List of popular Hindi stories for Grade 7 Students!

Contents:

  1. ऋषि विश्वामित्र पर कहानी | Story on Rishi Vishwamitra in Hindi
  2. ईमानदार लकड़हारा पर कहानि |

  3. सबसे अच्छी मिठाई पर कहानी | Story on The Best Sweetmeat in Hindi

  4. शरारती बंदर पर कहानी | Story on The Naughty Monkey in Hindi

  5. दो आदर्श मित्र पर कहानी | Story on Two Ideal Friends in Hindi

  6. चतुर टॉम पर कहानी | Story on The Clever Tom in Hindi

  7. महाराज शिवि पर कहानी | Story on King Shivi in Hindi

  8. ADVERTISEMENTS:

    अंधेर नगरी चौपट राजा (कहानी) | Story on Andher Nagri Choupat Raja in Hindi

  9. देशभक्ति पर कहानी | Story on Patriotism in Hindi

  10. एन्ड्रोक्लीज़ और शेर पर कहानी | Story on Androcles and the Lion in Hindi


Hindi Story # 1 (Kahaniya)

1. ऋषि विश्वामित्र पर कहानी | Story on Rishi Vishwamitra in Hindi

विश्वामित्र पहले एक राजा थे । उन्हें शिकार का बहुत चाव था । एक दिन अपने सैनिकों के साथ वे जंगल में शिकार करने गए । शिकार करते-करते रात हो गई । उन्होंने किसी सुरक्षित स्थान में विश्राम करने का निर्णय लिया । उन्हें थोड़ी दूर पर एक आश्रम दिखाई दिया । वह ऋषि वशिष्ठ का आश्रम था । विश्वामित्र अपने सैनिकों के साथ वहाँ गए तो ऋषि वशिष्ठ ने उनका अभिनंदन किया । शीघ्र ही उन्हें गरम-गरम दूध पीने को दिया गया । थोड़ी ही देर में सभी लोगों के लिए सुस्वादु भोजन की व्यवस्था की गई ।

राजा विश्वामित्र यह देखकर अचंभित रह गए । उन्हें आश्चर्य हुआ कि इतने कम समय में ऋषि ने ये सब चीजें कैसे बना लीं । उनकी जिज्ञासा का समाधान करते हुए ऋषि वशिष्ठ ने बताया , ” हमारे पास नंदिनी नामक गाय है जो कामधेनु की पुत्री है । इसकी विशेषता यह है कि इससे जो माँगो , यह तुरन्त दे सकती है । ” यह सुनकर विश्वामित्र के मन में लोभ उत्पन्न हुआ । उन्होंने कहा , ” ऋषिवर ! क्या आप मुझे यह गाय उपहार में दे सकते हैं ? आप तो मुनि हैं । आपको इसकी क्या आवश्यकता है ? ”

ऋषि ने कहा , ” यह मेरी देखरेख करती है और मेरी आवश्यकताएँ पूरी करती है । मैं इसे आपको नहीं दे सकता?” यह सुनकर विश्वामित्र क्रोधित हो उठे । उन्होंने अपने सैनिकों को नंदिनी को खूँटे से खोलकर ले चलने का आदेश दिया ।

सैनिकों ने नंदिनी को खोलकर ले जाने का प्रयत्न किया परंतु वे असफल रहे । तब विश्वामित्र अपने सैनिकों के साथ अपने महल लौट आए । अगले दिन विश्वामित्र पूरी तैयारी के साथ वशिष्ठ पर आक्रमण करने निकले । आश्रम पहुँचकर उन्होंने देखा कि उनकी सेना से भी विशाल सेना वहाँ पर उनकी प्रतीक्षा कर रही है । दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ । राजा विश्वामित्र की सेना की करारी हार हुई ।

अब तक विश्वामित्र को ज्ञात हो चुका था कि वे ऋषि वशिष्ठ की बराबरी नहीं कर सकते । उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे भी ऋषि वशिष्ठ के समान एक महान ऋषि बनेंगे । वे राज-पाट त्यागकर तपस्या करने के लिए घने वन में चले गए । कठोर तपस्या के उपरांत वे राजा से ऋषि बन गए ।


Hindi Story # 2 (Kahaniya)

ईमानदार लकड़हारा पर कहानि |

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देवनगर में एक गरीब लकड़हारा रहता था । उसका नाम गोपाल था । गोपाल बहुत भोला और ईमानदार था । वह प्रतिदिन जंगल में सूखी लकड़ियाँ काटने जाता था । दोपहर बाद इन लकड़ियों का गट्ठर बाँधकर बाजार चला जाता था ।

