List of most popular Hindi Quotes!


Hindi Quote # 1. तिरिया से राज छिपे न छिपाए:

एक पति-पली का आपस में बहुत प्रेम था । दोनों एक-दूसरे पर पूरा विश्वास करते थे । यहां तक कि पति ने अपनी पत्नी के प्रेम के आगे पूरे परिवार को दरकिनार कर दिया था । पत्नी के लिए वह घर के सब लोगों से लड़ लेता था ।

वह जानता था कि उसके माता-पिता कितने सीधे और सच्चे हैं, लेकिन जब कोई मौका आता, तो पत्नी का ही पक्ष लेता था । भाई से अच्छे संबंध होने के बाद भी वह कोई विशेष बात उसे नहीं बताता था । अपनी पत्नी को सब-कुछ बता देता था ।

एक दिन वह घूमता हुआ गांव के एक अनुभवी व्यक्ति काका के पास गया । काका बहुत अनुभवी व्यक्ति थे और उसके पिता के पक्के दोस्त थे । दोस्त तो अब भी थे, लेकिन पहले जैसा घूमना-फिरना, उठना-बैठना नहीं हो पाता था ।

काका को अपनी राजी-खुशी बताते समय अपनी पत्नी के बारे में अधिक बोलता था । उसकी प्रशंसा करता रहा था । उसने यह भी बताया कि जो भी राज की बात होती है, पत्नी से छिपाता नहीं है । विश्वास के मामले में उसने पूरे परिवार को शक की नजर से देखना शुरू कर दिया था ।

जब वह सब-कुछ बताकर थक गया, तब काका ने कहा, ”जो तुम सोच रहे हो, वह सही नहीं है । अपनी पत्नी के बारे में तुमको जरूरत से ज्यादा विश्वास है । किसी समय परीक्षा लेकर देखो, फिर पता चलेगा कि कौन कितनी राज की बात छिपा सकता है ?  मैं यह नहीं कह रहा कि तुम्हारी पत्नी का प्रेम सच्चा नहीं है ।

कभी-कभी सच्चा प्रेम करने वाला नासमझी में अपने प्रिय का हित करने के चक्कर में अहित कर बैठता है ।” सारी बात सुनकर वह अधीर हो उठा । उसने जल्दी-से-जल्दी पत्नी की परीक्षा लेनी चाही । उसने काका से कुछ करने के लिए पूछा, तो काका ने उससे एक नाटक रचने को कहा और उसे विस्तार से समझा दिया ।

एक दिन रात के समय वह एक कटा तरबूज अंगोछे में लपेटे हुए लाया । उसकी पत्नी ने देखा अंगोछे से टपक-टपककर लाल बूंदें गिर रही हैं । वह अपनी पत्नी से बोला, ”देख किसी से कहना मत । मैंने एक आदमी का सिर काट लिया है । इसे छिपाना है, नहीं तो मुझे सिपाही पकडू लेंगे और मुझे फांसी की सजा मिलेगी ।”

ADVERTISEMENTS:

उसने अपनी पत्नी से एक फावड़ा मंगवाया और घर के बाए ओर थोड़ा चलकर एक पेड़ के नीचे उस अंगोछे में लिपटे तरबूज को रख दिया । वहीं उसने एक गड्‌ढा खोदा और उसमें उस तरबूज को अंगोछे सहित गाड़ दिया । ऊपर से मिट्‌टी डालकर वह जगह समतल बना दी ।

उसकी पत्नी इस घटना से बेचैन हो उठी । अपने पति से कुछ नहीं कहती थी, बल्कि अंदर-ही-अंदर घुटन महसूस कर रही थी । उसे एक दुख-सा महसूस होता था । अब वह मन में रखे इस बोझ से हलका होना चाहती थी । एक दिन उसने अपनी पक्की दोस्त पड़ोसन को यह बात सुना दी । और कहा, ”देख बहन, किसी से कहना मत, नहीं तो मेरे पति को फांसी हो जाएगी ।”

उस महिला को भी वह बात नहीं पची । उसने अपनी पक्की दोस्त पड़ोसन महिला को यह घटना सुनाई और कहा, ”देख बहन, किसी से कहना मत । नहीं तो उसके पति को फांसी हो जाएगी ।”  इसी प्रकार एक ने दूसरे से, दूसरे ने तीसरे से, तीसरे ने चौथे से कहा और फिर यह खबर पूरे गांव में फैल गई ।

बहुत-सी औरतों ने यह घटना अपने आदमियों से भी कही । एक दिन ऐसा आया, जब यह खबर इलाके के थाने में पहुंच गई । फिर क्या था ? सुबह तड़के दरोगा और सिपाही उसके घर जा पहुंचे । जब गांव वालों को पता चला तो गांव के तमाम लोग आए । काका भी उसके घर पहुंच गए थे । दरोगा ने सबसे पहले उसकी औरत को धमकाकर पूछा, “बता तेरे आदमी ने सिर कहा गाड़ा है ? नहीं तो तुझे फांसी हो जाएगी ।” उसने डर के मारे वह स्थान इशारा करके दिखा दिया ।

जब उस स्थान को खोदी गया तो अंगोछे में लिपटा हुआ एक कटा तरबूज निकला । जब उसके आदमी को डांटा गया, तो उसने पूरी घटना कह सुनाई । काका ने भी कहा कि इसने अपनी पत्नी की परीक्षा लेने के लिए यह किया था । सब लोग चले गए । दरोगा भी चला गया । वह अपने पति के आगे पानी-पानी हो गई । अपनी पत्नी के सामने ही उसके मुंह से निकल गया:

‘तिरिया से राज छिपे न छिपाए ।’


Hindi Quote # 2. दीन से बेदिन भए, गंग नीर पिए से:

रतन नाम का एक पटवारी था । वह हमेशा किसानों के खेतों की नाप-तोल में हेराफेरी किया करता था । गरीब किसानों को वह परेशान करता था और जमींदारों का खैरख्वाह बना रहता । अपने पेशे में वह बदनाम व्यक्ति था । ऐसा रौब बनाए रखता था, जैसे कि बहुत बड़ा अधिकारी हो ।

