सन यात-सेन पर निबंध | Essay on Sun Yat-sen in Hindi

1. प्रस्तावना:

डॉ० सनयातसेन को आधुनिक चीन का निर्माता कहा जाता है । सनयातसेन ने चीन के वंशवाद को उखाड़ फेंककर जनवादी शासन की स्थापना की ।

सनयातसेन ने चीन की निरंकुश सरकार के विरुद्ध विद्रोह का प्रचार किया था । वे ऐसे क्रान्तिकारी थे, जो जापान, हनोई, यूरोप, इंग्लैण्ड आदि में भी घूम-घूमकर चीन के निरंकुश शासन के विरोध में बगावत का झण्डा बुलन्द किये हुए थे । उन्हें चीन में वही स्थान प्राप्त है, जो भारत में महात्मा गांधी को ।

2. जीवन वृत्त एवं उनका देश के लिए योगदान:

सनयातसेन का जन्म चीन के ”क्वानटंग” प्रान्त में 12 नवम्बर 1865 में हुआ था । उनके बचपन का नाम सुनवेन था । उनके पिता सनटोव्याचान एक गरीब कृषक थे । सनयातसेन के बड़े भाई का नाम सनमी था । गांव की पाठशाला में प्रारम्भिक शिक्षा उन्होंने प्राप्त की थी । उनका बड़ा भाई सनमी अमेरिका द्वारा अधिग्रहित हवाई द्वीप में धन कमाने चला गया था ।

उसने सनयातसेन को भी उस देश की यात्रा करने के लिए प्रेरित किया । हवाई द्वीप पहुंचकर 13 वर्ष की अवस्था में मिशन स्कूलों में रहकर पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण कर ईसाई धर्म अपना लिया । सन् 1879 में चीनी मजूदरों के दल के साथ हवाई द्वीप की राजधानी होनूलूलू पहुंचने पर उन्हें अनुभव हुआ कि अंग्रेजी शिक्षा अनिवार्य है ।

वहां प्रार्थना सभा में सुबह-शाम उपस्थित होते । 3 वर्षों बाद 16 वर्ष की अवस्था में वे अपने देश लौटे, तो वहां समाज में प्रचलित दासतापूर्ण मनोवृति के विरुद्ध जो विचार व्यक्त किये, उसे सुनकर उनके गांववालों ने उन्हें अधार्मिक होने का फतवा दे दिया ।

गांव की रूढ़िवादी दासतापूर्ण मानसिकता में उन्हें रहना पसन्द नहीं था, इसलिए पिता से आज्ञा लेकर वे हांगकांग चले गये और वहां डॉ० हेजर की सहायता से डॉक्टरी की पढ़ाई करने में उन्हें सफलता प्राप्त हुई । वे डॉक्टर हेजर के अस्पताल का कुछ काम कर देते थे और उसके बदले में मिले हुए पारिश्रमिक से फीस देते थे ।

6 वर्षों के उपरान्त उन्हें डॉक्टरी की उपाधि प्राप्त हुई । यहां उनको 2 क्रान्तिकारी साथी-लुहाचंग और चेंगशोह मिले । वे सभी मिलकर चीन के निरंकुश सम्राट का तख्ता पलटना चाहते थे । तीनों ने उत्तरी चीन और पीकिंग की यात्रा करके यह पता लगाया कि राजा तथा उसके अधिकारियों के अन्याय तथा भ्रष्टाचार से प्रजा बहुत कष्ट में तथा आतंकित है ।

उनके पास क्रान्तिकारी विचार तो थे, लेकिन धन नहीं था । अत: वे हवाई द्वीप चले गये, जहां उन्होंने उन्नतिशील चीनी समाज की स्थापना करके चीन निवासियों को संगठित किया । इसी बीच 1885 में चीन और जापान में युद्ध छिड़ गया, जिसमें चीन की हार होने लगी । चीन निवासियों के निकम्मेपन को देखकर वे बहुत दुखी हुए ।

हवाई द्वीप से वे अपने मित्रों सहित युद्ध की समाप्ति पर चीन आ गये । यहां चीन ने जापान से हार मानकर फारमोसा द्वीप पर अपना अधिकार छोड़ दिया और कोरिया की स्वतन्त्रता स्वीकार कर ली । इस अपमानपूर्ण सन्धि के बाद उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ केन्टन में सरकार पर हमला बोल दिया ।

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उनके 3 साथियों को पकड़कर फासी दे दी गयी । पुलिस ने 600 पिस्तौलों को बरामद कर अपने कब्जे में ले लिया । सनयातसेन वेश बदलकर भाग निकले । हांगकांग में अपने मित्र डॉक्टर कैंटली के यहां उन्होंने शरण ली । अंग्रेज सरकार ने भी उनकी गिरफ्तारी के लिए पुरस्कार की घोषणा कर दी थी । काबी में आकर उन्होंने स्वयं को जापानी के रूप में परिवर्तित कर लिया, ताकि उन्हें पहचाना न जा सके । वहां से वे हवाई टापू गये और 6 महीने तक वहीं रहे ।

इसके बाद अमेरिका प्रवासी चीनियों को संगठित करने जब वहां पहुंचे, तो इंग्लैण्ड सरकार ने उन्हें 1896 में धोखे से गिरफ्तार कर लिया । इंग्लैण्ड से किसी तरह भागकर एशिया, यूरोप में भटकते हुए क्रान्ति की मशाल जलाये रखने में सफल रहे । विदेश में चीनी विद्यार्थी और व्यापारी भरे पड़े थे । अत: चीनियों में एक नया जोश आया और वे मंचू राजवंश के नाश के लिए प्रयत्नशील हो गये ।

