List of selected Hindi Stories for Kids!

Hindi Story for Kids # 1.

ऋषि विश्वामित्र पर कहानी | Story on Rishi Vishwamitra in Hindi:

विश्वामित्र पहले एक राजा थे । उन्हें शिकार का बहुत चाव था । एक दिन अपने सैनिकों के साथ वे जंगल में शिकार करने गए । शिकार करते-करते रात हो गई । उन्होंने किसी सुरक्षित स्थान में विश्राम करने का निर्णय लिया । उन्हें थोड़ी दूर पर एक आश्रम दिखाई दिया । वह ऋषि वशिष्ठ का आश्रम था । विश्वामित्र अपने सैनिकों के साथ वहाँ गए तो ऋषि वशिष्ठ ने उनका अभिनंदन किया । शीघ्र ही उन्हें गरम-गरम दूध पीने को दिया गया । थोड़ी ही देर में सभी लोगों के लिए सुस्वादु भोजन की व्यवस्था की गई ।

राजा विश्वामित्र यह देखकर अचंभित रह गए । उन्हें आश्चर्य हुआ कि इतने कम समय में ऋषि ने ये सब चीजें कैसे बना लीं । उनकी जिज्ञासा का समाधान करते हुए ऋषि वशिष्ठ ने बताया , ” हमारे पास नंदिनी नामक गाय है जो कामधेनु की पुत्री है । इसकी विशेषता यह है कि इससे जो माँगो , यह तुरन्त दे सकती है । ” यह सुनकर विश्वामित्र के मन में लोभ उत्पन्न हुआ । उन्होंने कहा , ” ऋषिवर ! क्या आप मुझे यह गाय उपहार में दे सकते हैं ? आप तो मुनि हैं । आपको इसकी क्या आवश्यकता है ? ”

ऋषि ने कहा , ” यह मेरी देखरेख करती है और मेरी आवश्यकताएँ पूरी करती है । मैं इसे आपको नहीं दे सकता?” यह सुनकर विश्वामित्र क्रोधित हो उठे । उन्होंने अपने सैनिकों को नंदिनी को खूँटे से खोलकर ले चलने का आदेश दिया ।

सैनिकों ने नंदिनी को खोलकर ले जाने का प्रयत्न किया परंतु वे असफल रहे । तब विश्वामित्र अपने सैनिकों के साथ अपने महल लौट आए । अगले दिन विश्वामित्र पूरी तैयारी के साथ वशिष्ठ पर आक्रमण करने निकले । आश्रम पहुँचकर उन्होंने देखा कि उनकी सेना से भी विशाल सेना वहाँ पर उनकी प्रतीक्षा कर रही है । दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ । राजा विश्वामित्र की सेना की करारी हार हुई ।

अब तक विश्वामित्र को ज्ञात हो चुका था कि वे ऋषि वशिष्ठ की बराबरी नहीं कर सकते । उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे भी ऋषि वशिष्ठ के समान एक महान ऋषि बनेंगे । वे राज-पाट त्यागकर तपस्या करने के लिए घने वन में चले गए । कठोर तपस्या के उपरांत वे राजा से ऋषि बन गए ।

Hindi Story for Kids # 2.

संदेह मत करो (कहानी) | Story on Don’t be Doubtful in Hindi:

किसी नगर में गणपतलाल नाम के एक बहुत बड़े व्यापारी थे । उनकी दुकान पर घनश्याम और रामलाल नाम के दो मुनीम काम किया करते थे । दुकान पर लक्ष्मण नामक एक नौकर भी काम करता था । तीनों सेठ गणपतलाल के व्यापार की अच्छी प्रकार देखभाल करते थे । किन्तु सेठ जी को इन पर विश्वास नहीं था । वे इन लोगों को सदा संदेह की दृष्टि से देखते थे ।

