Here is an essay on the transfer system in India especially written for school and college students in Hindi language.

भारतीय राज व्यवस्था में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यवस्था स्थानान्तरण व्यवस्था है जिसके लिए शायद कुछ मानक भी तय किये गये हैं लेकिन सत्ताधारियों के लिए और सत्ता के नजदीकी चाहे वो नौकरशाह हों या कर्मचारी सभी के लिए कोई नियम कानून नहीं है ।

जो तय नियम हैं भी, वो केवल ऐसे नौकरशाहों या कर्मचारियों पर लागू होते हैं जो सत्ता से दूर हैं । भारतीय व्यवस्था राज के प्रत्येक अंग में केवल यही बात लागू होती है कि ‘समरथ को नहीं दोष गुसाई’ अर्थात जो लोग सत्ता के करीब होते हैं वो सदैव नियम कानून से ऊपर होते हैं ऐसा हमेशा से होता रहा है और इसके लिए सहयोगी व रक्षक की भूमिका में होते हैं सत्ताधारी ।

तभी तो देश में सभी कुछ असमानरूप से चल रहा है । जो लोग सत्ता और सत्ताधारियों के करीब हैं केवल वे ही खुश हैं अन्यथा सभी उत्पीड़न का शिकार हैं । यह आवश्यक नहीं है कि वे केवल नौकरशाह हैं । कुछ नौकरशाह भी ऐसे हैं जो ऐसे कर्मचारियों का जमकर उत्पीड़न करते हैं ।

जो सत्ता या सत्ताधारियों के करीब नहीं होते हैं । सम्पूर्ण भारतवर्ष में ऐसे नौकरशाह व कर्मचारी जो सत्ता के करीब हैं या फिर सत्ताधारियों के लिए अच्छी खासी कमाई कराने का माध्यम हैं वे ही केवल खुशहाल हैं अन्यथा देश के नौकरशाह और कर्मचारी उत्पीड़न का शिकार हैं ।

उत्पीड़न भी कई प्रकार से होता है । सत्ताशीर्ष शीर्ष नौकरशाह को उत्पीडित करता है जो कई प्रकार से हो सकता है एक तो सत्ताशीर्ष धन उगाही के लिए उत्पीड़ित कर सकता है कि अपने अधीनस्थ नौकारशाहों से धन उगाही कराकर सत्ता शीर्ष को पहुंचाओं अन्यथा कम महत्वपूर्ण विभाग के पद पर स्थानान्तरण कर दिया जायेगा ।

इसके लिए कोई वरिष्ठता आदि का ध्यान भी नहीं रखा जायेगा कि किसी वरिष्ठ नौकरशाह को कनिष्ठ के नीचे कार्य करने के लिए भी विवश कर दिया जाता है । ऐसी स्थानान्तरण व्यवस्था कई बार भारतीय व्यवस्था के अन्तर्गत देखने को मिल ही जायेगी ।

जब योग्य व ईमानदार नौकरशाह को उसकी वरिष्ठता को नजरअंदाज करके कनिष्ठ को विभाग के प्रमुख पद पर विराजमान किया गया है । यह सब सत्ता का खेल है । जिसके लिए सत्ताधारियों को केवल अपना लाभ ही दिखाई देता है उन्हें यदि ऐसा महसूस होता है कि कोई नौकरशाह स्वच्छ छवि और ईमानदार व्यक्तित्व का धनी है तो निश्चित होगा कि सत्ताधारी ऐसे नौकरशाह को उच्च पद से वंचित रखते हैं ऐसे कई उदाहरण भारतीय व्यवस्था में देखने को मिलते हैं जब किसी नौकरशाह या पुलिस अधिकारी को अपनी ईमानदारी की छवि का खामियाजा भुगतना पडा है और जो भ्रष्ट छवि के नौकरशाह या कर्मचारी होते हैं ।

उनको सत्ता की नजदीकियों का भरपूर लाभ मिलता है वे ही सत्ता शीर्ष के चहेते होते हैं जो उनके लिए अधिक धन उगाही का कार्य करते हैं । यह धन उगाही विशेषकर राज्यों में अधिक देखने को मिलती है । होता तो केन्द्र में भी सब कुछ है लेकिन अन्तर इतना है कि केन्द्र में जो कुछ चलता है उसकी भनक तक किसी अन्य को नहीं लग पाती और राज्यों में जो कुछ चलता है उसका शोर दूर-दराज तक हो जाता  है ।

