ग्यारहवीं योजना में महिलाएँ पर निबंध | Essay on Women in 11th Planning Commission!

राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के तीसरे चरण के आकलन के मुताबिक 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की 41 प्रतिशत महिलाएँ औपचारिक शिक्षा से वंचित हैं। जबकि, इसी आयु वर्ग के मात्र 18 प्रतिशत पुरुष औपचारिक शिक्षा से महरूम हैं। ग्यारहवीं योजना के दृष्टिकोणपत्र में इस परिदृश्य को बदलने की बात है। यह दस्तावेज कहता है, “यह एक महत्वपूर्ण विभाजन है जो हमें लिंग आधारित समस्याओं पर तत्काल ध्यान देने के लिये बाध्य करता है। समाज को इस विकृति से मुक्त करने के लिये विशेष केंद्रित प्रयास किए जाएंगे और महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक सशक्तीकरण के लिये उपयुक्त माहौल का निर्माण किया जाएगा”।

यह एक स्वागतयोग्य कथन है। हालांकि, पिछली सभी योजनाओं में लैंगिक असमानता के बारे में इसी किस्म की चिंताएं व्यक्त की गई थीं। कुल मिलाकर, भारतीय अर्थव्यवस्था आज विकास के एक अलग पथ पर अग्रसर है । यहां यह याद रखना उपयोगी होगा कि इस विकास दर के कारण अर्थव्यस्था को शीघ्र ही कौशल-संकट से जूझना होगा। पिछले साल आरक्षण के मुद्दे पर यह तथ्य उभरकर सामने आया था । शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में सार्वजनिक धन से संचालित सभी शैक्षिक संस्थानों की सीटों में 54 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जांच-पड़ताल के लिये गठित विभिन्न कार्यदलों कें मुताबिक सबसे बड़ी समस्या योग्य शिक्षक ढूंढने की होगी। सीटों में बढ़ोतरी के अपेक्षित लक्ष्य को तभी हासिल किया जा सकता है जब शैक्षिक माहौल में आमूल पारिवर्तन हो। कई भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ऐसे परिवार की योजना बना रहे हैं जहां क्लासरूम निर्देशों को टेलिविजन मॉनीटरों के जरिये प्रसारित किया जाएगा । लेकिन यह सिर्फ उच्च स्तरीय शिक्षण-कौशल के अभाव का मसला नहीं है।

भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने वाले सेवा क्षेत्र में विविध किस्म की दक्षता की मांग है। यदि लड़कियों एवं अब तक वंचित रही जातियों में उपयोगी साक्षरता के व्यापक विकास पर बल नहीं दिया गया तो निकट भविष्य में इन सभी क्षेत्रों को मानव संसाधन का भारी अभाव झेलना पड़ेगा । जब तक स्कूली बच्चों एवं उनकी माताओं का स्वास्थ्य बेहतर नहीं होगा, वे अपनी शिक्षा के कारगर उपयोग में सफल नहीं होंगे ।

इसी तथ्य को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की गई है। इस मिशन को भी पैरा-मेडिकल एवं नर्सिंग स्टाफों की भारी कमी से जूझना पड़ेगा । दरअसल, साक्षरता आधारित कौशल का अभाव इस योजना के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को बाधित करेगा । लिहाजा, अतीत में महिलाओं एवं हाशिये पर रहे अन्य समूहों को मुख्यधारा में लाने के प्रयासों की असफलता से सबक लेना जरूरी होगा |

इस दृष्टिकोणपत्र में, प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा बड़े पैमाने पर बीच मे ही पढ़ाई छोड़ने का उल्लेख है। बीच में पढ़ाई छोड़ने का राष्ट्रीय औसत वर्ष 2003 -2004 के दौरान 31 प्रतिशत था । सर्वशिक्षा अभियान का लक्ष्य वर्ष 2010 तक आठवीं कक्षा तक के सभी विद्यार्थियों को सार्वभौम प्राथमिक शिक्षा मुहैया कराना है। सभी प्रकार के करों पर 2 प्रतिशत शिक्षा अधिभार लगाकर इस कार्यक्रम के लिये धन की व्यवस्था की गई है । माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के लिये धन की व्यवस्था के लिये वर्ष 2007 के केंद्रीय बजट में एक प्रतिशत का अतिरिक्त अधिभार लगाया गया है । यदि हम स्कूली व्यवस्था में प्रवेश करने वाले छात्रों द्वारा पढ़ाई पूरी किए बगैर स्कूल छोड़ने के मूल कारणों को नहीं समझेंगे तो धन जुटाने की यह सारी कवायद अर्थहीन साबित होगी ।