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एक बार सेठ जी को बनारस जाना पड़ा । उन्हें अपनी दुकान की चिंता हुई । उन्होंने लक्ष्मण को बुलाकर कहा, ” मैं अपने दोनों मुनीमों पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं करता । तुम मेरे भरोसेमंद हो, अत: मेरी अनुपस्थिति में मुनीमों पर नजर रखना । ” सेठ जी ने दोनों मुनीमों को भी अलग-अलग बुलाकर अन्य दो लोगों पर नजर रखने के लिए कहा । तीनों नौकर यह सोच-सोचकर प्रसन्न हो रहे थे कि सेठ जी ने केवल उसी पर विश्वास किया है ।

एक दिन घनश्याम दुकान से थोड़ा-सा चावल और घी अपने घर ले गया । अगले दिन रामलाल दुकान की बिक्री में से पैसे अपनी जेब में रख रहा था । फिर एक दिन घनश्याम और रामलाल ने देखा कि नौकर लक्ष्मण दुकान में आई औरत से हंसी-मजाक कर रहा है । दोनों मुनीमों को यह बुरा लगा ।

एक सप्ताह के बाद सेठ जी बनारस से वापस घर आ गए । तीनों कर्मचारियों ने एक-एक कर अपनी आँखों देखी बात सेठ जी को बताई । सेठ जी क्रोधित होकर बोले-” मुझे मालूम था कि तुम तीनों मेरी अनुपस्थिति में मेरे साथ विश्वासघात करोगे । ” उन्होंने सबसे पहले घनश्याम से पूछा-” नुम मेरी दुकान से चावल और घी क्यों ले गए थे? ” घनश्याम ने कहा-” वह दिन दीपावली का शुभ दिन था । आप प्रतिवर्ष इस दिन मंदिर में पूजा- अर्चना करने जाते थे । आपकी अनुपस्थिति में उस दिन मैंने आपकी तरफ से मंदिर में पूजा- अर्चना की थी । ”

दुकान की बिक्री से पैसे लेने के बारे में पूछे जाने पर रामलाल ने बताया कि वह मेरे वेतन का दिन था । मैंने जितने पैसे निकाले थे उन्हें खाते में लिख दिया था । इसी तरह नौकर लक्ष्मण ने बताया कि में अपनी पत्नी से हँसी-मजाक कर रहा था ।

सेठ जी तीनों के उत्तर सुनकर चुप रह गए । नीनों कर्मचारी सेठ जी की चाल समझ चुके थे । उन्होंने सेठ जी की नौकरी छोड़ दी । सेठ जी पछता रहे थे कि उन्होंने ऐसे विश्वासपात्र नौकरों पर संदेह करके बहुत बड़ी भूल की ।

Hindi Story for Kids # 3.

दो आदर्श मित्र पर कहानी | Story on Two Ideal Friends in Hindi:

लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले इंग्लैंड के वेस्ट मिनिचेस्टर नामक विद्यालए में दो मित्र पढ़ते थे । एक का नाम था निकोलस और दूसरे का नाम था बेक । निकोलस आलसी, नटखट और झूठा था । परंतु बेक परिश्रमी, सीधा और सच्चा था । इतनी भिन्नता होने पर भी बेक और निकोलस में गाढ़ी मित्रता थी ।

एक दिन अध्यापक किसी आवश्यक कार्य से थोड़ी देर के लिए कक्षा से बाहर चले गए । नटखट निकोलस कक्षा में धमा-चौकड़ी करने लगा । उसने कक्षा में रखा दर्पण उठाकर पटक दिया । दर्पण टूटते ही कक्षा में सन्नाटा छा गया । निकोलस मार पड़ने के भय से अपने स्थान पर जाकर चुपचाप बैठ गया ।

अध्यापक ने कक्षा में आते ही दर्पण के टुकड़े देखे । उन्होंने क्रोधपूर्वक कहा , ” यह उत्पात किसने किया है ? ” भय के कारण कोई भी छात्र नहीं बोला । तब अध्यापक ने एक-एक छात्र को खड़ा करके पूछना आरंभ किया । बेक ने सोचा कि अध्यापक दर्पण तोड़ने वाले का पता अवश्य लगा लेंगे । तब निकोलस को और अधिक मार पड़ेगी । इसलिए मुझे अपने मित्र को बचा लेना चाहिए । बेक उठकर खड़ा हो गया और बोला, ” सर! दर्पण मेरे हाथ से टूटा है । ”

