एक सैनिक का पत्र!

कारगिल

13 मार्च 2001

पूज्या माताजी,

चरण स्पर्श ।

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मैं सकुशल हूँ । आपकी कुशलता की निरंतर चिंता लगी रहती है । जब मैं घर से निकला था, उस समय आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं था । ऐसी स्थिति में आपको छोड्‌कर आने का मेरा बिस्कूल मन नहीं था लेकिन क्या करूँ एक सैनिक होने के नाते मातृभूमि की रक्षा करना भी मेरा ही कर्त्तव्य है ।

यहाँ मैं पूरी लगन से सीमा पर तैनात रहते हुए दुश्मनों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए डटा हुआ हूँ लेकिन बार-बार आपकी याद मुझे आती है और मन विचलित (divert) हो जाता है । आप चिन्ता न करें और मिश्रजी को बुलवाकर उचित दवाइयाँ लेते रहिएगा । जंग खत्म होते ही मैं छुट्‌टी की अर्जी दे दूँगा और छुट्‌टी मिलते ही मैं आपके पास लौट

आऊँगा । पिताजी को मेरा प्रणाम कहिएगा ।

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आपका बेटा

‘क’

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