूब तैरती और सुबह होने से पहले ही घरलौट आती । एक दिन तक किसी कीद्ब पता नहीं चला, लेकिन एक दिन कोई बुरा सपना देखने के कारण युवक की नींद आधी रात में टूट गई ।

पत्नी को घर में न पाकर वह परेशान हुआ । उसे खोजता-खोजता वह तट पर पहुचा तो देखा, उसकी पत्नी परी बनकर पानी मेंतैर रही थी पति को देख घबराकर परी तुरत पहले रूप में आ गई । युवक ने उसका रूप बदलना देख लिया उसे पूरा यकीन हो गया कि यह कोई जाहारनी है, लड़की नहीं ।

घर लेजाकर युवक नेउसे एक कोठरी मेंबद कर दिया । ओझा कीडुलवाया । ओझा नेउसे देखकर कहा : ‘यह समुद्र के अदर से आई है । इसे पानी से दूर रखी । पीने तक को पानी मत दो । तब यह ठीक-ठीक बता देगी कि यह कौन है । अभी तक यह तुम लोगोसे झूठ बोलती रही है ।’

लड़के ने वही किया, जो ओझा ने कहा था । कुछ ही देर में लड़की बनी जलपरी घबरा गई । वह फूट-फूटकर रोने लगी, पर किसी ने उस पर दया न दिखाई । परी को अपनी सहेलियों द्वारा उसे यहा आनेसेमना करना याद आ गया ।

उसे बूढ़ी जाकूरनी की भी याद आनेलगी । अचानक उसेयाद आया कि जादूगरनी ने कहा था : ‘तुम जब भी मुझे याद करोगी, मैं तुम्हारी मदद अवश्य करूंगी ।’ परी ने जादूगरनी को आवाज लगाई । जादूगरनी ने तब अपने जादू से उसे एक नन्ही चिड़िया में बदल दिया ।

चिड़िया बनकर जलपरी खिड़की के रास्ते से बद कमरे से बाहर निकल आई । उड़ती-उड़ती वह नदी किनारे तक जा पहुंची । वहा पहुंचते ही वह फिर से परी रूप में आ गई । जलपरी को वापस आया देख, उसकी सखियों ने उसे घेर लिया । उसने उससे समुद्री दुनिया से दूर धरती की दुनिया के अनुभव पूछे ।

जलपरी कहने लगी : ”अपना घर सबसे अच्छा घर है । जो सुख अपने घर में मिलता है, वह अत्यंत्र कहीं नहीं मिलता । इसलिए हमें अपने घर को ही सजाना-सँवारना चाहिए । बाहरी दुनिय के अनुभवों ने मुझे यही सिखाया है कि हमें ज्यादा की आस छोड़कर थोड़े में ही संतोष करना चाहिए ।” दूसरों का सुख-वैभव देखकर कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, क्योंकि संतोषी व्यक्ति ही जीवन में सुख प्राप्त करता है ।


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