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यह सुनकर सभी लड़के उसे आश्चर्य से देखने लगे । निकोलस को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि बेक ऐसा कहेगा । अध्यापक ने बेंत उठा ली और बेक को पीटने लगे । बेक अध्यापक के हाथों चुपचाप पिटता रहा । छुट्‌टी होने के बाद निकोलस बेक के पास आया और रोते-रोते बोला ” बेक! तुम वास्तव में मेरे सच्चे मित्र हो । मैं तुम्हारे इस उपकार को जीवन- भर नहीं भूलूंगा । तुमने आज मुझे शैतान से इंसान बना दिया । ”

निकोलस सचमुच उसी दिन से सुधर गया । बड़ा होकर उसने इतनी उन्नति की कि वह न्यायाधीश के पद तक जा पहुँचा । उस घटना के तीस वर्ष बाद इंग्लैण्ड में गृहयुद्ध छिड़ गया । राजतंत्र का समर्थन करने के अपराध में बेक को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे उस अदालत में पेश किया गया जिसके न्यायाधीश निकोलस थे । उन्होंने बेक को प्राणदंड की सजा सुनाई लेकिन उनका हृदय व्याकुल हो रहा था । वे उसी समय घोड़े पर सवार होकर लंदन में क्रामवेल के महल में गए । अपने मित्र बेक के उपकार की घटना सुनाकर क्रामवेल से उन्होंने मित्र के लिए क्षमादान माँगा । क्रामवेल से क्षमादान पत्र लेकर वे बंदीगृह में बेक से मिले और उसक हाथों में क्षमादान पत्र सौंपा । दोनों मित्र तीस वर्ष बाद फिर गले मिले ।

Hindi Story for Kids # 4.

शरारती बंदर पर कहानी | Story on The Naughty Monkey in Hindi:

एक बंदर बड़ा सरारती था । वह दिनभर उछल – कूद किया करता और जंगल के जानवरों को अपने करतब दिखाता । पेड़ों पर बार-बार उछलने-कूदने से उन पर बने हुए पक्षियों के घोंसले भी हिलने लगते । कभी पक्षी का अंडा जमीन पर आकर टूट जाता तो कभी नन्हा बच्चा गिरकर परेशान हो जाता । पक्षी उसे समझाते परंतु बंदर के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती ।

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ऋतु परिवर्तन हुआ और बारिश का मौसम आया । पर शरारती बंदर अपनी पुरानी कारगुजारियाँ करता रहा । पक्षी उससे डरकर उसे कुछ न कह पाते । एक दिन मूसलाधार वर्षा हुई, बंदर बुरी तरह भीग गया । ठंडी हवाओं से वह सिहरने लगा । वह सिर छिपाने के लिए आश्रय ढूँढने लगा, पर उसने अपने लिए कोई घर तो बनाया ही नहीं था । वह तो अहर्निश अपनी शरारतों में ही व्यस्त रहता था । हारकर वह पेड़ के पत्तों में छिपने की कोशिश करने लगा ।

उसी वृक्ष पर बया ने अपने लिए एक सुंदर घोंसला तैयार किया था , जिसमें बया और उसके बच्चे रहते थे । बया ने बारिश के दिनों के लिए अन्न के दानों का संग्रह भी कर रखा था । अपने घोंसले में छिपकर बया और उसका पूरा परिवार बारिश का आनंद ले रहा था । पत्तों की खड़खड़ाहट सुनकर बया ने अपने घोंसले से उचककर देखा उसे बारिश में थर – थर काँपते बंदर को देखकर बहुत दया आई । उसने कहा, ” देखो, बुरा मत मानो बंदर भाई । मैंने तुम्हें बार-बार चेताया था कि अपना वक्त शरारतों में मत बर्बाद करो । अपने भविष्य के लिए कुछ सोचो । यदि तुमने मेरी सलाह मानी होती तो आज यह दुर्दशा न होती । ”