लकड़ियों को बेचने से जो पैसे मिलते थे उनसे जरूरत का सामान खरीदकर घर लौट आता था । तब उसकी पत्नी उसे रोटियाँ खिलाती थी जिसे खाकर वह सो जाता था । यही उसकी दिनचर्या थी । उसे अपने परिश्रम की कमाई पर पूरा संतोष था ।

एक दिन गोपाल लकड़ी काटने जंगल में गया । एक नदी के किनारे एक जामुन के पेड़ की सूखी डाल काटने वह पेड़ पर चढ़ गया । डाल काटते समय उसकी कुन्हाड़ी हाथ से छूटकर नदी में गिर गई । गोपाल शीघ्रता से पेड़ से उतर गया और अपनी कुन्हाड़ी ढूँढने लगा । उसने पानी में कई बार डुबकी लगाई किंतु उसे अपनी कुन्हाड़ी नहीं मिली ।

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गोपाल दुखी होकर नदी के किनारे दोनों हाथों से सिर पकड़कर बैठ गया । उसकी आँखों से आँसू बहने लगे । उसके पास दूसरी कुन्हाड़ी खरीदने के लिए पैसे नहीं थे । कुन्हाड़ी के बिना वह लकड़ी कैसे काटेगा और अपने परिवार के लिए भोजन कहाँ से जुटाएगा इस बात की उसे बड़ी फिक्र होने लगी । वह अपने भाग्य को कोसने लगा ।

उसे इस प्रकार दुखी देखकर नदी के देवता को उस पर दया आ गई । वे नदी से प्रकट होकर उससे बोले ”हे लकड़हारे ? तुम रो क्यों रहे हो ? ” गोपाल ने उन्हें प्रणाम किया और कहा ”मेरी कुन्हाड़ी पानी में गिर गई है । अब मैं लकड़ी कैसे काटूँगा और अपने बाल-बच्चों का पेट कैसे भरूँगा ?”

देवता बोले, ”दु:खी न हो लकड़हारे, मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी ढूँढ निकालता हूँ ।” जलदेव ने पानी में डुबकी लगाई और एक सोने की कुन्हाड़ी हाथ में लेकर बाहर निकले । उन्होंने कहा, ”क्या यही तुम्हारी कुन्हाड़ी है ?” गोपाल ने झट कहा, ” नहीं, यह मेरी कुन्हाड़ी नहीं है । यह किसी धनवान व्यक्ति की हो सकती है । मैं एक गरीब आदमी हूँ मैं भला सोने की कुल्हाड़ी अपने पास कैसे रख सकता हूँ ! ”

देवता ने तब फिर से पानी में गोता लगाया । इस बार वे एक चाँदी की कुन्हाड़ी लेकर बाहर निकले । देवता जब यह कुन्हाड़ी गोपाल को देने लगे तो उसने कहा, ”महाराज! मैं इसे भी नहीं ले सकता क्योंकि यह मेरी नहीं है । आपने मेरे लिए बहुत कष्ट उठाया परंतु मेरी कुल्हाड़ी मिली नहीं । मेरी कुन्हाड़ी तो लोहे की थी ।”

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देवता ने तीसरी बार डुबकी लगाकर गोपाल की लोहे की कुन्हाड़ी ढूँढ निकाली । गोपाल अपनी कुन्हाड़ी देखकर खुश हो गया । उसने धन्यवाद देकर अपनी कुन्हाड़ी ले ली । देवता गोपाल की सच्चाई और ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुए । वे बोले ”मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हूँ । तुम सोने और चाँदी की कुन्हाड़ी भी मेरी भेंट समझ कर रख लो ।”

सोने और चाँदी की कुन्हाड़ी को बाजार में बेचकर गोपाल धनी हो गया । उसने अपनी दुकान खोल ली । अब उसे जगल में लकड़ी काटने नहीं जाना पड़ता था । अचानक धनी हो जाने के कारण उसके पड़ोसी धनीराम को बहुत आश्चर्य हुआ ।

एक दिन धनीराम ने गोपाल से पूछा ”तुम अब लकड़ी काटने क्यों नहीं जाते ?” भोले स्वभाव के गोपाल ने सब बातें उसे सच-सच बता दीं । गोपाल के साथ घटी घटना सुनकर धनीराम के मन में भी सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी पाने का लालच उत्पन्न हो गया । वह सोने-चाँदी की कुन्हाड़ी पाने के लोभ से दूसरे दिन जंगल में गया ।