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तभी तो राज्यों में इस प्रकार की घटना का महिमामंडन बहुत ही जोर-शोर से होता है । कई बार तो ऐसे नौकरशाहों को विपक्ष के दबाव में कुर्सी तक छोड़नी पड़ी है जब भ्रष्टता ने उनको सत्ता शीर्ष का चहेता बताकर पद त्याग करने को मजबूर किया है ।

भारतीय स्थानान्तरण व्यवस्था पर यदि हम गहनता से प्रकाश डालें तो भारतीय लोकतंत्र में इससे बेहतर धन उगाही का माध्यम भारतीय सत्ताधारियों के लिए दूसरा कोई नहीं है । जिसमें न तो कोई आरोप लगने का भय है और न ही किसी के पकड़े जाने का ।

क्योंकि वर्तमान समय में भारतीय स्थानान्तरण उद्योग अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है । जिसको रोक पाना किसी के भी बूते की बात नहीं है । क्योंकि जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तो फिर कौन बचाये जब देश के नीति निर्धारक स्वयं का और पार्टी का खर्चा चलाने के लिए स्थानान्तरण उद्योग चलाते हैं जिस उद्योग में केवल और केवल उत्पादन ही होता है वो भी बिना किसी रॉ मैटिरियल के जिसमें लागत कोई नहीं, मशीनरी ह्रास कोई नहीं, ट्रांसपोर्ट नहीं, मजदूर कोई नहीं, न लेबर इंस्पेक्टर का भय, न कर चोरी का भय, न बिजली चोरी करते समय पकड़े जाने का भय, सर्वाधिक सुरक्षित जिसमें अग्निशमन यंत्रों की आवश्यकता नहीं केवल लाभ ही लाभ ।

तो फिर ऐसे उद्योग को स्थापित करने के लिए कौन लालायित नही होगा । जब इतनी सुविधाएं उपलब्ध हो तो कोई भी ऐसे उद्योग में कदम रखना चाहेगा । जिसमें केवल और केवल लाभ होता हो और ऐसे उद्योग को स्थापित करने के लिए जो लाइसेंस दिया जाता है वह भी एक तो भारतीय जनता द्वारा दिया जाता है और दूसरा लाइसेंस उन लोगों द्वारा दिया जाता है जिनको भारतीय जनता द्वारा लाइसेंस दिया जाता है, लेकिन यह लाइसेंस थोड़ा कम महत्व का होता है एक प्रकार से इस लाइसेंस को भारतीय जनता द्वारा दिये जाने वाले लाइसेंस की शाखा कहा जा सकता है ।

भारतीय व्यवस्था में स्थानान्तरण एक बहुत बड़ा उद्योग है और बिना पंजीकृत हुए चल रहा है जिसमें सहयोगी की भूमिका निभा रहे हैं भारतीय लोकतंत्र के सिपाही जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में इस स्थानान्तरण उद्योग का हिस्सा हैं चाहे वो स्वयं भी इस उद्योग से कहीं न कहीं अवश्य प्रभावित हो रहे हैं तभी तो किसी भी पद कर कोई अधिकारी जो वरिष्ठता कम में काफी ऊपर होते हैं ।

वो अधिक समय तक नहीं टिक पाते और ऐसे अधिकारी जो केवल अपने तरीके से कार्य करना चाहते हैं । उनको भारतीय लोकतंत्र कार्य नहीं करने देता और ऐसे अधिकारी को हटाकर किसी अन्य जनपद में पहुंचा दिया जाता है ।

एक अन्य प्रकार से जो अधिकारी ऐसे जनपदों में जाना चाहते हैं जहां भ्रष्टता चरम सीमा पर है और अधिक धन कमाने की इच्छा रखते हैं वो अधिकारी सजाधिकारियों द्वारा एक निश्चित शुल्क अदा करने के बाद ही उस जनपद में भेजा जाता है साथ ही एक शर्त भी लगा दी जाती है कि प्रत्येक माह इतनी निश्चित शुल्क अदा करनी होगी और यदि निश्चित शुल्क अदा करने में लापरवाही या असफलता रहती है तो फिर उस अधिकारी का स्थानान्तरण ऐसे जनपद में कर दिया जाता है जहां पैसा मिलना तो दूर देखना भी नसीब नहीं होता ।