सीख अच्छी थी परंतु बंदर गुस्से में लाल-लाल आँखें करके बया की तरफ देखने लगा । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह बया को कच्चा ही चबा जाएगा । बया ने पुन: कहा, ” भई, जो बीत गई सो बात गई । मगर आगे से मेरी बातों को गाँठ अवश्य बाँध लेना । ”

बया की बातें सुनकर बंदर का गुस्सा और भड़क गया । उसने बया के घोंसले को पकड़कर बुरी तरह झकझोर डाला । बया का घोंसला अब जमीन पर था और वह बुरी तरह विलाप कर रही थी । उसे पछतावा हो रहा था कि उसने ऐसे ढीठ और शरारती बंदर को सदुपदेश क्यों दिया । सच ही कहा गया है कि उत्पाती और शरारती से बचकर रहने में ही भलाई है ।

Hindi Story for Kids #  5.

महाराज शिवि पर कहानी | Story on King Shivi in Hindi:

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प्राचीन काल में काशी पर शिवि नामक राजा का शासन था । वे बहुत धर्मात्मा और प्रजापालक शासक थे । उनके राज्य में कोई भी दु:खी नहीं था । राजा शिवि शरणागत की रक्षा करना अपना धर्म समझते थे । उनके गुणों की प्रशंसा चारों तरफ हो रही थी ।

एक दिन महाराज शिवि अपने दरबार में राजसिंहासन पर विराजमान थे । सहसा एक कबूतर उड़ता हुआ आया और राजा शिवि की गोद में बैठ गया । कबूतर बहुत भयभीत

दिखाई दे रहा था । उन्होंने उसकी हर प्रकार से रक्षा करने का निश्चय किया ।

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उसी समय एक भयानक बाज वहाँ उड़ता हुआ आया और कबूतर को लालची निगाहों से देखने लगा । उसने राजा से कहा, ” महाराज! यह कबूतर मेरा शिकार है । आप इसे मुझे दे दें । ” राजा शिवि बोले, ” हे बाज! इस समय कबूतर मेरी शरण में आया हुआ है । शरणागत की रक्षा करना मेरा धर्म है । मैं इसे तुम्हें नहीं दे सकता । इसके बदले में तुम्हें जिस पशु का मांस चाहिए, मैं तुम्हें सहर्ष दे सकता हूँ । ”

बाज ने कुछ सोचकर कहा , ” महाराज! यदि आप इस कबूतर की रक्षा करना ही चाहते हैं तो इसके भार के बराबर अपने शरीर का मांस मुझे खाने के लिए दे दीजिए । ” राजा शिवि मुस्कराकर बोले, ” हे बाज! मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है । मैं तुम्हें अपने शरीर का मांस अभी देता हूँ । ”

राजा शिवि ने एक तराजू मँगवाकर उसके एक पलड़े में कबूतर को बिठा दिया और दूसरे पलड़े में अपनी जाँघ का मांस काट कर डालने लगे । राजा शिवि मांस काट-काट कर डालते जा रहे थे परंतु कबूतर का पलड़ा झुका ही रहा । तब राजा शिवि अपनी छाती का मांस काटकर पलड़े पर चढ़ाने लगे । छाती का मांस समाप्त होने पर राजा ने पीठ का मांस डालना आरंभ कर दिया । फिर भी कबूतर वाला पलड़ा झुका ही रहा ।

जब किसी प्रकार भी मांस पूरा न हुआ तो राजा शिवि तराजू पर चढ़ गए । मांस फिर भी पूरा न हुआ । तब उन्होंने तलवार से अपनी गर्दन काटनी चाही ।

अचानक दरबार में एक चमक उत्पन्न हुई । बाज और कबूतर मनुष्य रूप में आ गए । कबूतर ने अर्जुन का रूप ले लिया और बाज ने कृष्ण का । कृष्ण ने राजा शिवि का हाथ पकड़कर कहा- ” बस महाराज! आपकी परीक्षा हो चुकी । ” उन्होंने राजा शिवि के शरीर पर जल छिड़का जिससे वे पहले की भांति कांतिवान हो उठे ।

Hindi Story for Kids # 6.

