Here is a compilation of Essays on ‘Historical Places’ for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Historical Places’ in India especially written for School and College Students in Hindi Language.

List of Essays on Historical Places in India


Essay Contents:

  1. मेरा प्रिय ऐतिहासिक दर्शनीय-स्थल | Essay on My Favourite Historical Place in Hindi Language
  2. ताजमहल पर निबंध । Essay on The Taj Mahal for School Students In Hindi Language
  3. ऐतिहासिक स्थल की यात्रा |Essay on a Trip to a Historical Place for School Students in Hindi Language
  4. दिल्ली के ऐतिहासिक स्थान की यात्रा का वर्णन | Paragraph on the Trip to Historical Places  in Delhi in Hindi Language
  5. कोणार्क का सूर्य-मंदिर | Essay on Konark Sun Temple for School Students in Hindi Language
  6. फतेहपुर सीकरी । Essay on Fatehpur Sikri for College Student in Hindi Language

1. मेरा प्रिय ऐतिहासिक दर्शनीय-स्थल | Essay on My Favourite Historical Place in Hindi Language

भारत एक प्राचीन देश है । प्राचीनता के साथ इसका गौरवशाली इतिहास है । भारत के इतिहास की अनेक हैरतअंगेज घटनाएँ हैं, जिनका वर्णन भारत के ऐतिहासिक स्थल आज भी कर रहे हैं । भारत में ऐतिहासिक स्थलों की कमी नहीं है । इन दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए हमारे देश के ही नहीं, बल्कि विदेशी पर्यटक भी प्रतिवर्ष आते हैं ।

इन ऐतिहासिक स्थलों की गाथाएँ सुनकर देश-विदेश के पर्यटक आज भी रोमांच का अनुभव करते हैं । भारत के लगभग सभी ऐतिहासिक स्थल वीरता, देशभक्ति, मानवता, प्रेम एवं त्याग आदि की कहानी कहते हैं । इनमें ज्यादातर स्थल दर्शनीय हैं ।

भारत के अनेक ऐतिहासिक स्थलों से मैं प्रभावित हुआ हूँ । परन्तु ताजमहल की सुंदरता मुझे बारम्बार अपनी ओर आकर्षित करती है । वास्तुशिल्प के दृष्टिकोण से ताजमहल इतिहास का एक सुंदर नमूना है । इसे इतिहास का एक अजूबा भी कहा जाता है ।

विश्व के सात आश्चर्यो में इसकी गणना की जाती है । भारी तादाद में देश-विदेश के पर्यटक प्रतिवर्ष इसे देखने आते हैं । ताजमहल से मुगल बादशाह शाहजहाँ की प्रेम-गाथा जुड़ी हुई है । शाहजहाँ ने इसका निर्माण अपनी बेगम मुमताज महल की याद में करवाया था ।

हजारों कारीगरों ने वर्षो तक इसके निर्माण में अपने हुनर का सहयोग दिया था । वास्तव में ताजमहल के निर्माण में वर्षो तक किया गया परिश्रम आज भी इसे देखकर स्पष्ट झलकता है । उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में स्थित ताजमहल को देखकर वर्तमान में इसके निर्माण की कल्पना भी सहज नहीं लगती ।

सफेद संगमरमर से निर्मित गुम्बद-आकार के ताजमहल के चारों कोनों पर चार गोल स्तम्भ स्थित हैं, जो इसके सौंदर्य में वृद्धि करते हैं । ताजमहल की सुंदरता सभी को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है और शाहजहाँ के प्रेम की याद दिलाती है ।

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वास्तव में मुगल बादशाह शाहजहाँ अपनी बेगम मुमताज महल से बहुत प्रेम करते थे । उन्हें इमारतें बनवाने का भी शौक था । मुमताज महल की याद में उन्होंने ताजमहल का निर्माण इसी उद्देश्य से करवाया था, ताकि युगों-युगों तक मुमताज महल के प्रति उनका प्रेम जीवित रह सके ।

उनकी यह इच्छा अवश्य पूर्ण हुई है । आज भी ताजमहल को मुमताज महल के प्रति समत शाहजहाँ के प्रेम की निशानी के रूप में जाना जाता है । देश-विदेश के प्रेमी-युगल इस प्रेम-निशानी को देखकर प्रसन्न होते हैं ।

ज्यादातर प्रेमी ताजमहल को प्रेम के प्रतीक के रूप में देखते हैं । वास्तव में दो प्रेमी यहाँ चिर निद्रा में लीन हैं । ताजमहल के मध्य शाहजहाँ और मुमताज महल की कब्र संथि बनी हुई हैं । ताजमहल का बाहरी भाग भी दर्शनीय है । परिसर में सुंदर फुलवारी एवं जल के फबारे पर्यटकों का मन मोह लेते हैं । ताजमहल के बाहरी द्वार के निकट से इसके चारों स्तम्भों सहित इसकी पूर्ण आकृति को निहारना अत्यन्त लुभावना प्रतीत होता है ।

