बढ़ती हुई कीमतों की समस्या पर अनुच्छेद | Paragraph on Rising Price in Hindi

प्रस्तावना:

भारत के सामने आज अनेक समस्यायें मुह बाये खडी हैं, जैसे बेरोजगारी, घूसखोरी और भाई-भतीजावाद, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि आदि । इनसे भी अधिक भयावह समस्या जो हम सबके दैनिक जीवन को प्रभावित करती है, बढ़ती हुई कीमतों की समस्या है । इस कठिन समस्या के दो पहलू हैं-एक तो निरन्तर तेजी से बढ़ती हुई कीमतों पर अकुंश लगाना और हो सके तो कीमतों में कमी लाना ।

कीमतों के बढ़ने के कारण:

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भारत में कीमतों की अंधाधुँध वृद्धि के अनेक कारण है । अर्थशास्त्रियों और योजनाये बनाने वालों का मत है कि विकासशील अर्थव्यवस्था में कीमतों की वृद्धि होती ही है । देश के तीव्र विकास के लिए धन जुटाने के लिए घाटे की अर्थव्यवस्था अपनाई जाती है । इसका अर्थ है लोगों के हाथ में पैसा पहले आ जाता है और उत्पादन में वृद्धि होकर उसके बाद वस्तुयें बाजार में आ पाती हैं ।

धन के अधिक होने से वस्तुओं की माग बढ़ जाती है । दूसरे-आबादी में लगातार वृद्धि से भी वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती है और फलस्वरूप कीमतें है और बढ़ जाती है । इससे चोर बाजारी और जमाखोरी को भी बढ़ावा मिलता है और गैर-जिम्मेदार व्यापारी अपनी वस्तुओं की मनमानी कीमत वसूलते है ।

बढ़ती हुई कीमतों का एक अन्य प्रमुख कारण यह भी है कि रोजमर्रा के काम आने वाली वस्तुओं के उत्पादन में उतनी तेजी से वृद्धि नहीं हो रही है, जितनी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है । हमारी पचवर्षीय योजनाओं की गलत प्राथमिकताओं के कारण भी कीमतों में अंधाधुंध वृद्धि होती जा रही है ।

रक्षा कार्यों तथा भारी उद्योगो के विकास पर अपार धनराशि व्यय करने से सामान्य उपभोग की वस्तुओं के उत्पादन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता । बड़ी-बड़ी योजनाओं के लिए अपार धनराशि खर्च की जाती है, जो समय से पूरी नहीं हो पातीं ।

उन पर किए गए व्यय से उत्पादन में वृद्धि में अनेक वर्ष लग जाते हैं । पूँजी के लगाने और उत्पादन शुरू होने के बीच अधिक समय के कारण भी कीमतों में वृद्धि होती जा रही है । सरकारी व्यय में तेजी से वृद्धि भी कीमतों की वृद्धि के लिए जिम्मेदार है ।

हमारे धन का बहुत बड़ा भाग सेना, पुलिस अर्द्धसैनिक बलों और सरकारी अधिकारियों के वेतन पर खर्च होता है । यह समूचा व्यय अनुत्पादक होता है । यह अनुत्पादक गैर-योजनागत व्यय निरंतर तेजी से बढ़ता जा रहा है । जब तक सरकारी अनुत्पादक व्यय पर अकुश नहीं लगाया जाता तब तक कीमतों की वृद्धि पर अंकुश नहीं लग सकता ।

बढ़ती हुई कीमतों का प्रभाव:

कीमतों में तेजी से वृद्धि का सबसे बुरा प्रभाव गरीब जनता और नौकरी-पेशा लोगों पर पडता है । इससे अमीर और अधिक अमीर होते जाते है और निर्धन निरन्तर और भी गरीब होते जोते हैं ।

उत्पादन का सारा काम धनी लोगों के हाथ में है । कीमतों में वृद्धि से उनकी लागत में वृद्धि तो अवश्य होती है, पर वे उससे भी अधिक उत्पादित वस्तु की कीमत बढ़ाकर पहले से भी अधिक लाभ कमा लेते हैं ।

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बढ़ती हुई कीमतों से मुनाफाखोरी जमाखोरी और काला-बाजारी को बढ़ावा मिलता है । इससे कीमतें और भी बढ़ जाती हैं ।

कीमतों में वृद्धि पर अंकुश लगाने के उपाय:

पिछले कुछ वर्षों में । भारत में वस्तुओं की कीमतें इस तेजी से बढी हैं कि इसने एक विकराल समस्या का रूप ले लिया है । इस पर शीघ्र ही कारगर अंकुश लगाने के तात्कालिक और दीर्घकालीन उपाय काम में लाये जाने चाहिए ।

चोर-बाजारी, मुनाफाखोरी और काला-बाजारी पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए । गोदामों पर छापा मारकर वस्तुओं क्रों जक करके उचित मूल्यो पर जनता को उपलक कराना चाहिए । सरकारी व्यय पर अकुश लगाना अत्यावश्यक है । सभी प्रकार के अनुत्पादक और गैर-योजनागत व्यय को क्रमिक रूप से निरन्तर कम करना चाहिए । बचत को बढावा देने के लिए ब्याज की दरों में वृद्धि से भी कीमतों की वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सकता है ।

रोजमर्रा की आवश्यक वस्तु, जैसे खाद्यान्न, दालें, खाने के तेल, कपडा आदि वस्तुओं को उचित दर की दुकानों के माध्यम से निश्चित मूल्यों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए और उनकी किस्म पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए ।

उपसंहार:

घूसखोरी ने हमारी विकास योजनाओं का पूरा लाभ जनता तक नहीं पहुँचने दिया है । अत: हमें घूसखोरी के लिखाफ व्यापक् अभियान चलाना चाहिये । इसरके बिना कीमतों पर नियंत्रण रखने का कोई भी उपाय कारगर नहीं हो सकेगा ।

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