Read this essay on ‘Public Awareness’ in Hindi language!

Essay on Public Awareness


Essay Contents:

  1. सामुदायिक जन जागरूकता का अर्थ
  2. सामुदायिक जन जागरूकता  के उद्देश्य
  3. जन जागरूकता एवं संचार
  4. जन जागरूकता के माध्यम
  5. जन जागरूकता कार्यक्रम में बाधाएं


Essay # 1. सामुदायिक जन जागरूकता का अर्थ:

सामुदायिक जन जागरूकता से प्रमुख तात्पर्य है कि समुदाय सदस्य अपनी समस्याओं, आवश्यकताओं, संसाधनों तथा क्षमताओं के प्रति सचेत होकर अपने बीच मौजूद मुद्दों एवं समस्याओं की पहचान कर उनका समाधान कर सके ।

सहभागी आंकलन के फलस्वरूप पहचान किए गये समस्याओं, आवश्यकताओं एवं मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सामुदायिक जन जागरूकता हेतु एक व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता होती है जिससे कि समुदाय सदस्य उत्प्रेरित होकर स्वयं सहायता समूह निर्माण एवं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा समस्याओं के समाधान के लिए अग्रसर हो सके ।

प्रत्येक जन जागरूकता अभियान में स्थानीय विशेषताओं, संस्कृति, परम्पराओं, जीवन शैली तथा संसाधनों का समावेश करने की आवश्यकता होती है जिससे समुदाय इस कार्यक्रम द्वारा प्रेषित संदेशों से अपने आपको पूरी तरह से जोड़ सके ।


Essay # 2. सामुदायिक जन जागरूकता  के उद्देश्य:

ADVERTISEMENTS:

सामुदायिक जन जागरूकता के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं:

i. समुदाय को अपनी आवश्यकताओं, समस्याओं तथा मुद्दों के प्रति सचेत करने के लिए जन जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है ।

ii. समुदाय को अपने संसाधनों तथा क्षमताओं का समुचित उपयोग करने हेतु प्रेरित करने के लिए तथा स्वयं सहायता समूह गठन के माध्यम से अपनी समस्याओं के समाधान हेतु प्रेरित करने के लिए जन जागरूकता कार्यक्रम की आवश्यकता होती है ।

iii. सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के नियोजन, क्रियान्वयन एवं अनुश्रवण में सहभागिता एवं सहयोग करने हेतु तथा विभिन्न सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के उद्देश्यों एवं प्रक्रियाओं से समुदाय को अवगत कराने के लिए जन जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है ।

iv. समूह, संघ अथवा संगठन के उद्देश्यों से समुदाय को अवगत कराने के लिए भी जन जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है ।

स्वयं सहायता समूह गठन प्रक्रिया में जन जागरूकता:

स्वयं सहायता समूह के गठन से पूर्व आवश्यक होता है कि समुदाय सदस्य तथा कार्यकर्त्ता समुदाय की उन समस्याओं, आवश्यकताओं एवं मुद्दों की पहचान करें जिनका समाधान स्वयं सहायता समूह के माध्यम से हो सकता है ।

स्वयं सहायता समूह गठन हेतु जन जागरूकता कार्यक्रम संचालित करने के लिए आवश्यक होता है कि कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय के समक्ष उनकी अपनी समस्याओं, आवश्यकताओं तथा मुद्दों के हल के लिए स्वयं सहायता समूह के रूप में एक विकल्प प्रस्तुत किया जाये तथा समुदाय सदस्यों को इस विकल्प का प्रयोग करने हेतु उचित अवसर एवं वातावरण तैयार किया जाये ।

प्रत्येक गाँव की समस्याएँ तथा आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं । जन जागरूकता कार्यक्रमों की सफलता के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक ग्राम, क्षेत्र एवं वर्ग हेतु जन जागरूकता कार्यक्रमों के संचालन के लिए अलग-अलग रणनीति बनाई जाए । इसका परिणाम यह होगा कि जनजागरूकता कार्यक्रम अधिक सफल होगा तथा समुदाय सदस्यों के बीच स्वयं सहायता समूह को एक विकल्प के रूप में स्वीकार करने में सरलता होगी ।