नेकी और अच्छे कामों से उसका दूर का भी रिश्ता नहीं था । राम का नाम तो वह स्वप्न में भी नहीं लेता था । धर्म के नाम पर उसकी पत्नी ने घर में एक छोटी मूर्ति रख ली थी । वह भी अपने आदमी की तरक्की और धन की बढ़ोतरी के लिए पूजा करती रहती थी ।

ADVERTISEMENTS:

रतन पटवारी निकलने ही वाला था कि दरवाजे पर यमदूत पहुंच गए । यमदूत ने आवाज लगाई, तो रतन पटवारी बाहर आया । रतन पटवारी के पूछने पर यमदूत ने कहा, “आपको यमराज ने बुलाया है । मेरे साथ चलिए ।”

रतन पटवारी ने कहा, “थोड़ा रुकिए । अभी आता हूं ।” इतना कहकर रतन पटवारी अंदर गया और सोचने लगा कि इस तरह यमराज ने बुलाया है, जरूर कोई बात है । इसका लाभ उठाना चाहिए । उसने एक कागज पर कुछ लिखा और कागज को तोड़-मरोड़कर रख लिया ।

फिर वह घर से बाहर निकल आया । यमदूत रतन पटवारी को लेकर चल दिए । थोड़ी देर में ही यमलोक पहुंच गए । रतन पटवारी ने यमराज को नमस्कार किया और जेब से कागज निकालकर देते हुए कहा, ‘फरमान है, आपके लिए । यमराज ने कागज को पढ़ा ।

उसमें लिखा था: “यमराजजी, रतन पटवारी आपके पास आ रहे हैं । इन्हें अपना कार्य-भार सौंप दें । आपको अवकाश पर भेजा जाता है, -विष्णु भगवान ।” यमराज ने रतन पटवारी को कार्य-भार सौंपा और चले गए । रतन पटवारी यमलोक के राजा हो गए ।

ADVERTISEMENTS:

नया क्या होना चाहिए, इसके लिए रतन पटवारी की खोपड़ी काम करने लगी । उसने यमदूतों को आदेश दिया कि जितने लोग स्वर्ग में हैं, उन्हें नरक में डाल दिया जाए और नरक के लोगों को स्वर्ग में । यही हुआ । स्वर्ग के लोग नरक में और नरक के लोग स्वर्ग में डाल दिए गए ।

तीनों लोकों में हाहाकार मच गया । देवता हाय-हाय करते हुए विष्णु भगवान के दरबार में पहुंचे । देवताओं ने विष्णुजी से कहा, “हे करुणानिधान, आपके यहा तो अब अनर्थ होने लगा है । हमारे भक्त और पुण्यात्माए नरक में डाल दिए गए हैं और नरक के पापियों को स्वर्ग में पहुचा दिया गया है ।”

विष्णुजी ने देवताओं से कहा, “आप लोग निश्चिंत होकर जाइए । अभी सब ठीक कराता हूं ।” देवता लोग चले गए । विष्णुजी ने यमराज को बुलवाया । यमराज आए और हाथ जोड़कर खड़े हो गए । विष्णुजी ने पूछा कि आपके यमलोक में यह क्या हो रहा है ?

विष्णुजी की बात सुनकर यमराज ने कहा, “प्रभु क्षमा करें । यह सब आपके प्रिय भक्त रतन पटवारी का काम है । आपके ही फरमान से उसे मैंने अपना कार्य-भार सौंपा था, और मुझे अवकाश दे दिया गया था ।”

ADVERTISEMENTS:

विष्णुजी ने कहा, ”मेरा भक्त ऐसा नहीं कर सकता । मैंने अपने भक्त को अपने पास बुलवाया था । आप लोग सीधे यमलोक कैसे ले गए ? इसकी पूरी छानबीन करो । जरूर कहीं गड़बड़ है । यमलोक में पहले जैसी स्थिति कर दो ।”

यमराज ने जाकर सबसे पहले रतन पटवारी को हिरासत में ले लिया और स्वर्ग के लोगों को स्वर्ग में और नरक के लोगों को नरक में पहुंचा दिया । छानबीन करने से पता चला कि विष्णुजी का भक्त रतन दूसरा व्यक्ति था । यमदूत उसके बदले में रतन पटवारी को पकडू लाए थे ।

उस रतन पटवारी को धरती पर भेज दिया गया । जब यमदूत रतन पटवारी को छोड्‌कर वापस आ रहा था तो सोचता आ रहा था ‘दीन से बेदीन भए, गंग नीर पिए से । सात पुश्त नरक गईं, राम नाम लिए से ।।’ वाह रे रतन पटवारी । तेरा भी कोई जवाब नहीं ।


Hindi Quote # 3. देखना है, ऊंट किस करवट बैठता है ?:

एक गांव में सात दिन बाद हाट लगती थी । सब्जी, दाल, अनाज, कपड़े आदि घर-गृहस्थी का सभी सामान बिकने आता था । आस-पास के गांवों के लोग भी सामान लेने आते थे ।

ADVERTISEMENTS:

हाट में दुकानदार अपना सामान बैलगाड़ियों, खच्चरों, ऊंटों आदि से लाते थे । आस-पास के दुकानदार छोटा-मोटा सामान अपने सिर पर ही रखकर लाते थे । एक ही गांव से एक कुंजड़ा और कुम्हार भी अपना सामान हाट में ले जाते थे । कुंजड़ा फल-सब्जियां आदि ले जाता था और कुम्हार अपने मिट्‌टी के बरतन ।

इनको सामान का भाड़ा इतना देना पड़ता था कि मुनाफा बहुत कम रह जाता था । उसी गाव में एक ऊटवाला भी था जो हाट में दुकानदारों का सामान लाता-ले जाता था । कुंजड़ा और कुम्हार ने तय किया कि हम अपना सामान ऊट से ले चलते हैं । जो किराया आएगा, उसको आधा-आधा करके दे देगे । बचत देखकर दोनों तैयार हो गए ।

उन्होंने अपने गांव का ही ऊंट तय कर लिया और हाट के दिन एक ओर कुम्हार ने अपने बरतन लादे और दूसरी ओर कुंजड़े ने अपनी सब्जियां लादी । दोनों हाट को चल दिए । ऊंटवाला रस्सी पकड़े आगे-आगे जा रहा था और ये दोनों साथ-साथ चल रहे थे ।