साथ ही जान का भय बना रहता है । इसी प्रकार से प्रत्येक विभाग में एक जनपद से दूसरे जनपद में भारतीय लोकतंत्र का स्थानान्तरण उद्योग चलता रहता है जिसमें भारतीय लोकतंत्र के रक्षक ही अपनी आय के रूप में इसे चलाते हैं क्योंकि स्थानान्तरण उद्योग एक ऐसा उद्योग है जिसमें दोनों पक्ष आपसी सहमति के आधार पर और अपनी सुविधा के अनुसार कार्य करते हैं तभी तो स्थानान्तरण की ऐसी कोई ठोस नीति निर्धारित नहीं है कि कोई आई॰ए॰एस॰ अधिकारी एक पद पर किसी एक विभाग में कितने समय तक कार्य कर सकता है या एक जिले का प्रशासनिक कार्य एक जिलाधिकारी के रूप में कितने समय तक कर सकता है ।

ऐसे कोई प्रावधान भारतीय स्थानान्तरण नीति के अन्तर्गत निर्धारित नहीं है और यदि मान भी लिया जाये कि कोई ऐसी नीति निर्धारित है भी तो उसका पालन नहीं किया जा रहा है । देश के किसी राज्य में ही शायद कोई ऐसी व्यवस्था हो जहां आई॰ए॰एस॰ अधिकारी के कार्य करने की समय सीमा तय हो अन्यथा सम्पूर्ण भारतवर्ष में आई॰ए॰एस॰ अधिकारियों को लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनपढ़ सिपाही अपने इशारों पर नचाते हैं उनके कार्यो में जबरदस्त दखलंदाजी करते हैं तथा अपने उल्टे सीधे वैधानिक अवैधानिक सभी कार्यो को दबाव बनाकर कराते हैं ।

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भारतीय लोकतंत्र में सत्ताधारियों का नौकरशाहों पर दबाव बनाने का सबसे आसान तरीका उनका स्थानान्तरण है यदि कोई नौकरशाह किसी नेताजी की बात नहीं मानता है या उनके अवैधानिक कार्यो में सहयोग नहीं करता है तो नेताजी की उक्त नौकरशाह को स्थानान्तरण की धमकी होती है और फिर भी यदि वह नहीं मानता है तो उक्त नौकरशाह का स्थानान्तरण करा दिया जाता है ।

भारतीय नेताओं का भारतीय नौकरशाहों को नियंत्रित करने का सबसे महत्वपूर्ण फार्मूला स्थानान्तरण है यहां स्थानान्तरण उन नेताओं की आय का एक स्रोत है । जब नौकरशाह स्थानान्तरण के लिए कई-कई लाख रूपये खर्च करते हैं और मनचाहा स्थानान्तरण कराकर मनचाही उगाही करते हैं ।

भारतीय स्थानान्तरण व्यवस्था के अन्तर्गत यह आवश्यक नहीं है और न ही निर्धारित है कि ऐसी स्थानान्तरित व्यवस्था केवल आई॰ए॰एस॰ अधिकारियों के प्रति है आई॰पी॰एस॰ अधिकारी पी॰सी॰एस॰ अधिकारी, पी॰पी॰एस॰ अधिकारी सभी के प्रति सत्ताधारियों का एक जैसा ही व्यवहार होता है जो कमाई की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनपदों में स्थानान्तरण के लिए सत्ताधिकारियों को मुह मांगी सुविधा शुल्क अदा करते हैं और प्रत्येक महीने एक निश्चित सुविधा शुल्क देने का वादा करके अपना स्थानान्तरण करा लेते हैं और नेताजी से किये वादे को पूरा करने का भरसक प्रयत्न करते हैं और जो अधिकारी ऐसा नहीं करते उनको देश-प्रदेश के अति पिछड़े जनपदों और कम महत्वपूर्ण विभाग में सर्विस करने को मजबूर होना पड़ता है यह भारतीय स्थानान्तरण व्यवस्था लोकतांत्रिक व्यवस्था का ही परिणाम है कि एक वरिष्ठ नौकरशाह द्वारा अपनी सर्विस रिवाल्वर से अपने घर में ही आत्म हत्या की थी ।

