Here is an essay on ‘Democracy in India’ especially written for school and college students in Hindi language.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन द्वारा लोकतंत्र की परिभाषा देते हुए कहा था कि लोकतंत्र का अर्थ है प्रजा की सरकार, प्रजा के लिए, प्रजा के द्वारा ।

लेकिन आज के मायने में और वो भी भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के परिदृश्य में लोकतंत्र की परिभाषा ही बदलती नजर आ रही है जिसका सीधा सा अर्थ लगाया जा सकता है कि सरकार का राज, सरकार के लिए, सरकार के द्वारा अर्थात सरकार के लोगों का ही काम होगा, सरकार के लोगों द्वारा ही होगा और सरकार के लिए ही होगा ये तो आज के परिदृश्य में लोकतंत्र की परिभाषा है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है तो न ही पुन: वह सरकार ही आयेगी न सरकार के लोग ही आयेंगे इसलिए परिस्थिति के अनुसार चलो खूब चलो और चलते जाओ ।

चपरासी की नियुक्ति में साक्षात्कार में स्वविवेक अपनाओं और सत्ता के सहयोगियों को आगे बढ़ाओ उनको लोकतंत्र में वोट डालने की वाजिब कीमत चुकाओं साथ ही पार्टी के नेता जी का कहना है कि अमुख व्यक्ति ने चुनाव में बड़ा अच्छा सहयोग किया था तो उसको उसका फल तो मिलना ही चाहिए । आगे से और अच्छी मेहनत करेगा ।

क्लर्क की नौकरी में लिखित परीक्षा स्वयं पास कर लेना और साक्षात्कार के लिए नेताजी है ना । साक्षात्कार लेने वाले अधिकारी से कह देंगे । स्वविवेक से काम लिया था कोई गड़बड़ झाला भी नहीं है न ही कोई सबूत किसे कौन चैलेन्ज करेगा । पहले पार्टी के लोगों के काम होंगे बाकी बाद में क्या करेगा ? स्वविवेक की स्वतंत्रता है साक्षात्कार कर्ता की ।

सिपाही की भर्ती परीक्षा में शारीरिक परीक्षा तो पास कर ली । लिखित परीक्षा भी पास कर ली परन्तु साक्षात्कार में रह गया, पता नहीं सब बातों में से एक-दो बात ही नहीं बता पाया था अब कहां चैलेन्ज करू । साक्षात्कार कर्ता का स्वविवेक है फेल हो गया ।

कुछ लोगों ने पुलिस से सांठ-गांठ करके एक व्यक्ति के विरूद्ध मुकदमा पंजीकृत करा दिया । पुलिस ने आरोपी को उठाकर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया । पुलिस ने गम्भीर आई.पी.सी. की धारायें लगायी सभी धाराए गैर जमानती थी मजिस्ट्रेट महोदय ने केवल आई.पी.सी. की धारायें देखी और संज्ञेय अपराध मानते हुए स्वविवेक से जेल भेज दिया । कुछ दिन जेल में रहने के बाद माननीय उच्च न्यायालय से जमानत

मिली ।

बाद मे विशेष अनुसन्धान शाखा द्वारा अन्वेषण करने पर मामला फर्जी पाया गया तो अनुसंधानकर्ता द्वारा मुकदमाकर्ता पर 182,211 आई.पी.सी. की संस्तुति कर दी गई अंतिम रिपोर्ट न्यायालय में स्वीकृति के लिए आयी तो मुकदमाकर्ता द्वारा अंतिम रिपोर्ट को प्रोटेस्ट किया गया कि विवेचना ठीक ढंग से नहीं हुआ है तो फिर भी मजिस्ट्रेट महोदय द्वारा स्वविवेक का प्रयोग करते हुए पुन: विवेचना के आदेश कर दिये जाते     हैं ।

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प्रदेशों में निगमों, बोर्डो के उपाध्यक्ष (राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त) बनने के लिए कोई योग्यता की आवश्यकता नहीं है केवल आपको सत्तारूढ राज्य सरकार के मुखिया से अपनी नजदीकियां होनी चाहिए बाकी कार्य तो सरकार के मुखिया अपनी प्रक्रिया द्वारा कर लेंगे ये तो उनका स्वविवेक का कार्य है कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं है ।

किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने के लिए भी कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है इसमें भी स्वविवेक का ही कार्य है साथ ही प्रसाद प्रयन्त भी है बस अन्तर इतना भर है कि उका पद के लिए सत्तारूढ केन्द्र सरकार के मुखिया से नजदीकियां होनी चाहिए ।

चाहे राजनीति से रिटायर्ड हो चुके हों और वोट बनाऊ नेता न रहे हो । राज्यपाल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 156(1) के अनुसार महामहिम राष्ट्रपति के स्वविवेक का पद है । जो प्रधानमंत्री की राय व स्वविवेक पर निर्भर करता है आखिर लोकतंत्र में स्वविवेक का प्रश्न कहां है ?

लोकतंत्र में स्वविवेक से राजशाही की गंध आती है देश के रणनीतिकारों, सरकार के सिपहसालारों और बुद्धिजीवियों को इस संवेदनशील विषय पर मंथन करना चाहिए की लोकतंत्र में स्वविवेक का प्रश्न कहां उठता है, लोकतंत्र में सभी कार्य, सभी नियुक्तियां लोकतांत्रिक ढंग से ही होनी चाहिए । स्वविवेक से लोकतंत्र की छवि धूमिल होती है जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा संकेत नहीं हो सकता ।

भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जिसमें लगभग पचास करोड़ से अधिक मतदाता हैं । भारत के प्रत्येक नागरिक को जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है वह लोकतंत्र की प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकारी है ।

भारत में प्रत्येक जगह प्रत्येक विभाग में लोकतंत्र है बेशक वह लोकतंत्र किसी भी रूप में हो भारत में संसद से लेकर सड़क तक लोकतंत्र है । संसद में चुनकर आये जनप्रतिनिधि लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा चुने जाते हैं तो सड़क परिवहन कर्मचारी संघ के पदाधिकारी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा ही चुने जाते हैं ।

भारत का लोकतंत्र महान है जहां सफाई कर्मचारी संघ का चुनाव भी लोकतांत्रिक तरीके से होता है यहा तक कि भारत की प्रत्येक सरकारी और निजी सभी विभागों में लोकतंत्र है चाहे आई॰ए॰एस॰ एसोशिएसन का चुनाव हो या किसी कम्पनी कर्मचारी संघ का चुनाव, सभी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया जाता है ।

देश में सैकडों-हजारो ऐसे संघ हैं जिनमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया जाता है । रेजिडेन्ट वेलफेयर एसोशिएसन हो, शिक्षक संघ हो या बार कौंसिल, सभी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से पदाधिकारी का चुनाव किया जाता है ।

सम्पूर्ण भारतवर्ष में ऐसा कोई भी संघ या एसोशिएशन नहीं है जिसमें लोकतंत्र का पालन न किया जाता हो परन्तु सैद्धान्तिक लोकतंत्र और व्यवहारिक लोकतंत्र में अत्यधिक अन्तर है सैद्धान्तिक रूप में जो लोकतंत्र, हमको दर्शित होता है वह वास्तव में लोकतंत्र होता है परन्तु जो लोकतंत्र हमें व्यवहारिक रूप में देखने को मिलता है वह लोकतंत्र कम राजतंत्र अधिक दिखायी देता है जिसके विभिन्न पहलू हैं जैसे राज्य विधान सभा चुनाव, लोकसभा चुनाव आदि ऐसे चुनाव है ।

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जिनमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया जाना मुश्किल ही नहीं नामुश्किल सा दर्शित होता है । लोकतांत्रिक व्यवस्था कहती है कि किसी भी मतदाता को किसी भी प्रकार का धन, बल, बाहुबल या अन्य किसी प्रकार का लालच नहीं देंगे । ऐसे सैद्धान्तिक रूप से कहा गया है लेकिन व्यवहारिक रूप में यदि देखा जाए तो विधान सभा चुनाव या लोकसभा चुनाव सभी में धन, बल, बाहुबल का प्रयोग किया जाता है ।

