आज्ञापालन पर अनुच्छेद | Paragraph on Obedience in Hindi

प्रस्तावना:

आज्ञापालन का अर्थ खुशी से आदेशों को मानना है । यह कर्त्तव्यपालन का एक पहलू है । यह दासता की प्रवृत्ति से बिल्कुल भिन्न है, क्योंकि दासता की प्रकृति का अर्थ पराधोनता की मनस्थिति होता है ।

बडों का आज्ञा न मानना कर्तव्य-विमुखता है । प्रत्येक लड़के और लड़की का पुनीत कर्त्तव्य है कि वह अपनै मां-बाप, अध्यापकों तथा बड़े-बुजुर्गों की आज्ञा खुशी से माने । अगर वै ऐसा नहों करतै हैं, तो वे अकड़पन या हेकड़ी के दोषो समझे जाते है ।

अपने से बड़ों की सोच का सम्मान:

अपने से कड़े और विचारों में प्रनष्ट लोगों की सोच की नुक्ताचीनी करना बच्चों का काम नहीं है । बच्चों को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका दुनिया के बारे में शॉन और अनुभव बहुत सीमित होता है । उनसे बड़े, माता-पिता, अध्यापक तथा ज्ञान मैं श्रेष्ठ लोगों की आयु अधिक होती है । वे इस संसार में बच्चों की तुलना में अधिक समय से रहते आए हैं और उन्होंने दुनिया को अधिक देखा और समझा है, इसलिए वे अधिक गहराई से सोच-विचार कर सकते हैं ।

अत: बच्चों को उनकी आइघ की अवहेलना नहीं करनी चाहिये । कभी-कभी बड़े लोग भी गलती कर सकते है, लेकिन फिर भी उनकी आइघपालन करने में ही लाभ है, क्योकि उनकी अधिकाश बाते सही होती हैं और बच्चों में सही-गलत समझने की उतनी समझ नहीं होती । इस संबध में गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- ”मात-पिता गुरु: प्रमु की बानी । बिनै विचार करिये सुम जानी ।

समाज का आधार:

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आज्ञापालन समाज को एकजुट बनाए रखता है । इसलिये इसे सामाजिक जीवन का सुदृढ बन्धन या आधार कहा जा सकता है । इसके बिना समाज की गाड़ी एक दिन भी नहीं चल सकती । सरकार के आदेश कानून कहलाते हैं, जो स्वतंत्र देश में राज्य के बहुमत की इच्छा प्रदर्शित करते हैं । राज्य के सभी नागरिकों का कर्त्तव्य है कि देश के विधानमंडल में अपने प्रतिनिधियों द्वारा पास किए गए कानूनों का पालन करे । यदि नागरिक कानूनों की अवहेलना करने लगेगे तो देश मे अराजकता फैल जायेगी ।

परिवार की सुख-शांति का आधार:

बच्चों का अच्छा आचरण मां-बाप की आज्ञापालन पर निर्भर करता है । जिस परिवार में बच्चे अपने मां-बाप का कहना नहीं मानते, वही सुख-शांति नष्ट हो जाती है और हर समय कलह मची रहती है । अब आप सोचिए कि यदि बच्चे मां-बाप की आइह की अवहेलना करने लगें, तो क्या परिणाम निकलेगा ? इससे परिवार छिन्न-भिन्न तक हो सकते है । मनमानी करने से बच्चो का आचरण खराब हो जायेगा और वे बुरी सगत में पड़कर अपना भविष्य बिगाड बैठेंगे और समाज पर बोझ बन जायेगे ।

व्यवस्थित जीवन के लिए अनिवार्य:

कुछ लोगो का तर्क है कि बिना सोचे-समझे ऑख मूँद कर आइघपालन करने से दासता की प्रवृति जन्म लेती है । जिस्म व्यक्ति ने बचपन में आइघपालन की आदत डाल ली हो, वही बड़ा होकर अपने से छोटो को भली-भाँति आदेश देना, उनसे आदेशों का पालन कराना जान सकता है ।

जिसने अपने बडों का आदेश कभी न माना हो, वह अपने छोटों से कैसे आदेश मनवा पायेगा वह सैनिक जिसने मामूली सिपाही के रूप में अपने अधिकारियों के आदेशों सदैव पालन किया हो, आगे चलकर अच्छा कमाण्डर बनता है और उसके सिपाही सहर्ष उसके आदेशों का पालन करते है । जीवन के हर क्षेत्र में यही बात लागू होती है ।

उपसंहार:

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बच्चा ही बडा होकर देश का नागरिक बनेगा । कुछ वर्षों के बाद वह अपने बच्चों को अनुशासन और आइघपालन का सबक सिखायेगा, ताकि वे बडे होकर देश के योग्य नागरिक बने । जब हम बड़े हो जायेंगे और हमारा अनुभव परिपक्व हो जायेगा, तो हमें स्वय निर्णय करने की समझ आ जायेगी । ऐसी अवरथा में ऑख क्य कर किसी का कहना माननी समझदारी नहीं कही जा सकती । जब तक ऐसी समझ नहीं आती, हमें बडों की आइग मानना चाहिए । इसी मे परिवार, समाज और देश का कल्याण निहित है ।

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