नेपोलियन बोनापार्ट पर निबन्ध | Essay on Napoleon Bonaparte in Hindi

1. प्रस्तावना:

नेपोलियन बोनापार्ट विश्व का एक ऐसा सेनानायक, राष्ट्रनायक, निरंकुश, यथार्थवादी, निडर, साहसी शासक था, जिसके जीवन में असम्भव शब्द के लिए कोई स्थान नहीं था । वह एक युगनिर्माता था । महान् शक्तिशाली, आत्मविश्वासी शासक के रूप में वह फ्रांस और यूरोप का ही नहीं, अपितु विश्व के इतिहास को भी अपने व्यक्तित्व के गुणों से प्रभावित करता रहा ।

उसने अपने युद्ध-कौशल से फ्रांस को गौरवपूर्ण विजय दिलायी और विदेशी शत्रुओं से मुक्ति दिलायी । उसने देशवासियों को अपने उद्देश्य से अवगत कराते हुए 15 दिसम्बर 1799 को यह कहा था- ”बोनापार्ट क्रान्ति का रोमांस बन्द करने के लिए, घावों को भरने के लिए, विजय को प्राप्त करने के लिए आया है ।”

2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:

नेपोलियन का जन्म 15 अगस्त 1769 को कोर्शिका द्वीप की राजधानी आजाशियो में स्थित कार्लो बोनापार्ट के घर पर हुआ था । उसके जन्म के समय कोर्शिकावासिओं को फ्रांस से बेहद घृणा थी; क्योंकि फ्रांस ने उस पर अनुचित अधिकार कर लिया था ।

नेपोलियन स्वयं कहता था कि- ”जब मैं पैदा हुआ था, तो मेरा देश मौत की घड़ियां गिन रहा था ।” नेपोलियन का पिता कार्लो बोनापार्ट आलसी और निरूत्साही व्यक्ति था, जबकि उसकी माता अत्यन्त साहसी, विदुषी महिला थी । बचपन से ही नेपोलियन की माता लिटेजिया ने उसकी पढ़ाई-लिखाई में बहुत अधिक रुचि ली । वे उसे बचपन से ही वीरों की कहानियां सुनाया करती थी ।

इसके विपरीत नेपोलियन अत्यन्त ही उद्दण्ड, पढ़ाई से दूर भागने वाला, क्रान्तिकारी स्वभाव वाला बालक था । उसके इस व्यवहार के कारण उसके पिता ने उसे एक सैनिक स्कूल में भरती करवा दिया, जहां उसने 1784 में तोपखाने से सम्बन्धित विषयों का अध्ययन करने के लिए पेरिस के एक कॉलेज में प्रवेश लिया ।

उसकी प्रतिभा को देखकर फ्रांस के राजकीय तोपखाने में उसे सबलेफ्टिनेन्ट की नौकरी मिल गयी थी । उसे ढाई सिलिंग का प्रतिदिन का वेतन मिला करता था, जिससे वह अपने 7 भाई-बहिनों का पालन-पोषण करता था । उसके व्यक्तिगत गुण और साहस को देखकर फ्रांस के तत्कालीन प्रभावशाली नेताओं से उसका परिचय प्रगाढ़ होता चला गया । अब उसे आन्तरिक सेना का सेनापति भी नियुक्त किया गया । इसी बीच 9 मार्च 1796 को जोसेफाइन से उसका विवाह हो गया ।

अपने अदम्य साहस और वीरता के कारण वह 27 वर्ष की अवस्था में फ्रेंच आर्मी ऑफ इटली का सेनापति बनकर सार्डिनिया पर विजय प्राप्त करने हेतु गया । अपने युद्ध-कौशल से उसने सार्डिनिया को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया और सार्डिनिया का बहुत-सा जीता हुआ क्षेत्र फ्रांस को सौंप दिया ।

नेपोलियन का अगला विजय अभियान आस्ट्रिया पर आक्रमण करके वहां के सम्राट केंपोफोरमियो को सन्धि की अपमानजनक शर्तों को स्वीकार करने हेतु बाध्य करना था । इसके बाद नेपोलियन ने टोलेंन्टिन्ड की सन्धि पर पोप के हस्ताक्षर करवाकर फ्रांस की अधीनता स्वीकारने पर मजबूर कर दिया ।

ADVERTISEMENTS:

लुई चौदहवें जैसे सम्राट से भी कहीं अधिक नेपोलियन ने फ्रांस को उपनिवेशवादी मजबूती प्रदान की । अब फ्रांस ने नेपोलियन को इंग्लैण्ड पर आधिपत्य करने हेतु भेजा, किन्तु इंगलिश चैनल की बाधा ने नेपोलियन को पराजय का मुंह दिखाया । नेपोलियन ने मिश्र को विजित करके पूर्वी एशिया में स्थित ब्रिटिश उपनिवेशों को भी अपने अधीनस्थ करने का निश्चय कर 1798 में 35 हजार प्रशिक्षित सैनिकों के साथ कूच कर दिया ।

ADVERTISEMENTS:

उसने रास्ते में माल्टा, पिरामिड, सिंकदरिया, नील नदी की सम्पूर्ण घाटी पर कब्जा कर लिया । भारत पर आक्रमण का विचार लिये वह इस रास्ते की ओर बढ़ रहा था कि ब्रिटिश नौसेना की शक्ति के आगे नेपोलियन परास्त हो गया । फ्रांस की भूमि पर लौटने पर उसने अपनी राजनीतिक कुशलता से नवीन कन्सुलेट सरकार की स्थापना कर स्वयं को वहां का शासक घोषित कर दिया ।

