भगवान महावीर पर निबन्ध | Essay on Lord Mahavir in Hindi!

1. भूमीका:

संसार के सुख-वैभव छोड़कर अपनी इच्छा से कष्ट सहन करना और अपना सम्पूर्ण जीवन संसार के कल्याण के लिए अर्पित करने का साहस करना भले ही विचित्र लगे, किन्तु सच्चे अर्थों में महापुरुष वहीं होते हैं, जो ऐसा करते हैं । जैन धर्म के चौंबीसवें तीर्थंकर (अवतार) महावीर स्वामी का नाम ऐसे ही त्यागी एवं निष्काम महापुरुषों में लिया जाता है ।

2. जन्म और शिक्षा:

महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व बिहार के वैशाली राज्य के पास स्थित कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ के घर हुआ था । उनके बचपन का नाम वर्द्धमान था । उनकी माता थीं रानी त्रिशला । उनकी शिक्षा-दीक्षा राजमहल में परम्परागत (Traditionally) ढंग से हुई ।

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इन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपनी तेज बुद्धि के कारण अनेक विषयों और कलाओं को अच्छी तरह सीख लिया । किन्तु घर-ससार के कार्यों में उनका मन नहीं लगा और तीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने घर त्याग दिया ।

3. कार्यकलाप:

घर छोड़ने के बाद उन्होंने केश-मुण्डन और बारह वर्षों तक कठोर तपस्या की और कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त किया । कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त करने के बाद उन्होंने उसका प्रचार करना प्रारंभ किया । लोग उनकी बातों से प्रभावित होने लगे और उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी ।

राजा और साधारण लोग सभी उनके शिष्य बनने लगे । लोग इन्हें जिन, महावीर, अर्हंत आदि नामों से जानने लगे । महावीर स्वामी की शिक्षा में से पाँच बातें प्रमुख थीं (क) सदा सत्य बोलो, (ख) हिंसा मत करो, (ग) चोरी न करो, (घ) उतना ही धन रखो जितने की जरूरत हो और (ड.) सदा अच्छा आचरण करो ।

वे कहते थे कि इन पाँच बातों को मानने से ही मनुष्य को सच्चा सुख और मोक्ष मिल सकता है । उनका मानना था कि वेदों को पढ़ने और देवी-देवताओं की पूजा करने की अपेक्षा अपने मन पर काबू करना अधिक उचित है । महावीर स्वामी का निर्वाण 72 वर्ष की अवस्था में पावापुरी नामक स्थान पर हुआ ।

4. उपसंहार:

महावीर स्वामी का निर्वाण स्थल पावापुरी आज जैन धर्म का तीर्थस्थान हैं तथा महावीर जयंती पवित्र पर्व है जो हमें महावीर स्वामी के उपदेशों की याद दिलाता है । उनके बताये मार्ग पर चल कर हम अपना जीवन सुखी और पवित्र बना सकते हैं । भगवान महावीर का दिव्य संदेश – “जीओ और जीने दो” आज भी हम सभी को जीने के सच्चे तरीके की याद दिलाता है ।

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