मदर टरीसा  | Mother Teresa in Hindi!

मदर टरीसा सचमुच में हजारों-हजारों लोगों के लिए माँ थी । उन्होंने हम सबकों माँ का अथाह प्यार, स्नेह, दुलार, सेवा, त्याग आदि दिया । वे करुणा, त्याग, तपस्या, परोपकार और प्रेम की साक्षात देवी थीं ।

उन्हींने निराश्रित बेघर, गरीब, रुग्ण, अनाथ और अपाहिज लोगों को अपना कर जो सेवा इतने समय तक की, वह असाधारण है । अपनी करुणा में वे एक ओर भगवान बुद्ध की याद दिलाती हैं, तो दूसरी ओर गांधीजी और ईसा मसीह की । भारत को माँ टरीसा पर बड़ा गर्व है । ऐसा व्यक्ति कई शताब्दियों में एक बार इस धरती पर जन्म लेता है ।

इस करुणा और ममता की साक्षात् प्रतिमा का 5 सितम्बर 1997 को कलकत्ता में देहावसान हो गया। उनकी इस दु:ख मृत्यु पर सारा भारत शोक में डूब गया । कलकत्ता में तो मातम का गहरा अंधेरा छा गया । 87 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु से जन-जन को बड़ा आघात पहुंचा । निर्धन, बेसहारा, रुग्ण और अपाहिज लोग तो जैसे पूरी तरह अनाथ हो गये ।

माँ धर्म से रोमन कैथोलिक थीं परन्तु उनकी सेवा किसी तरह के भेदभाव को नहीं मानती थी । वह सभी धर्मो, संप्रदायों, प्रांतों और लोगों की संकट के समय अथक सेवा करती थीं । उनके लिए सेवा ही एक धर्म था और सारी मानवता ही एक जाति । वह सब में ईश्वर का निवास देखती थीं । उन्होंने अनाथों, अपंगों और बेसहारा स्त्री-पुरुषों को अपना ही भाई या बहिन समझा ।

निर्धन बच्चों की वह सच्ची माँ थीं । उनके इन महान गुणों ने उनको देवी, मसीहा, और देवदूत बना दिया । परन्तु उनमें अभिमान लेशमात्र भी नहीं था । विनम्रता सेवा और त्याग की बनी हुई जैसे वे एक प्रतिमा थीं । माँ टरेसा का जन्म 27 अगस्त, 1910 को युगोस्लाविया में हुआ था ।

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उनका बचपन का नाम एगनीस था । 18 वर्ष की आयु में ही वे एक नन (संन्यासिनी) बन गईं । उन्होंने कलकत्ता में अध्यापिका के रूप में अपना कार्य प्रारंभ किया । उन्होंने कलकत्ता के अतिरिक्त कई अन्य स्थानों पर अनाथों, कोढ़ियों, बीमारों, बच्चों, स्त्रियों और बेसहारा लोगों के लिए अस्पताल, सेवा गृह, घर और आश्रम स्थापित किए ।

उनके द्वारा स्थापित मिशिनरीज ऑफ चैरेटी के केवल भारत में ही 160 केन्द्र हैं । वे बेघर और बेसहारा लोगों के लिए जीवित रहीं और उन्हीं के लिए अपने प्राण त्याग दिये ।मदर टरीसा की अथक सेवा और त्याग को देखकर संसार की अनेक संस्थाओं ने और सरकारों ने उन्हें कई सम्मान और उपाधियां प्रदान की ।

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सन् 1979 में उन्हें नॉबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो सन् 1980 में भारत के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से । विश्व विद्यालयों ने भी मदर को कई उपाधियां और डिग्रियां देकर सम्मान किया । उन्हें जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार भी दिया गया था ।

वे सन 1948 भारत की नागरिक बन गई थीं । उनका सारा जीवन सादगी, सरलता और सेवा का अनुपम उदाहरण था । उनका अपना कोई व्यक्तिगत घर-बार, संपत्ति आदि कुछ भी नहीं था । वे सच्चे अर्थो में त्यागी और तपस्विनी थीं । उनके पदचिन्हों पर चलनेवाली मिशन की सिस्टर भी ऐसा ही सादा और तपस्वी जीवन व्यतीत करती हैं ।

एक सिस्टर के पास तीन सूती साड़ियों, एक चटाई, एक मग और एक प्लेट के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता । मदर का स्तर जौवन उदारता सेवा और करुणा का अनुपम उदाहरण है । उनके इस त्यागमय जीवन से सारी मानवता ही धन्य हो गई ।