हमारे स्कूल का ड्रामा पर अनुच्छेद | Paragraph on Our School Drama in Hindi

प्रस्तावना:

रकूल के वार्षिक समारोह के अवसर पर विद्यार्थी परिषद् ने एक ड्रामा खेलने का फैसला किया । इसके लिए उपयुक्त नाटक लिखने का भार मुझे सौंपा गया । मैंने सोच-विचार करके तीन दइन मे नाटक लिख डाला और उसे नाम दिया  ”एक लड़के को संघर्ष” ।

अभिनेताओं का चयन:

नाटक लिखने के बाद अभिनेताओं के चयन की समस्या उठ खड़ी हुई । हमारे संगीत शिक्षक ने इस काम का दायित्व अपने हाथों में ले लिया । उन्होंने नाटक के नायक की भूमिका के लिए मेरा चुनाव किया । अन्य पात्रों की भूमिका के लिए उन्होंने दूसरे विद्यार्थियों का चुनाव कर लिया । श्री राज को ड्रामा के निर्देशन का भार सौंपा गया ।

नाटक का प्रचार:

ड्रामा खेले जाने की तिथि से तीन दिन पहले से प्रचार कार्य शुरू हो गया । हमने तीन के लिए एक रिक्शा किराये पर ले लिया । रिक्शे पर लाउड स्पीकर लगा दिया गया । तीन दिन तक समूचे शहर में विद्यार्थियो ने लाउड स्पीकर पर ड्रामा का खूब प्रचार किया ।

हमारे आर्ट शिक्षक ने विद्यार्थियों की मदद से बड़े-बड़े पोस्टर बनाये, जिन्हें सार्वजनिक स्थानों में लगा दिया गया । विद्यार्थियों के अभिभावकों को प्रिंसिपल ने निमन्त्रण-पत्र भेजे ।

ड्रामा का प्रारम्भ:

ठीक साढे छ बजे पहली घंटी बजी । हाल मेहमानों से खचाखच भरा हुआ था । रचयरनेवक उन्हें उचित स्थान पर बैठाने में व्यस्त थे । भीड़ को देखकर हम सभी का हृदय गर्व से भर उठा । जैसे ही दूसरी घटी बजी, प्रिंसिपल महोदय उठकर मंच पर आये । उन्होने एक सक्षिप्त भाषण दिया और दर्शकों से अनुरोध किया कि वे नाटक को समालोचना की दृष्टि से न देखें । उनकी प्रार्थना पर स्कूल के प्रबन्धक ने ड्रामा का उद्‌घाटन किया । इसके बाद पर्दा उठा और नाटक प्रारम्भ हो गया ।

प्रथम दृश्य:

नाटक के प्रथम दृश्य ममें छ: वर्ष का एक छोटा-सा बालक गांव की सड़कों में इधर-उधर घूमता हुआ दिखाई दिया । वह कुछ ग्रामवासियों के पीछे भागने लगा । वह रो रहा था और अपने माँ-बाप को जोर-जोर से पुकार रहा था ।

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ग्रामवासियों का पीछा करते-करते वह किसी शहर में पहुच गया । वह एक दुकान के सामने पहुचकर रुका और दहाड मार-मार कर रोने लगा । दुकानदार को उस बालक पर रहम आ गया । उसने उसे पुचकार कर अपने पास बुलाया और उसका ठौर-ठिकाना पूछने लगा । उसके भोले-भाले चेहरे को देखकर वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपनी सहायता के लिए उसे दुकान पर रख लिया ।

नाटक की कथा:

एक अन्य दृश्य में बालक को बाये हाथ में किताब पकड़े और दाहिने हाथ से अपना काम करते देखकर लोगों ने बड़ी जोर से तालियाँ बजाईं ग्राहकों की मदद से उरन बालक ने विभिन्न विषयो का ज्ञान अर्जित कर लिया । अध्ययन के प्रति उसकी लगन शीघ्र ही रंग लाई ।

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नाटक के मध्यावकाश के बाद बालक ने अपने मालिक से गाँव के स्कूत्न की परीक्षा देने इजाजत प्राप्त कर ली । उसने सफल विद्यार्थियो में सर्वोच्च स्थान प्रापा किया । जिले के शिक्षा निरीक्षक ने आगे की पढ़ाइ के लिए उसे छात्रवृाइते दिलवा दी ।

उस बालक ने स्कूल और कॉलेज की सभी परीक्षायें बड़े अच्छे अंकों से पास कर ली । एम.ए. की परीक्षा में उसने प्रथम स्थान प्राप्त किया । कॉलेज के प्रिंसिपल ने उसे अपने हो कॉलेज में लेकारार की नौकरी दे दी ।

उपसंहार:

लगभग दस बजे ड्रामा समाप्त हुआ । प्रिसिपल ने निर्णायकों से अपना निर्णय सुनाने का अनुरोध किया । प्रथम पुरस्कार शिक्षा निदेशक की भूमिका निभाने वाले को मिला तथा दूसरा पुरस्कार नायक को और तीसरा पुरस्कार दुकानदार को हाथ में पुरस्कार लिए हुए मैं खुशी-खुशी घर लौटा ।

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