अनुमान लगाया जा रहा था कि उक्त नौकरशाह से कुछ अवैधानिक कार्य कराने का सत्ताधारियों द्वारा दबाव बनाया जा रहता था । जिस दबाव को वह नौकरशाह सहन नहीं कर पाया और उसने अपनी इहलीला समाप्त करने में ही अपनी व अपने परिवार की भलाई समझी ।

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ऐसा एक बार नहीं हुआ बल्कि सदैव ऐसे अधिकारी जो अपनी अंतर आत्मा की आवाज को सुनने से इंकार नहीं करते । उनके साथ सदैव ऐसा ही होता रहा है और जो अधिकारी अपनी अंतर आत्मा का सौदा कर लेते हैं ।

वो सदैव सत्ता के नजदीक ही बने रहते हैं न तो उनका स्थानान्तरण होता है और न ही निलम्बन वो कुछ भी करें कैसे भी करें उनका पद सुरक्षित बना रहता है क्योंकि भारतीय व्यवस्था में लोकतंत्र महान है और साथ ही सर्वोपरि भी है तभी तो देश की व्यवस्था ऐसी है कि शक्तिशाली नौकरशाह भी स्थानान्तरण नामक बामिरी से ग्रस्त हो सकता है ।

ऐसी व्यवस्था बनी हुई है कि भारतीय सत्ताधारी नौकरशाहों से प्रत्येक महीने एक निश्चित सुविधा शुल्क वूसल करते हैं और नौकरशाह भी कोई सुविधा शुल्क अपने घर या वेतन से नहीं देते हैं उनका भी तरीका वहीं होता है जो सत्ताधारियों का होता है ।

नौकरशाह अपने अधीनस्थ नौकरशाहों से प्रत्येक माह एक निश्चित सुविधा शुल्क वसूल करते हैं और अधीनस्थ नौकरशाह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से इसी प्रकार धन उगाही करते हैं । तो इस प्रकार पूरी व्यवस्था बनी हुई है कि कहीं कोई अन्य व्यक्ति घुस ही नहीं सकता ।

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सब कुछ व्यवस्थित रूप से चल रहा है और जहाँ कोई परेशानी व्यवस्था में उत्पन्न होती है तो उसे डेमेज कंट्रोल के माध्यम से तुरन्त पूरा कर लिया जाता है । भारतीय व्यवस्था में स्थानान्तरण एक ऐसी भयानक व्यवस्था है जिसके द्वारा सत्ताधारी और नौकरशाहों की आय-व्यय का बजट संतुलित होता है । जिसके बल पर सत्ताधारी अपना खेल खेलते हैं ।

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का यदि अध्ययन किया जाए तो निश्चित ही स्थानान्तरण की बहुत बड़ी खामियां जनता के सामने आ रही है । जब लोकतंत्र की इस व्यवस्था में किसी भी जनपद में किसी भी पद पर किसी अधिकारी का कार्यकाल इसलिए सुरक्षित है कि वह सत्ता शीर्ष को प्रत्येक माह एक निर्धारित शुल्क अदा करता है । तभी तो नियम कानून शासनादेश उक्त अधिकारी पर लागू नहीं होते हैं ।

क्योंकि वह सत्ता शीर्ष का चहेता है और उसका कार्य पार्टी का गुणगान करना मात्र रहता है । भारतीय व्यवस्था में ऐसे नौकरशाह भी देखें जा सकते हैं जो किसी पार्टी के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में कार्य करते हैं और वे राजनीतिक नौकरशाह एक प्रकार से पार्टी ऐजेन्ट का कार्य करते हैं तथा अतत: सर्विस से रिटायर्ड होने पर उक्त राजनीतिक पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हैं ।

ऐसे उदाहरणों की भारतीय राजनीति मे अधिकता है जो नौकरशाह सर्विस में जिन राजनीतिक पार्टियों के लिए अप्रत्यक्ष रूप में कार्य करते थे उन राजनीतिक पार्टियों के लिए सेवा से रिटायर्ड होने पर सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हैं और चुनाव लड़कर पार्टी के लिए कार्य करते हैं ।