फ्रांसीसी जनता ने 15 दिसम्बर 1799 को उसे स्वीकार कर लिया । 25 दिसम्बर 1799 को उसने देश का नवीन संविधान लागू कर दिया । 1804 को सीनेट ने अपने प्रस्ताव में नेपोलियन को फ्रांस के सम्राट के रूप में स्वीकृति दे दी ।

1804 में पेरिस में अपना राजतिलक करते हुए उसने कहा- ”फ्रांस के राजमुकुट को मैंने धरती पर पड़े हुए पाया था, जिसे मैंने अपनी तलवार की नोक से उठा लिया है ।” शासक बनते ही नेपोलियन ने देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारने के लिए सर्वप्रथम करों को शीघ्रता से एकत्र करने, प्रत्याभूति को जमा करने का कार्य किया । फ्रांस में एक राष्ट्रीय बैंक की स्थापना की । भ्रष्ट अधिकारियों के लिए कठोर दण्ड व्यवस्था लागू करवायी ।

उसने फ्रांस की दूषित न्याय प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए कानूनी संहिताओं का निर्माण करवाया, जिसमें पहली सिविल संहिता, दूसरी कोड ऑफ सिविल प्रोसेडियर, तीसरी अपराध संहिता-कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसेडिय, चौथी दण्ड संहिता-पिनल कोड और पांचवीं-कर्मिशियल कोड थी ।

धार्मिक स्थिति में सुधार हेतु सर्वप्रथम नेपोलियन ने पादरियों के भ्रष्ट व अनैतिक चरित्र को सुधारने, चर्च के विशेषाधिकार को समाप्त करने, अन्धविश्वास की आड़ में जनता को मूर्ख बनाकर लूटने वाले पादरियों की तथा चर्च की सम्पत्ति को जप्त करने के लिए नवीन संविधान लागू किया । पादरियों को सन्तुष्ट करने लिए नेपोलियन ने कूटनीति का प्रयोग करते हुए रोम के पादरियों से समझौता कर लिया । फ्रांस के रोमन कैथोलिकों को भी अपने पक्ष में कर लिया ।

नेपोलियन ने शिक्षा के क्षेत्र में भी अनेक सुधार किये, जिसमें उसने प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य बनाने के लिए प्राथमिक पाठशालाएं खोलीं । फ्रेंच, लेटिन भाषा के साथ-साथ विज्ञान के अध्ययन-अध्यापन के लिए स्थान-स्थान पर शिक्षा केन्द्र खोले ।

सभी प्रमुख नगरों में औद्योगिक, प्रशासनिक, सैनिक विद्यालयों का निर्माण करवाया । उच्च शिक्षा हेतु महाविद्यालयों की भी स्थापना की । सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था में समानता का भाव रखते हुए योग्य लोगों की नियुक्ति पर जोर दिया । पेरिस में एक विश्वविद्यालय भी खोला ।

ADVERTISEMENTS:

ADVERTISEMENTS:

1814 तक नेपोलियन ने सम्राट के पद पर रहते हुए महत्त्वपूर्ण कार्य किये, किन्तु लिपिजिंग के युद्ध के पश्चात् उसे फ्रांस के सम्राट का पद त्यागकर देश निकाला मिलने पर एल्बा द्वीप में रहना पड़ा । वहां से भागकर आने पर देशवासियों ने उसे पुन: सम्राट के रूप में स्वीकार किया ।

1815 में मित्र-राष्ट्रों की मिली-जुली सेना से वाटरलू के युद्ध में उसे घोर पराजय का सामना करते हुए इंग्लैण्ड के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा, जिसके फलस्वरूप उसे सेंटहेलेना द्वीप में भेज दिया गया । 6 वर्षों का यातनामय जीवन बिताते हुए नेपोलियन ने मृत्यु से पहले अपनी वसीयत में यह लिखा था कि- ”मुझे सोन नदी के तट पर फ्रांस की जनता के बीच दफनाया जाये, जिससे कि मैं बहुत अधिक प्रेम करता हूं ।”

3. उपसंहार:

नेपोलियन निश्चय ही विश्व का श्रेष्ठतम शासक था । अल्पकाल में ही उसने अपनी असाधारण प्रतिभा, कार्यक्षमता, महत्त्वाकांक्षा, साहस से फ्रांस का सम्राट बनने तक का सफर तय किया । वह एक महान् वक्ता, पत्रकारों का राजा, संवाददाताओं का पिता, महान् लेखक भी था । अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु उसने लाखों सैनिकों के प्राणों की बलि देने में भी संकोच नहीं किया । फ्रांस की सेना का सर्वोत्तम सेनापति होने के साथ-साथ वह एक कूटनीतिज्ञ एवं महान् शासक था ।

ADVERTISEMENTS:

ग्रांट एवं टेम्परले के अनुसार- ”नेपोलियन निर्विवाद रूप से मस्तिष्क एवं चरित्र की असाधारण शक्ति से सम्पन्न व्यक्ति था । सभी परिस्थितियों के अन्तर्गत उसने अपने देश को सुरक्षित रखा । उसमें कार्य करने की महान् शक्ति, तीव्र अन्तर्दृष्टि, साहस और उत्तरदायित्व की भावना के साथ-साथ महान् सैनिक के ऐसे गुण थे, जिनका विश्लेषण करना सम्भव नहीं है ।”

Home››Personalities››