चाँदनी रात में तो इसके सौंदर्य में चार चाँद लग जाते हैं । यही कारण है कि विदेशी पर्यटकों के अतिरिक्त विदेशी राजनेता भी ताजमहल के आकर्षण से बच नहीं पाते । प्रत्येक ऐतिहासिक स्थल का अपना महत्त्व है । ताजमहल का महत्त्व इसके वास्तु शिल्प और सौंदर्य में है, जिसने इसे अनुपम बनाया है ।

इसके अतिरिक्त शाहजहाँ के प्रेम ने इस सुंदर इमारत में जान फूंकने का सफल प्रयास किया है । ताजमहल का सफेद संगमरमर प्रेमियों को प्रेम के खर सुनाता प्रतीत होता है । ताजमहल के दर्शन करके प्रेमी स्वत: ही प्रेम-गीत गाने लगते हैं ।

भारत के ऐतिहासिक स्थलों में ताजमहल का विशेष स्थान है । पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल के रूप में यह अग्रणी है । वास्तव में अनुपम ताजमहल को बार-बार देखने को मन करता है । इसी कारण यह मेरा प्रिय ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है । मुझे जब भी अवसर मिलता है, मैं आगरा पहुँचकर ताजमहल की सुंदरता से आनन्द का अनुभव करता हूँ ।


2. ताजमहल पर निबंध । Essay on The Taj Mahal for School Students In Hindi Language (Indian Historical Place)

विश्व में जिन सात आश्चर्यो की बात कही जाती है उनमें ताजमहल का नाम भी सम्मिलित है । प्रेम का प्रतीक आगरा का ताजमहल मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रेयसी साम्राज्ञी मुमताज महल की याद में बनवाया था । यह एक दर्शनीय स्थल होने के साथ-साथ ऐतिहासिक दृष्टि से वास्तुकला का नमूना भी है ।

ताजमहल यमुना नदी के दाँयें किनारे पर तथा आगरा शहर के दक्षिण में स्थित है । ताजमहल विश्व की सर्वाधिक सुन्दर इमारत है । यह पूरी इमारत सफेद संगमरमर से बनी है । यमुना के दाहिनी ओर हरे-भरे उद्यानों के बीच निर्मित इस प्रेम के प्रतीक स्मारक का निर्माण कार्य सन् 1631 में कार्य शुरू किया गया जो सन् 1653 में पूर्णरूप से बनकर तैयार हुआ ।

इसके बनाने में काम आने वाली सामिग्री विभिन्न स्रोतों से प्राप्त की गई । मुख्यत: सफेद पत्थर नागौर स्थित मकराना से लाया गया तथा लाल पत्थर धौलपुर तथा फतेहपुर सीकरी से मँगाये गये । पीले तथा काले पत्थर नर्बाद तथा चरकोह से मँगाये गये ।

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कुछ कीमती पत्थर तथा सोने-चाँदी का सामान कुछ प्रमुख सम्राटों तथा विदेशों से प्राप्त किया गया । कुछ सामान दूर-दराज के इलाकों से भी मँगाया गया । ताजमहल के निर्माण पर आई लागत को लेकर इतिहासकारों में भिन्न-भिन्न मत है । कुछ इतिहासकारों का कहना है कि ताजमहल निर्माण में 3 करोड़ रुपये खर्च हुए थे ।

किन्तु सामान्यत: ऐसा माना जाता है कि ताज के निर्माण 50 लाख से लेकर 5 करोड़ तक खर्च हुए थे । बादशाहनामा से स्पष्ट है कि ताज के रख-रखाव हेतु परगना तहसील (आगरा) से एक लाख हर वर्ष उगाहे जाते थे । मुमताज महल के कारण ही इसका नाम ताजमहल प्रसिद्ध हुआ ।

इसमें प्रवेश करने के लिए एक विशाल पत्थर से बने दरवाजे से होकर जाना पड़ता है जिस पर श्वेत पत्थर से कुरान शरीफ की आयतें लिखी हैं । आगे मनोमुग्धकारी तथा भव्य उद्यान के बीचों बीच ताज के मुख्य द्वार के सम्मुख सरु वृक्षों से सुसज्जित एक सड़क है ।

मध्य में एक सुन्दर झील है जिसमें रंग-बिरंगी मछलियां तैरती हैं अन्दर प्रवेश करने के लिए एक विशाल संगमरमर के पत्थर से बने चबूतरे पर चढ़ना पड़ता है । इसकी बनावट भी अत्यंत रमणीक है । चबूतरे के चारों कोनों पर आकाश से बातें करते चार मीनार इस प्रकार अभिमान में सिर ऊंचा उठाये खड़े हैं मानो ताजमहल के चार प्रहरी हों ताकि कोई व्यक्ति ताज की सुन्दरता को बिगाड़ न दे ।

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अभी हाल ही में देश की प्रतिष्ठित न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट ने ताज को रात में खोलने का आदेश दिया । महीने में ताजमहल पाँच दिन रात में खुलेगा-पूर्णिमा से दो दिन पहले, पूर्णिमा, तथा दो दिन बाद । प्रत्येक रात्रि को 400 लोगों को ही ताजमहल में प्रवेश दिया जायेगा । 50-50 लोगों का समूह 30 मिनट के लिए एक ही बार में ताजमहल के परिसर में जा सकेगा ।