सभी ब्राण्ड की मदिरा का सेवन भी कराया जाता है । इन सबके अलावा कई अन्य प्रकार के लाभ भी मतदाता वर्ग व प्रत्याशी एजेन्टों को उपलब्ध करायी जाती है । जिसके बदले में उनका मत प्राप्त किया जाता है ।  कुछ इसी तरह भारतीय लोकतंत्र अपनी परम्परा निभा रहा है । जहां तक लोकसभा चुनाव या विधान सभा चुनावों का प्रश्न है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था लगभग विफल है ।

देश का बुद्धिजीवी व शिक्षित मतदाता चुनाव प्रक्रिया के दौरान मतदान केन्द्र से काफी दूर अपनी पिकनिक मनाता है उसे चुनाव से कोई वास्ता नहीं है न ही वह चुनाव में कोई रूचि दिखाता है जब देश का शिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग चुनाव से दूर रहता है और ऐसे लोगों के बिना अर्थात अनपढ और अशिक्षित लोग अपने प्रतिनिधि चुनते हैं तो क्या हम आशा कर सकते हैं कि ऐसे लोगों के बिना चुने गये प्रतिनिधि जो इस देश के विषय में सोचने-समझने की शक्ति रखते हैं ।

इस देश का भला कर सकते हैं अर्थात कदापि नहीं । देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का यदि गहनता से आंकलन किया जाए तो चौकाने वाले परिणाम सामने आते हैं, जब हम पाते हैं कि सौ प्रतिशत मतदाताओं में से चुनाव प्रक्रिया में बामुश्किल पैतालिस से पचास प्रतिशत मतदाता ही भाग लेते हैं और उनमें भी बुद्धिजीवी व शिक्षित मतदाताओं का आंकलन किया जाए तो मुमिकन होगा कि बामुश्किल पांच प्रतिशत ही चुनाव में हिस्सा ले पाते हैं ।

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बाकी जो चालीस प्रतिशत जनता चुनाव में हिस्सा लेती है वे किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता ही होते हैं जो अपनी वे अपने परिवार की वोट डलवाते हैं और गरीब व निचले तबके के लोग जो पैसा लेकर या अन्य किसी लालच में चुनाव प्रक्रिया से सदैव जुड़े रहते हैं ।

यदि यह कहा जाये कि वोट डालने वाले चालीस प्रतिशत लोगों में राजनीतिक कार्यकर्ता उनके परिवार तथा पैसा या अन्य किसी लालच में खरीदे गये गरीब मतदाता ही शामिल होते हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का नकारात्मक पहलू यह है कि यहां पर प्रतिनिधि का चुनाव अधिकतर अशिक्षित और लालची लोगों के द्वारा किया जाता है ।

यही कारण है कि देश की व्यवस्था के प्रतिनिधियों का चुनाव सही लोगों द्वारा नहीं किया जाता जब सही लोगों द्वारा प्रतिनिधि का चुनाव नहीं किया जाता तो सही लोग प्रतिनिधि के रूप में चुनकर ही नहीं आते और जब सही लोग चुनकर नहीं आते तो वे सही तरीके से समस्याओं का समाधान भी नहीं कर पाते ।

यही कारण है कि आज आजादी के तिरेसठ वर्ष बाद भी भारतीय जनता मूलभूत सुविधाओं से महरूम है और भारतीय जनप्रतिनिधि एक बार यदि जनप्रतिनिधि के रूप में चुन लिये जाते हैं तो उनकी व उनके परिवार की आर्थिक व सामाजिक स्थिति इतनी अधिक मजबूत हो जाती है कि उनकी आने वाली तीन पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित हो जाता है यही भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिसमें चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी शाम, दाम, दंड व भेद सभी नीति अपनाते हैं ।

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भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी को बुद्धिजीवी कर्मठ ईमानदार न्यायप्रिय होना आवश्यक नहीं है आवश्यक है व्यक्ति का बाहुबली व धनबली होना साथ ही राजनीतिक विसात बिछाने में माहिर होना भी वर्तमान भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक आवश्यकता हो गई है यही कारण है कि वर्तमान समय में भारतीय लोकतंत्र में बुद्धिजीवी ईमानदार और स्वच्छ छवि के नेताओं का अकाल सा पड़ गया है और चंद बाहुबली व धनबली नेता इस भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को खिलौने की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं भारतीय व्यवस्था में ऐसे नेताओं की भरमार हो गई है बाकी कमी को पूरा करने का कार्य भारतीय राजनीतिक पार्टियां करती हैं केवल गुंडई के बल पर चुनाव जीतना अपना जन्मसिद्ध अधिकतर मानते हैं ।