1905 में उन्होंने टोकियो में अपने गुप्त दल का विस्तृत रूप से संगठन किया, जिसका नाम ”तुंग मेंग हुई” रखा । इस दल की शाखाएं दक्षिण चीन के भागों में ऐसी फैलीं कि वहां क्रान्तिकारियों का बड़ा संगठन तैयार हो गया । इस नये दल का नारा ”राष्ट्रीयता, प्रजातन्त्र और समाजवाद” था । इसके 6 उद्देश्य थे-मंचू राजवंश का विनाश और गणतन्त्र की स्थापना, विश्व शान्ति का उन्नयन, भूमि का राष्ट्रीयकरण, जापान के साथ मैत्री तथा अन्य देशों से सहयोग प्राप्ति था ।

इस क्रान्तिकारी मार्ग पर चलते हुए ”तुंग मेंग हुई” के नेतृत्व में 10 बड़ी क्रान्तियां हुईं । इस क्रान्ति के दौरान सनयातसेन को काफी कठिनाइयों से जूझना पड़ा । स्थान-स्थान पर गुप्त वेश में पुलिस उनकी टोह में थीं । उन्हें कई विश्वासघाती शत्रुओं का सामना भी करना पड़ा ।

29 मार्च 1911 का दिन चीनी क्रान्ति के इतिहास का ऐसा दिन था, जिस दिन क्रान्तिकारी सेनाओं ने मंचू सम्राट के विरुद्ध ऐसा मोर्चा खोला कि सरकारी इमारतें ध्वस्त हो गयीं और सम्राट का शासन नेस्तनाबूत हो गया । उस दिन राष्ट्रीय प्रजातन्त्र की स्थापना हुई । कर्नल हुवान हुंग की अध्यक्षता में नानकिंग पर अधिकार कर लिया गया । सनयातसेन दिसम्बर 1911 में जब स्वदेश लौटे, तो उन्हें प्रस्तावित गणतन्त्र का राष्ट्रपति निर्वाचित कर दिया गया ।

सनयातसेन तो निःस्वार्थ क्रान्तिकारी थे । अत: उन्होंने फरवरी 1912 को शासन की बागडोर यूआन शिहकाई को सौंप दी और स्वयं रेलवे निर्माण विभाग के अध्यक्ष का पद ही स्वीकारा । यूआन शिहकाई ने अपनी स्वेच्छाचारिता से कार्य करना शुरू किया । इधर रेल-विस्तार की योजना हेतु सनयातसेन जापान गये हुए थे । वहां उन्हें खबर मिली कि यांगटिसी और बूचंग शहर में दंगा हो गया है ।

यूआन ने 3 गवर्नरों को पदच्युत कर दिया है । सनयातसेन ने असन्तोष को रोकने के लिए यूआन को तार कर कहा- ”आप अपना पद त्याग कर दें ।” यूआन ने सनयातसेन को ही रेल विभाग के पद से हटा दिया और एकतन्त्र शासन चलाने लगा । इस नयी परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए 1912 में ”तुंग मेंग हुई” और नये दल ”कुओमिन्तांग” ने राष्ट्रवादी दल की स्थापना की और क्रान्तिकारी दल को संगठित करने के साथ चुनाव लड़ने की योजना बनायी ।

1913 में इस दल को सर्वाधिक बहुमत मिला । यूआन इस दल को नष्ट करना चाहता था । इस दल के प्रमुख नेता ”सुंग चाओ चेन” को यूआन ने मरवा डाला और दल को अवैध घोषित कर दिया । सनयातसेन फिर जापान चले गये और वहां उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा । उन्हीं की प्रेरणा से सन् 1915 में यूआन के विरुद्ध विद्रोह हुआ और यूआन के पार्लियामेंट से निष्कासन के बाद सनयात स्वदेश लौट आये ।

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1917 में उन्होंने समानान्तर गणतन्त्र कायम कर जापान, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों से मित्रता कायम करने के साथ धन की आकांक्षा की, किन्तु वे असफल रहे । उसी समय रूस में बोल्शेविक क्रान्ति हुई । सेन ने रूस में शरण ली । 1923 में रूस से सहयोग के कारण कुओमिन्तांग दल की कायापलट हो गयी । सेन ने 1923 में ही शंघाई से समझौता किया, जिसने रूस के विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध चीनी राष्ट्रीयता को मदद देने का वायदा किया ।

इस प्रकार विदेशों से सहायता प्राप्त कर 1925 में कुओमिन्तांग की सेना 1 लाख से भी अधिक हो गयी और उसने देश की एकता कायम की । 1928 में चीन में सैनिक एकता स्थापित हुई । डॉ० सेन की वसीयत के अनुसार नये शासन को 5 विभागों में बांटा गया ।

राष्ट्रपति व्यांग ने इस पद का भार संभाला । 1931 को नये सामयिक संविधान का निर्माण हुआ । राजनीतिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक दृष्टि से भी चीन का पुनर्जागरण हुआ । सनयातसेन की 12 मार्च 1925 को मृत्यु के बाद भी चीन में उनके सिद्धान्तों पर आधारित दल ने अपना कार्य जारी रखा ।

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3. उपसंहार:

आधुनिक चीन के राष्ट्रीय निर्माण एवं एकीकरण में डॉ० सनयातसेन का नाम सर्वोपरि रहेगा । सेन ने जिस तरह देशभक्ति और निस्वार्थ भावना से कार्य किया, उसके लिए वे चीन के राष्ट्रपिता माने जाते हैं । रूसी क्रान्ति में लेनिन को जो स्थान प्राप्त है, वही स्थान डॉ० सनयातसेन को प्राप्त है ।

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