कन्फ्यूशियस पर निबंध | Essay on Confucius in Hindi

1. प्रस्तावना:

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प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक ने कन्फ्यूशियस धर्म की स्थापना की थी । उनका चीनी नाम कुंग फूत्से था । उन्होंने जनता को विद्या तथा सद्‌गुण का पाठ पढ़ाया था ।

वे मनुष्य की सच्चरित होने पर सबसे अधिक बल दिया करते थे । सन्तान द्वारा अपने माता-पिता के प्रति आदर-भावना देने के प्रबल समर्थक थे । उन्होंने शान्ति, मानवता, ज्ञान, नीति, सामाजिक दर्शन आचार-संहिता पर उतधारित जीवन-दर्शन को महत्त्व प्रदान किया ।

चीन के बड़े-बड़े लोगों ने उनसे सच्चरित्रता की शिक्षा प्राप्त की । आदर्शवादी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने जीवन की सार्थकता सद्‌गुणों एवं परोपकार में बतायी । उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ”चिन चिउ किंग” उनके जीवनादर्शों की प्रेरक है ।

2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:

कन्फ्यूशियस का जन्म चीन के प्रसिद्ध चांग राजवंश में 550 ई० पू० शातुंग नामक स्थान में हुआ था । जब उनकी अवस्था 3 वर्ष की थी, तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी । अतः बाल्यावस्था से ही उन्होंने कठिन परिस्थितियों में रहकर अध्ययन पूर्ण किया ।

8 वर्ष की अवस्था में उन्हें मजदूरी करनी पड़ी । 14 वर्ष की अवरथा में पहुंचते-पहुंचते उन्हें जीवन के सत्य का ज्ञान होने लगा था । 18 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हो गया । 22 वर्ष की अवस्था में उच्च शिक्षा पूर्ण की । उनकी तीन सन्ताने थीं तथा जनकल्याण की दिशा में बढ़ते हुए एक पाठशाला की स्थापना की ।

उनकी इस पाठशाला में धनी विद्यार्थियों से कुछ शुल्क लिया जाता था । उनके इन पैसों से निर्धन छात्रों को विद्या दी जाती थी । इस पाठशाला में हर वर्ग के विद्यार्थी सच्ची मानवता और नागरिकता की शिक्षा प्राप्त किया करते थे ।

नैतिक आचरण पर बल देने वाली इस पाठशाला की स्थापना के उपरान्त वे लू राज्य की राजधानी चले गये, जहां पर उन्होंने अन्धविश्वासों और रूढ़ियों के विरुद्ध जन जागृति उत्पन्न की; क्योंकि लाओत्सो नामक एक दार्शनिक विशेष धर्म की स्थापना करके लोगों को दिग्भ्रमित कर रहा था ।

उनके उपदेशों तथा अनुशासित आचरणपूर्ण शिक्षा का ऐसा प्रभाव हुआ कि तात्कालिक चीनी सरकार ने उन्हें चुंगट नगर का गर्वनर बना दिया । इस पद पर रहते हुए भी उन्होंने अपने आदर्शों और सिद्धान्तों को जनता तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी संगति पाकर शासक बेईमानी और दुराचरण से दूर भागने लगे । जनता में भी शासन के प्रति विश्वास व राजभक्ति का भाव प्रबल हो उठा ।

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अच्छे शासन की नींव स्थापित करने के बाद कन्फ्यूशियस ने कृषि, व्यापार तथा उद्योग-धन्धों में सुधार करके देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाया । युवा और वृद्धों को शक्ति, सामर्थ्य, कार्य और उपयोगिता के आधार पर भोजन की व्यवस्था प्रदान की ।

वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करके जनता को मुनाफाखोरी के अभिशाप से मुक्ति दिलवायी । करों से प्राप्त धनराशि को सड़क, पुल, पाठशाला, पुस्तकालय आदि के निर्माण में लगाकर जनहित की दिशा में कार्य किये । धनवानों के आवश्यकता से अधिक धन-संचय की प्रवृति पर नियन्त्रण स्थापित किया ।

उन्होंने हमेशा मनुष्य की सत्यनिष्ठा, धर्मनिष्ठता पर बल दिया । कन्फ्यूशियस ने जीवन में ईर्ष्या, कठोरता, दुष्टता से बचने हेतु हमेशा सचेत किया । शासक तथा जनता को सही राह दिखाकर वे ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते हुए देश-भर में भ्रमण करते रहे । उन्होंने अपने जीवन को सदा ही सांसारिक प्रलोभनों से दूर रखा । 71 वर्ष की आयु में पंचतत्व में लीन हो गये ।

चीन के एक अत्याचारी शासक ने कन्फ्यूशियस की मृत्यु के बाद उनकी लिखी हुई पुस्तक को 200 वर्षों बाद जला दिया । उनके अनुयायियों को फांसी पर लटकवा दिया । समय और परिस्थिति के बदलने के बाद भी उनके सिद्धान्त और आदर्श आज भी चीन में जीवित हैं ।

3. उपसंहार:

कन्फ्यूशियस का विचार था कि राज्य और समाज पर हमेशा नैतिक पक्ष हावी होना चाहिए । जीवन में सदाचरण पर उन्होंने हमेशा बल दिया । जीवन की सार्थकता स्वार्थ में न होकर परमार्थ में निहित है । अपने माता-पिता तथा गुरुजनों के प्रति सम्मान का भाव प्रत्येक व्यक्ति में होना ही चाहिए, यह उनका उपदेशात्मक आदर्श था ।

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