ऊंट ने एक बार अपनी गरदन पीछे की ओर घुमाई, तो उसे सब्जी के पत्ते लटकते दिखाई दिए । ऊंट भूखा था । ऊंट की डोरी लंबी थी, इसलिए ऊंट ने पीछे गरदन करके सब्जी के कुछ पत्ते मुंह में ले लिया और खा गया । यह देखकर कुंजड़ा मन-ही-मन दुखी हुआ ।

जब ऊंट ने दोबारा सब्जियों के पत्तों में मुंह मारा तो ऊंटवाले से कुंजड़े ने कहा, “ऊंटवाले भैया, डोरी जरा खींचकर रखो । ऊंट सब्जियों में मुंह मार रहा है ।” ऊंटवाला बोला, “अच्छा भैया, ध्यान रखूँगा ।” लेकिन ऊंटवाले के ध्यान रखने के बाद भी ऊंट सब्जियों में से कुछ-न-कुछ खींच लेता था । कुम्हार कुंजड़े का नुकसान देखकर मजाक उड़ाने लगा ।

शुरू में तो दोनों ओर बराबर वजन के सामान थे, बल्कि थोड़ा सब्जियों का ही भार अधिक था । कुंजड़े को अब लगने लगा था कि हाट पहुंचते-पहुंचते सब्जियां कम हो जाएंगी । ऊंट ने एक बार फिर सब्जियों में मुंह मारा, तो कुम्हार हंस दिया । कुम्हार के हंसने पर कुंजड़े ने कहा, “देखना हैं, ऊँट किस करवट बैठता है ?”  कुंजड़े की बात सुनकर कुम्हार हंस दिया, और कुंजड़े की ही बात को दोहरा दिया,  ”देखते हैं, ऊट किस करवट बैठता है ?”

ऊंट के बार-बार सब्जियों में मुंह मारते रहने के कारण इस ओर का वजन कम होता जा रहा था । धीरे-धीरे बरतनों का झुकाव नीचे की ओर बढ़ने लगा । यह देखकर कुम्हार का मजाक करना बंद हो गया । अब कुम्हार मन-ही-मन चिंतित होने लगा और सोचने लगा कि ऊंट किस करवट बैठता है ।

जब ऊंट हाट में पहुंचा, तो उन्होंने सामान लगाने की जगह पर ऊंट को बैठाया । चूंकि बरतनों का वजन भारी था, इसलिए ऊंट उसी करवट बैठा । कुम्हार के तमाम बरतन टूट गए । कुंजड़ा व्यंग्य भरी नजरों से कुम्हार को देखकर कहता है: ‘देखना है, ऊँट किस करवट बैठता है ?’


Hindi Quote # 4. गरीब की जोरू, सबकी भाभी:

एक मोहल्ले में एक गरीब परिवार था । उस मोहल्ले में कुछ अमीर थे और ऐसे परिवार अधिक थे जो न अमीर थे और न गरीब थे । गरीब परिवार का दीनू सबको राम-राम करता था । वह सब लोगों के काम भी आता रहता था ।

उस मोहल्ले में विभिन्न समाज और बिरादरी के लोग थे । दीनू के पड़ोस में एक परिवार ठाकुर का था । वह बात-बात में दीनू की जोरू को भाभी कहता और कभी-कभी मजाक भी कर लेता था, हालांकि ठाकुर दीनू से उम्र में बड़ा था ।

इसी प्रकार दीनू के दूसरे पड़ोसी ब्राह्मण देवता थे । एक दिन उसकी पत्नी को दीनू ने बहनजी कह दिया, तो ब्राह्मण देवता ने दीनू को साला ही बना लिया । एक दिन दीनू की पत्नी ने ब्राह्मण देवता से भाई साहब कहा तो ब्राह्मण देवता कहने लगा,

”तेरा आदमी तो मेरी पत्नी को बहनजी कहता है और तू मुझे भाई साहब कहती हो । यह कैसा रिश्ता ? तेरा आदमी तो मेरा साला हुआ ।”  उस दिन से ब्राह्मण देवता दीनू और उसकी जोरू से साले-सलहज का रिश्ता बनाकर बात करता और मौका मिलते ही इसी रिश्ते के अनुसार मजाक करता रहता ।

अहीर बिरादरी के लोग दीनू की जोरू से भाभी कहते और मजाक करते रहते । उम्र में जो छोटा होता वह भाभी कहता और जो उम्र में बड़ा होता, वह भी भाभी कहता था । कभी ऐसे भी मौके आते थे कि आपस में काफी कहा-सुनी, तू-तू मैं-मैं और झगड़ा तक हो जाता ।

गाली-गलौज होती, लेकिन कुछ दिन में सब सामान्य हो जाता और फिर दीनू की जोरू से भाभी कहना शुरू कर देते ।  कुछ लोग दीनू की बहन से भी मजाक करते रहते थे और जब कभी दीनू के मुंह से उनकी बहन के लिए मजाक निकल जाता तो उसे गाली समझकर वे लोग बेकाबू हो जाते ।

कभी-कभी झगड़ा भी कर लेते और वे लोग जब दीनू को गाली देते तो ब्राह्मण देवता आदि कह देते, क्या है, दीनू तो मेरा साला लगता है । इसी प्रकार जब, लोग दीनू की जोरू से मजाक करते तो कह देते, ‘मेरी तो भाभी लगती है ।’ जबकि वे लोग दीनू से उम्र में बड़े होते थे ।

एक बार दीनू के यहां उसकी बिरादरी का एक बुजुर्ग आया । थोड़ी देर वह उसके दरवाजे पर बैठा रहा और लोगों को दीनू की जोरू से मजाक करता देखता रहा । उसे बहुत बुरा लगा ।  छोटा है वह भी भाभी कह रहा है, बड़ा है वह भी भाभी कह रहा गैर बिरादरी का है वह भी भाभी कह रहा है ।

बुजुर्ग जब चलने को हुआ तो बोला, भैया है । बिरादरी का है वह भी भाभी कह रहा है और जो गैर बिरादरी का है वह भी भाभी कह रहा था । बुजुर्ग जब चलने को हु आ तो बोला, भैया ‘गरीब की जोरू, सबकी भाभी’ |