अंधेर नगरी चौपट राजा (कहानी) | Story on Andher Nagri Choupat Raja in Hindi:

एक गुरु और उसके कुछ चेले तपस्या करने हिमालय की ओर जा रहे थे । रास्ते में जब वे थक गए तो एक नगर में विश्राम करने के लिए रुक गए । सभी को भूख भी लग रही थी । थोड़ी ही देर में चेला बदहवास हालत में दौड़ता-दौड़ता वापस आया । हाँफते-हाँफते उसने बताया- ” गुरुजी, यह नगर तो बड़ा ही अजीब है । यहाँ तो चारों ओर सन्नाटा है । पूछने पर एक नागरिक ने बताया कि यहाँ लोग दिन में सोते हैं और रात को काम करते हैं क्योंकि नगर के राजा की यही आज्ञा है । ”

गुरु जी ने कुछ सोचते हुए आदेश दिया-” हमें यहाँ एक क्षण भी नहीं रुकना चाहिए । यह मूर्खों की नगरी है । कल सवेरे ही हम लोग यहाँ से प्रस्थान करेंगे । ”

रात होते ही नगर में चहल-पहल शुरू हो गई । गुरु के साथ चेले भी नगर घूमने निकल पड़े । वे सभी यह देखकर हैरान हो गए कि वहाँ सभी कुछ एक टके में मिलता है । सोने का कंगन भी एक टके में और पूरी- भाजी भी एक टके में । एक चेला यह देखकर खुशी से फूला न समाया । उसने गुरु के आदेश की अवहेलना कर उसी नगर में रहने का निश्चय किया ।

उन्हीं दिनों नगर के राजा ने एक चोर को फाँसी की सजा सुनाई । जल्लाद ने देखा कि फाँसी का फंदा तो बड़ा बन गया है और चोर की गरदन पतली है । राजा ने आदेश दिया कि चोर को छोड़ दिया जाए और जिस व्यक्ति की गरदन ठीक बैठे, उसे ही पकड़कर लाया जाए ।

राजा के सैनिक मोटे आदमी की तलाश में निकले । ढूँढ़ते-ढूँढ़ते संयोग से चेला सामने आ गया । सैनिक उसे ही पकड़ लाए । चेले ने लाख दुहाई दी कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है पर उसकी एक न सुनी गई । गुरु को यह समाचार मिला तो वे दौड़े-दौड़े आए । गुरु ने राजा से कहा कि इस समय बहुत शुभ मुहूर्त है । जो भी फाँसी पर चढ़ेगा वह अगले जन्म में पूरी धरती का राजा बनेगा ।

यह सुनकर सभी फाँसी पर चढ़ने के लिए उतावला होने लगे । राजा ने कड़ककर कहा- ” यदि इस मुहूर्त में ऐसा ही होगा तो सबसे पहले राजा का अधिकार है । ” यह कहकर वह तुरंत फाँसी पर चढ़ गया ।

गुरु ने समझदारी से चेले की जान बचाई । चेले ने गुरु के चरणों में पड़कर उनसे अपने किए की माफी माँगी ।

Hindi Story for Kids # 7.

चतुर टॉम पर कहानी | Story on The Clever Tom in Hindi:

टॉम एक नटखट परंतु बहादुर लड़का था । वह अपनी बूढ़ी मौसी के साथ रहता था ।

मौसी उसकी शरारतों से कभी-कभी तंग आ जाती थी, लेकिन टॉम की बुद्धिमानी देख उनके होठों पर मुस्कान थिरक उठती थी । पर एक दिन उनका धैर्य जवाब दे गया । टॉम की शैतानी देख उन्होंने उसे घर की चारदीवारी पर सफेदी करने का निर्देश दिया ।

उस दिन गुनगुनी धूप निकली हुई थी । टॉम हाथ में सफेदी की बाल्टी और कुची लिए चारदीवारी की पुताई के लिए निकला हुआ था । उसने सोचा-आज का दिन कितना सुंदर है । क्या मैं इसे पुताई में ही गुजार दूँगा ? आखिर कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा ।