उसने उसी पेड़ पर लकड़ी काटना आरंभ किया । फिर उसने जान-बूझकर अपनी कुन्हाड़ी नदी में गिरा दी और पेड़ से उतरकर विलाप करने लगा । जलदेव उसका रोना-धोना सुनकर प्रकट हुए तथा उससे रोने का कारण पूछा ।“धनीराम ने दुखी होने का नाटक करते हुए कहा” हे देव ! मेरी कुल्हाड़ी अचानक नदी में गिर पड़ी है, इसलिए मैं रो रहा हूँ । कृपया मेरी मदद कीजिए ।”

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देवता ने तब नदी में डुबकी लगाकर एक सोने की कुल्हाड़ी निकाली । सोने की कुन्हाड़ी देखते ही धनीराम चिल्ला उठा ”हाँ देव यही मेरी कुन्हाड़ी है ।” जलदेव ने कहा ”तुम झूठ बोल रहे हो यह तुम्हारी कुन्हाड़ी नहीं है ।” यह कहकर देवता ने वह कुन्हाड़ी जल में फेंक दी और स्वय अंतर्ध्यान हो गए । धनीराम को अब पछतावा होने लगा । लोभ के कारण उसे अपनी कुल्हाड़ी भी खोनी पड़ी ।


Hindi Story # 3 (Kahaniya)

सबसे अच्छी मिठाई पर कहानी | Story on The Best Sweetmeat in Hindi

एक दिन शीत ऋतु में राजा कृष्णदेव राय , तेनालीराम और राजपुरोहित प्रात: कालीन गर्म धूप का आनंद ले रहे थे । तेनालीराम बहुत ही चतुर एवं सूझ-बूझ से कार्य करने वाले व्यक्ति थे । उन्होंने मौसम संबंधी वार्ता छेड़ दी । राजा ने कहा , ” मेरी राय में शीत ऋतु सभी ऋतुओं में सबसे ज्यादा अच्छी होती है , क्योंकि इस ऋतु में कुछ भी खाकर तंदुरुस्त रह सकते हैं । ”

राजा के मुख से भोजन की बात सुनकर राजपुरोहित के मुँह में पानी आ गया । उसने तुरंत राजा से कहा , ” महाराज , मुझे भी सर्दियाँ बहुत पसंद हैं, क्योंकि इस ऋतु में भाँति-भाँति के फल और मिष्ठान्न खाने के लिए मिलते हैं । ” फल और मिष्ठान्न की बात सुनकर महाराज ने पूछा , ” जूरा मुझे यह बताओ कि सर्दियों की सबसे अच्छी मिठाई कौन-सी है? ”

” महाराज, सर्दियों की सबसे अच्छी मिठाइयाँ हलुवा, मालपुआ और पिस्ता-बर्फी हैं । ” राजपुरोहित ने उत्तर दिया । राजा ने तुरंत खानसामे को तीनों मिठाइयाँ लाने का आदेश दिया । तीनों मिठाइयों के आ जाने पर उन्होंने राजपुरोहित से कहा, ” अब आप इन तीनों मिठाइयों को खाकर बताइए कि इनमें सबसे अच्छी मिठाई कौन-सी है? ”

राजपुरोहित ने तब बारी-बारी से तीनों मिठाइयाँ खाई । परंतु उसे सभी इतनी पसंद आई कि वह निश्चय नहीं कर पाया कि इनमें सर्वोत्तम कौन-सी है । फिर राजा ने यही प्रश्न तेनालीराम से पूछा । तेनालीराम ने कहा , ” महाराज , मैं आपको सबसे अच्छी मिठाई का नाम तो नहीं बता सकता हूँ । हों , खिला अवश्य सकता हूँ । लेकिन उसे खाने के लिए आप दोनों को मेरे साथ रात्रिकाल में चलना होगा । ”

तेनालीराम उन दोनों को साथ लेकर रात के समय महल से बाहर नदी के किनारे खेतों में ले गया । वहाँ कुछ निर्धन कृषक आग जलाकर उसके आसपास बैठे थे । तेनालीराम ने उनसे कोई चीज लेकर राजा और राजपुरोहित को खाने के लिए दी । उसे खाते ही दोनों एक स्वर में बोल उठे, ” अरे! यह मिठाई तो बहुत अच्छी है । इसका क्या नाम है तेनालीराम? ”

तेनालीराम ने उत्तर दिया, ” महाराज , यह गुड है । यह शरद ऋतु की सर्वोत्तम मिठाई है । यह ठंड के मौसम में शरीर को गर्माहट देती है । ” तेनालीराम का उत्तर सुनकर राजा मुस्कराने लगे ।