Hindi Quote # 5. जिसको न दे मौला, उसको क्या देगा आसफउद्दौला:

एक फकीर ने एक गांव के किनारे डेरा लगा लिया । फकीर सुबह ही गांव में भीख मांगने निकल आता था । इसी गांव में एक दिन उस रियासत का एक कारिंदा आया । इस गांव में फकीर को भीख मांगते देखकर उसे अचरज हुआ ।

यह गांव आसफउद्दौला की रियासत का था और उसकी रियासत में कोई भीख नहीं मांगता था । नवाब आसफउद्दौला भीख मार्गने वाले को इतना दे देता था कि वह दोबारा उसकी रियासत में भीख नहीं मांगता था । उस कारिंदा ने फकीर से कहा, ”आप नवाब आसफउद्दौला के पास चले जाइए । वे आपको इतना दे देंगे कि आपको फिर भीख मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी । नवाब के बारे में कहा जाता है:

”जिसको न दे मौला, उसको दे आसफउद्दौला”

उस कारिंदा की बात सुनकर वह फकीर हंस दिया । उसने कारिंदा से कहा:

”जिसको न दे मौला, उसको क्या देगा आसफउद्दौला ?”

दूसरे दिन कारिंदा ने यह बात नवाब साहब को सुनाई । नवाब साहब शुक्रवार को भिखारियों को खैरात बांटते थे । अगले दिन नवाब ने कई गाड़ियां तरबूज मगवाए और भिखारियों को बांटने लगे । लेने वाले एक पंक्ति बनाकर खड़े हुए थे ।

वह फकीर भी उसी पंक्ति में खड़ा हो गया था । जब उस फकीर की बारी आई तो कारिंदा ने नवाब साहब को इशारा कर दिया । नवाब ने फकीर को एक बड़ा तरबूज दे दिया । फकीर के बाद एक भिखारी था । उसके साथ दो बच्चे भी थे ।

नवाब ने उन तीनों के लिए एक छोटा तरबूज दिया था । वह फकीर जाते हुए उस भिखारी को रोका और कहा, “भाई तुम्हारे साथ दो बच्चे हैं, इसलिए तुम यह बड़ा तरबूज ले लो । मैं अकेला हूं । तुम्हारे वाले छोटे तरबूज से मेरा पेट भर जाएगा ।”

वह कुछ बोला नहीं । अपना तरबूज आगे बढ़ा दिया । फकीर ने उसका तरबूज लेकर उसे अपना तरबूज दे दिया ।डेरे पर आकर फकीर ने तरबूज खाया और सो गया । दूसरे दिन वह कारिंदा फिर उसी गांव में आया । उसने देखा, वही फकीर गांव में भीख मांग रहा है । उस कारिंदा ने नवाब से जाकर कहा कि वह फकीर आज भी उस गांव में भीख माग रहा था ।

नवाब को बहुत गुस्सा आया । नवाब ने फकीर के पास हरकारा भेजा । हरकारे ने फकीर से कल दरबार में आने के लिए कहा । दूसरे दिन फकीर नवाब के दरबार में पहुंच गया । फकीर का अदब करते हुए नवाब ने कहा, ‘मैंने जो आपको तरबूज दिया था, वह अशर्फियों और हीरे-जवाहरातों से भरा हुआ था । आप फिर भी भीख मांग रहे हैं ।’

फकीर ने बड़े शांत स्वभाव से कहा, आपने जो तरबूज मुझे दिया था, वह तो मैंने उसे दे दिया था, जिसके साथ दो बच्चे थे । मैंने उसका तरबूज ले लिया था और शाम को ही खा लिया था । जो आपने अशर्फियों और हीरे जवाहरातों वाला तरबूज दिया था, वह मुझे थोड़े ही दिया था ।

वह तो उस भिखारी को दिया था, सो उसके पास चला गया । जब फकीर चला गया, तो नवाब आसफउद्दौला को कारिंदा से कही हुई उसकी बात याद आती रही : ‘जिसको न दे मौला, उसको क्या देगा आसफउद्दौला ।’


Hindi Quote # 6. मार से तो भूत भी भागता है:

एक नगर में एक मकान था । उसे जो भी किराए पर लेता था, थोड़े दिन में ही उस परिवार के किसी-न-किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी । वह मकान इतना बदनाम हो गया था कि उसे कोई किराएदार सस्ते किराए पर भी लेने को तैयार नहीं होता था ।

लोगों का कहना था कि इस मकान में भूत रहता है । एक दिन एक आदमी आया और किराए का मकान तलाशते-तलाशते उसी मकान के आगे खड़ा हो गया । वहां के लोगों ने बताया कि यह मकान खाली तो है और किराया भी बहुत कम है, लेकिन इसमें भूत रहता है ।

जो भी इसमें आता है, उसके परिवार में से किसी-न-किसी की मौत हो जाती है और किराया भी बहुत कम है, लेकिन इसमें में से किसी-न-किसी की मौत हो जाती है और वे मकान खाली करके चले जाते हैं । उस आदमी ने कहा कि कोई चिंता की बात नहीं और मकान किराए पर लेकर उसमें रहने लगा ।

दो-चार दिन रहने के बाद उस मकान में भूत आया और उस आदमी से मकान खाली कर देने के लिए कहा । साथ ही धमकी दी कि यदि मकान खाली नहीं किया, तो तुझे मार डालूंगा । उसने भूत को बैठाया और फिर पूछा, ”मैं मकान तो खाली कर दूंगा, लेकिन एक बात बताओ । आप आते कहा से हो ?”