ADVERTISEMENTS:

स्वयं सहायता समूह गठन हेतु जन जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय सदस्यों के बीच निम्न संदेशों को प्रसारित किया जाता है:

i. स्वयं सहायता समूह की आवश्यकता:

जन जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण समुदाय को अवगत कराते हैं कि समुदाय के अलग-अलग व्यक्तियों के छोटे-छोटे साधन मिलाकर सामूहिक प्रयास से एक दूसरे की समस्याओं का हल एवं आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है ।

अत: कई व्यक्ति मिलकर छोटी-छोटी बचत एवं छोटे-छोटे संसाधनों को एकत्र करते हैं तथा धीरे-धीरे संसाधनों में वृद्धि करते हैं । इस तरह बनाए गये समूह को स्वयं सहायता समूह कहते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

ii. समूह गठन प्रक्रिया:

समुदाय सदस्यों को जन जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से समूह गठन प्रक्रिया से अवगत कराते हैं कि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सामूहिक प्रयासों हेतु किस प्रकार से विशिष्ट समूह का गठन किया जा सकता है ।

iii. समूह से लाभ:

ADVERTISEMENTS:

जन जागरूकता कार्यक्रमों के अन्तर्गत समूह से होने वाले निम्न लाभों के प्रति समुदाय को विशेष रूप से अवगत कराते हैं:

a. छोटी बचत के माध्यम से आर्थिक संसाधनों में वृद्धि तथा छोटी बचत एवं बैंक के सहयोग से आर्थिक विकास जैसे तात्कालिक ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति तथा रोजगार कार्यक्रमों की स्थापना हो सकती है ।

b. साहूकार, ठेकेदार तथा भ्रष्ट अधिकारियों के शोषण से समुदाय सदस्यों का बचाव हो सकता है ।

c. सामूहिक प्रयासी से सामाजिक विकास जैसे साक्षरता, बच्चों की शिक्षा, परिवार तथा समाज के लिए बेहतर स्वास्थ्य, ज्ञान एवं सुविधाओं की उपलब्धता आदि सुनिश्चित की जा सकती है ।


ADVERTISEMENTS:

Essay # 3. जन जागरूकता एवं संचार:

“संचार का अर्थ है कि एक माध्यम से दूसरे माध्यम तक संदेश को इस प्रकार से भेजा जाए कि संदेश के अर्थ एवं उद्देश्य में किसी भी प्रकार का परिवर्तन न हों ।”  यह प्रक्रिया संचार कहलाती है ।

संचार प्रक्रिया में निम्न अवयव होते हैं:

एक अच्छी संचार प्रक्रिया में तीन पहलू होते हैं- भाव (शाब्दिक एवं गैर शाब्दिक), सूचना एवं अभिव्यक्ति । एक अच्छी संचार प्रक्रिया तभी ठीक से संचालित होती है जब संचारकर्त्ता एवं प्राप्तकर्त्ता दोनों ही संदेश को समान भाव से लेते हैं ।

ग्रामीण क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास की परियोजनाओं का संचालन करने एवं जन जागरूकता की प्रक्रिया में संचार का विशेष महत्व होता है । एक कार्यकर्त्ता अथवा समुदाय नेता को अपनी बात कहने के लिए संचार की उचित प्रक्रिया एवं माध्यम का प्रयोग करने की जरूरत होती है ।

I. संचार के प्रकार:

समुदाय में सामान्यतः निम्न प्रकार से संचार होता है:

i. एक पक्षीय संचार- इस तरह का संचार तब होता है जब संचारकर्ता एकतरफा संदेश देता रहता है दूसरे को कुछ भी कहने का मौका नहीं मिलता है ।

ii. द्वि-पक्षीय संचार- इस तरह की संचार प्रक्रिया में वक्ता और श्रोता में से एक बोलता है तो दूसरा सुनता है, दूसरा बोलता है तो पहला सुनता है । इस तरह का संचार अत्यन्त ही प्रभावशाली होता है, जिसमें अनुभव एवं भावनाओं का आदान-प्रदान होता रहता है ।