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कुछ इस प्रकार भारतीय व्यवस्था में नौकरशाह भी पार्टी विशेष के लिए कार्य करते देखे जा सकते हैं । तभी तो कुछ आई॰ए॰एस॰ और आई॰पी॰एस॰ अधिकारी जो जिस सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी के हितैषी होते हैं वो उनकी मनपसंद जगह और मनपसंद पद पर तब तक बने रहते हैं जब तक उस राजनीतिक पार्टी की सरकार रहती है और ऐसी स्थिति में उक्त सत्ताशीर्ष का पसन्दीदा अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और आम जनता का अपने मनमाने तरीके से आर्थिक दोहन करने के साथ ही मानसिक उत्पीड़न भी करता है और सत्ता के डर से न तो कोई कर्मचारी विरोध करता है और न ही आम नागरिक ।

सब कुछ सत्ताधारियों द्वारा नियोजित रूप में चल रहा है । ऐसी कोई स्थानान्तरण नीति या स्थानान्तरण एक्ट अभी तक नहीं बना है जो यह सुनिश्चित कर सके कि किस विभाग में कोई अधिकारी या कर्मचारी कितने समय तक कार्य कर सकता है या उस अधिकारी का स्थानान्तरण किसी दण्ड स्वरूप ही तय समय सीमा से पहले किया जा सकता है तथा उक्त अधिकारी की जबावदेही भी निश्चित की जा सके जब एक अधिकारी का एक विभाग में एक निश्चित समय सीमा तक रूकने का प्रावधान हो ।

साथ ही उस अधिकारी को निश्चित टारगेट भी दिया जाए । वह टारगेट प्रत्येक विभाग में सुनिश्चित हो सके कि एक समय सीमा में निश्चित विकास होना अनिवार्य है । या एक निश्चित समय सीमा में आपराधिक घटनाओं का प्रतिशत कम होना चाहिए या शिक्षण के क्षेत्र में प्रत्येक अध्यापक की जवाबदेही निश्चित होनी चाहिए कि शिक्षा गुणवत्ता व छात्र संख्या में बढोत्तरी हो ।

ऐसी जबावदेही निश्चित होना लोकतंत्र के लिए अति आवश्यक है जो भारतीय स्थानान्तरण व्यवस्था के अन्तर्गत होना चाहिए कि प्रत्येक नौकरशाह को एक पद और एक विभाग में कार्य करने की समय सीमा निश्चित हो ताकि उस अधिकारी की कार्य क्षमता का एक निश्चित विभाग में आकलन किया जा सके और यदि उस विभाग में वह अधिकारी अपनी कार्य क्षमता का प्रदर्शन सही रूप में नही कर पाता है या असफल रहता है ।

तो भविष्य में उस अधिकारी को उस विभाग में नहीं भेजना चाहिए और उस अधिकारी को उसकी कार्य क्षमता के अनुसार ही कार्य में लगाना चाहिए । यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक आई॰ए॰एस॰ अधिकारी प्रशासनिक कार्य में निपुण हो और वह सभी विभागों में कार्य करने में सक्षम हो ।

यह उक्त अधिकारी के साथ भी नाइंसाफी है जब किसी अधिकारी की सम्पूर्ण शिक्षा विज्ञान वर्ग में हुई है या मैडिकल शिक्षा ग्रहण की है या इंजीनियरिंग शिक्षा ग्रहण की है तो क्या यह उस अधिकारी के साथ इंसाफ है जिसने न तो प्रशासनिक व्यवस्था का अध्ययन किया है और न ही प्रबंधन की शिक्षा ग्रहण की है ।

केवल आई॰ए॰एस॰ परीक्षा उत्तीर्ण करके कुछ महीने का प्रशिक्षण प्राप्त करके प्रशासनिक कार्यों की देख-रेख करते हैं । वैसे तो आई॰ए॰एस॰ परीक्षा उत्तीर्ण करना अपने आप में ही कठिन परीक्षा है लेकिन इस बात से भी इकार नहीं किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति परीक्षा उत्तीर्ण करने मात्र से दक्ष प्रशासनिक अधिकारी सिद्ध नहीं हो सकता है या वह व्यक्ति जिसने केवल ऐसे वातावरण में रहकर अध्ययन किया है जहां न तो चोरी होती थी, न डकैती, हत्या, लूटपाट का तो कभी कोई वास्ता नहीं था ।

जिसने कभी गांवों को देखा तक नहीं कि गांव में किस प्रकार झगड़े होते हैं । किस प्रकार रंजिश में फर्जी मुकदमें दर्ज कराये जाते हैं और ऐसे परिवेश में पले बड़े युवक यदि आई॰ए॰एस॰ अधिकारी बनते हैं तो क्या यह उस अधिकारी व उस जनता के साथ इंसाफ होगा जो व्यक्ति अभी तक ऐसे वातावरण से भी अनभिज्ञ रहा है ।