“मैं यमराज के यहाँ से आता हूं ।” भूत ने उत्तर दिया । फिर उस आदमी ने पूछा, ”भैया, एक बात और बता दो । वहाँ होता क्या है ?””आदमी की उम्र के बारे में लिखा-पढ़ी होती है । वहां सबकी उम्र दर्ज होती है ।” भूत ने कहा । ”भैया, एक काम मेरा कर दो । बस समझो तुम्हारा मकान खाली हो गया ।” उस आदमी ने कहा ।

”क्या ?” भूत बोला ।”यह पता लगा दो कि मेरी उम्र कितनी है?” आदमी ने कहा । ”मैं बता दूंगा ।” इतना कहकर भूत चला गया । एक सप्ताह बाद जब भूत आया, तो उसने बताया, ”तुम्हारी उम्र 85 वर्ष की है । अब मकान खाली दो ।”

“मैंने कह दिया तो मकान खाली कर दूंगा, लेकिन एक छोटा-सा काम और है । यह काम कर दो तो तुम्हारा बड़ा एहसान होगा ।” ”वह क्या?” भूत ने पूछा । वह आदमी बोला, ”तुम्हारी तो वहां बहुत जान-पहचान है । काम यह है कि मेरी उम्र सिर्फ पांच साल बढ़वा दो ।”

भूत बोला, ”यह कोई बड़ी बात थोड़े ही है, हो जाएगा ।” इतना कहकर भूत चला गया ।अबकी बार उस आदमी ने अपने पास डंडा रख लिया था । एक सप्ताह बाद जैसे ही भूत आया, तो उससे पूछा, ”क्या हुआ ?”भूत बोला, ”यह बहुत मुश्किल काम है भैया । तुम पांच साल की बात करते हो । यमराज कहते हैं कि उम्र न एक पल बढ़ सकती है और न एक पल घट सकती है ।”

भूत का इतना कहना था कि उस आदमी ने पास में रखा हुआ डंडा उठाया और कहा, “भाग जा यहां से नहीं मारते-मारते तेरा भुर्ता बना दूंगा । जब यमराज भी मेरी उम्र को न एक पल बढ़ा सकते हैं और न एक पल घटा सकते हैं, तो तू किस खेत की मूली है ?”

इतना सुनते ही भूत भाग गया । उस दिन के बाद उस मकान में भूत नहीं आया । वह ठाठ से रहता रहा । कुछ दिन बाद पड़ोसियों ने उससे पूछा कि भूत ने आपको नहीं सताया ? उसने पूरी घटना पड़ोसियों को सुना दी और कहा, ‘मार से तो भूत भी भागता है ।


Hindi Quote # 7. अढ़ाई दिन की बादशाहत:

एक बार बक्सर के मैदान में शेरशाह सूरी और हुमायूँ का घमासान युद्ध हुआ । इस युद्ध में हुमायूं की करारी हार हुई । हुमायूं अपनी जान बचाने के लिए भाग निकला । वह तीन ओर से घिर गया था और गंगा के किनारे जा पहुंचा था ।

हुमायूं हाथी पर सवार था । हाथी को गंगा में उतारने के लिए बहुत कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका । इधर शत्रु के सैनिक कभी भी आ सकते थे ।निजाम भिश्ती गंगा के किनारे मौजूद था । वह मशक में पानी भरने के लिए आया हुआ था । हुमायूं ने अपनी परेशानी निजाम के सामने रखी । निजाम बहुत अच्छा तैराक भी था ।

उसने मशक में हवा भरकर मुंह अच्छी तरह से बांध दिया । पहले तो हुमायूं मशक द्वारा गंगा के उस पार जाने के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन निजाम के विश्वास और मरता क्या न करता वाली स्थिति को देखते हुए हुमायूं तैयार हो गया । निजाम ने हुमायूं को मशक पर लिटाकर तैरते हुए गंगा के उस पार पहुंचा दिया ।

इसके एवज में हुमायूं ने निजाम भिश्ती को मुहमागा इनाम देने का वचन दिया । पहले तो भिश्ती ने मना किया, लेकिन अधिक कहने पर निजाम भिश्ती ने कहा, ”जहांपनाह आप कह रहे हैं, तो ‘अढ़ाई दिन की बादशाहत’ दे दीजिए ।”

हुमायूं वचन दे चुका था, अत: निजाम भिश्ती को अढ़ाई दिन की बादशाहत मंजूर कर दी ।हुमायूं निजाम भिश्ती को अपने साथ ले गया । वहां निजाम भिश्ती के शाही हज्जाम से बाल बनवाए गए । शाही कपड़े पहनाए गए और फिर बादशाह के रूप में गद्‌दी पर बैठाया गया ।

इसके बाद हुमायूं ने दरबार में कहा, ”आज से ये बादशाह हैं । आज से इनके हुक्म को माना जाए ।” इतना कहकर हुमायूँ वहां से चला गया । हुमायूं के जाने के बाद भिश्ती बादशाह ने वजीर से कहा कि मुझे टकसाल ले चलो, जहां सिक्के बनते हैं । वजीर बादशाह को टकसाल ले गया । बादशाह ने टकसाल में बनाए जा रहे सिक्कों को तुरंत रुकवा दिया और हुक्म दिया कि तुरंत ऐसे सांचे बनाओ, जिनसे चमड़े के सिक्के बनाए जा सकें ।

आज से ही चमड़े के सिक्के बनना शुरू हो जाना चाहिए । सिक्के बनाने का काम रात-दिन चलना चाहिए । खजांची को आदेश दिया कि जितने सिक्के बने पड़े हैं, उन्हें खजाने में डलवा दो । आज से ही सब लेन-देन चमड़े के सिक्कों से होना चाहिए । हो सके तो बाजार के बड़े-बड़े सेठों को चमड़े के सिक्के देकर पुराने सिक्के मंगवाकर गला दो ।

ऐसा ही हुआ । अढ़ाई दिन में चमड़े के सिक्के पूरे राज्य में फैल गए । अढ़ाई दिन बाद निजाम भिश्ती ने बादशाहत की पोशाक उतारी, अपनी मशक उठाई और वहां से चल दिया । जिसके हाथ में चमड़े का सिक्का पहुंचता, वही कह उठता-यह ‘अढ़ाई दिन की बादशाहतका कमाल है ।


Hindi Quote # 8. जो कुआं खोदता है, वही गिरता है:

एक बादशाह था । उसके महल की चहारदीवारी में ही वजीर और एक कारिंदे का आवास था । वजीर और कारिंदे के एक-एक लड़का था । दोनों लड़के आपस में पक्के दोस्त थे ।

