रविन्द्रनाथ टैगोर पर अनुच्छेद | Paragraph on Rabindranath Tagore in Hindi

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जन्म:

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म बगाल के एक समृद्ध परिवार में हुआ । बचपन में शिक्षा के लिए उन्हें किसी स्कूल में नहीं भेजा गया ।

शिक्षा:

कोलकाता में घर पर ही उनकी शिक्षा का प्रबन्ध किया गया । एक विद्वान् शिक्षक उन्हे पढ़ाने आते थे । वे पढ़ाई में अधिक रुचि नहीं रखते थे । हार कर उन्हें स्कूल में भी भरती कराया गया, लेकिन वहाँ भी वे मन लगाकर नहीं  पढ़े ।

वे किताबें पढ़ना बिल्कुल पसन्द नहीं करते थे । लेकिन ड्रामा, संगीत, कविता तथा कलाओ में उनकी गहरी रुचि थी । सोलह वर्ष की आयु से ही वे कविताये और कहानियां लिखने लगे थे । उनकी रचनायें बडी रुचि से पढी जाती थीं ।

आगे की पढ़ाई के लिए उनके पिता ने उन्हें इंग्लैण्ड भेज दिया । लदन में वे यूनिवर्सिटी कॉलेज में भरती हो गए । वही वे कुछ समय तक पढ़े, लेकिन बिना किसी परीक्षा को पास किए ही भारत लौट आए । उन्होंने कोई डिग्री परीक्षा कभी पास नहीं की ।

उनके कार्य:

अब तक वे प्रसिद्ध कवि हो गए थे । उन्होंने अनेक ड्रामा, उपन्यास, कहानियाँ और कवितायें लिखीं । धीरे-धीरे बंगाल के महानतम कवियों में उनकी गिनती होने लगी । उनका महानतम और सबसे प्रसिद्ध काव्य ‘गीतांजलि’ है । उन्होंने मूल रूप में गीतांजलि की रचना बंगाली भाषा में की और बाद में रचय ही उसका अंग्रेजी मे अनुवाद किया । उनकी कविताओं का देश और विदेश की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ । इनकी बदौलत वे समूचे ससार में प्रसिद्ध हो गए ।

उनकी ख्याति:

रवीन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य के नोबल पुरस्वगर से सम्मानित किया गया । वे पहले भारतीय थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार मिला । इस पुरस्कार ने उनकी ख्याति में चार-चाँद लगा दिए । कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ लेटर्स’ की उपाधि प्रदान करके सम्मानित किया । तत्कालीन भारत सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि से विभूषित किया ।

उनका भ्रमण:

अब उन्होंने यूरोप, अमरीका, चीन और जापान का भ्रमण किया । वे जहाँ भी जाते, उनका भव्य स्वागत होता था । लोग उनके ज्ञान की भूरि-भूरि प्रशंसा करते थे । उनकी असाधारण साहित्यिक प्रतिभा तथा प्रभावशाली भाषणों का बड़ा सम्मान किया जाता था ।

शांतिनिकेतन की स्थापना:

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1901 ई॰ में बोलपुर नामक एक छोटे-से गाँव में उन्होंने एक स्कूल की स्थापना की । उन्होंने इसे ‘शांतिनिकेतन’ नाम दिया । यह स्कूल विश्वभर में प्रसिद्ध हो गया । इसकी कोई विशाल इमारत नहीं है । यह स्कूल खुले मैदान में लगता है । विद्यार्थी प्रकृति की गोद में विद्या प्राप्त करते हैं ।

संसार के सभी भागों से लोग यहां शिक्षा प्राप्त करने आते है । उन्हे इस स्कूल में पढ़ना, लिखना, कला, संगीत, नाच और गाना सिखाया जाता है । हमारी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने भी कुछ समय यही शिक्षा पाई थी ।

बिना छत का यह स्कूल संसार में अनूठा है । जब तक यह संस्था जीवित है, तब तक इस महान् कवि, लेखक और दार्शनिक का नाम अमर रहेगा ।

उपसंहार:

रवीन्द्रनाथ टैगोर बड़े प्रतिभावान थे । वे एक सच्चे महात्मा थे और वैसे ही वे दिखाई भी देते थे । वे लम्बे-लम्बे बाल रखते थे और उनकी लम्बी दाढी थी । उनके बहुत-से शिष्य थे, जो उन्हें बडी श्रद्धा से गुरुदेव कहते थे ।

वे महान् कवि और समाज-सुधारक थे । उन्होंने भारत का गौरव बढाया । भारत को ऐसे विद्वान् पर सदा गर्व रहेगा । हम इतने महान् विद्वान्, कवि, लेखक और दार्शनिक को कभी न भुला पायेंगे ।

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