भारतीय व्यवस्था का सबसे कमजोर पहलू इसे हम कह सकते हैं कि ऐसे व्यक्ति ऐसे पदों पर विराजमान हैं । जिनके विषय में वे अधिकारी मात्र सैद्धान्तिक ज्ञान रखते हैं और भारतीय व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सैद्धान्तिक ज्ञान और व्यवहारिक आचरण में ऐसा ही अन्तर है । जैसा पृथ्वी और आकाश में ।

तभी तो भारतीय जनता को न तो पर्याप्त विकास ही मिल पा रहा है और न ही पर्याप्त सुरक्षा । भारतीय व्यवस्था की रीढ भारतीय प्रशासनिक व भारतीय पुलिस सेवा है जिनके बल पर सम्पूर्ण भारत का विकास और सुरक्षा निर्भर करती है लेकिन यदि दोनों सेवाओं को उनकी कार्य क्षमता के अनुसार कार्य करने से रोका जाये या आवश्यकता से अधिक दखलंदाजी की जाये तो क्या इन दोनों सेवाओं के अधिकारी अपने उद्देश्य में सफल हो पायेंगे । अर्थात कदापि नहीं ।

भारतीय प्रशासनिक और भारतीय पुलिस सेवा के कार्यो में भारतीय लोकतंत्र के सिपाही समय-समय पर अडंगा लगाते रहते हैं और वो नीतिगत कार्य कराने के स्थान पर स्वनीति के अनुसार कार्य कराते हैं और जो अधिकारी उनकी स्वनीति पर कार्य नहीं करते उनको भारतीय स्थानान्तरण व्यवस्था का भय दिखाया जाता है ।

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स्थानान्तरण व्यवस्था के अन्तर्गत किसी दूर-दराज के क्षेत्र में गुमनाम विभाग में गुमनाम पद पर वनवास के रूप में भेज दिया जाता है । बेशक वह अधिकारी तेज-तर्रार हो और भारतीय व्यवस्था को बेहतर सेवा प्रदान करने की योग्यता रखता हो ।

ऐसे योग्य अधिकारी को भारतीय स्थानान्तरण व्यवस्था के अन्तर्गत भारतीय लोकतंत्र के सिपाहियों के कोप का भोजन समय-समय पर बनना ही पड़ता है । तभी तो कुछ अधिकारी क्या अधिकतर अधिकारी भारतीय व्यवस्था के साथ समझौता कर लोकतंत्र के सिपाहियों के इशारों पर कार्य करने को मजबूर होते हैं ।

ऐसे अधिकारियों की संख्या अत्याधिक है जो अपनी योग्यता का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं और भारतीय स्थानान्तरण व्यवस्था का शिकार होकर प्रत्येक दो-तीन माह में एक पद से दूसरे पद पर स्थानान्तरित किये जाते रहते हैं ।

यह व्यवस्था केवल अखिल भारतीय सेवाओं की ही नहीं है प्रादेशिक प्रशासनिक सेवा और प्रादेशिक पुलिस सेवा व अधीनस्थ सेवाओं का हाल अखिल भारतीय सेवाओं से बदतर है और प्रादेशिक स्तर की सेवाओं के अधिकारी तो लोकतंत्र के सिपाहियों की मर्जी के बिना कुछ कर ही नहीं सकते ।

ऐसे उदाहरण भी प्रादेशिक सेवाओं में देखने को मिलते हैं । जब एक तहसील में एक एस॰डी॰एम॰ चार-चार, पांच-पांच वर्ष तक अपने पद पर बने रहते हैं और एक-एक इंस्पेक्टर या सब इंस्पेक्टर बीस-बीस वर्ष एक ही जिले में तैनात रहे हैं ।

आखिर क्या सरकारी नीति में ऐसा प्रावधान है ? तो उत्तर शायद ही हां में मिलेगा । क्योंकि ऐसे अधिकारी सत्ता शीर्ष के विश्वसनीय होते हैं और वे सभी वैधानिक-अवैधानिक कार्य करने में कोई कोताही नहीं बरतते ।