दोनों हम-उम्र थे और एक ही कक्षा में साथ-साथ पढ़ते थे । दोनों खेलते भी साथ-साथ थे । एक-दूसरे के घर आना-जाना खूब था । कारिंदे का लड़का वजीर को चाचा कहता था और जो भी काम वजीर कराता था, कर देता था ।

बादशाह के कोई सतान नहीं थी । वह कारिंदे के लड़के को बहुत प्यार करता था । बादशाह इतना प्यार करता था कि लड़के के लिए महल और दरबार के दरवाजे खुले रहते थे, लेकिन वजीर को यह बिल्कुल पसंद नहीं था बादशाह प्यार करे और गोद भी ले ले, कारिंदे के लड़के से प्यार करे ।

वह चाहता था कि बादशाह उसके बेटे को ले, जिससे बादशाह के मरने के बाद उसका लड़का बादशाह बने । वजीर जो चाहता था, ठीक उसके उलटा होता था । बादशाह कारिंदे के लड़के को और आधिक प्यार करता गया । वजीर के लड़के से बादशाह का लगाव पहले ही नहीं था, इसलिए वजीर कारिंदे और उसके लड़के से मन-ही-मन जलने लगा ।

ऐसा रास्ता खोजता रहा, जिससे उसका मनचाहा हो जाए । जब कोई बात बनती नजर नहीं आई, तो उसने सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे न रहे बांस, न बजे बांसुरी । एक दिन वजीर ने कारिंदे के लड़के को घर बुलवाया । घर आने पर वजीर ने उसे एक रूमाल और पैसे देकर गोश्त लाने के लिए कहा ।

वजीर ने बताया कि गोश्त बाजार में फलों गली के नुक्कड़वाली दुकान से लाना है । लड़के ने रूमाल लिया, पैसे संभाले और चल दिया । रास्ते में कुछ लड़के गुल्ली-डंडा खेल रहे थे । उनमें वजीर का लड़का भी था । वजीर के लड़के ने कारिंदे के लड़के को आते देखा, तो चिल्लाकर पुकारा, ‘भैया, कहा जा रहे हो ?’ उसने कहा, ‘मैं गोश्त लेने जा रहा हूं ।’

वजीर के लड़के ने कहा कि गोश्त मैं ले आऊंगा । तू मेरा दांव उतार दे । “चाचा ने उस दुकान से गोश्त मंगाया है ।” उसने वजीर के बताए अनुसार दुकान तक पहुंचने का रास्ता बताते हुए उसे रूमाल और पैसे दे दिए । वजीर का लड़का गोश्त लेने के लिए चला गया और कारिंदे का लड़का दाव उतारने लगा ।

चलते-चलते वजीर का लड़का उसी दुकान पर पहुंच गया । उसने पैसे और रूमाल देते हुए कहा कि इसमें गोश्त बांध दो । कसाई ने रूमाल को पहचान लिया । इस रूमाल में निशान बना हुआ था । इसी रूमाल को वजीर ने दिखाया था और कहा था कि जो लड़का इस रूमाल को लेकर गोश्त लेने आए, उसका काम तमाम कर देना ।

उसके एवज में वजीर ने पैसे भी दिए थे । इस काम के लिए कसाई ने अंदर एक भट्‌ठी जलाकर पूरी तैयारी कर रखी थी । कसाई ने रूमाल और पैसे लेकर कहा कि यहा बैठ जाओ । अभी गोश्त बांधता हूं । उस समय दुकान पर कोई ग्राहक नहीं था ।

वजीर का लड़का जैसे ही अदर पहुंचा । कसाई ने उसे पकड़कर जलती भट्‌ठी में झोंक दिया । उधर दांव उतारने के बाद कारिंदे का लड़का घर चला आया । लगभग दो घंटे बाद वजीर अपने घर से निकला । उसी समय कारिंदे का लड़का भी अपने घर से निकला ।

महल की चहारदीवारी में ही दोनों का आमना-सामना हो गया । वजीर पूछता, उससे पहले ही कारिंदे के लड़के ने कहा, ”चाचा, भैया गोश्त ले आया ?” इतना सुनते ही जैसे वजीर को साप ने डस लिया । फिर कारिंदे का लड़का बोला, ‘चाचा, रास्ते में भैया मिल गया था ।

उसने मुझसे पूछा कि कहां जा रहे हो ? मैंने कहा कि चाचा ने गोश्त मंगाया है, लेने जा रहा हूं । उसने मुझसे जबरदस्ती रूमाल और पैसे ले लिए और बोला कि तू मेरा दाव उतार दे । मैं गोश्त लेकर आ रहा हूं । मैंने दुकान का रास्ता बता दिया था ।’

वजीर की आखों के सामने अंधेरा छा गया और वापस घर आकर बैठ गया । उसकी बेगम ने उसकी हालत देखी तो, ‘हाय अल्लाह क्या हो गया इन्हें ?’ कहकर बेचैन हो गई । वजीर बड़बड़ा रहा था, ” ‘जो कुआं खोदता है, वही गिरता है’ | मैं दूसरे के लिए कुआं खोदा था और मैं खुद अपने खोदे हुए कुएं में गिर गया हूं ।”


Hindi Quote # 9. ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है:

एक बार एक राजा शिकार खेलने गया । उसके साथ सेनापति तथा कुछ सिपाही थे । शिकार करते समय थोड़ी असावधानी हो गई और राजा की एक उंगली कट गई । उंगली कटते ही राजा थोड़ा ठिठक गया और इतने में ही शिकार घायल अवस्था में ही निकलकर भाग गया ।

कुछ सिपाही शिकार के पीछे दौड़े भी, लेकिन राजा को रुकते देखकर वापस आ गए । राजा ने कटी हुई उंगली पर कपड़ा लपेटा । सबने दुख प्रकट किया । सेनापति ने भी दिलासा बंधाई और अत में कहा, ‘ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है ।’

एक तो शिकार निकल जाने का दुख था और दूसरा उंगली कट जाने का । इस पर सेनापति के इन शब्दों ने आग में घी डालने का काम किया । राजा की आखों से गुस्सा बरस पड़ा । राजा बोला, ”मेरा हाथ लहू-लुहान हो गया । तेज दर्द हो रहा है और तुम जले पर नमक छिड़क रहे हो । चले जाओ आखों के सामने से । तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहता मैं ।”

