Hindi Story on Wisdom is the Best Power (With Picture)!

बुद्धिबल श्रेष्ठ है |

नन्दक वन में टीपू नाम का एक गधा रहता था । एक दिन वह मैदान में हरी-हरी घास चर रहा था । घास बड़ी नर्म थी । टीपू घास चरने में इतना मस्त था कि उसे अपने आसपास का ध्यान तक नहीं था । अचानक उसने सिर उठाया । उसके होश उड़ गए । एक बाघ उसकी तरफ आ रहा था । टीपू भय से जड़ हो गया ।

बाघ उससे लगभग दस कदम की दूरी पर था । बाघ अपनी चमकती आंखों से उसे घूर रहा था । टीपू तुरंत समझ गया कि वह क्या चाहता है । बाघ उसे मारकर खा जाना चाहता था । भागकर प्राण बचाना असंभव था । बाघ उसे कितनी दूर भागने देता । स्थिति काफी विकत थी । उसकी मृत्यु उसके सामने खड़ी थी ।

कहते हैं कि बुद्धि से हीन प्राणी को गधा कहा जाता है, परंतु टीपू ऐसा नहीं था । उसमें बुद्धि थी । उसने सोचा कि आज बुद्धि ही उसके प्राण बचा सकती है, अन्यथा उसका आज अंतिम समय था । यह सोचते ही उसने एक योजना बना ली । वह एक पैर से लंगड़ाकर चलने लगा । बाघ गौर से उसे देख रहा था ।

”क्या बात है भाई? लंगड़ाकर क्यों चल रहा है?” बाघ ने पूछा । ”क्या बताऊं सरकार, यह पेट बड़ी बुरी चीज है ।” गधे ने कहा- ”जब भूख लगती है तब अच्छा-बुरा कुछ नहीं सूझता । कल मैं भी ऐसे ही लालच में फंस गया । लालच का मुझे यह दंड मिला है ।” ”साफ-साफ क्यों नहीं कहता! क्या हुआ?” बाघ गुर्राकर बोला ।

”कल मैं पहाड़ी पर घास चर रहा था, तभी मुझे नीचे एक झाड़ी में हरी घास दिखाई दी । मेरे मन में लालच आ गया । बिना सोचे-समझे मैं नीचे उतर गया । एक पत्थर से मेरा पैर फिसल गया । मैं सीधा झाड़ी में जाकर गिरा । झाड़ी में बहुत ही कांटे थे । उनमें से एक काटा मेरे पैर में घुस गया ।

वह बहुत नुकीला और मोटा कांटा था । मुझे बहुत ज्यादा कष्ट हो रहा है । मेरी जान निकली जा रही है ।” ”तू तो बहुत परेशान है भाई । मैं तेरी परेशानी अवश्य दूर करूंगा । मेरी भूख भी मिट जाएगी । तू भी आराम पा जाएगा ।” ”आपकी बड़ी कृपा होगी सरकार ।” ”अरे, मैं तुझे खाने जा रहा हूं ।”

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बाघ चकित होकर बोला- ”तुझे भय नहीं?” ”मैं समझ रहा हूं । लालच बुरी बला है । आप भी वही लालच कर रहे हैं । यदि आप मुझे खाना ही चाहते हैं तो खाइए । हम तो आपके सेवक हैं, परंतु सरकार, एक काम तो कर लीजिए ।” टीपू ने कहा । ”क्या काम कर लूं?” बाघ ने पूछा ।

”मेरे पैर से वह कांटा निकाल लीजिए । कहीं ऐसा न हो कि मुझे खाने के चक्कर में वह कांटा आपके गले में फंस जाए । जब मेरे पैर में ही वह इतनी पीड़ा दे रहा है तो आपके गले का क्या हाल करेगा ।” ”कह तो तू ठीक रहा है । ठीक है । इधर ला पैर को ।”

टीपू ने आगे बढ़कर उसे पैर दिखाया । बाघ आंखें जमाकर कांटा देखने लगा । टीपू मौका ताड़ गया । उसने कसकर एक दुलत्ती बाघ के माथे पर जमाई । बाघ इस हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था । वह चीखता हुआ माथा पकड़कर बैठ गया । टीपू तुरंत वहां से भाग लिया । अब वह बाघ की पकड़ से बहुत दूर था ।

अपनी जान बचने पर वह बहुत प्रसन्न था । इधर बाघ अपनी बुद्धि को कोस रहा था । दुलत्ती ने उसका जबड़ा हिला दिया था । उसके दो दांत टूट गए थे । खून से उसका मुंह भर गया था । पीड़ा से उसकी आंखें मुंदी जा रही थीं । वह बड़ा लज्जित था । गधे ने अपने बुद्धिबल से बाघ की शक्ति गौण कर दी थी ।

सीख:

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुद्धिबल से बड़ी-से-बड़ी विपत्ति का सामना किया जा सकता है । बुद्धिबल श्रेष्ठ है ।

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