रात्रि में ताज दर्शन की टिकट 1,000 रुपये रखी गयी है । उर्स, शुक्रवार तथा रमजान के महीने में ताज रात्रि में नहीं खुलेगा । उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री मा. मुलायम सिंह यादव ने ताजमहल की 350 वीं वर्षगांठ के अवसर पर ताज महोत्सव का 27 सितम्बर, 2004 को उद्‌घाटन किया ।

कई दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में भिन्न-भिन्न संगीत तथा कला कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । गजल गायकारों जैसे गुलाम अली तथा हरिहरन को बुलाया गया । सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार पर्यटकों को ताजमहल में दाखिल होने से पहले एक्सरे यन्त्रों तथा मेटल डिटेक्टर से होकर गुजरना पड़ेगा । सरकार की ओर से भी इस पर कार्य प्रारम्भ हो गया है ।

बर्नियर (फ्रेन्च यात्री) के अनुसार ”मैं मानता हूँ कि ताजमहल जैसे सुन्दर लिपटे हुए स्मारक को ही सातवाँ आश्चर्य माना जाना चाहिये न कि मिस्र के भौंडे पिरामिडों को ।” स्विट्‌जरलैण्ड की एक निजी संस्था ‘न्यू सेवेन वंडर्स फाउंडेशन’ द्वारा विश्व भर के नये सात आश्चर्यों को चुनने के लिए एक मुहिम चलायी गयी जिसके अन्तर्गत दुनिया भर की विश्वदायी स्मारकों को शामिल किया गया ।

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जिनमें से सात नये अजूबों के लिए दुनिया भर में इंटरनेट के द्वारा, मैसेज के द्वारा तथा अन्य इलेक्ट्रानिक तरीकों से वोटिंग की गई । इस अभियान में करीब 10 करोड़ वोट डाले गये । इसका परिणाम दिनांक 7-7-2007 को पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में एक भव्य समारोह में किया गया ।

नये अजूबों में ‘प्यार के प्रतीक’ ताजमहल को दुनिया भर के सात नये आश्चर्यों में प्रथम स्थान मिला है । हालांकि नई सूची को यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल साइंटिफिक एंड कल्चरल आर्गेनाइ जेशन (यूनेस्को) की मान्यता नहीं मिली है ।


3. ऐतिहासिक स्थल की यात्रा | Essay on the Trip to a Historical Place for School Students in Hindi Language (Indian Historical Place)

प्रस्तावना:

भारत में कई ऐतिहासिक स्थल हैं । उन्हें देखने की जिज्ञासा हमारे मन में भी रहती है । इसी चाव से एक बार हम भारत की सबसे पुरानी व ऊँची मीनार देखने के लिए दिल्ली के महरौली नामक ऐतिहासिक स्थल की यात्रा पर गए ।

महरौली का परिचय:

इतिहासकारों का कथन है कि आज से हजारो वर्ष पूर्व यही पर दिल्ली थी । महाराज पृथ्वीराज का किला पिथौरागढ़ यहीं पर था । यहीं पर कुतुब मीनार नामक लोहे से बनी एक लाट है । अन्य भी बहुत सारे ऐतिहासिक स्थल हैं ।

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मेरे एक दोस्त के द्वारा महरौली के नामकरण के बारे में पूछने पर वहाँ के मार्ग-दर्शक ने बताया कि यद्यपि इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है लेकिन किवन्दतियों के आधार पर प्राचीन काल में वराहमिहिर नामक एक ज्योतिषाचार्य थे । यहीं उसकी वैधशाला थी ।

सत्ताईस नक्षत्रो के सत्ताइस मन्दिर थे । उन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम मिहिराबली पड़ा जो बाद में बिगड़ कर महरौली हो गया ।

कुतुब मीनार:

वह मार्ग-दर्शक हमको सबसे पहले कुतुब मीनार दिखाने ले गया । हम सब कुतुब मीनार के सामने खड़े हो गए । उसके बायी ओर सुन्दर घास का मैदान था । वहीं सामने एक प्राचीन भवन दिखाई दे रहा था । उसके बाहर टूटे-फूटे स्तम्मो के पत्थर बिखरे पडे थे ।

हमारे मार्ग-दर्शक ने बताया-इतिहास के अनुसार इस मीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाना शुरू किया था परन्तु इसको उसके उत्तराधिकारी अस्तुतमिश ने पूर्ण करवाया । कुछ लोगों का मत है कि यह लाट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने वराहमिहिर के लिए बनवाई थी जिसमें बैठकर वह रात्रि को नक्षत्रो का निरीक्षण करता था ।

एक अन्य मतानुसार इस लाट को पृथ्वीराज ने अपनी बेटी के लिए बनवाया था जिस पर बैठकर मह प्रतिदिन यमुना नदी का दर्शन करती थी । इन मतों के समर्थक कहते हैं कि कुतुबुद्दीन से पहले यह लाट यहाँ पर थी । इसको उन दिनों त्रक्षत्र निरीक्षण स्तम्भ कहते थे । इसका फारसी अनुवाद कुतुब मीनार है ।