वह था तो सेनापति, लेकिन राजा तो राजा ही होता है । फिर भी सेनापति खुद्‌दार था, उससे अपना अपमान सहा नहीं गया । उसने घोड़े की लगाम को झटका दिया, बैठकर घोड़े के एड लगाई और दौड़ा दिया घोड़ा । दूसरे दिन जब दरबार लगा, तो राजा ने सेनापति को बंदी बना लिया ।

बंदीगृह जाते समय भी सेनापति ने राजा से कहा, ‘ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है ।’ कुछ दिन बाद राजा दोबारा शिकार खेलने गया । घना जंगल था । जंगल में दूर जाकर शेर दिखाई दिया । राजा और उसके सिपाहियों ने उसका पीछा किया । व्यूह रच कर आगे बढ़ने लगे ।

किसी तरह शेर तो निकलकर भाग गया, लेकिन ये लोग पीछा करते-करते तितर-बितर होकर भटक गए । राजा भी जंगल से बाहर निकलने के लिए इधर-उधर भटकता रहा । अंत में राजा को सामने से भीलों का झुंड आता दिखाई दिया । वे पूजा की बलि के लिए एक आदमी की तलाश में निकले थे । राजा स्वयं ही उनकी गिरफ्त में आ गया था ।

पास आते ही भीलों ने चारों ओर से राजा को घेर लिया । उनके हाथों में तीर-कमान, भाले और तलवारनुमा घूमे हुए तेज धारवाले हथियार थे । सबका निशाना राजा था । भीलों ने राजा के हथियार छीन लिए और पकड़कर ले चले ।

कुछ देर चलकर एक खुले मैदान में पहुंचे । राजा ने देखा कि तमाम फूस और बांस-लकड़ियों की झोपड़ियां बनी थीं । झोपड़ियों के बीच में एक चौड़ा मैदान था । मैदान में चबूतरे पर वेदी बनी हुई थी । पूजा हो रही थी । मैदान आदिवासियों से भरा था । राजा को लेकर वे लोग सीधे वेदी के पास पहुंचे । वेदी के पास ही तेज धारवाला हथियार लिए एक भील बैठा था ।

यह सब देखकर राजा समझ गया कि भील उसे बलि चढ़ाने के लिए वेदी पर लाए हैं । राजा कुछ कर भी नहीं सकता था, क्योंकि सशस्त्र भीलों से घिरा हुआ था । बलि देने के पहले भीलों ने राजा के हाथ-पैर आदि को ध्यान से देखा ।

राजा की एक उंगली कटी हुई थी । पुजारी ने कहा, यह व्यक्ति तो खंडित है, इसलिए यह बलि के लिए ठीक नहीं है । अत: भीलों ने राजा को घोड़ा और उसके हथियार देकर आजाद कर दिया और हाथ का इशारा करते हुए जाने के लिए कहा ।

राजा ने उनके बताए हुए रास्ते पर घोड़ा दौड़ा दिया । जंगल में करीब आधा-पौने घंटे चलने के बाद खेत और गाँव नजर आए । रात के समय राजा अकेला महल में पहुंचा । रातभर राजा को नींद नहीं आई । पूरी रात सेनापति का चेहरा उसके सामने आता रहा और उसके कहे गए शब्द सुनाई पड़ते रहे ।

वह सोचता रहा यदि मेरी उंगली कटी न होती, तो भील मेरी बलि चढ़ा देते । सुबह होते ही राजा बंदीगृह गया और सेनापति को गले लगाया और साथ लेकर आया । राजा ने सेनापति से बातों-बातों में पूछ लिया कि जो बात तुमने मेरी उंगली कटते समय कही थी, वही बात बंदीगृह जाते समय भी कही थी ।

उंगली कटने से तो मेरी जान बच गई, लेकिन बंदीगृह जाने से तुम्हारा क्या भला हुआ ?  बंदीगृह जाकर कष्ट ही मिला । सेनापति बोला, नहीं राजन, युद्ध और शिकार में हमेशा मैं आपके साथ छाया की तरह साथ रहता आया हूं ।

यदि कल मैं आपके साथ होता, तो भीलों द्वारा मैं भी पकड़ा जाता और मेरी बलि चढ़ जाती, क्योंकि मैं कहीं से भी अंग-भंग नहीं था । इसलिए मुझे बंदीगृह में डालना अच्छा रहा । राजा शर्मिंदा होते हुए बोला, तुम ठीक कहते हो, ‘ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है |


Hindi Quote # 10. अंधेर नगरी, चौपट राजा:

दो साधु एक तीर्थयात्रा पर निकले । इनमें एक गुरु था और एक चेला । वापस लौटते समय उन्हें रास्ते में एक नगर मिला । दिन डूबने में डेढ़-दो घंटे बाकी थे । कुछ थकान भी थी, इसलिए आराम करने के लिए वहीं रुक गए ।

गुरु ने सामान लाने के लिए चेले को बाजार भेज दिया और खुद खाना बनाने की जुगाड़ में लग गए । गुरु आस-पास से चार ईंटों और सूखी लकड़ियों का इंतजाम कर लाए । अब चेले आने का इंतजार करने लगे । चेला आया और खरीदकर लाई हुई चीज गुरु के सामने रख दी । गुरु देखकर दग रह गए, ”यह क्या लाया है ?”