कुछ देर बाद बेन रोगर्स सेब खाता और स्टीमर चलाने की नकल करता, उछलता-कूदता वहाँ आया । बेन ने बड़ी सहानुभूति से कहा-” अरे टॉम, आज तो तुम्हें काम करना पड़ रहा है। ” टॉम हँसकर बोला- ” काम ! तुम इसे काम कहते हो ? अरे, रोज-रोज चारदीवारी की पुताई करने का अवसर किसे मिलता है? मेरी खुशी का तो आज ठिकाना ही नहीं है । ”

अब तो बाजी पलट गई । बेन ने सोचा-काश ! मुझे भी पुताई का अवसर मिल जाए । उसने खुशामद के स्वर में कहा, ” टॉम थोड़ी देर मुझे भी पुताई करने दो । ” टॉम ने एक-दो बार जान-बुझकर नखरा किया । लेकिन जब बेन ने उसे सेब देने का प्रस्ताव दिया तो वह मान गया ।

टॉम ने बड़ा एहसान दिखाते हुए अपनी कूची छोड़ दी और बेन उसके स्थान पर प्रसन्न मन से पुताई करने में जुट गया । थोड़ी देर में कुछ और भी लड़के आए । टीम ने उन्हें भी अपनी बातों में फँसा लिया । एक थकता , तो दूसरा कुची को हाथ में लेकर उत्साह से पुताई कार्य में जुट जाता । टॉम विश्राम की मुद्रा में एक तरफ खड़ा उन्हें निर्देश देता जा रहा था ।

कुछ ही देर में चारदीवारी चमकने लगी । टीम की खुशी का ठिकाना न रहा । वह भागकर मौसी के पास गया और सगर्व बोला- ” पूरी चारदीवारी की पुताई हो गई मौसी ।” जब मौसी ने चारदीवारी का निरीक्षण किया तो उन्होंने टॉम को शाबाशी दी । मौसी ने कहा- ” तुम्हारे हाथों में तो जादू है । अच्छा टॉम, अब तू जा, मित्रों के साथ खेल-कूद आ । ” मौसी ने टॉम को एक सेब भी दिया ।

टॉम मजे से सेब खाता हुआ घर से निकल पड़ा । वह सोच रहा था- ” आज का दिन कितना अच्छा है । ”

Hindi Story for Kids # 8.

एन्ड्रोक्लीज़ और शेर पर कहानी | Story on Androcles and the Lion in Hindi:

पुराने समय में यूरोप में धनी लोग अपने यहाँ दास रखा करते थे । उन दासों को अपने स्वामी की हर आज्ञा का पालन करना पड़ता था । ऐसे ही एक दास का नाम एन्ड्रोक्लीज़ था । एन्ड्रोक्लीज़ का स्वामी अपने दासों के साथ पशुवत् व्यवहार करता था । उनसे बहुत काम लिया जाता था फिर भी उन्हें भूखा रहना पड़ता था । एन्ड्रोक्लीज़ को भी दिन-रात यातना सहनी पड़ती । एक दिन वह यातनाओं से तंग आकर चुपके से भाग गया । वह जंगल की पहाड़ियों के बीच एक गुफा में रहने लगा ।

एक दिन वह जंगल में घूम रहा था कि उसने सामने से आते हुए एक शेर को देखा । एन्ड्रोक्लीज़ डर गया । वह शेर से दूर भागना चाहता था परंतु उसे उपयुक्त अवसर नहीं मिला । शेर धीरे- धीरे उसके पास आया और बैठ गया । वह अपना अगला पैर बार – बार उठाकर एन्ड्रोक्लीज़ को कुछ इशारा कर रहा था । उसका भय दूर हो गया । उसने ध्यान से देखा तो पाया कि शेर के पंजे में एक बड़ा-सा काँटा गड़ा हुआ था । उसने तुरन्त काँटा खींचकर निकाल दिया और घाव पर जड़ी-बूटियों का रस डाल दिया । शेर को आराम मिला । उसने एन्ड्रोक्लीज़ को कोई हानि नहीं पहुँचाई ।