Hindi Story # 4 (Kahaniya)

शरारती बंदर पर कहानी | Story on The Naughty Monkey in Hindi

एक बंदर बड़ा सरारती था । वह दिनभर उछल – कूद किया करता और जंगल के जानवरों को अपने करतब दिखाता । पेड़ों पर बार-बार उछलने-कूदने से उन पर बने हुए पक्षियों के घोंसले भी हिलने लगते । कभी पक्षी का अंडा जमीन पर आकर टूट जाता तो कभी नन्हा बच्चा गिरकर परेशान हो जाता । पक्षी उसे समझाते परंतु बंदर के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती ।

ऋतु परिवर्तन हुआ और बारिश का मौसम आया । पर शरारती बंदर अपनी पुरानी कारगुजारियाँ करता रहा । पक्षी उससे डरकर उसे कुछ न कह पाते । एक दिन मूसलाधार वर्षा हुई, बंदर बुरी तरह भीग गया । ठंडी हवाओं से वह सिहरने लगा । वह सिर छिपाने के लिए आश्रय ढूँढने लगा, पर उसने अपने लिए कोई घर तो बनाया ही नहीं था । वह तो अहर्निश अपनी शरारतों में ही व्यस्त रहता था । हारकर वह पेड़ के पत्तों में छिपने की कोशिश करने लगा ।

उसी वृक्ष पर बया ने अपने लिए एक सुंदर घोंसला तैयार किया था , जिसमें बया और उसके बच्चे रहते थे । बया ने बारिश के दिनों के लिए अन्न के दानों का संग्रह भी कर रखा था । अपने घोंसले में छिपकर बया और उसका पूरा परिवार बारिश का आनंद ले रहा था । पत्तों की खड़खड़ाहट सुनकर बया ने अपने घोंसले से उचककर देखा उसे बारिश में थर – थर काँपते बंदर को देखकर बहुत दया आई । उसने कहा, ” देखो, बुरा मत मानो बंदर भाई । मैंने तुम्हें बार-बार चेताया था कि अपना वक्त शरारतों में मत बर्बाद करो । अपने भविष्य के लिए कुछ सोचो । यदि तुमने मेरी सलाह मानी होती तो आज यह दुर्दशा न होती । ”

सीख अच्छी थी परंतु बंदर गुस्से में लाल-लाल आँखें करके बया की तरफ देखने लगा । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह बया को कच्चा ही चबा जाएगा । बया ने पुन: कहा, ” भई, जो बीत गई सो बात गई । मगर आगे से मेरी बातों को गाँठ अवश्य बाँध लेना । ”

बया की बातें सुनकर बंदर का गुस्सा और भड़क गया । उसने बया के घोंसले को पकड़कर बुरी तरह झकझोर डाला । बया का घोंसला अब जमीन पर था और वह बुरी तरह विलाप कर रही थी । उसे पछतावा हो रहा था कि उसने ऐसे ढीठ और शरारती बंदर को सदुपदेश क्यों दिया । सच ही कहा गया है कि उत्पाती और शरारती से बचकर रहने में ही भलाई है ।


Hindi Story # 5 (Kahaniya)

दो आदर्श मित्र पर कहानी | Story on Two Ideal Friends in Hindi

लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले इंग्लैंड के वेस्ट मिनिचेस्टर नामक विद्यालए में दो मित्र पढ़ते थे । एक का नाम था निकोलस और दूसरे का नाम था बेक । निकोलस आलसी, नटखट और झूठा था । परंतु बेक परिश्रमी, सीधा और सच्चा था । इतनी भिन्नता होने पर भी बेक और निकोलस में गाढ़ी मित्रता थी ।

एक दिन अध्यापक किसी आवश्यक कार्य से थोड़ी देर के लिए कक्षा से बाहर चले गए । नटखट निकोलस कक्षा में धमा-चौकड़ी करने लगा । उसने कक्षा में रखा दर्पण उठाकर पटक दिया । दर्पण टूटते ही कक्षा में सन्नाटा छा गया । निकोलस मार पड़ने के भय से अपने स्थान पर जाकर चुपचाप बैठ गया ।

अध्यापक ने कक्षा में आते ही दर्पण के टुकड़े देखे । उन्होंने क्रोधपूर्वक कहा , ” यह उत्पात किसने किया है ? ” भय के कारण कोई भी छात्र नहीं बोला । तब अध्यापक ने एक-एक छात्र को खड़ा करके पूछना आरंभ किया । बेक ने सोचा कि अध्यापक दर्पण तोड़ने वाले का पता अवश्य लगा लेंगे । तब निकोलस को और अधिक मार पड़ेगी । इसलिए मुझे अपने मित्र को बचा लेना चाहिए । बेक उठकर खड़ा हो गया और बोला, ” सर! दर्पण मेरे हाथ से टूटा है । ”