II. स्तरीय संचार:

इस तरह का संचार तीन प्रकार से होता है:

संचार प्रक्रिया के समय वक्ता एवं श्रोता का भाव एवं व्यवहार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, कभी-कभी ऐसा होता है कि व्यक्ति कहता कुछ है किन्तु चेहरे के भाव एवं व्यवहार कुछ और इशारा कर रहे होते हैं ।

अत: वक्ता का भाव एवं व्यवहार ही तय करता है कि संदेश सही रूप में पहुंचा एवं उद्देश्य की प्राप्ति हुई अथवा संदेश नकारात्मक रूप से पहुंचा और उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।

III. प्रभावी संचार की प्रक्रिया:

संचार के तत्व:

जन जागरूकता कार्यक्रमों में प्रभावी संचार हेतु निम्न तत्वों पर ध्यान देने की विशेष रूप से आवश्यकता होती है:

i. संदेश प्रसारित करते समय सरल भाषा का प्रयोग हो ।

ii. संदेश के प्रति प्रसारकर्त्ता को सही एवं पूर्ण जानकारी हो ।

iii. संचार हेतु उचित स्थान एवं वातावरण का निर्माण किया जाये ।

iv. संचारकर्त्ता में पर्याप्त आत्मविश्वास, उचित भाव एवं व्यवहार हो ।

v. रूचिपूर्ण एवं द्विपक्षीय संचार प्रक्रिया का प्रयोग हो ।

vi. शाब्दिक एवं गैर शाब्दिक दोनों ही तरीकों में सामंजस्य तथा श्रोता एवं वक्ता दोनों के ही विचारों का सम्मान हो ।

vii. संचार करते समय जल्दबाजी न की जाए तथा एक बार में एक ही संदेश दिया जाए ।


Essay # 4. जन जागरूकता के माध्यम:

जन जागरूकता कार्यक्रमों में कार्यकर्त्ताओं द्वारा संदेश देने के लिए कुछ माध्यमों का प्रयोग किया जाता है ।

जो निम्न बातों पर निर्भर करते हैं:

a. संदेश का उद्देश्य तथा श्रोताओं की संख्या ।

b. परिस्थितियों एवं स्थान तथा उपलब्ध संसाधन ।

c. सचारकर्त्ता का कौशल एवं स्थानीय रुचि एवं आवश्यकता ।

जन जागरूकता कार्यक्रमों हेतु संचार के कुछ तरीकों का विवरण अग्रलिखित हैं:

I. गीत:

हमारे जनमानस में गीत रग-रग में बसा हुआ है । कोई त्यौहार हो, विवाह हो, बच्चे का जन्म हो या दुःख का अवसर हो, जन समुदाय ने अलग-अलग अवसरों के लिए तमाम गीत बना रखे हैं ।

अत: अगर समुदाय को जागृत करने के लिए गीतों का प्रयोग करें तो निम्न बातों का ध्यान रखें:

i. समुदाय को उत्प्रेरित करने के लिए विशेष संदेशयुक्त एवं उत्प्रेरक गीत का प्रयोग हो तथा शब्द एवं धुन इस प्रकार से हो कि लोगों को रुचिकर लगे ।

ii. गीत को बार-बार गायें जिससे संदेश की पुनरावृत्ति हो ।

iii. गीत खत्म हो जाने के पश्चात् मुख्य संदेश पर श्रोताओं से चर्चा करें व उनकी राय लें ।

