1. प्रस्तावना:

आधुनिक इटली के जन्मदाता और इटली का एकीकरण करने वाले मेजिनी उन महान् मानवों में से एक थे, जिन्होंने मानव कल्याण की भावना से ही कार्य किया । साधनों की कमी के बाद भी अपनी अधिकांश शक्ति इटली के उत्थान में लगायी ।

वह सच्चा धार्मिक था, अत: मानव सेवा और देश सेवा को ही सच्ची पूजा समझता था । उसका असाधारण चरित्र मानवीय गुणों से पूर्ण था । वह प्रजातन्त्र तथा राष्ट्रीयता का जबरदस्त समर्थक था । विश्व के भूगोल में इटली की सुदृढ़ स्थिति और उसके सारे वैभव व सम्पन्नता का वास्तविक हकदार मेजिनी ही है ।

2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:

मेजिनी का जन्म इटली के जेनोआ में सन् 1805 को एक सुशिक्षित परिवार में हुआ था । उसके पिता एक डॉक्टर थे और मां धार्मिक संस्कारों वाली महिला थी । बाल्यावस्था से ही मेजिनी के मन में दीन-दुखियों के प्रति दयाभाव था । 6 वर्ष की अवस्था में तो उसने एक-वृद्ध फकीर को गिरिजाघर की सीढियों पर असहाय अवस्था में देखा, तो अपनी मां से उसकी कुछ आर्थिक सहायता हेतु जिद करने लगा । अन्तत: उसकी माता को बालक मेजिनी की जिद के आगे झुकना ही पड़ा ।

स्कूली जीवन में वह गरीब विद्यार्थियों को पुस्तकें, कपड़े आदि देकर उनकी सहायता किया करता था । कॉलेज में पढ़ते समय मेजिनी ने शिष्टाचार का हमेशा ध्यान रखा । मेजिनी ने किसी प्रकार का व्यसन भी नहीं पाल रखा था । अपने डॉक्टर पिता को चीर-फाड़ करते देखकर वह बीमार हो जाता था । उसने डॉक्टरी पढ़ने की बजाय वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की । विद्यार्थी जीवन से ही अपने देश के निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासक का व्यवहार देखकर वह क्षुब्द हो उठता था ।

इटली की जनता के सम्मान के साथ-साथ वह इटली को एक एकीकृत राज्य के रूप में देखना चाहता था; क्योंकि उस समय इटली पराधीन होने के साथ टुकड़ों-टुकड़ों में बंटा हुआ था । इसीलिए उसने ”कार्बोनेरी” नामक क्रान्तिकारी संगठन से अपने आपको जोड़ लिया । अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण उसे गिरफतार कर लिया गया । उस समय इटली आन्तरिक फूट का शिकार था ।

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देश मे एकता व संगठन का अभाव था । 6 माह का कारावास भुगतने के बाद उसे देश निकाला दे दिया गया और वह वहा से फ्रांस चला आया, जहां उसने ”यंग इटली” नामक समाचार-पत्रिका निकाली । इस पत्र के माध्यम से वह इटली को स्वतन्त्र कराने के साथ-साथ देश के नागरिकों में राष्ट्रीयता का संचार करना चाहता था ।

देशभक्ति की भावना को जागृत करने वाली इस पत्रिका को पढ़कर हजारों नवयुवकों ने देश सेवा का संकल्प लिया । यहां मी पुलिस मैजिनी के पीछे पड़ी थी । वह फ्रांस को छोड़कर स्विटजरलैण्ड आ पहुचा और वहा के सेनाध्यक्ष जनरल रामाविनोकी रो सैनिक सहायता मांगी ।

सहायता का वचन देने वाले सेनाध्यक्ष ने विश्वासघात करते हुए मैजिनी की पूरी योजना का भंडाफोड़ ही कर दिया, जिससे मेजिनी के सारे क्रान्तिकारी गिरफ्तार कर लिये गये, जिसमें मेजिनी का प्रिय साथी जैकब रफैनी भी था । पुलिस ने मेजिनी का पता जानने के लिए उस पर सैकड़ों अत्याचार किये । जैकब ने आत्महत्या कर ली, किन्तु अपना मुंह नहीं खोला ।

स्विटजरलैण्ड में मेजिनी पर तरह-तरह के आरोप लगे और उसे स्विटजरलैण्ड से निर्वासित करने का षड्‌यन्त्र खुफिया पुलिस करने लगी थी । उसके बाद मेजिनी 1836 में स्विटजरलैण्ड से इंग्लैण्ड चला आया था । अपने देश से निर्वासित होते हुए भी वह इटली से बाहर रहकर इटली की स्वतन्त्रता के लिए प्रयत्नशील रहा । 1848 में इटली के अधिकांश प्रान्तों में जनता ने विद्रोह कर दिया ।

