शिक्षक दिवस पर निबंध | Essay on Teachers’ Day in Hindi!

शिक्षक, नेता, विचारक, दार्शनिक के रूप में सफलता प्राप्त करने वाले भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे । राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किए थे ।

उनके शिक्षा प्रेम और विद्वता के कारण भारत वर्ष में उनका जन्म दिवस 5 सितम्बर ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है । प्राचीन काल में यह मान्यता थी कि बिना गुरू के ज्ञान नहीं होता और हो भी जाए तो वह फल नहीं देता । यह मान्यता कुछ हद तक सही भी थी, क्योंकि व्यक्ति जो कुछ पढ़ता है उससे उसे मात्र शब्द ज्ञान प्राप्त होता है उर्थ ज्ञान नहीं ।

अर्थ ज्ञान के लिए ही व्यक्ति को शिक्षक की आवश्यकता होती है । अर्थ ज्ञान के अभाव में वह उस गधे की तरह होता है, जो अपने पीठ पर लदे चन्दन की लकड़ी के भार को जानता हें, लेकिन चन्दन को नहीं जानता । भारत-शिक्षा के लिए प्राचीन काल से ही विश्व प्रसिद्ध रहा है ।

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पहले शिक्षा गुरुकुलों में दी जाती थी । छात्र आश्रमों में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे । वे शिक्षा की पूर्ण समाप्ति पर ही अपने घरों में वापिस लौटते थे । वेद, वेदांत, उपनिषद्, शस्त्र-अस्त्र की शिक्षा के अतिरिक्त उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक शिक्षा भी दी जाती थी । शिष्य की समस्याओं और शंकाओं का निवारण उस का शिक्षक सदैव करता था । शिक्षक का स्थान बहुत ऊँचा था । राजा भी शासन कार्यों में उसकी सलाह लेते थे ।

संसार परिवर्तनशील है । मान्यताएं बदलती हैं और ध्वस्त होती हैं । लेकिन शिक्षा की आवश्यकता व्यक्ति को जीवन भर पड़ती है । जिस प्रकार माली पौधे की कांट-छांट करके उसे सुन्दर बनाता है, उसी प्रकार शिक्षक भी अपने विद्यार्थियों के दुर्गुणों को दूर कर उनमें सद्‌गुणों का विकास कर उन्हें उच्च पद पर बैठाता है । जैसे कि चाणक्य ने अपने शिष्य चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाया था । इसलिए गुरू ब्रह्म, विष्णु और महेश के समान पूज्यनीय है ।

देश को महान् नेता, वैज्ञानिक, दार्शनिक, डॉक्टर इंजीनियर देने वाले शिक्षक की उपेक्षा कदाचित् उचित नहीं । 5 सितम्बर को राष्ट्रपति कुछ शिक्षकों को पुरस्कार देते हैं । यह पुरस्कार राज्य स्तर पर भी शिक्षकों को मिलता है । राजनैतिक कृपापात्र ही इस पुरस्कार की चयन प्रक्रिया में आ पाते हैं । कुशल और योग्य शिक्षक अपने जीवन में यह पुरस्कार प्राप्त नहीं कर पाते ।

5 सितम्बर को स्कूलों का कार्यभार बच्चों को सौंपा जाता है । कुछ चुने हुए छात्र-छात्राओं को अध्यापक और अध्यापिका बनाया जाता है और वे अध्यापन का कार्य करते हैं । शरारत करने वाले छात्र जिस जिम्मेदारी से कार्य का संचालन करते हैं वह देखते ही बनता है ।

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विद्यालय में प्रार्थना समाप्त होने के बाद इन बाल अध्यापकों से परिचय कराया जाता है । इस अवसर पर बाल अध्यापक अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं । कहीं-कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं । अगले दिन प्रिंसिपल बाल अध्यापकों द्वारा सुव्यवस्थित ढंग से चलाए गए अध्यापन कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं ।

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