जो बिना जांच पड़ताल किये अपराधी प्रवृति के अशिक्षित लोगों को पार्टी की सदस्यता देकर उनको पहले अपने कार्यकर्ता तदोपरान्त पदाधिकारी बनाकर राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा दे रही है । शायद ही ऐसी कोई राजनीतिक पार्टी हो जिसमें घोषित अपराधी घोषित, धोखेबाज, हत्यारे, मौजूद न हो वो किसी न किसी तरह एक बार पार्टी में घुस जाते हैं उसके बाद धीरे-धीरे पदाधिकारी और पार्टी टिकट लेकर जनप्रतिनिधि की कुर्सी तक पहुंच जाते हैं और कुर्सी पर बैठकर भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को ठेंगा दिखाने का कार्य करता है जिससे प्रभावित होती है भारतीय जनता जो न चाहते हुए भी ऐसे जनप्रतिनिधि को झेलने का कार्य करती है ।

भारतीय लोकतंत्र में सभी कार्यों में लोकतांत्रिक व्यवस्था का पालन किया जाता है । यहां तक कि चपरासी की नियुक्ति के लिए भी शैक्षिक योग्यता निर्धारित है परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है तदोपरान्त साक्षात्कार होता है । साक्षात्कार उत्तीर्ण करने पर चपरासी की नियुक्ति होती है ।

सिपाही की नियुक्ति में भी शैक्षिक योग्यता निर्धारित है शारीरिक परीक्षण भी होता है । लिखित परीक्षा पास करनी होती है साक्षात्कार भी देना होता है । सभी मानकों में उत्तीर्ण होने के उपरान्त मैरिट सूची बनती है तब जाकर कोई सिपाही बन पाता है । यहां तक कि देश के प्राथमिक शिक्षक बनने के लिए भी स्नातक शैक्षिक योग्यता निर्धारित है उसके बाद कठिन लिखित परीक्षा पास करनी पड़ती है ।

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लिखित परीक्षा के उपरान्त दो वर्ष का प्रशिक्षण होता है तब कहीं जाकर प्राथमिक शिक्षक बनता है जो देश के बच्चों को शिक्षा का पाठ पढ़ाकर अधिकारी, डाक्टर, इंजीनियर, नेता बनाते हैं । देश के अधिकारियों की यदि बात करें जो सम्पूर्ण देश को संचालित करने का कार्य करते हैं तो उस कुर्सी पर पहुंचना हर किसी के बूते की बात नहीं है वहां तक पहुंचने के लिए उम्मीदवार को लोहे के चने चबाने पडते हैं और कई-कई वर्ष के अध्ययनोपरान्त सिविल सेवा में चयनित हो पाते हैं और कुछ का तो सपना ही रह जाता है ।

लेकिन दुर्भाग्य इस देश की व्यवस्था का और उससे अधिक दुर्भाग्य इस देश के शिक्षित युवाओं का जो कठोर परिश्रम करने के उपरान्त देश के अखिल भारतीय सेवा में चयनित होते हैं और उनको ऐसे लोगों के निर्देशों का पालन करना पड़ता है । जो शैक्षिक योग्यता में उनसे काफी कम होते है । ज्ञान शून्य होते हैं ।

लेकिन भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमजोरी का लाभ उठाकर देश को संचालित करने वाले पदों पर पहुंच जाते हैं । भारत में राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्ता बनने के लिए न तो कोई शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता है न ही कोई चरित्र प्रमाण पत्र चाहिए न ही कोई अनुभव, कैसी विड़म्बना है इस देश की कि अनपढ़ लोग पड़े लिखे लोगों को शासित करते हैं कल तक जो जेल की काल कोठरी में बंद होता है वह चुनाव जीतकर नेता बन जाता है ।