तभी तो अपनी चहेती सरकार में एक निश्चित पद पर सरकार के कार्यकाल में बने रहते हैं । जबकि दूसरी और ऐसे अधिकारी भी होते हैं । जो दो से चार माह ही टिक पाते हैं । इसका कारण स्पष्ट है कि ये अधिकारी सस्ता शीर्ष को खुश करने में नाकाम रहते हैं । जो अधिकारी सत्ता शीर्ष को खुश करने में कामयाब रहता है वही मनमाने तरीके से कार्य करता है ।

ऐसा किसी एक राज्य में नहीं होता है अपितू भारतवर्ष के सम्पूर्ण राज्यों के हालात कुछ इसी प्रकार हैं जो व्यवस्था को खींचने का कार्य कर रहे हैं । अन्यथा प्रादेशिक सेवा हो या अखिल भारतीय सेवा सभी की एक ठोस स्थानान्तरण नीति हो कि किसी अधिकारी को एक निश्चित पद पर उसकी योग्तयानुसार कार्य करने के लिए स्वतंत्रता है । बशर्तें किसी जनमानुष को कोई आपत्ति न हो या उक्त अधिकारी की कार्यशैली जनता के विरूद्ध न हो ।

भारतीय व्यवस्था में भारतीय स्थानान्तरण नीति तय करने का अधिकार जनता को होना चाहिए न कि सरकारों को । क्योंकि लोकतंत्र में कोई भी अधिकारी लोक सेवक है और यदि कोई लोक सेवक जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता या जनता उक्त अधिकारी से असंतुष्ट है या विभाग के अधिनस्थ कर्मचारी असंतुष्ट है कि कार्यशैली संतोषजनक नहीं है तो ऐसे अधिकारी को स्थानान्तरित कराने का अधिकार जनता को होना चाहिए और जो अधिकारी जनता को संतुष्ट करने में असफल रहता है ।

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उसको उस स्थान से तुरन्त स्थानान्तरित कर देना चाहिए । भारतीय व्यवस्था में स्थानान्तरण व्यवस्था सरकार द्वारा तय करने में जनता और अधिकारी दोनों का नुकसान है । तभी तो स्थानान्तरण भारतीय व्यवस्था में एक उद्योग का रूप ले चुका है और जिसका टर्न ओवर लगभग कई सौ करोड़ रूपये प्रति राज्य है ।

केन्द्र सरकार कानून पर कानून बनाती जा रही है लेकिन राज्य सरकारें उनकों धत्ता बताती जा रही है । कभी धनाभाव का बहाना तो कभी दूसरे अन्य संसाधनों की कमी का रोना रोया जाता है । शिक्षा अधिकार अधीनियम को ही लें तो स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो जायेगी ।

कानून तो बन गया लेकिन लागू होना इतना आसान नहीं है यदि शिक्षा में ही स्थानान्तरण व्यवस्था का जिक्र करें तो द्रश्य काफी अंधकारमय दिखायी पड़ता है । जब हम देखते हैं कि प्राथमिक शिक्षा में कार्यरत शिक्षकों की राज्य सरकारों द्वारा कोई ठोस स्थानान्तरण नीति नहीं है जिसका नुकसान झेलना पड़ता है देश के गरीब बच्चों को क्योंकि प्राथमिक शिक्षक के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं है कि एक शिक्षक को एक ही विद्यालय में कितने समय अवधि तक कार्य करना है और उस शिक्षक की उन बच्चों की गुणवत्तापरक शिक्षा के लिए क्या जवाब देही है ।

ऐसा कुछ भी प्रावधान कानून में नहीं है तभी तो जिला स्तर पर तैनात अधिकारी उसका गलत इस्तेमाल कर शिक्षकों का स्थानान्तरण के नाम पर आर्थिक दोहन के साथ ही मानसिक उत्पीड़न भी करते हैं उन्हें बच्चों की शिक्षा से कोई वास्ता नहीं है वे केवल अपना स्थानान्तरण उद्योग चलाते हैं और अपनी तथा अपने आकाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत करते हैं और जिनके लिए उत्तरदायी है भारतीय स्थानान्तरण व्यवस्था जो केवल आर्थिक दोहन करना सिखाती है ।

इसके अलावा कुछ नहीं क्योंकि भारत में आज भी न तो संसाधनों का अभाव है न योग्यता का । केवल अभाव है तो दृढ इच्छा शक्ति का जो भारतीय लोकतंत्र के सिपाहियों में देखने को नहीं मिलती है ।

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