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इटली की स्वाधीनता में सबसे बड़ी बाधा आस्ट्रिया की साम्राज्यवादी सरकार थी । इटली के कुछ प्रान्तों पर उनका शासन था । वहां के शासकों की सहायता से आस्ट्रिया सरकार इटली के जन-आन्दोलन को कुचलने में लगी रहती थी । 1848 के विद्रोह में इटली की जनता ने एकत्रित होकर आस्ट्रिया की सेना पर हमला कर दिया । कब्जे वाले प्रान्तों को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया और प्रमुख शहर मिलान में जनता के प्रतिनिधियों की अस्थायी सरकार कायम कर दी गयी थी ।

यह सब यंग इटली पत्रिका एवं संस्था का प्रभाव था । मेजिनी अपने निर्वासन दण्ड की परवाह किये बिना अपने देश इटली पहुंचा । वहां मिलान में जनता ने उसका भव्य स्वागत किया । इधर इटली के पीटमांट का शासक चार्ल्स अलबर्ट देश की स्वाधीनता में जनता का साथ तो दे रहा था, किन्तु वह नहीं चाहता था कि मेजिनी के स्वयंसेवकों का अधिकार इटली पर हो । अत: उसने देश की रक्षा का भार लेकर स्वयंसेवक सेना को भंग कर दिया ।

मेजिनी ने स्वयंसेवक सेना के भंग हो जाने पर भी विरोध इसलिए नहीं दर्शाया; क्योंकि वह देश की आपसी फूट को उजागर नहीं होने देना चाहता था । स्वयंसेवकों के अभाव में चार्ल्स अलबर्ट की वेतनभोगी सेना आस्ट्रिया की सेना का मुकाबला नहीं कर सकी और आस्ट्रिया का मिलान पर अधिकार हो गया । इस पराजय और विश्वासघात से मैजिनी बड़ा दुखी हुआ ।

वह गैरीवाल्डी की स्वयंसेवक सेना का सैनिक बन गया । गैरीवाल्डी ”बरगेमो” नामक स्थान से आस्ट्रिया से देश को स्वतन्त्र कराने की तैयारी में था । गैरीवाल्डी जब अपनी 1 हजार सेना लेकर मिलान पहुंचा, वहां उसके छोटे से दल ने आस्ट्रिया की विशाल सेना से मुकाबला आसान न समझकर वापस आना ही बेहतर समझा । इसी बीच इटली के रोम में अत्याचारी पोप का आतंक अपनी चरम सीमा पर था । जनता उसके अत्याचारों से तंग आ चुकी थी ।

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जनता ने जन-आन्दोलन प्रारम्भ किया । उधर फ्रांस ने रोम की जनता से मदद का वायदा किया, किन्तु जनता के साथ वादाखिलाफी करते हुए रोम पर ही आक्रमण कर दिया । रोम के नागरिकों ने मेजिनी और गैरीवाल्डी के नेतृत्व में संगठित होकर फ्रांस की सेना को हराकर बाहर खदेड़ दिया । फ्रांस ने अपनी 35 हजार नयी सेना के साथ पुन: युद्ध आरम्भ किया ।

रोम की स्वयंसेवक सेना ने वीरतापूर्वक युद्ध किया, तथापि उन्हें पराजय का मुहं देखना पड़ा । इस असफलता ने मेजिनी को तोड़कर रख दिया था । फिर भी वह बिना पासपोर्ट लिये जहाज में बैठकर मार्सेलीज पहुंच गया । वहां फ्रांसीसी पुलिस को चकमा देखकर स्विटजरलैण्ड जा पहुंचा ।

इस बीच मेजिनी को पीटमांट के बादशाह ने प्रलोभन दिया । मेजिनी ने सभी की चालों और स्वार्थपरता को समझते हुए जनता के बल को ही अपना बल माना । स्विटजरलैण्ड में वह अपने स्वाधीनता संग्राम के युद्ध में जुटा रहा । इसी बीच मेजिनी को मैग्डेलीन और गीदता नामक महिलाओं से विवाह प्रस्ताव मिला, पर मेजिनी ने तो देशभक्ति की राह पकड़ी थी ।

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उसके पास इन सब बातों के लिए समय कहां था? इस तरह मेजिनी 40 वर्षों तक का निर्वासित जीवन जीता रहा और इटलीवासियों की स्वतन्त्रता, सम्मान और शिक्षा के लिए निरन्तर जूझता रहा । इंग्लैण्ड जाते समय मार्ग में अत्यधिक ठण्ड लग जाने की वजह से 10 मार्च 1872 को पीसा में मित्र के घर उसकी मृत्यु हो गयी । देशवासी उसके शव को बड़े जुनून के साथ जनैवा ले आये । उसकी शवयात्रा में सम्मान प्रकट करने के लिए 80 हजार की भीड़ एकत्र थी ।

3. उपसंहार:

मेजिनी का सम्पूर्ण जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि लाख कठिनाइयां आने पर अपने दृढ संकल्प से नहीं डिगना चाहिए । देशभक्ति की राह में चलने वालों का जीवन हमेशा संकटों और बाधाओं के कांटों से भरा रहता है । जिनके मन में मानव सेवा और देश सेवा का सच्चा भाव होता है, वह अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए तथा देश के लिए जीते हैं ।

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