यह सुनकर सभी लड़के उसे आश्चर्य से देखने लगे । निकोलस को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि बेक ऐसा कहेगा । अध्यापक ने बेंत उठा ली और बेक को पीटने लगे । बेक अध्यापक के हाथों चुपचाप पिटता रहा । छुट्‌टी होने के बाद निकोलस बेक के पास आया और रोते-रोते बोला ” बेक! तुम वास्तव में मेरे सच्चे मित्र हो । मैं तुम्हारे इस उपकार को जीवन- भर नहीं भूलूंगा । तुमने आज मुझे शैतान से इंसान बना दिया । ”

निकोलस सचमुच उसी दिन से सुधर गया । बड़ा होकर उसने इतनी उन्नति की कि वह न्यायाधीश के पद तक जा पहुँचा । उस घटना के तीस वर्ष बाद इंग्लैण्ड में गृहयुद्ध छिड़ गया । राजतंत्र का समर्थन करने के अपराध में बेक को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे उस अदालत में पेश किया गया जिसके न्यायाधीश निकोलस थे । उन्होंने बेक को प्राणदंड की सजा सुनाई लेकिन उनका हृदय व्याकुल हो रहा था । वे उसी समय घोड़े पर सवार होकर लंदन में क्रामवेल के महल में गए । अपने मित्र बेक के उपकार की घटना सुनाकर क्रामवेल से उन्होंने मित्र के लिए क्षमादान माँगा । क्रामवेल से क्षमादान पत्र लेकर वे बंदीगृह में बेक से मिले और उसक हाथों में क्षमादान पत्र सौंपा । दोनों मित्र तीस वर्ष बाद फिर गले मिले ।


Hindi Story # 6 (Kahaniya)

चतुर टॉम पर कहानी | Story on The Clever Tom in Hindi

टॉम एक नटखट परंतु बहादुर लड़का था । वह अपनी बूढ़ी मौसी के साथ रहता था । मौसी उसकी शरारतों से कभी-कभी तंग आ जाती थी, लेकिन टॉम की बुद्धिमानी देख उनके होठों पर मुस्कान थिरक उठती थी । पर एक दिन उनका धैर्य जवाब दे गया । टॉम की शैतानी देख उन्होंने उसे घर की चारदीवारी पर सफेदी करने का निर्देश दिया ।

उस दिन गुनगुनी धूप निकली हुई थी । टॉम हाथ में सफेदी की बाल्टी और कुची लिए चारदीवारी की पुताई के लिए निकला हुआ था । उसने सोचा-आज का दिन कितना सुंदर है । क्या मैं इसे पुताई में ही गुजार दूँगा ? आखिर कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा ।

कुछ देर बाद बेन रोगर्स सेब खाता और स्टीमर चलाने की नकल करता, उछलता-कूदता वहाँ आया । बेन ने बड़ी सहानुभूति से कहा-” अरे टॉम, आज तो तुम्हें काम करना पड़ रहा है। ” टॉम हँसकर बोला- ” काम ! तुम इसे काम कहते हो ? अरे, रोज-रोज चारदीवारी की पुताई करने का अवसर किसे मिलता है? मेरी खुशी का तो आज ठिकाना ही नहीं है । ”

अब तो बाजी पलट गई । बेन ने सोचा-काश ! मुझे भी पुताई का अवसर मिल जाए । उसने खुशामद के स्वर में कहा, ” टॉम थोड़ी देर मुझे भी पुताई करने दो । ” टॉम ने एक-दो बार जान-बुझकर नखरा किया । लेकिन जब बेन ने उसे सेब देने का प्रस्ताव दिया तो वह मान गया ।

टॉम ने बड़ा एहसान दिखाते हुए अपनी कूची छोड़ दी और बेन उसके स्थान पर प्रसन्न मन से पुताई करने में जुट गया । थोड़ी देर में कुछ और भी लड़के आए । टीम ने उन्हें भी अपनी बातों में फँसा लिया । एक थकता , तो दूसरा कुची को हाथ में लेकर उत्साह से पुताई कार्य में जुट जाता ।

