बिना विचार जो करे… |

एक बकरी थी । उसका एक बच्चा था । जंगल में बकरी का छोटा-सा घर था । दोनों मां-बेटा उसी में रहते थे । बकरी के सींग बहुत पैने थे । उसके सींगों से सब डरते थे । भेड़िया तो उसे दूर से देखकर छिप जाता था । बकरी भी भेड़िए पर ज्यादा गुस्सा करती थी । क्यों? क्योंकि वह भेड़िया हर समय उसके बच्चे को खाने की ताक में रहता था, परंतु बकरी के भय से वह कुछ नहीं कर पाता था ।

बकरी रोज सुबह चरने जाती थी । जाते समय वह बच्चे को अच्छी प्रकार समझाती । वह कहती कि दरवाजा नहीं खोलना । एक दिन वह चरने जा रही थी । वह बच्चे को इसी प्रकार समझा रही थी- ”बेटा, मेरे जाने के बाद अंदर से दरवाजा बंद कर लेना ।

जब तक मैं न आ जाऊं दरवाजा मत खोलना । यदि कोई आए तो उसकी जांच कर लेना । आने वाला यह कहे कि भेड़िए को मौत आ जाए तो दरवाजा खोल देना ।” बच्चा भली प्रकार से मां की बात सुन रहा था । वहीं झाड़ियों में छिपा बैठा भेड़िया भी सारी बात सुन रहा था ।

आज वह किसी भी प्रकार बच्चे को खा लेना चाहता था । बकरी तो चली गई थी । बच्चे ने दरवाजा बंद कर दिया । भेड़िया कुछ देर बाद दरवाजे पर पहुंचा । उसने दरवाजे पर दस्तक दी । ”कौन है बाहर?” बकरी के बच्चे ने पूछा ।

”अरे, यह मैं हूं मित्र ।” भेड़िया बोला- ”इस भेड़िए को मौत आ जाए । इसने तो ऊधम मचा रखा है । किवाड़ खोलो । मैं तुमसे बात करना चाहता हूं ।” उसकी आवाज सुनकर बच्चे के कान खड़े हो गए । वह सोचने लगा- ‘न तो इसकी आवाज बकरे जैसी है, न बकरी जैसी! फिर यह मेरा कौन-सा मित्र है ।’

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उसने दरवाजे की झिर्री में से देखा । उसे बाहर खड़ा भेड़िया दिखाई पड़ा । उसके होश उड़ गए । ‘बाप रे! यह तो भेड़िया ही है । यदि मैं विचार न करता, दरवाजा खोल देता तो यह तो मुझे खा जाता । मैंने अच्छा किया जो बिना विचारे कार्य नहीं किया ।’ बकरी का बच्चा डरकर सोचने लगा ।

”भई, दरवाजा खोलो!” भेड़िए ने फिर कहा । ”यहां से भाग जा भेड़िए । मैंने तेरी आवाज पहचान ली है ।” बच्चे ने कहा- ”दुष्ट, तू मुझे धोखा देना चाहता है । यदि मैं बिना विचारे दरवाजा खोल देता तो तू मुझे चट कर जाता ।” भेड़िया बड़ा लज्जित हुआ । उसकी चाल नहीं चल पाई । बकरी का बच्चा होशियार था । वह भेड़िया वहां से वापस चला गया । इस तरह बच्चे ने सोच-विचारकर कार्य करके अपने प्राण बचाए ।

सीख:

बच्चो! इसी प्रकार हमें हर कार्य सोच-विचारकर करना चाहिए । बिना विचारे कार्य करने से हानि होती है । इसीलिए कहते हैं- ‘बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताए… ।’ विचारकर कार्य करना हितकर होता है ।

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