कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी पर निबंध | Essay on Kanaiyalal Maneklal Munshi in Hindi

1. प्रस्तावना:

भारत एक कृषि प्रधान देश है । कृषि प्रधान देश की वास्तविक सम्पन्नता यहां की कृषि एवं वानिकी पर निर्भर है । भारत जैसे विशालतम जनसंख्या वाले देश के लिए खाद्य संकट एक गम्भीर समस्या के रूप में भविष्य के लिए एक गम्भीर चुनौती बन सकता है ।

इसी चुनौती को ध्यान में रखते हुए हमारे यहां के कई पर्यावरणप्रेमियों तथा पर्यावरणविदों ने इस हेतु हमें सावधान करते हुए इससे सम्बन्धित कई महत्त्वपूर्ण प्रेरणास्पद काम किये हैं । उनमें से एक महान् व्यक्तित्व थे-कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, जो न केवल एक साहित्यकार थे, अपितु राष्ट्र के सजग प्रहरी भी थे ।

2. उनका जन्म परिचय एवं व्यक्तित्व:

के०एम० मुंशी का जन्म 30 दिसम्बर 1887 को गुजरात भड़ौच में हुआ था । उनके पिता माणिकलाल मुंशी डिप्टी कलेक्टर थे । मुंशीजी ने स्नातक की उपाधि बड़ौदा कॉलेज से प्राप्त की । बम्बई से वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण कर वहीं हाईकोर्ट में वकील हो गये थे ।

1938 में वे भारतीय विद्या भवन की स्थापना करने के बाद वहीं कुलपति भी हो गये, जहां साहित्य, संस्कृति, कला, विज्ञान, धर्म, दर्शन के उत्थान में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान उन्होंने जेल यात्रा भी की । एक बार कांग्रेस की सदस्यता त्यागकर 1946 में पुन: उसमें शामिल हो गये । वे संविधान निर्माण प्रारूप समिति के सदस्य भी थे ।

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1950 से 52 तक केबिनेट में कृषि तथा खाद्य मन्त्री रहे । केन्द्रीय कृषि मन्त्री के रूप में उनकी सर्वप्रमुख उपलब्धि कृषि और वानिकी को बढ़ावा देने के लिए वन महोत्सव सप्ताह का आयोजन करना था, जिसके अन्तर्गत वृक्षारोपण महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम था ।

1956 में उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने कांग्रेस से विरोध होने पर अलग स्वराज्य पार्टी का गठन किया और इस तरह शिक्षा तथा राष्ट्रनिर्माण के क्षेत्र में अपना जीवन समर्पित किया । उनकी मृत्यु 9 फरवरी 1971 को हो गयी ।

वे एक लेखक, वकील, नेता, समाजसुधारक शिक्षाविद्, पर्यावरणविद् थे । उनके व्यक्तित्व के बारे में देश के अनेक साहित्यकारों एवं विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से उनकी प्रशंसा में महत्त्वपूर्ण बातें कही हैं । राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसादजी ने तो उन्हें एक ऐसा व्यक्तित्व माना है, जो राष्ट्रीय महत्त्व के कार्यों के लिए अपना जीवन समर्पित कर सकता है । प्रगतिवादी कवि दिनकरजी ने तो उन्हें भारत रत्न, साहित्य रत्न, विद्या रत्न तक की संज्ञा दी है ।

3. उनकी साहित्यिक देन:

के०एम० मुंशीजी ने गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, तमिल, मराठी, अंग्रेजी आदि भाषाओं में 127 पुस्तकें लिखीं । वे गुजरात के श्रेष्ठ साहित्यकार रहे हैं । उनकी पहली कहानी ”मारी कमला” 1912 में स्त्री बोध नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई । उन्होंने ”गुजरात” का भी सम्पादन किया । उपन्यास, नाटक, कहानी, निबन्ध, आत्मकथा, जीवनी आदि पर उन्होंने अपनी लेखनी चलायी ।

4. उपसंहार:

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मुंशीजी गुजरात के ही नहीं, सारे देश के अमूल्य रत्न थे । शिक्षा जगत्, साहित्य जगत्, राजनीति, धर्म, दर्शन, इतिहास के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए समूचा भारतवर्ष उनका ऋणी रहेगा । वन महोत्सव का प्रारम्भ कर वृक्षारोपण के माध्यम से प्रकृति के प्रति उनका यह प्रेम समस्त मानव समुदाय के लिए उपयोगी रहेगा ।

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