शेर और एन्ड्रोक्लीज़ गुफा में एक साथ रहने लगे । इधर एन्ड्रोक्लीज़ को ढूँढने के लिए स्वामी के सिपाही जंगल में घूम रहे थे । उन्होंने एन्ड्रोक्लीज़ को गिरफ्तार कर लिया और अपने स्वामी के पास ले आए । स्वामी ने उसे कारावास में डालने तथा एक मास बाद भूखे शेर के पिंजरे में डाल देने का हुक्म दिया ।

नियत तिथि को स्वामी ने दरबार लगाया । एन्ड्रोक्लीज़ को कारावास से निकालकर भूखे शेर के बड़े से पिंजरे में डाल दिया गया । भूखा शेर लपका परंतु एस्ट्रोक्लीज को देखते ही वह शांत पड़ गया । एन्होक्लीज के पास आकर वह उसके सामने बैठ गया ।

उपस्थित जन-समूह यह दृश्य देखकर चकित रह गया । वास्तविकता यह थी कि यह वही शेर था , जिसके पंजे से एन्ड्रोक्लीज़ ने काँटा निकाला था । शेर एन्ड्रोक्लीज़ को पहचान गया था । एन्ड्रोक्लीज़ ने तब स्वामी को पूरी घटना बतलाई । यह सुनकर सभी लोग चकित रह गए । उन्होंने स्वामी से प्रार्थना की कि एन्ड्रोक्लीज़ को दासता के बंधन से मुक्त कर दे । स्वामी ने लोगों की बात मान ली । उसने एन्ड्रोक्लीज़ को ढेर सारा धन देते हुए कहा ” एन्ड्रोक्लीज़, आज से तुम स्वतंत्र हो । ”

Hindi Story for Kids # 9.

देशभक्ति पर कहानी | Story on Patriotism in Hindi:

रूस और जापान में युद्ध छिड़ा हुआ था । रूस की सेना ने एक पहाड़ी पर आक्रमण कर दिया । उस पहाड़ी पर जापान के थोड़े से सैनिक अपनी भारी तोप के साथ डटे थे । रूसी सेना उस तोप पर अधिकार करना चाहती थी । रूस के सैनिकों का आक्रमण बहुत भयानक था । वे संख्या में बहुत अधिक थे । जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा । उस तोप और पहाड़ी पर रूसी सेना ने आधिपत्य कर लिया । तोप चलाने वाले जापानी तोपची को यह बात सहन नहीं हुई कि उसकी तोप से शत्रु उसी के सैनिकों की जान ले ले ।

रात्रिकाल में बिना किसी को सूचित किए पेट के बल सरकता वह उस पहाड़ी पर पहुँच गया । वह तोप के पास तो पहुँच गया, किंतु उसे हटाने अथवा नष्ट करने का उसके पास कोई उपाय नहीं था । उसने कुछ देर तक सोच-विचार किया । अंत में वह तोप की नली में घुस गया ।

रात में वहाँ भारी हिमपात हुआ । तोप की नली में घुसे तोपची को ऐसा अनुभव हुआ कि सर्दी के मारे उसकी नसों के भीतर रक्त जमता जा रहा है । उसकी एक-एक नस फटी जा रही थी । फिर भी वह दाँत में दाँत दबाए रात भर तोप में घुसा रहा । सूर्योदय होने पर रूसी सैनिक तोप के पास आए । वे अपनी सफलता पर खुश हो रहे थे । उन्होंने तोप की परीक्षा करने का मन बनाया ।

तोप में गोला-बारूद भरा गया । जैसे ही तोप छूटी उसकी नली में घुसे जापानी तोपची के चीथड़े उड़ गए । तोप कै सामने का वृक्ष रक्त से लाल हो गया । तोप की नली से रक्त निकल रहा था । रूसी सैनिकों ने वह रक्त देखा तो कहने लगे , ” ऐसा प्रतीत होता है कि तोप छोड्‌कर जाते समय जापानी सैनिक इसमें कोई प्रेत बैठा गए हैं । अब वह रक्त उगल रहा है । आगे पता नहीं क्या करेगा? अत: यहाँ से भाग निकलना ही श्रेयस्कर है । ”