कुतुबुद्दीन के पूछने पर लोगों ने उसको फारसी में कहा यह कुतुब मीनार है जो बाद में कुतुब मीनार के नाम से प्रसिद्ध हो गया । यह मीनार 238 फुट ऊँची है । इसमें 378 सीढ़ियों है । इसकीं पाँच मजिलें हैं । प्रत्येक मंजिल पर छज्जा बाहर को निकला है जिस पर चढ़कर लोग इधर-उधर देखते थे । अब इस पर चढ़ना मना है ।

लौह स्तम्भ:

कुतुब मीनार से थोड़ा आगे बढ्‌कर एक टूटा-फूटा प्राचीन भवन दिखाई दिया जो अपने प्राचीन वैभव को प्रदर्शित कर रहा था । सामने ही एक लोहे का स्तम्भ खड़ा था । हमारे मार्ग-दर्शक-ने बताया कि यह स्तम्भ शायद चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने बनवाया था ।

यह उसकी विजयों का स्मारक है, इसे विष्णुध्वज कहा जाता था । यह जमीन से 23 फुट ऊपर है और साढ़े तीन फुट अन्दर । इसका भार छ: टन से अधिक है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पर जंग नहीं लगता । हजारों वर्षो से यह ऐसा का ऐसा ही खड़ा है ।

योगमाया का मन्दिर:

यह भी एक ऐतिहासिक अवशेष है जिसके साथ ऐतिहासिक घटना जुड़ी हुई है । हमारे मार्ग-दर्शक ने बताया कि योगमाया का मन्दिर बड़ा ही प्राचीत मन्दिर है । कहा जाता है कि योगमाया कृष्ण की बहन थी । वह कृष्ण को बचाने के लिए पैदा हुई थी । इसी को कंस ने जमीन पर पटक कर मारा था ।

योगमाया के नाम पर ही दिल्ली का पुराना नाम योगिनीपुर था । इस मन्दिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया । वर्तमान मन्दिर को राजा सेढमल ने सन् 1807 में बनवाया था । फूल वालों की सैर के दिन जब पंखे निकलते हैं तो वे इस मन्दिर में भी आते हैं ।

फूल वालों की सैर हिन्द्व-मुस्लिम एकता व प्रेम का प्रतीक है । उस दिन यहाँ पर हिनू-मुसलमान सभी लोग बड़ी श्रद्धा से आते है ।

भूल-भुलैयाँ:

उसके बाद हम भूल-भुलैयाँ पहुँचे । यह भूल-भुलैयाँ अकबर की आय के बेटे अधमखाँ का मकबरा है । यह अठपहलुवा है । इसकी दीवार इतनी मोटी है कि इसके अन्दर ही जीना (सीढ़ी) चलता है । इस जीने के ऊपर-नीचे चढ़ने में आदमी चक्कर में पड़कर रास्ता भूल जाता है । इसीलिए इसको भूल-भुलैयाँ कहते हैं ।

जहाज महल:

महरौली के प्राचीन कस्बे की ओर एक प्राचीन महल है जिसके सामने एक तालाब है । जब तालाब में पानी भरा होता है उस समय यह महल जहाज के समान दिखाई देता है, इसलिए इसको जहाज महन कहते हैं । तालाब का निर्माण सन् 1029 में सम्राट अल्तुतमिश ने करवाया था ।

अलाउद्दीन ने इसके बीच में एक छतरी बनवाई थी जो आज तक सामने दिखाई देती है । उसके बाद अपने मार्ग-दर्शक को धन्यवाद देकर हम बस द्वारा पुन: घर को लौट आये ।

उपसंहार:

ऐतिहासिक अवशेष हमारे लिए बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं । ये अवशेष हमे भाषा में अपनी प्राचीन गरिमा को बताते है । एक कुशल ऐतिहासिक कला मर्मज्ञ इतिहासकार उनकी भाषा को समझता है और सुनता है इसलिए हमें इन अवशेषो को सुरक्षित रखना चाहिए ।

इनके कोई चिन्ह मिट न पाएँ इसकी सतत् देख-रेख की आवश्यकता है । हमारी सरकार को इसके लिए जागरूक होना चाहिए ।


4. दिल्ली के ऐतिहासिक स्थान की यात्रा का वर्णन | Paragraph on a Trip to Delhi’s Historical Places in Delhi in Hindi Language

यात्राओं का जीवन में विशिष्ट महत्व है । ऐसे में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपुर्ण स्थानों की यात्रा से एक ओर जहा मनोरंजन होता है वहीं ऐतिहासिक घटनाओं परंमपराओं और अतीत की धरोहर का ज्ञान भी प्राप्त होता है ।

साथ ही विभिन्न देशों के प्राकृतिक वातावरण और सामाजिक गतिविधियों का ज्ञान भी बढ़ता है । गतवर्ष हमारे विद्यालय से ऐतिहासिक यात्रा का आयोजन हुआ । इस यात्रा के लिए कक्षा १० के छात्रों के साथ शिक्षकों ने दिल्ली भ्रमण की योजना बनाई । कलकत्ता से हमारा दल पूर्वा एक्सप्रेस से दिल्ली के लिए २७ सेप्टेम्बर को रवाना हुआ ।