II. नुक्कड़ नाटक:

संचार के साधन के रूप में नुक्कड़ नाटकों का प्रयोग करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें:

i. संदेशयुक्त नाटक की पटकथा तैयार करें ।

ii. जीवन की मिलती-जुलती परिस्थितियों पर नाटक बनाएं जिसके साथ श्रोता अपनी पहचान कर सकें ।

iii. नुक्कड़ नाटक में नाटकीयता कम से कम हो अन्यथा मुख्य संदेश से लोगों का ध्यान बंट सकता है ।

iv. नाटक खत्म होने पर मुख्य संदेश पर श्रोताओं से चर्चा करें व उनकी राय लें ।

III. खादी ग्राफ:

खादी ग्राफ पर कभी चित्रों को तो कभी शब्दों को दर्शाते हैं । इनके पीछे रेगमाल या रूई चिपका देते हैं जिससे यह आसानी से खादी के कपड़े या सूती बोरे पर चिपक सकते हैं ।

खादी ग्राफ का निम्न प्रकार प्रयोग कर सकते हैं:

i. चित्रों को क्रम से एक-एक करके चिपकाते हैं ।

ii. संदेश को एक कहानी के रूप में प्रस्तुत करते हैं ।

iii. प्रदर्शन के पश्चात मुख्य संदेश पर श्रोताओं से चर्चा करते हैं व उनकी राय लेते हैं ।

IV. फड़ प्रदर्शन:

बड़े कपड़े के बैनर (टुकड़े) पर कुछ चित्र बनें होते हैं या फिर संदेश लिखा होता है । प्रदर्शन के दौरान एवं पश्चात लोगों से मुख्य संदेश पर चर्चा करते हैं तथा उनकी राय लेते हैं ।

V. फ्लैश कार्ड:

यह चित्रों की एक श्रृंखला होती है जिसमें निर्धारित क्रम दिखाकर संदेश प्रदर्शित करते हैं । श्रोता के समक्ष एक-एक कार्ड आता जाता है तथा संचारकर्त्ता प्रत्येक कार्ड के पीछे लिखे संदेश को श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करता है ।

क्लैश कार्डों को निम्न प्रकार से प्रस्तुत करते हैं:

i. कार्ड को क्रम से लगाएं ।

ii. प्रत्येक कार्ड के पीछे लिखे संदेश को पहले से ही समझ लिया जाए ।

iii. संभावित प्रश्नों की तैयारी पहले से कर लें तथा कार्ड सही तरीके से प्रदर्शित अर्थात सभी को कार्ड साफ-साफ दिखें ।

iv. एक बार में एक ही कार्ड दिखाएं ।

v. श्रोताओं से पूछे कि उन्हें कार्ड में क्या दिखा एवं अधिक से अधिक श्रोताओं को उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित करें ।

vi. कार्ड में छिपे संदेश को कहानी के रूप में प्रस्तुत करें तथा प्रदर्शन के पश्चात मुख्य संदेश पर श्रोताओं से चर्चा करें ।

VI. पोस्टर प्रदर्शनी:

पोस्टर में बड़े कागज पर चित्र एवं शब्दों के माध्यम से संदेश लिखा होता है ।

वातावरण सृजन अथवा जन जागरूकता के लिए पोस्टरों का निम्न प्रकार से प्रयोग कर सकते हैं:

i. ग्राम स्तर पर पोस्टर प्रदर्शनी आयोजित करें एवं अधिक से अधिक लोगों को भाग लेने के लिए आमंत्रित / प्रोत्साहित करें ।

ii. संदेश में सम्बन्धित पोस्टर ऐसे स्थान पर लगाए जहाँ सबको स्पष्ट दिखाई दे ।

iii. चित्रों में छुपे संदेश के विषय में श्रोताओं से चर्चा करें तथा उनकी राय एवं सुझाव लें ।

VII. अन्य माध्यम:

i. दीवार लेखन:

ग्राम स्तर पर अलग-अलग स्थानों में दीवारों पर अपने संदेशों को लिख देते हैं । यह कार्य ज्यादातर समुदाय सदस्यों से ही करवाना चाहिए ।

ii. पूर्व अनुभवों का आदान-प्रदान:

समुदाय सदस्यों को अलग-अलग स्थानों पर हुए पूर्व अनुभवों से अवगत कराते रहना चाहिए तथा विस्तृत विचार विमर्श करते रहना चाहिए कि इस तरह के अनुभवों से हम क्या लाभ उठा सकते हैं ।

iii. उपलब्ध साहित्य का उपयोग:

समुदाय सदस्यों के बीच उपलब्ध साहित्य का पाठ कराते हैं अथवा पढ़कर सुनाते हैं ।

iv. कठपुतली:

सुविधानुसार कठपुतली का प्रयोग भी कर सकते हैं ।

v. अन्य:

a. फिल्म प्रदर्शन,

b. नौटंकी,

c. जादू का खेल आदि ।


Essay # 5. जन जागरूकता कार्यक्रम में बाधाएं:

ADVERTISEMENTS:

समुदाय स्तर पर जन जागरूकता कार्यक्रम अथवा वातावरण सृजन का कार्य करते समय कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ता है ।

जिसका विवरण अग्रलिखित है:

i. समुदाय के अपने संस्कार, मूल्य एवं पृष्ठभूमि के चलते नए विचारों को स्वीकृति नहीं मिलती ।

ii. महिलाओं की उपलब्धता के सीमित अवसर के कारण उन तक जानकारी नहीं पहुंचती ।

iii. पूर्वाग्रह एवं पूर्व अनुभव के कारण लोग नए विचारों तथा प्रक्रिया को स्वीकार नहीं करते ।

iv. सदस्यों की मानसिक स्थिति एवं हिचकिचाहट ।

v. समुदाय का माहौल तथा परम्पराएँ । नई बातों को लोग सुनते, समझते तो हैं किन्तु स्वीकार नहीं करते ।

vi. कार्यकर्त्ताओं का समुदाय पर अविश्वास तथा समुदाय के विषय में पूरी जानकारी का अभाव होने के कारण समुदाय की क्षमताओं का सही उपयोग नहीं होता ।

vii. समुदाय सदस्यों के अनुरूप सही माध्यम प्रयुक्त न होने के कारण जागरूकता एवं वातावरण सृजन नही हो पाता ।

ADVERTISEMENTS:

viii. कार्यकर्त्ता तथा समुदाय के बीच सामंजस्य की कमी के कारण भी अक्सर जागरूकता कार्यक्रम सफल नहीं होता ।

ix. कार्यकर्त्ता तथा समुदाय सदस्यों में आत्मविश्वास की कमी ।

निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि- जन सहभागिता की अवधारणा का विकास शनै: शनै: हुआ है । नियोजित विकास के प्रारम्भ में यह मानकर चला जाता था कि सरकारी कार्यक्रम चूँकि सामान्य जनता का हितलाभ सोचकर बनाए गये हैं, जनता की भागीदारी स्वत: प्राप्त हो जाएगी किन्तु बाद के अनुभव से यह स्पष्ट हुआ कि जब तक लक्षित समदुाय किसी कार्यक्रम के नियोजन में सम्मिलित नहीं होगा तब तक कार्यक्रम क्रियान्वयन, अनुश्रवण व मूल्यांकन आदि में उनकी भागीदारी की अपेक्षा करना निरर्थक हैं ।

अब इस विचारधारा में आमूल परिवर्तन आया है और जन समुदाय को नियोजन, कार्यान्वयन, अनुश्रवण व मूल्यांकन आदि में सन्निहित करने के पूरे प्रयास किए जा रहे हैं । यह भी स्पष्ट हो चुका है कि सशक्तीकरण की शुरूआत सहभागिता के लिए आवश्यक शर्तें एवं जन सहभागिता की विधियाँ तथा उनके मध्यम से सूक्ष्म स्तरीय नियोजन किया जाना सम्भव है । इसलिए जन सहभागिता किसी भी परियोजना अथवा विकास प्रक्रिया को सार्थक व टिकाऊ बनाने के लिए परम आवश्यक है ।

जन सहभागिता की भावना एक बार विकसित हो जाती है तो फिर समुदाय के लिए कोई भी कार्य करना असम्भव वरन् दुष्कर भी नहीं रहता । सहभागी वातावरण तैयार होने के पश्चात स्वयं सहायता समूहों का गठन और उनका प्रभावी प्रबन्धन सुगमतापूर्वक किया जा सकता है ।


Home››Social Issues››