प्रेत के भय से रूसी सैनिक तोप छोड्‌कर उस पहाड़ी से भाग गए । तब जापानी सैनिकों ने पहाड़ी पर पुन: कब्जा जमा लिया । इस प्रकार जापानी तोपची ने अपना बलिदान देकर वह कर दिखाया, जो एक विशाल तथा शक्तिशाली सेना नहीं कर सकती थी । ऐसी थी जापानी सैनिकों की देशभक्ति! अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु हँसते-हँसते प्राण दे देना जापानी बडे गौरव की बात मानते हैं ।

Hindi Story for Kids # 10.

सबसे अच्छी मिठाई पर कहानी | Story on The Best Sweetmeat in Hindi:

एक दिन शीत ऋतु में राजा कृष्णदेव राय , तेनालीराम और राजपुरोहित प्रात: कालीन गर्म धूप का आनंद ले रहे थे । तेनालीराम बहुत ही चतुर एवं सूझ-बूझ से कार्य करने वाले व्यक्ति थे । उन्होंने मौसम संबंधी वार्ता छेड़ दी । राजा ने कहा , ” मेरी राय में शीत ऋतु सभी ऋतुओं में सबसे ज्यादा अच्छी होती है , क्योंकि इस ऋतु में कुछ भी खाकर तंदुरुस्त रह सकते हैं । ”

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राजा के मुख से भोजन की बात सुनकर राजपुरोहित के मुँह में पानी आ गया । उसने तुरंत राजा से कहा , ” महाराज , मुझे भी सर्दियाँ बहुत पसंद हैं, क्योंकि इस ऋतु में भाँति-भाँति के फल और मिष्ठान्न खाने के लिए मिलते हैं । ” फल और मिष्ठान्न की बात सुनकर महाराज ने पूछा , ” जूरा मुझे यह बताओ कि सर्दियों की सबसे अच्छी मिठाई कौन-सी है? ”

” महाराज, सर्दियों की सबसे अच्छी मिठाइयाँ हलुवा, मालपुआ और पिस्ता-बर्फी हैं । ” राजपुरोहित ने उत्तर दिया । राजा ने तुरंत खानसामे को तीनों मिठाइयाँ लाने का आदेश दिया । तीनों मिठाइयों के आ जाने पर उन्होंने राजपुरोहित से कहा, ” अब आप इन तीनों मिठाइयों को खाकर बताइए कि इनमें सबसे अच्छी मिठाई कौन-सी है? ”

राजपुरोहित ने तब बारी-बारी से तीनों मिठाइयाँ खाई । परंतु उसे सभी इतनी पसंद आई कि वह निश्चय नहीं कर पाया कि इनमें सर्वोत्तम कौन-सी है । फिर राजा ने यही प्रश्न तेनालीराम से पूछा । तेनालीराम ने कहा , ” महाराज , मैं आपको सबसे अच्छी मिठाई का नाम तो नहीं बता सकता हूँ । हों , खिला अवश्य सकता हूँ । लेकिन उसे खाने के लिए आप दोनों को मेरे साथ रात्रिकाल में चलना होगा । ”

तेनालीराम उन दोनों को साथ लेकर रात के समय महल से बाहर नदी के किनारे खेतों में ले गया । वहाँ कुछ निर्धन कृषक आग जलाकर उसके आसपास बैठे थे । तेनालीराम ने उनसे कोई चीज लेकर राजा और राजपुरोहित को खाने के लिए दी । उसे खाते ही दोनों एक स्वर में बोल उठे, ” अरे! यह मिठाई तो बहुत अच्छी है । इसका क्या नाम है तेनालीराम? ”

तेनालीराम ने उत्तर दिया, ” महाराज , यह गुड है । यह शरद ऋतु की सर्वोत्तम मिठाई है । यह ठंड के मौसम में शरीर को गर्माहट देती है । ” तेनालीराम का उत्तर सुनकर राजा मुस्कराने लगे ।

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