महत्वाकांक्षा-शांति की विनाशक पर निबन्ध | Essay on Ambition is the Grand Enemy of All Peace in Hindi!

प्रारंभ से ही महत्वाकांक्षा को निंदनीय माना जाता है । विचारकों ने इसे घमंड जैसे दुर्गुणों में गिना है । बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने महत्वाकांक्षा को मानव चरित्र का अवगुण माना है ।

लेकिन प्रतिभा से संबंधित नीति-कथाओं में महत्वाकांक्षा को साहसिक भावना से ओत-प्रोत माना गया है । लेकिन जब हम यह कहते है कि ईश्वर को चुनौती देने वाले महत्वाकांक्षी शैतान का पतन किस प्रकार हुआ, तो यह अवगुण की श्रेणी में आता है ।

महत्वाकांक्षा मनुष्य को आनंदपूर्ण जीवन की ओर उम्मुख करती है । नि:संदेह यदि मनुष्य में उत्तम जीवन के निर्माण की चाह नहीं होती तो यह शायद पेड़ों अथवा गुफाओं में जंगली जानवरों से डरते हुए, प्रकृति की कृपा पर निर्भर असभ्य जीवन व्यतीत करता रहता ।

पर इसी महत्वाकाँक्षा के कारण हम विनाश के कगार पर पहुँच चुके है; हम दार्शनिक विचारों, धर्मो सीमाओं और हर बात के लिए लड़ते हैं और वह भी अयाधुनिक और खतरनाक हथियारों से । हम पूर्ण विनाश के निरन्तर भय के नीचे जी रहे हैं । आदर्शो, विचारधाराओं, स्वार्थो के द्वंद से तनाव उत्पन्न हो गया है जो शांति का मुख्य शत्रु है ।

यदि ईश्वर की भी कोई महत्वाकाँक्षा नहीं होती तो वह आदम के रूप में अपने प्रतिबिंब की रचना नहीं करता और यदि शैतान ने ईश्वर की सत्ता को स्वीकार कर लिया होता तो संसार में शांति का साम्राज्य होता । शैतान की महत्वाकांक्षा ने ईश्वर के प्रशासन को चुनौती दी । हव्वा की वर्जितफल को चखने की इच्छा के कारण पृथ्वी पर असंख्य विपत्तियाँ आई ।

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धर्म के रक्षक, समानता और मैत्रीबंधुत्व के अंग्रेजों ने अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए अपने विरोधियों को इतनी निर्दयतापूर्वक मारा, जितनी निर्दयता से बच्चे भी तितलियों को नही मारते । हिटलर ने विश्व में मौत और विनाश का आतंक अपनी विश्व विजय की आकांक्षा के कारण ही मचाया था । अपने विचारों और इच्छाओं के आधार पर शासन चलाने की धुन के कारण ही इराक में इतने लोग मारे गए ।

आज राजनैतिक स्वार्थो की पूर्ति के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं । विश्व में आजकल जो हो रहा है, उसी के कारण विचारकों का मत है कि व्यक्ति में अन्य सभी दोष हों, लेकिन महत्वाकांक्षा नहीं होनी चाहिए ।

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हेलिना के सौन्दर्य के आकर्षण के कारण ही इलीयम की भव्य इमारतें नष्ट हो गई । एन्टोनी के क्लियोपेट्रा के प्रति तीव्र के कारण उसका भविष्य समाप्त हो गया तथा औरंगजेब के सम्पूर्ण साम्राज्य की महत्वाकाँक्षा ने उससे बड़े-बड़े कुकर्म करवाए । इस प्रकार विश्व की इन बड़ी-बड़ी घटनाओं के पीछे महत्वाकांक्षा ही बीज के रूप में विद्यमान थी ।

महत्वाकांक्षा के परिसर का विस्तार होता जा रहा है, इससे मुक्ति संभव नहीं, क्योंकि यह मानव की चारित्रिक विशेषता है । महत्वाकांक्षा के अपूर्ण रह जाने से कुंठा, असंतोष और अशांति का जन्म होता है । महत्वाकांक्षा के कारण विवाद बढ़ते है और तनाव एवं विनाश का वातावरण बन जाता है ।

अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए हम आदर्शो की बलि चढ़ा देते हैं । जिसके परिणाम स्वरूप मानसिक असंतोष होता है और सन्तुलन बिगड़ जाता है । इस प्रकार महत्वाकांक्षा शांति के लिए हानिकारक है ।

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