टॉम विश्राम की मुद्रा में एक तरफ खड़ा उन्हें निर्देश देता जा रहा था । कुछ ही देर में चारदीवारी चमकने लगी । टीम की खुशी का ठिकाना न रहा । वह भागकर मौसी के पास गया और सगर्व बोला- ” पूरी चारदीवारी की पुताई हो गई मौसी ।” जब मौसी ने चारदीवारी का निरीक्षण किया तो उन्होंने टॉम को शाबाशी दी ।

मौसी ने कहा- ” तुम्हारे हाथों में तो जादू है । अच्छा टॉम, अब तू जा, मित्रों के साथ खेल-कूद आ । ” मौसी ने टॉम को एक सेब भी दिया । टॉम मजे से सेब खाता हुआ घर से निकल पड़ा । वह सोच रहा था- ” आज का दिन कितना अच्छा है । ”


Hindi Story # 7 (Kahaniya)

महाराज शिवि पर कहानी | Story on King Shivi in Hindi

प्राचीन काल में काशी पर शिवि नामक राजा का शासन था । वे बहुत धर्मात्मा और प्रजापालक शासक थे । उनके राज्य में कोई भी दु:खी नहीं था । राजा शिवि शरणागत की रक्षा करना अपना धर्म समझते थे । उनके गुणों की प्रशंसा चारों तरफ हो रही थी ।

एक दिन महाराज शिवि अपने दरबार में राजसिंहासन पर विराजमान थे । सहसा एक कबूतर उड़ता हुआ आया और राजा शिवि की गोद में बैठ गया । कबूतर बहुत भयभीत

दिखाई दे रहा था । उन्होंने उसकी हर प्रकार से रक्षा करने का निश्चय किया ।

उसी समय एक भयानक बाज वहाँ उड़ता हुआ आया और कबूतर को लालची निगाहों से देखने लगा । उसने राजा से कहा, ” महाराज! यह कबूतर मेरा शिकार है । आप इसे मुझे दे दें । ” राजा शिवि बोले, ” हे बाज! इस समय कबूतर मेरी शरण में आया हुआ है । शरणागत की रक्षा करना मेरा धर्म है । मैं इसे तुम्हें नहीं दे सकता । इसके बदले में तुम्हें जिस पशु का मांस चाहिए, मैं तुम्हें सहर्ष दे सकता हूँ । ”

बाज ने कुछ सोचकर कहा , ” महाराज! यदि आप इस कबूतर की रक्षा करना ही चाहते हैं तो इसके भार के बराबर अपने शरीर का मांस मुझे खाने के लिए दे दीजिए । ” राजा शिवि मुस्कराकर बोले, ” हे बाज! मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है । मैं तुम्हें अपने शरीर का मांस अभी देता हूँ । ”

राजा शिवि ने एक तराजू मँगवाकर उसके एक पलड़े में कबूतर को बिठा दिया और दूसरे पलड़े में अपनी जाँघ का मांस काट कर डालने लगे । राजा शिवि मांस काट-काट कर डालते जा रहे थे परंतु कबूतर का पलड़ा झुका ही रहा । तब राजा शिवि अपनी छाती का मांस काटकर पलड़े पर चढ़ाने लगे । छाती का मांस समाप्त होने पर राजा ने पीठ का मांस डालना आरंभ कर दिया । फिर भी कबूतर वाला पलड़ा झुका ही रहा ।

जब किसी प्रकार भी मांस पूरा न हुआ तो राजा शिवि तराजू पर चढ़ गए । मांस फिर भी पूरा न हुआ । तब उन्होंने तलवार से अपनी गर्दन काटनी चाही ।

अचानक दरबार में एक चमक उत्पन्न हुई । बाज और कबूतर मनुष्य रूप में आ गए । कबूतर ने अर्जुन का रूप ले लिया और बाज ने कृष्ण का । कृष्ण ने राजा शिवि का हाथ पकड़कर कहा- ” बस महाराज! आपकी परीक्षा हो चुकी । ” उन्होंने राजा शिवि के शरीर पर जल छिड़का जिससे वे पहले की भांति कांतिवान हो उठे ।


Hindi Story # 8 (Kahaniya)

अंधेर नगरी चौपट राजा (कहानी) | Story on Andher Nagri Choupat Raja in Hindi

एक गुरु और उसके कुछ चेले तपस्या करने हिमालय की ओर जा रहे थे । रास्ते में जब वे थक गए तो एक नगर में विश्राम करने के लिए रुक गए । सभी को भूख भी लग रही थी । थोड़ी ही देर में चेला बदहवास हालत में दौड़ता-दौड़ता वापस आया । हाँफते-हाँफते उसने बताया- ” गुरुजी, यह नगर तो बड़ा ही अजीब है । यहाँ तो चारों ओर सन्नाटा है । पूछने पर एक नागरिक ने बताया कि यहाँ लोग दिन में सोते हैं और रात को काम करते हैं क्योंकि नगर के राजा की यही आज्ञा है । ”