चेला प्रसन्नता से बोला, “खाजा लाया हूं । गुरुजी, नगरी बड़ी मजेदार है । बाजार को देखकर तो मैं भौंचक्का रह गया ! हर चीज टका सेर! कुछ भी ले लो । भाजी को काटो-पीटो, आटे को गूंधो, फिर बनाओ । इन सब झंझट से बच गए गुरु । बस, एक टके का है यह एक सेर खाजा ।” गुरुजी चेले की नासमझी पर मन-ही-मन दुखी हुए, लेकिन क्या करते ।

जब सुबह पता चला कि इस नगर का नाम ‘अंधेर नगरी’ है, तो और भी दुखी हुए । गुरु ने तुरंत अपना झोलाकर्गा समेटा और चेले से कहा, ”चल, यह नगरी ठहरने योग्य नहीं है । इसके नाम से ही पता चलता है कि यहां सब कुछ गड़बड़ है । टका सेर भाजी और टका सेर खाजा अरे ऐसा भी कहीं होता हे ? यहा कोई समझदार आदमी नहीं है ।

लगता है, राजा ही नगर को चौपट करने पर तुला हुआ है ।”  गुरु की बात चेले के समझ में नहीं आई । वह बोला, ”गुरुजी, यहां तो सुख-ही-सुख है । कुछ दिन यहीं रुकिए । ऐसा सुख तीर्थयात्रा में कहा रखा है ? मैं तो कुछ दिन यहीं रुककर सुख भोग्ता ।”

ADVERTISEMENTS:

गुरु ने देखा कि चेला बच्चों की तरह अपनी जिद पर अड़ा है, तो रुक गए । गुरु समझदार थे । वे जानते थे कि चेले को अकेला छोड़ने पर जरूर कुछ अहित हो  जाएगा । गुरु अपने लिए रोज सादा भोजन बनाते, जबकि चेला नगरी का खाजा-मिष्ठान खा-खाकर मोटा होता चला गया ।

इन्हीं दिनों नगर में एक घटना घटी । राजा ने एक खूनी कैदी को फांसी की सजा सुनाई । उस कैदी को फांसी देने के लिए गले में डाला जाने वाला फंदा बड़ा बन गया ।

राजा चिंतित था, क्योंकि फांसी देने के मुहूर्त तक दूसरा फंदा बन नहीं सकता था और यह भी नहीं हो सकता था कि फांसी देने का मुहूर्त आगे बढ़ा दिया जाए । राजा अपने यहां की परपरा को संकट में पड़ते देखकर उलझन में पड़ गया ।

आखिर में राजा ने तय किया कि फांसी तो इसी मुहूर्त में दी जाएगी । इसको नहीं, तो किसी दूसरे को सही । फांसी तो देनी ही है । राजा ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि जाओ, नगर में जो भी व्यक्ति सबसे पहले सामने आए, जिसकी गरदन इस फंदे के अनुसार ठीक बैठे, पकडू लाओ और फांसी दे दो ।

राजा की आज्ञा पाते ही सैनिक निकल पड़े ऐसे व्यक्ति की खोज में । ढूंढते-ढूंढते संयोग से चेला सामने आ गया । वह बाजार में खाजा खरीदने गया था । उसकी गरदन उस फंदे के अनुसार बिकुल ठीक थी । सैनिक उसको पकडू कर ले गए ।

यह खबर जब गुरु को मालूम पड़ी, तो गुरु भागे-भागे गए । एक ओर चेले पर गुस्सा आ रहा था, तो दूसरी ओर उसकी चिंता भी सता रही थी । चेला जो था । रास्ते भर इसी उधेड़-चुन में लगे रहे गुरु । वहां जाकर देखा, तो चेले को सैनिक पकड़े हुए थे और फांसी देने की तैयारियां चल रही थीं । गुरु ने सैनिकों से कहा, ‘छोड़ दो चेले को । इस समय फांसी पर चढ़ने का अधिकार तो मेरा है ।’

”क्यों छोड़ दूं इसे?” एक सैनिक ने कहा ।

”इस मुहूर्त में फांसी से मरने वाले को सीधा स्वर्ग मिलेगा । शास्त्रों में भी स्वर्ग जाने का अधिकार चेले से पहले गुरु का है ।” गुरु ने सैनिकों को खूब बुड़का, लेकिन वे टस-से-मस नहीं हुए । आखिर में गुरु ने चेले को आख से इशारा किया ।

गुरु का इशारा मिलते ही चेला चिल्लाया, ”नहीं, गुरुजी । स्वर्ग जाने का मेरा ही अधिकार है । सैनिकों ने मुझे ही पकड़ा है, आपको नहीं ।” ”नहीं शास्त्र विरुद्ध कार्य नहीं हो सकता । यह महापाप होगा । पहले फांसी पर मैं चड़ूंगा ।” गुरुजी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए चिल्लाए ।

ADVERTISEMENTS:

गुरु और चेला, दोनों ही चिल्ला-चिल्लाकर झगड़ने लगे । देखते-ही-देखते भीड़ इकट्‌ठी हो गई । फांसी पर चढ़ने को लेकर इस प्रकार का झगड़ा जनता के लिए आश्चर्य की बात थी । इससे पहले ऐसा न कभी देखा गया था और न सुना ही गया था ।

एक ओर राजा की आज्ञा थी और दूसरी ओर साधु का धर्मशास्त्र । सैनिक असमंजस में पड़ गए । एक नया संकट पैदा हो गया । अंत में, यह मसला राजा के पास ले जाया गया । गुरु और चेले की बात सुनकर राजा को स्वर्ग का लालच हो आया ।

राजा ने कड़ककर कहा, ”यदि इस मुहूर्त में ऐसा ही होना हे, तो सबसे पहले यह अधिकार राजा का है । बाद में पद के हिसाब से राजा के उच्च अधिकारियों का ।” गुरु-चेला मिलकर दोनों ही चिल्लाते रहे, लेकिन उनकी बात किसी ने न सुनी । सैनिकों ने उन्हें हटाकर एक तरफ कर दिया ।

पहले राजा को फांसी दी गई । इसके बाद राजा के उच्च अधिकारियों को फांसी देने का सिलसिला शुरू हो गया । गुरु आखिर थे तो साधु ही, उनकी आत्मा हिल गई । वे अब बेकसूरों की और हत्या नहीं देखना चाहते थे, इसलिए गुरु ने कहा, ‘अब स्वर्ग जाने का मुहूर्त समाप्त हो गया ।’ गुरु की बात सुनते ही फांसी देने का सिलसिला समाप्त कर दिया गया ।

इधर गुरु ने चेले के कान में कहा, ‘देख लिया अंधेर नगरी और यहां के लोगों को । निकल चल जल्दी से ।’ चेला चुपचाप गुरु के पीछे-पीछे चला गया । उसके बाद जब भी इस नगरी के बारे में जिक्र किया जाता, तो गुरु निम्न पंक्तियां कहने से नहीं चूकते थे । अंधेर नगरी चौपट राजा । के सेर भाजी, टके सेर खाजा ।।’

Home››Quotes››