२८ तारीख को सुबह दस बजे के आरन पास हमलोग दिल्ली पहुँचे ।  वहां गेस्ट हाउस में ठहरने की व्यवस्था की गई थी । गेस्ट हाउस पहुँच कर हमलोगों ने स्नान आदि से निवृत होकर भोजोनोपरांत आराम     किया । दूसरे दिन प्रात: काल से दिल्ली के ऐतिहासिक भ्रमण का कार्यक्रम बनाया गया । सबसे पहले हमलोग इंडिया गेट पहुँचे ।

इंडिया गेट की भव्यता देखने के बाद हमलोग केन्द्रिय सचिवालय का भ्रमण किये ।  इस क्षेत्र में संसद भवन और उसके दोनों ओर प्रमुख सरकारी दफ्तर हैं । संसद मार्ग पर संसद भवन के अतिरिक्त आकाशवाणी भवन है ।

यहीं राष्ट्रपति भवन है और इसके सामने राजपथ है ।  इसी राजपथ पर २५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन पैरेड होती है और राष्ट्रपति सलामी लेते है । वहां से हमलोग रिंग रोड पर पहुंचे ।  इसी रास्ते पर भारत के महान विभूतियों का समाधि स्थल है ।

राजघाट में महात्मा गांधी शान्तिवन में भारत के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू, विजय घाट में तासकद समझौता करने वाले श्री लाल बहादुर शास्त्री और शांति स्थल में श्रीमती इन्दिरा गांधी की समाधियों पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर हमलोगो ने यमुना तट पर लाल पत्थरों से बने भारत के अतीत-गौरव और वर्तमान प्रेरणा श्रोत लाल किला के भव्य सौंदर्य का अवलोकन किया ।

यही से १५ अगस्त अर्थात स्वतन्त्रता दिवस पर प्रधानमंत्री देश वासियों को संबोधित करते है । इस किला को शाहजहाँ ने १६२८ ई॰ में बनवाया था । इस किले के अंदर मोती मस्जिद, दीवाने-आम और दीवाने-खास का भी हमलोगों ने अवलोकन किया । इसके बाद हमलोग जामा मस्जिद देखने गये ।

दूसरे दिन हमलोगो ने कुतुबमीनार देखी । यह मुगल कालीन भवन निर्माण कला का अदभूत नमूना है ।  इस गगन चुम्बी मीनार पर चढ़ कर हमलोगों ने दिल्ली की भव्य छटा का आनन्द प्राप्त किया । इस मीनार का संबंध कुतुबुद्दीन ऐबक से है । इसी मीनार के पास अशोक स्तंभ स्थित है जो सदियों पुराना है । सदियों पुराने इस स्तंभ का सौंदर्य आज भी बरकरार है ।

इसके बाद हमलोगों ने मथुरा रोड पर स्थित पुराना किला का अवलोकन किया । इस किले को महाभारत काल का भग्नावशेष माना जाता है । यहां से मुगल कालीन हुमायूं का मकबरा और दरगाह निजामुद्दीन  देखते हुए हमलोग गेस्ट हाउस लौट गये ।

तीसरे दिन हमलोगों ने शैक्षणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्रों का भ्रमण किया । दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया, पूसाइंस्टीट्‌यूट, विज्ञान भवन, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इन्डिया, बिड़ला मंदिर, त्रिवेणी कला संगम आदि देखते हुए हमलोगों ने कुछ खरीददारियां की और वापस लौट गये ।

यह ऐतिहासिक यात्रा मेरे लिए ज्ञान वर्धक और अविस्मरणीय यात्रा रही । जिस इतिहास को हम किताबों में पढ़ते थे उसका जीता जागता स्वरूप देखकर हम सभी प्रसन्न हुए । चौथे दिन हमलोग पुन: कलकत्ता लौट गए ।


5. कोणार्क का सूर्य-मंदिर | Essay on Konark Sun Temple for School Students in Hindi Language (Indian Historical Place)

उड़ीसा में अनेक दर्शनीय एतिहासिक, प्राकृतिक स्थान हैं, इनमें कोणार्क का सूर्य मंदिर सर्वोपरि है । इस मंदिर में वास्तुकला और मूर्तिकला के अद्‌भुत सम्मिलन को देखकर चकित रह जाना पड़ता है । 9वीं शताब्दी में केसरी वंश के एक राजा ने इसका निर्माण करवाया था ।

कालांतर में गंग वंश के राजा तांगुला नरसिंह देव ने 13 वीं शताब्दी में नए सिरे से इसका निर्माण करवाया । इसके निर्माण के संबंध में एक बड़ी ही रोचक कहानी प्रचलित है । कहा जाता है कि नरसिंह देव ने कारीसन के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद सूर्योपासना के लिए यह मंदिर बनवाया था ।

यह भी कहा जाता है कि राजा को कुष्ठ रोग हो गया था । किसी ने उनसे कहा कि समुद्रतट पर यदि आप सूर्य-मंदिर बनवाकर सूर्य की उपासना करें, तो आपको रोग से मुक्ति मिल जाएगी । राजा ने चंद्रभागा नदी और समुद्रतट के संगम स्थल को मंदिर-निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान समझकर वहां पर सूर्य-मंदिर का निर्माण करवाया; जो कोणार्क के नाम से प्रसिद्ध है ।