गुरु जी ने कुछ सोचते हुए आदेश दिया-” हमें यहाँ एक क्षण भी नहीं रुकना चाहिए । यह मूर्खों की नगरी है । कल सवेरे ही हम लोग यहाँ से प्रस्थान करेंगे । ”

रात होते ही नगर में चहल-पहल शुरू हो गई । गुरु के साथ चेले भी नगर घूमने निकल पड़े । वे सभी यह देखकर हैरान हो गए कि वहाँ सभी कुछ एक टके में मिलता है । सोने का कंगन भी एक टके में और पूरी- भाजी भी एक टके में । एक चेला यह देखकर खुशी से फूला न समाया । उसने गुरु के आदेश की अवहेलना कर उसी नगर में रहने का निश्चय किया ।

उन्हीं दिनों नगर के राजा ने एक चोर को फाँसी की सजा सुनाई । जल्लाद ने देखा कि फाँसी का फंदा तो बड़ा बन गया है और चोर की गरदन पतली है । राजा ने आदेश दिया कि चोर को छोड़ दिया जाए और जिस व्यक्ति की गरदन ठीक बैठे, उसे ही पकड़कर लाया जाए ।

राजा के सैनिक मोटे आदमी की तलाश में निकले । ढूँढ़ते-ढूँढ़ते संयोग से चेला सामने आ गया । सैनिक उसे ही पकड़ लाए । चेले ने लाख दुहाई दी कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है पर उसकी एक न सुनी गई । गुरु को यह समाचार मिला तो वे दौड़े-दौड़े आए । गुरु ने राजा से कहा कि इस समय बहुत शुभ मुहूर्त है । जो भी फाँसी पर चढ़ेगा वह अगले जन्म में पूरी धरती का राजा बनेगा ।

यह सुनकर सभी फाँसी पर चढ़ने के लिए उतावला होने लगे । राजा ने कड़ककर कहा- ” यदि इस मुहूर्त में ऐसा ही होगा तो सबसे पहले राजा का अधिकार है । ” यह कहकर वह तुरंत फाँसी पर चढ़ गया ।

गुरु ने समझदारी से चेले की जान बचाई । चेले ने गुरु के चरणों में पड़कर उनसे अपने किए की माफी माँगी ।


Hindi Story # 9 (Kahaniya)

देशभक्ति पर कहानी | Story on Patriotism in Hindi

रूस और जापान में युद्ध छिड़ा हुआ था । रूस की सेना ने एक पहाड़ी पर आक्रमण कर दिया । उस पहाड़ी पर जापान के थोड़े से सैनिक अपनी भारी तोप के साथ डटे थे । रूसी सेना उस तोप पर अधिकार करना चाहती थी । रूस के सैनिकों का आक्रमण बहुत भयानक था । वे संख्या में बहुत अधिक थे । जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा । उस तोप और पहाड़ी पर रूसी सेना ने आधिपत्य कर लिया । तोप चलाने वाले जापानी तोपची को यह बात सहन नहीं हुई कि उसकी तोप से शत्रु उसी के सैनिकों की जान ले ले ।

रात्रिकाल में बिना किसी को सूचित किए पेट के बल सरकता वह उस पहाड़ी पर पहुँच गया । वह तोप के पास तो पहुँच गया, किंतु उसे हटाने अथवा नष्ट करने का उसके पास कोई उपाय नहीं था । उसने कुछ देर तक सोच-विचार किया । अंत में वह तोप की नली में घुस गया ।

रात में वहाँ भारी हिमपात हुआ । तोप की नली में घुसे तोपची को ऐसा अनुभव हुआ कि सर्दी के मारे उसकी नसों के भीतर रक्त जमता जा रहा है । उसकी एक-एक नस फटी जा रही थी । फिर भी वह दाँत में दाँत दबाए रात भर तोप में घुसा रहा । सूर्योदय होने पर रूसी सैनिक तोप के पास आए । वे अपनी सफलता पर खुश हो रहे थे । उन्होंने तोप की परीक्षा करने का मन बनाया ।

