कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर पर निबन्ध | Essay on Rabindra Nath Tagore in Hindi!

1. भूमिका:

अपनी काव्यकला से विश्व भर में ख्याति अर्जित कर नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर संसार में भारतीय कविता और कवियों का मान बढ़ाने वाले अमर कवि का नाम है रवीन्द्रनाथ ठाकुर, जिन्हें आदर से हम कविगुरु के नाम से सम्बोधित करते हैं ।

2. जन्म और शिक्षा:

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म सन् 1861 में 7 मई के दिन बंगाल के घोड़ासाँको नामक स्थान पर हुआ था । इनके पिता थे महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर । रवीन्द्रनाथ अपने पिता की 15 संतानों में चौदहवीं संतान थे । अपनी माता के निधन (Demise) के बाद उनमें खेलकूद के प्रति रुचि (Interest) नहीं रह गई ।

अत: वे एकान्त में बैठे कुछ सोचते रहते थे । वे किसी से कुछ कहते नहीं थे, बल्कि अपनी बात कविता के रूप में लिखने का प्रयास करते थे । 13 वर्ष की उम्र में उनकी पहली कविता ‘अभिलाषा’, ‘तत्त्वभूमि’ नामक पत्रिका में छपी । बालक रवीन्द्र की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई । 1868 से लेकर 1874 तक अर्थात् केवल छ: वर्ष इन्होंने स्कूल की शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद इनकी स्कूली-शिक्षा बंद हो गई ।

रवीन्द्रनाथ ने सन् 1877 तक अनेक रचनाएँ कर डाली थीं, जिनका प्रकाशन अनेक पत्रिकाओं में हुआ । वे अभिनय (Acting) और चित्रकला के भी बड़े शौकीन थे । दर्शनशास्त्र (Philosophy) से भी इनका बड़ा लगाव था । वे अपने भाई सत्येन्द्रनाथ के साथ 17 वर्ष की उम्र में पहली बार इंग्लैंड गए । वहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज-लंदन में कुछ समय तक हेनरी माले नामक अध्यापक से अंग्रेजी की शिक्षा ग्रहण की ।

3. कार्यकलाप:

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रवीन्द्र बाबू का विवाह 1883 में मृणालिनी देवी से हुआ । सन् 1892 में उन्होंने अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा का विरोध किया और बंग्ला के विकास पर जोर दिया । सन् 1904 में हिन्दू-मुस्लिम एकता, घरेलू उद्योगों के विकास आदि विषयों पर जोरदार लेख लिखे ।

इसके साथ ही उनका कविता-लेखन भी चलता रहा और 1905 तक वे एक बड़े कवि के रूप में विख्यात हो चुके थे । वे सन् 1906 में गठित (Constituted) राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (National council of education) से भी जुड़े जिसमें शिक्षा के सुधार के विषय में अच्छी सलाह सरकार तक पहुँचायी ।

1907 में आप बंगीय साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष (president) चुने गये । इससे पहले आपका ‘गोरा’ नामक उपन्यास प्रकाशित हो चुका था । 1910 में अमेरिका से लौटने पर आपने प्रतिमा देवी नामक एक विधवा से विवाह करके ‘विधवा विवाह’ की प्रेरणा देने का प्रयास किया ।

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इससे पहले उनकी प्रथम पत्नी का देहान्त हो चुका था । इस बीच वे ‘गीतांजलि’ नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे और इसका अंग्रेजी अनुवाद भी कर डाला था । इसी रचना पर सन् 1913 में आपको सुप्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार मिला । आपने शांति निकेतन में विश्व-भारती नामक शिक्षा संस्था की स्थापना भी की । अंतत: 7 अगस्त 1941 को आपकी जीवनलीला समाप्त हो गई ।

4. उपसंहार:

आज जब भी राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हे’ का मधुर स्वर कानों में पड़ता है, तो कविगुरु की याद ताजा हो उठती है । भारत काइतिहास आपको युगों तक याद कराता रहेगा ।