कोणार्क का सूर्य मंदिर रथ के आकार का है, जिसे सात अश्व खींचते हैं । इसमें बड़े-बड़े पत्थरों के साथ लोहे की मोटी कड़ियों का भी उपयोग किया गया है । रथ को खींचने वाले जो सात घोड़े दिखाए गए है वे इतने जीवंत और गतिशील लगते है मानो रथ को हवा से बातें कराते जा रहे हों । रथ में 24 पहिए हैं ।

प्रत्येक पहिए का व्यास नौ फुट आठ इंच है । ये 24 पहिए चौबीस घंटों के प्रतीक हैं । मंदिर की नींव दस फुट ऊंचे 12 पहियों पर आधारित है । बड़ी शान से गरदन उठाए सात घोड़े गतिशील मुद्रा में हैं । लगता है, ये रथ को आसमान में उड़ाए लिए जा रहे हों । ये सात घोड़े, सात दिनों के प्रतीक हैं ।

यह मंदिर प्राचीन ओडिसी स्थापत्य कला का अरभुत नमूना है । मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि सृष्टि की प्रतिमा पर दिनभर विभिन्न कोणों से सूर्य की किरणें पड़ती हैं । संभवत: इसीलिए इस मंदिर का नाम कोणार्क (यानी सूर्य का कोण) पड़ा होगा । अर्क सूर्य को कहा जाता है ।

चौकोर परकोटे से घिरे इस मंदिर के तीन ओर ऊंचे-ऊंचे प्रवेशद्वार हैं । मंदिर के तीन भाग हैं नट मंडंप, जगमोहन मंडप और गर्भगृह । मंदिर के ठीक सामने समुद्र से सूर्योदय का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है । कहा जाता है कि कोणार्क मंदिर के ऊपर एक चुंबक था, जो समुद्र में जानेवाले जहाजों को अपनी ओर खींच लेता था ।

इसलिए दूसरे देशों के नाविक उसे निकाल कर ले गए । मंदिर का शिखर तो गिर गया है, लेकिन दक्षिण-पश्चिम और उत्तरी कोनों में नवोदित सूर्य, मध्याहन सूर्य और अस्ताचलगामी सूर्य की मूर्तियां हैं । मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण अप्सराओं, पशु-पक्षियों, देवी-देवताओं और प्राकृतिक दृश्य दर्शकों को मुग्ध कर देते हैं । मंदिर की बाहरी सतह पर मनुष्यों और पशुओं को अनेक मुद्राओं में अंकित किया गया है ।

रतिक्रीड़ा के भी अनेक दृश्य हैं ये दृश्य कामोत्तेजक नहीं हैं । ये काम के उदात्त भाव को व्यक्त करते हैं । नारी मूर्तियां पत्रलेखिका, शालभंजिका तथा दर्पण में अपना मुखमंडल देखती नारी की प्रतिमाएं उकृष्ट शिल्प कला को उजागर करती हैं ।

मुख्य दर्शनीय स्थल: सूर्य-मदिर से करीब 3 कि॰मी॰ दूर यहां का समुद्रतट संसार के सुंदरतम समुद्रतटों में एक है । समुद्र के रेतीले तट पर बैठकर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सागर की उठती-गिरती लहरों का आनन्द लिया जा सकता है ।

संग्रहालय: मंदिर के निकटस्थ सग्रहालय में अनेकों उग्लेभ कलाकृतियां दर्शनीय हैं । कोणार्क से 15 कि॰मी॰ दूर रणचंदी और 40 किमी॰ नियाली माधव का मंदिर है । नियालि माधव के मंदिर में आदिवासी देवता और श्रीकृष्ण के समन्वित रूप के दर्शन होते हैं । 30 किमी॰ दूर काकतपुर में मंगला देवी का मंदिर और आठ किमी॰ दूर कुरु कुरुणा है ।

कैसे जाएं:

वायुमार्ग: भुवनेश्वर से 65 किमी॰ पुरी से निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है । भुवनेश्वर से कोणार्क कि दूरी मात्र 65 किमी॰ है ।

रेलमार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन भुवनेश्वर है । पुरी के रेलवे स्टेशन से भी कोणार्क जाने के लिए टैक्सी, बस आदि बाहन उपलब्ध रहते हैं । दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास, मुंबई आदि प्राय: सभी बड़े नगरों से भुवनेश्वर तक ट्रेनें जाती हैं ।

सड़क मार्ग: कोणार्क, भुवनेश्वर और पुरी से नियमित बस सेवाओं से जुड़ा हुआ है ।

प्रमुख शहरों से दूरी:  भुवनेश्वर से 65 किमी॰ पुरी से 85 किमी॰ कलकत्ता से 545 किमी॰ पटना से 966 किमी॰ (भुवनेश्वर होकर) रांची से 648 किमी॰

कहां ठहरें:

अशोक ट्रेवेल्स लॉज, पंथनिवास, टुरिस्ट बंगला एवं निरीक्षण-भवन में ठहरने के स्थान के संबंध में सम्पर्क करें । ठहरने के लिए पहले आरक्षण करा लेना जरूरी है । विशेष जानकारी के लिए पर्यटन कार्यालय, उड़ीसा सरकार पंथ निवास, फोन 35821 से पर्यटन-संबंधी जानकारी प्राप्त की जा सकती है ।