तोप में गोला-बारूद भरा गया । जैसे ही तोप छूटी उसकी नली में घुसे जापानी तोपची के चीथड़े उड़ गए । तोप कै सामने का वृक्ष रक्त से लाल हो गया । तोप की नली से रक्त निकल रहा था । रूसी सैनिकों ने वह रक्त देखा तो कहने लगे , ” ऐसा प्रतीत होता है कि तोप छोड्‌कर जाते समय जापानी सैनिक इसमें कोई प्रेत बैठा गए हैं । अब वह रक्त उगल रहा है । आगे पता नहीं क्या करेगा? अत: यहाँ से भाग निकलना ही श्रेयस्कर है । ”

प्रेत के भय से रूसी सैनिक तोप छोड्‌कर उस पहाड़ी से भाग गए । तब जापानी सैनिकों ने पहाड़ी पर पुन: कब्जा जमा लिया । इस प्रकार जापानी तोपची ने अपना बलिदान देकर वह कर दिखाया, जो एक विशाल तथा शक्तिशाली सेना नहीं कर सकती थी । ऐसी थी जापानी सैनिकों की देशभक्ति! अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु हँसते-हँसते प्राण दे देना जापानी बडे गौरव की बात मानते हैं ।


Hindi Story # 10 (Kahaniya)

एन्ड्रोक्लीज़ और शेर पर कहानी | Story on Androcles and the Lion in Hindi

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पुराने समय में यूरोप में धनी लोग अपने यहाँ दास रखा करते थे । उन दासों को अपने स्वामी की हर आज्ञा का पालन करना पड़ता था । ऐसे ही एक दास का नाम एन्ड्रोक्लीज़ था । एन्ड्रोक्लीज़ का स्वामी अपने दासों के साथ पशुवत् व्यवहार करता था । उनसे बहुत काम लिया जाता था फिर भी उन्हें भूखा रहना पड़ता था । एन्ड्रोक्लीज़ को भी दिन-रात यातना सहनी पड़ती । एक दिन वह यातनाओं से तंग आकर चुपके से भाग गया । वह जंगल की पहाड़ियों के बीच एक गुफा में रहने लगा ।

एक दिन वह जंगल में घूम रहा था कि उसने सामने से आते हुए एक शेर को देखा । एन्ड्रोक्लीज़ डर गया । वह शेर से दूर भागना चाहता था परंतु उसे उपयुक्त अवसर नहीं मिला । शेर धीरे- धीरे उसके पास आया और बैठ गया । वह अपना अगला पैर बार – बार उठाकर एन्ड्रोक्लीज़ को कुछ इशारा कर रहा था । उसका भय दूर हो गया । उसने ध्यान से देखा तो पाया कि शेर के पंजे में एक बड़ा-सा काँटा गड़ा हुआ था । उसने तुरन्त काँटा खींचकर निकाल दिया और घाव पर जड़ी-बूटियों का रस डाल दिया । शेर को आराम मिला । उसने एन्ड्रोक्लीज़ को कोई हानि नहीं पहुँचाई ।

शेर और एन्ड्रोक्लीज़ गुफा में एक साथ रहने लगे । इधर एन्ड्रोक्लीज़ को ढूँढने के लिए स्वामी के सिपाही जंगल में घूम रहे थे । उन्होंने एन्ड्रोक्लीज़ को गिरफ्तार कर लिया और अपने स्वामी के पास ले आए । स्वामी ने उसे कारावास में डालने तथा एक मास बाद भूखे शेर के पिंजरे में डाल देने का हुक्म दिया ।

नियत तिथि को स्वामी ने दरबार लगाया । एन्ड्रोक्लीज़ को कारावास से निकालकर भूखे शेर के बड़े से पिंजरे में डाल दिया गया । भूखा शेर लपका परंतु एस्ट्रोक्लीज को देखते ही वह शांत पड़ गया । एन्होक्लीज के पास आकर वह उसके सामने बैठ गया ।

उपस्थित जन-समूह यह दृश्य देखकर चकित रह गया । वास्तविकता यह थी कि यह वही शेर था , जिसके पंजे से एन्ड्रोक्लीज़ ने काँटा निकाला था । शेर एन्ड्रोक्लीज़ को पहचान गया था । एन्ड्रोक्लीज़ ने तब स्वामी को पूरी घटना बतलाई । यह सुनकर सभी लोग चकित रह गए । उन्होंने स्वामी से प्रार्थना की कि एन्ड्रोक्लीज़ को दासता के बंधन से मुक्त कर दे । स्वामी ने लोगों की बात मान ली । उसने एन्ड्रोक्लीज़ को ढेर सारा धन देते हुए कहा ” एन्ड्रोक्लीज़, आज से तुम स्वतंत्र हो । ”


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