विधानपरिषद पर निबन्ध | Essay on Legislative Council in Hindi!

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राज्य असेम्बली के दो सदन होते हैं – प्रथम विधानसभा जो निम्न सदन है ओर जो जनता द्वारा निर्वाचित होता है तथा दूसरा सटन विधानपरिषद होता है ।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 171 के अन्तर्गत विधानपरिषदों के गठन के सम्बन्ध में प्रावधान किए गए हैं उत्तर प्रदेश विधानपरिषद का गठन निम्नलिखित प्रकार से होता है:

उत्तर प्रदेश विधानपरिषद् की कुल सदस्य संख्या 99 है ।

कुल सदस्यों में से 1/3 सदस्य (वर्तमान में 36) राज्य की नगर – पालिकाओं, जिला बोर्डों तथा अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा निर्वाचित होते हैं ।

कुल सदस्यों के 1/12 सदस्य (वर्तमान में 8) राज्य के माध्यमिक एवं उससे ऊपर के स्तर की शिक्षा संस्थाओं में पड़ाने वाले शिक्षकों द्वारा चुने जाते हैं ।

कुल सदस्यों के 1/3 सदस्य (वर्तमान में 37) उत्तर प्रदेश की राज्य विधानसभा के द्वारा निर्वाचित होते हैं ।

शेष ( लगभग 1/6) वर्तमान में 10 को उत्तर प्रदेश राज्य के राज्यपाल द्वारा विशेष ज्ञान, साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन तथा समाज सेवा के आधार पर विधानपरिषद् में मनोनीत किया जाता है ।

विधानपरिषद् के कार्य एवं शक्तियाँ – विधानपरिषद् के प्रमुख कार्य एवं शक्तियाँ इस प्रकार हैं:

1. कानून निर्माण सम्बन्धी कार्य:

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साधारण विधेयक राज्य विधानसभा के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं तथा इन विधेयकों का दोनों सदनों में स्वीकृत होना आवश्यक है परन्तु यदि विधानसभा से पारित हो जाने के पश्चात विधानपरिषद् उसे अस्वीकृत कर दे या ऐसे संशोधन प्रस्तावित करे, जो विधानसभा को स्वीकार्य नहीं हो या परिषद् के समक्ष विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह तक उसे पारित न किया जाए, तो विधान सभा उस विधेयक को पुन: पारित करके विधानपरिषद् के पास भेजती है । यदि परिषद विधेयक को पुन: अस्वीकृत कर दे या विधेयक में ऐसे संशोधन करे तो विधानसभा को स्वीकार्य नहीं हो अथवा विधेयक रखे जाने की तिथि

से एक माह बाद तक विधेयकपारित न करे तो विधेयक विधान परिषद से पारित हुए बिना ही दोनों सदनों से पारित समझा जाता है । इस प्रकार विधानपरिषद् किसी साधारण विधेयक को केवल चार माह तक रोक सकती है ।

2. कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य:

विधानपरिषद के सदस्य मन्त्रिपरिषद् के सदस्य हो सकते हैं । विधानपरिषद प्रशनों, प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मन्त्रिपरिषद् को नियंत्रित कर सकती है, किन्तु उसे मन्त्रिपरिषद् को अपदस्थ करने का अधिकार नहीं है । मन्त्रिपरिषद् को अपदस्थ करने का कार्य केवल विधानसभा के द्वारा ही किया जा सकता है ।

3. वित्त सम्बन्धी कार्य:

वित्तीय विषयों में विधानपरिषद् एक शक्तिहीन सदन है । धन सम्बन्धी विधेयक विधानपरिषद में प्रस्तुत नहीं किए जा सकते । विधानसभा द्वारा पारित होने के पश्चात वित्तीय विधेयक विधानपरिषद् के पास उसकी सिफारिशों के लिए भेजा जाता है किन्तु विधानपरिषद् को 14 दिन में उन विधेयकों को लौटा देना पड़ता है । इस बीच न लौटाने पर विधेयक कानून बन जाता है ।

विधानपरिषद् की सिफारिशों को मानना या न मानना विधानसभा की इच्छा पर निर्भर है । इस प्रकार वित्त विधेयक को विधानपरिषद् केवल 14 दिन तक रोक सकती है । इसके अतिरिक्त उसे और कोई शक्ति प्राप्त नहीं है ।

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