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डॉ० मनमोहन सिंह पर निबंध |Dr. Manmohan Singh in Hindi!

सरल, सौम्य, मृदुभाषी डॉ॰ मनमोहन सिंह भारत के एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक महान अर्थशास्त्री होने का गौरव प्राप्त है । यह देश का सौभाग्य है कि हमारे राष्ट्रपति एक प्रख्यात वैज्ञानिक हैं और हमारे प्रधानमंत्री एक प्रखर अर्थशास्त्री ।

विज्ञान और अर्थशास्त्र का यह सम्मिलन भारत को शीर्ष पर ला खड़ा करेगा, इसमें कोई संदेह नहीं । 71-वर्षीय डॉ॰ मनमोहन सिंह दश के अल्पसंख्यक सिख समुदाय के प्रथम, प्रधानमंत्री हैं । इन्होंने 22 मई 2004 की अपने मंत्रिमंडल के साथ प्रधानमंत्री पद के लिए शपथ ग्रहण किया । इन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता कहा जाता है ।

26 सितंबर 1932 ई॰ में पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में गाहा नामक स्थान में हमारे प्रधानमंत्री ने पिता गुरुमुख सिंह और माता अमृत कौर के घर में जन्म लिया था। इनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा सरकारी प्राथमिक विद्‌यालय गाहा में संपन्न हुई। बाद में पंजाब विश्वविद्‌यालय, चंडीगढ़ से इन्होंने अर्थशास्त्र (प्रतिष्ठा) के साथ स्नातक की डिग्री ली तथा विश्वविद्‌यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं से 1954 में प्रथम स्थान के साथ एम.ए. की उपाधि ग्रहण की।

इन्हें 1955 और 1957 में सेंट जॉन कॉलेज, कैम्बिज की ओर से गइट्‌स सम्मान प्रदान किया गया। आक्सफोर्ड विश्वविद्‌यालय से डॉ॰ मनमोहन सिंह ने डी॰ फिल की डिग्री हासिल की और तत्‌पश्चात् ‘इंडियाज एक्सपोर्ट कांपेटेटिवनेस’ विषय पर इन्होंने शोधकार्य संपन्न किया।

भारत लौटकर मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्‌यालय के अर्थशास्त्र विभाग में कई पद सँभाले। पहले वरिष्ठ प्राध्यापक, फिर रीडर और फिर प्रोफेसर। यहाँ इन्होंने अपनी कार्यकुशलता एवं विद्‌वता की अमिट छाप छोड़ी । बाद में इन्होंने दिल्ली विश्वविद्‌यालय में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर का पद ग्रहण किया । कुछ दिनों तक ये जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्‌यालय से भी जुड़े रहे ।

1971 से डॉ॰ सिंह ने भारत सरकार की सेवा में कई पद सँभाले । 1971-72 में ये भारत सरकार के विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार रहे फिर 1972-76 की अवधि में वित्त विभाग में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में कार्य किया । 1976-80 के दौरान डॉ॰ सिंह ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डायरेक्टर, भारतीय औद्‌योगिक विकास बैंक के डायरेक्टर आदि कई पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया । 1980-82 के बीच इन्होंने योजना आयोग के सदस्य व सचिव के रूप में दायित्व संभाला ।

सितंबर 1982 से लेकर जनवरी 85 की अवधि में डॉ॰ सिंह ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में सराहनीय कार्य किए । 1983-84 में इन्हें प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य का दायित्व सौंपा गया । 1985 में डॉ॰ मनमोहन सिंह भारतीय आर्थिक परिषद् के अध्यक्ष बनाए गए । जनवरी 85 से लेकर जुलाई 87 तक ये योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर रहे ।

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इस तरह भारत सरकार के कई पदों पर रहकर डॉ॰ मनमोहन सिंह ने अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की अमिट छाप छोड़ी । डॉ॰ सिंह के विचार सदैव खुले एवं स्पष्ट रहे हैं । वे जब कभी भी जिस जिम्मेदारी से जुड़े रहे, उसमें उन्होंने पूरी दिलचस्पी ली ।

जब उन्होंने अध्यापन का कार्य किया तब हमेशा ही गुरु-शिष्य परंपरा का ध्यान रखा । नौकरशाही में प्रवेश करने पर सरकार को उचित सलाह देकर उन्होंने देश की अर्थनीति के संचालन में सहयोग प्रदान किया । यदि इनके राजनीतिक जीवन की बात करें तो कांग्रेग पार्टी में प्रवेश लेने के बाद इन्हें 21 मार्च 1998 को राज्य सभा में विपक्ष का नेता बनाया गया ।

15 मार्च 1991 से लेकर 15 मई 1996 तक वित्त मंत्री के रूप में इन्होंने देश को विश्व आर्थिक मंच पर प्रतिष्ठित कर दिखाया । सुधारों की इस प्रक्रिया को बाद में आई सरकार के वित्त मंत्रियों ने भी एक मॉडल के तरीके से अपनाया । जून 2001 में डॉ॰ सिंह राज्य सभा के लिए पुन: निर्वाचित हुए । अंत में सोनिया गाँधी के इंकार पर कांग्रेस संसदीय दल ने डॉ॰ मनमोहन सिंह को अपना नेता चुना और इस तरह एक योग्य व्यक्ति भारत के चौहदवें प्रधानमंत्री बने ।

आशा है कि अपने प्रधानमंत्रित्व काल में डॉ॰ सिंह देश को एक नई दिशा एवं स्कूर्ति देने में सक्षम सिद्‌ध होंगे । आज भी देश की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है जिस पर संतोष व्यक्त किया जा सके । हमारे प्रधानमंत्री ने ग्रामीण विकास पर सर्वाधिक बल दिए जाने की बात काही है जो निश्चित ही स्वागत योग्य है ।

हालांकि कांग्रेस के नेतृत्व में एक गठबंधन सरकार बनी है, और ऐसी सरकार की कई सीमाएँ होती हैं मगर दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के बल पर देश को विकास के पथ पर लाकर खड़ा किया जा सकता है । भारतीय लोकतंत्र को डॉ॰ मनमोहन सिंह से बड़ी आशाएँ हैं ।

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