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इस दृष्टिकोणपत्र में बीच में पढ़ाई छोड़ने के उच्च दर के संबंध में रोशनी डाली गई है। दयनीय उपस्थिति एवं पोषण पर दोहरा प्रहार करने के लिहाज से ‘ मिड-डे मील ‘ योजना एक बड़ी पहल साबित हुई । इस पत्र में मिड-डे मील योजना को सर्वशिक्षा अभियान में विलय की बात बिल्कुल उचित है । शिक्षकों की गैरहाजरी की समस्या और छात्राओं पर घरेलू कार्यो को निबटाने के दबाव के बारे मे भी इस दृष्टिकोणपत्र में चर्चा की गई है। किंतु, इन समस्याओं के प्रति सजगता और समाधान की दिशा में किए गए विभिन्न प्रयासों के बावजूद प्राथमिक शिक्षा में संपूर्ण उपस्थिति सुनिश्चित नहीं हो पाई है।

इस दृष्टिकोणपत्र में प्राथमिक विद्यालयों की दयनीय आधारभूत संरचना के बारे मे एनआईईपीए द्वारा किए गए अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि मात्र 28 प्रतिशत विद्यालयों की कक्षाओं में बिजली की व्यवस्था है और सिर्फ आधे में दो से अधिक शिक्षक या कक्षाएं हैं। किंत, बेहतर आधारभूत संरचना ही छात्राओं को स्कूलों की ओर आकर्षित करने और उन्हें वहां टिकाए रखने के लिये काफी नहीं है जब तक कि उनके माता-पिता को इसमें कुछ फायदा नहीं नजर आता । छात्राएं और उनकी माताएं आठ वर्षों तक स्कूलों से तभी जुड़ी रहना चाहेंगी जब उन्हें इसका कोई फायदा समझ में आएगा । एक औसत ग्रामीण छात्रा की मां इस बात से डरती है कि स्कूल की पढ़ाई कहीं उसकी बेटी की सोच को ग्रामीण जीवन का विरोधी न बना दे। ऐसी माताओं के लिर लड़कियों का स्कूल एक अवसर की बजाय खतरा बन जाता है। शहरी केंद्रों, जहां लड़कियों को सम्मानित रोजगार के अवसर दिखाई देते हैं, से सटे ग्रामीण इलाकों की छात्राओं के लिये तो स्कूल एक आर्थिक वरदान है । जबकि, दूरदराज के ग्रामीण छात्राओ के साथ ऐसा नहीं होता है ।

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आज ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों को ऐसे व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों के साथ जोड़ने की आवश्यकता है जो विशेष रूप से महिलाओं को नर्सिंग जैसे विशिष्ट कार्यो का प्रशिक्षण देते हैं । ऐसा तभी संभव है जब इन सभी प्रशिक्षण केंद्रों को जीआईएस से संबद्ध किया जाए । ग्लोबल इंफार्मेशन सिस्टम (जीआईएस) एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो पिछले 20 वर्षो से उपयोग में लाया जा रहा है। अब भारत की जनगणना से संबंधित आंकड़े एक जी आई एस प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैं।

जीआईएस का उपयोग कर एक व्यावसायिक और प्राथमिक स्कूल के बीच लिंक स्थापित किया जा सकता है तथा उन व्यावसायिक गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया जा सकता है, जिसमें माध्यमिक स्तर की शिक्षा जरूरी नहीं है। प्रत्येक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र को एक निश्चित दायरे में आवस्थित ग्रामीण स्कूलों को प्रेरित एवं नियंत्रित करने तथा स्कूली प्रक्रिया से इतर एक कैरियर का मार्गदर्शन करने का दायित्व सौंपने की आवश्यकता है।

दूसरी ओर महिलाओं के सिर से लंबी दूरी से पानी ढोने जैसे अनुत्पादक कार्यो का बोझ कम करने की आवश्यकता है। एक बार फिर देश की वाटरशेड परियोजना की रूपरेखा को जीआईएस प्लेटफार्म पर रखने की जरूरत है । अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग कर जल स्रोतों के लिये एक पंचवर्षीय योजना बनाने की आवश्यकता है, ताकि ग्रामीण जनता तक पानी आसानी से पहुंच सके । लैगिक विभाजन को पाटने के लिये बहुत कुछ करने की आवश्यकता है । काफी लंबे समय से भारत में योजना निर्माण की प्रक्रिया क्षेत्रकार (विभागवार) आवंटनों एवं स्कीमों पर केंद्रित रही है। जबकि इस प्रक्रिया ने अतंरिक्ष संबंधी आयामों पर बहुत कम ध्यान दिया है। अपनी सूचना एवं अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षमता पर गर्व करने वाले इस देश में इन दोनों में से किसी भी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल केंद्रीय स्तर पर योजना निर्माण में नहीं किया गया है। हालांकि, कुछ राज्यों ने इस दिशा में शुरुआत कर दी है।

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