जाने का उचित समय:

वर्षा ऋतु छोड़कर हर मौसम में कोणार्क का भ्रमण किया जा सकता है । यहां सर्दियों में कोणार्क का भ्रमण किया जा सकता है । यहां सर्दियों में 26 डिग्री सेंटीग्रेट न्यूनतम और गर्मियों में 40.5 डिग्री सेंटीग्रेट अधिकतम और 26.6 डिग्री सेंटीग्रेड न्यूनतम तापमान रहता है ।


6. फतेहपुर सीकरी । Essay on Fatehpur Sikri for College Students in Hindi Language (Indian Historical Place)

नगर वर्णन:

आगरा शहर से 37 किमी॰ दूर स्थित फतेहपुर सीकरी भारत के पर्यटन मानचित्र पर एक विशिष्ट स्थान रखता है । आगरा भ्रमण करने वाले पर्यटकों को फतेहपुर सीकरी का भ्रमण भी अवश्य करना चाहिए । फतेहपुर सीकरी की स्थापना मुगल बादशाह अकबर ने एक किला नगर के रूप में की थी, जिसका परकोटा आज भी मौजूद है ।

इस परकोटे के 7 द्वार हैं तथा यह 6 किमी॰ क्षेत्र में फैला हुआ है । पूर्व में यहां सीकरी नाम का छोटा सा गांव था जब अकबर ने यहां किला नगरी बसाई तो इसका नाम फतेह पुर रखा । जो कालांतर में फतेहपुर सीकरी कहलाया । फतेहपुर सीकरी में प्रवेश शुल्क 5 रुपये है जिस में 4.30 रूप का टौल टैक्स शामिल नहीं है ।

प्रमुख स्थल:

शेख सलीम चिश्ती का दरगाह: सफेद पत्थर की बनी यह दरगाह फतेहपुर सीकरी की सबसे सुंदर इमारत है । इस दरगाह का निर्माण बादशाह अकबर ने प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की याद में कराया था, जिन के आशीर्वाद से उनके पुत्र सलीम का जन्म हुआ था । इस दरगाह की दीवारों पर भव्य पच्चीकारी तथा जालियां विशेष रूप से दर्शनीय हैं ।

दरगाह के पश्चिम में एक विशाल मस्जिद है । जिसमें एक लाख से अधिक लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं । इस मस्जिद के दो दरवाजे हैं । पूर्व का दरवाजा शाही दरवाजा था, जहां से शाही परिवार के लोग नमाज पढ़ने के लिए प्रवेश किया करते थे । दक्षिणी बरामदे में कुरान की तालीम के लिए एक मदरसा भी था ।

बुलंद दरवाजा:

बुलंद दरवाजे का निर्माण बादशाह अकबर ने सन् 1575 में अपनी गुजरात विजय के उपलक्ष्य में कराया था, यह दरवाजा अपने उत्कृष्ट शिल्प तथा ऊंचाई के लिए प्रसिद्ध है । इस दरवाजे की ऊंचाई भूमितल से 176 फुट तथा भवन तल से 134 फुट है । यह एशिया का सर्वाधिक ऊंचा दरवाजा है । दरवाजे के बगल में एक बड़ा तालाब भी है, जिसमें गोताखोर दरवाजे के ऊपर से कूद कर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं ।

पंचमहल:

पांच मंजिला यह भवन 176 खंबों पर खड़ा हुआ है । प्रत्येक खंबा एक अलग प्रकार की पच्चीकारी का है । इस महल के ऊपर बादशाह और उसका परिवार शाम के समय खुली हवा का आनंद लेता था । इस महल के ऊपर से फतेहपुर सीकरी के पूरे किले का अवलोकन किया जा सकता है तथा खानवा के उस मैदान को भी देखा जा सकता है जहां कभी बाबर तथा राणा सांगा के बीच युद्ध हुआ था ।

दीवाने खासा:

दीवाने खास में अकबर अपने प्रमुख सलाहकारों और मंत्रियों से परामर्श करता था । यह महल यद्यपि एक मंजिला है किन्तु बाहर से देखने पर यह दो मंजिला भवन प्रतीत होता है । भवन के अंदर एक विशिष्ट शैली का अष्टकोणीय खंभा है जिसकी छत पर मध्य में बादशाह बैठता था तथा अपने सलाहकारों से शासन व्यवस्था संबंधी बातें करता था । भवन की बाहरी दीवारों तथा खंभे की नक्काशी देखने योग्य है ।

दीवाने आम:

फतेहपुर सीकरी के किले में भी अन्य मुगल कालीन किले की भांति एक विशाल दीवाने आम है जहां अकबर आम नागरिकों को दर्शन देता था तथा उनकी शिकायतों को सुनता था । आम जनता के लिए यह न्याय प्राप्त करने का भी स्थान था । दीवाने आम की मुख्य इमारत के सामने विशाल दालान है, जहां जनता जमा होती थी ।

ख्वाबगाह महल:

फव्वारों और बड़े-बड़े हौजों से घिरा ख्वाब महल अकबर का मुख्य निवास स्थान था । इस महल में पानी का ऐसा प्रबंध किया गया था कि सारा महल भयंकर गर्मी में भी ठंडा रहता था ।  इसी महल के अहाते में संध्या के समय संगीत की महफिल लगती थी, जहां तानसेन जैसे संगीतकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे । दीवाने खास की आंतरिक दीवारों पर कभी सोने की सुंदर कढ़ाई थी, जो अब काफी सीमा तक नष्ट हो गई है । इस महल से जुड़ा अकबर का हरम अभी भी देखा जा सकता है ।

हिरनमीनार:

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हिरन मीनार मुख्य किले से हटकर बनी हुई एक ऊंची मीनार है जिसके ऊपर पत्थर के सींग जड़े हुए हैं । अत: इसका शिल्प पूर्णत: एक अलग किस्म का लगता है । कहा जाता है कि यहां शाही बेगमें हिरनों का शिकार करती थीं ।

नौबतखाना:

नौबत खाने में हिंदु तथा मुस्लिम स्थापत्य कला का सुंदर सम्मिश्रण देखा जा सकता है । अकबर जब दरबार में प्रवेश करता था तो नौबतखाने से ही नगाड़े बजा करते थे । नौबतखाने का निर्माण लाल पत्थर से हुआ है, यह भी कहा जाता है कि यहां पहले शाही बाजार लगा करता था ।

सुनहरा महल:

यह अकबर के हरम का ही एक हिस्सा था । इसमें 4 कमरे हैं, जिनमें अकबर की बेगम रहती थी इस के अंदर कभी सुनहरा रंग रहा होगा । अत: इसे सुनहरा महल कहते हैं महल की दीवारों पर अकबर की हिन्दू बेगमों को ध्यान में रखकर कुछ हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां भी उत्कीर्ण की गयी थीं, जिन्हें बाद में या तो तुड़वा दिया गया या वे स्वयं टूट गईं ।

टकसाल:

टकसाल का एक बहुत बड़ा भाग यद्यपि नष्ट हो चुका है किन्तु फिर भी यह शिल्प और इतिहास के शौकीन पर्यटकों के लिए देखने योग्य है । कुछ लोगों का कहना है कि यहां सोने चांदी के सिक्कों की ढलाई का कार्य होता था । किन्तु अधिक लोगोंका विचार है कि यह संभवत: शाही वर्कशाप था, जहां शाही दरबार की अधिकांश वस्तुएं तैयार की जाती थीं ।

इस्लाम खान का मकबरा:

शेख सलीम चिश्ती की दरगाह के समीप ही इस्लाम खान का मकबरा नाम से जानी जाने वाली लाल पत्थर की इमारत देखी जा सकती है । कहा जाता है कि यहां शेख साहब अपने मुरीदों की जमात लगाते थे । अब यहां शेख साहब के परिवार के ही लोगों की मजारें हैं ।

जोधाबाई महल:

इस महल को यद्यपि जोधाबाई महल के नाम से जाना जाता है किन्तु यह संभवत: अकबर का मुख्य हरम था । इस का निर्माण 1570 से 1574 के बीच हुआ माना जाता है । महल की छत पर नीले रंग के टाइल्स की छटा अब काफी बद रंग हो चुकी है तथापि दर्शनीय है ।

तुर्की सुल्ताना का महल:

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यह महल अपेक्षाकृत छोटा किन्तु बेहद खूबसूरत है । इस महल का बाहरी हिस्सा इस प्रकार का बना है कि वह पहली नजर में किसी लकड़ी की इमारत का आभास देता है । महल सुंदर पच्चीकारी के खंभों पर खड़ा है, जो चारों और सुंदर बरामदे से घिरा है ।

कैसे जाएं:

वायु मार्ग:  फतेहपुर सीकरी वायुमार्ग से दिल्ली वाराणसी से जुड़ा है निकटतम हवाई अड्ड़ा खेरिया है जो यहां से 37 किमी॰ दूर है ।

रेलमार्ग: फतेहपुर सीकरी मीटर गेज रेलमार्ग से जुड़ा है किन्तु रेलगाड़ी से फतेहपुर सीकरी जाना सुविधाप्रद नहीं है अत: बेहतर है कि पर्यटक आगरा पहुंच कर सड़क मार्ग से ही फतेहपुर सीकरी जाएं ।

सड़क मार्ग: फतेहपुर सीकरी आगरा जयपुर मार्ग पर आगरा से 37 किमी॰ दूर स्थित है अत: आगरा से किसी भी बस अथवा टैक्सी द्वारा फतेहपुर सीकरी आसानी से पहुंचा जा सकता है ।

कब जाएं:  फतेहपुर सीकरी का भ्रमण करने के लिए सितंबर से अप्रैल के मध्य तक का समय सर्वाधिक उपयुक्त है, मई जून में अत्यधिक गर्मी के कारण तथा जुलाई अगस्त में वर्षा के कारण जहां तक हो इन महीनों में यहां भ्रमण का कार्यक्रम न बनाएं ।

कहां ठहरें:


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