श्रीमती इन्दिरा गांधी पर अनुच्छेद | Paragraph on Mrs. Indira Gandhi in Hindi

प्रस्तावना:

श्रीमती इन्दिरा गाँधी विलक्षण प्रतिभा और गुणो वाली महिला थीं । वें भारतीय जनता की बड़ी प्रिय नेता थी । उन्हे देखते ही लोगों का प्यार उमड़ पड़ता था । उनके महान् व्यक्तित्व ने भारत ही नहीं, वरन समूचे विश्व को प्रभावित किया । 1977 में जनता ने उनका नेतृत्व अस्वीकार कर दिया, लेकिन थोड़े ही दिनों में लस्श्तेगों त्नेत अपनी गलती महसूस की और 1980 में देश की बागडोर पुन: उनके हाथों में सौंप दी ।

प्रधानमन्त्रित्व पाने पर दशा:

श्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकद में अचानक मृत्यु के बाद वे देश की प्रधान मंत्री बनी । उस समय देश एक कठिन दौर से गुजर रहा था । देश में घोर आर्थिक सकट छाया हुआ था । कानून और व्यवस्था की दशा भी बड़ी खराब थी । अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत अपना सम्मान खो बैठा था । अपनी विलक्षण प्रतिभा से श्रीमती गाँधी ने देश की विभिन्न समस्याओं का निराकरण बडे सुन्दर ढंग से किया ।

जन्मजात राजनीतिज्ञ:

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इंदिरा गाँधी ने सिद्ध कर दिया कि वे योग्य पिता की योग्य पुत्री है । वे राजनीतिक वातावरण में जन्मीं और उसी वातावरण में उनका लालन-पालन हुआ । राजनीतिक प्रतिभा बचपन से ही उनमें लक्षित होती थी । उनका जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जिसने देश की आजादी के लिए अपना सब-कुछ अर्पित कर दिया ।

उनकी मा बीमार रहा करती थी और पिता देश की आजादी के कामों में बड़े व्यस्त रहते थे । अत: उनका बचपन बड़ी कठिनाई से गुजरा । छोटी उस में ही वे राजनीति में कूद पडीं थी ।

उनका राजनीतिक जीवन:

शीघ्र ही वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सक्रिय सदस्य बन गईं । 1942 में उन्होंने भारत छोड़ो’ आन्दोलन में भाग लिया । ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार करके उन्हें जेल में डाल दिया । उन्होने अखिल भारतीय कांग्रेस में महिला शाखा का संगठन किया ।

1959 में वे राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुनी गईं । 1964 में लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमत्री बनने पर उन्हें सूवना और प्रसारण मत्रालय का कार्यभार दिया गया । सूखा और प्रसारण मन्त्री के रूप में उन्होने एक कुशल प्रशासक का परिचय दिया । 1966 मे वे देश की प्रधानमंत्री चुनी गईं । वे भारत की पहली महिला प्रधान मंत्री थी ।

प्रधान मन्त्री के रूप में उनके कार्य:

वे 15 वर्ष से अधिक तक देश की प्रधानमन्त्री रही । अपने शासन के दौरान उन्होने देश को पुन: गौरवपूर्ण स्थान दिलाया । 1971 में उनके ही नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में बुरी तरह पराजित किया । उन्होने बंगलादेश की स्थापना में मदद देकर पाकिस्तान की कमर हमेशा के लिए तोड़ दी । बैकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवीपरर्नो की समाप्ति जैसे उनके साहसिक निर्णयों का सभी ने स्वागत किया । इन उपायो ने उन्हें गरीबों का मसीहा बना दिया ।

जून, 1975 में न्यायमूर्ति सिन्हा ने उनके चुनाव को अवैध घोषित करके उन्हें बड़ा धक्का पहूँचाया । विरोधी दलों ने विद्रोह कर दिया । सभी प्रकार के विरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से उन्होंने आन्तरिक आपातकाल की घोषणा कर दी । इसके कारण 1977 में जब चुनाव हुए, तो वे हार गई । जनता पार्टी ने चुनाव जीत लिया और उन्हें शासन छोड़ना पड़ा ।

जनता शासन के दौरान लगभग ढाई वर्ष का समय उनके जीवन का सर्वाधिक संकटपूर्ण काल था । लेकिन उन्होंने अपना धैर्य नही छोड़ा । धीरे-धीरे वे अपना खोया हुआ सम्मान पुन पाने लगीं । जनवरी, 1980 में पुन मध्यावधि चुनाव हुए । इन चुनावो मे इन्दिरा गांधी भारी बहुमत से पुन: सत्ता में आ गईं । अब वे प्ले उत्साह से देश-निर्माण कार्यो में पुन: लग गई ।

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1980 के बाद उनके कार्य: प्रत्येक चुनौती का सामना करन्ने की उनमे विलक्षण शक्ति थी । 1984 के प्रारम्भ से ‘खालिस्तान’ की बढ़ती हुई माँग और समूचे पंजाब में आतंकवादियों की कार्यवाही से वे हक हो उठीं । आतंकवादियों ने अमृतसर के चर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया और उसे गतिविधियों का केन्द्र बना लिया ।

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उन्होंने स्वर्ण मन्दिर को अपना किला बना लिया । यह प्रधानमत्री इन्दिरा गाँधी को सीधी चुनौती थी । हारकर अन्त मे उन्होने बड़े साहस का परिचय दिया । उन्होंने देश की एकता कायम रखने के लिए सेना बुला ली और उसे स्वर्णमन्दिर में घुस कर आतकवादियों से मुक्त करा दिया ।

इस कइडे कदम के फौरन बाद उन्होंने सिक्यो के घावो पर धीरे-धीरे मरहम लगाने का काम प्रारम्भ किया । मन्दिर से उन्होंने सेना हटा ली और पुन: उसे मुख्य अर्थियों को सौंप दिया ।

उनकी हत्या:

31 अक्तूबर, 1984 को बुधवार के दिन प्रात उनके निवारन स्थान पर श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गई । उनके अपने सुरक्षा बल के दो अंगरक्षक सब-इंस्पेक्टर बेअंत सिह व सिपाही सतवन्त सिह ने उन के शरीर को गोलियों से मून डाला ।

उनके शरीर में 16 गोलियाँ लगीं । इन अंगरक्षकों का काम उनकी हर तरह से रक्षा करना था, लेकिन गद्दारी करके उन्होंने उनकी निर्मम हत्या क२ दी । उन्हे तत्काल अस्पताल पहुचाया गया और उन्हे जिन्दा रखने के सभी प्रयास किए गए, लेकिन कुछ घंटो मे ही उन्होने दम तोड़ दिया ।

उपसंहार:

श्रीमती इंदिरा गांधी ने सदैव चुनौतीपूर्ण जीवन किया । वे बड़ी जीवट महिला थीं । उन्हौने किसी भी कठिनाई के समय साहस नहीं छोड़ा । 1977 की हार ने भी उन्हें निराश नहीं किया ओर वे पुन: सत्ता में आ गईं । उन्होंने अपने बाबा मोतीलाल नेहरू के उन शब्दो को चरितार्थ कर दिखाया, जो उन्होंने इन्दिरा के जन्म पर अपनी पत्नी रने कह रहे थे । उन्होंने कहा था कि तुम सभी यह देखकर अचम्भा करोगे कि जवाहर की यह कन्या हजारों पुत्रों से बेहतर होगी ।

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