बेशक उसमे नेता बनने का एक भी गुण मौजूद न हो लेकिन वह फिर भी नेता बन जाता है और पढे लिखे अधिकारियों को अपनी राजनीतिक ताकत से शासित करता है यह चिंतन का विषय नहीं है कि राजनीतिक पार्टी अपने कार्यकर्ता बनाने के लिए जनप्रतिनिधि बनाने के लिए कोई शैक्षिक योग्यता निर्धारित नहीं करते ।

कोई चरित्र प्रमाण पत्र नहीं लेते और न कोई जांच पड़ताल करते कि उक्त व्यक्ति पूर्व में किसी अवैधानिक कार्यों में संलिप्त तो नहीं रहा है या किसी गैर कानूनी व्यवसाय का मालिक तो नहीं हैं जिसको राजनीतिक संरक्षण से और अधिक पोषित करेगा ऐसी जांच पड़ताल करना राजनीतिक पार्टीयाँ आवश्यक नहीं समझती यही कारण है कि देश की राजनीति में अपराधियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है अन्यथा मुख्यमंत्री बनने के उपरान्त किसी पुराने आपराधिक मुकदमें के निर्णय में दोषी पाये जाने के बाद कुछ ही महीनों में इस्तीफा देना नहीं पड़ता ऐसे उदाहरणों की भारतीय राजनीति में भरमार है जिनको केवल इस कारण पद त्याग करना पड़ता है कि उनको पूर्व में चल रहे आपराधिक मुकदमे में दोषी पाया गया था ।

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण और कमजोर पहलू यही है कि कुछ ऐसे लोग राजनीति में हैं जिन्हें जेलों मे होना चाहिए था वे ही लोग राजनीति के मायने को बदल रहे हैं अन्यथा देश की राजनीति और देश के राजनीतिक मूल्य विश्व के अन्य देशों में भी अनुसरण किये जा रहे हैं ।

यदि भारत वर्ष की सभी राजनीतिक पार्टियां दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दें और एक ”राजनीतिक सुधार एवं योग्यता विधेयक” संसद में पास करें कि ऐसा कोई भी व्यक्ति जो पेशेवर अपराधी हो या आपराधिक गतिविधयों में संलिप्त हो या आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने का आदी हो किसी भी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता पाने के लिए अयोग्य हो साथ ही राजनीतिक पार्टी की सदस्यता के लिए शैक्षिक योग्यता भी उच्च निर्धारित की जाए ऐसा न करने वाले राजनैतिक दलों की मान्यता समाप्त करने का भी प्रावधान हो । शैक्षिक योग्यता कम से कम स्नातक रखने का सख्ती के साथ पालन हो ।

तभी भारतीय राजनीति में कुछ हद तक सुधार की आशा की जा सकती है नहीं तो वह दिन दूर नहीं है जब भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेता कम अपराधी अधिक दिखाई देंगे और राजनीति का पूर्णत: अपराधीकरण हो जायेगा क्योंकि यदि पिछले आंकड़ों पर दृष्टिपात करें तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का अर्थ ही बदल गया है ईमानदार और बुद्धिजीवी व्यक्ति राजनीति को नापसंद कर रहा है दबंग और अपराधियों की फौज राजनीति में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है यही कारण है कि आज भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था का स्वरूप ही बदल गया है संसद हो या विधान सभा सभी जगह दंबगई देखने को मिल रही है । शालीनता और मर्यादा सब गुजरे जमाने की बात हो गई है । नेताओं के आचरण को यदि देखा जाये तो नेता कम और दबंग अधिक दिखाई देते हैं ।

किसी भी रूप से भारतीय लोकतंत्र अपनी मर्यादा लांघता दिखाई पड़ रहा होता है जब देश की पंचायत में छीना झपटी, मारपीट, गाली गलौच तक की स्थिति पैदा हो जाती है तो क्या ऐसा अनैतिक और अमर्यादित आचरण करना देश के लोकतंत्र के मान को और बढाता है कदापि नहीं ।

भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है लेकिन भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का यदि अध्ययन किया जाये तो अत्यधिक कमियां दिखाई देती हैं । गरीबी और अशिक्षा के कारण भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था मात्र औपचारिक लोकतंत्र है ।

कहां जा सकता है कि जिसमें सब कुछ दिखता तो लोकतांत्रिक ही है लेकिन होता सब कुछ अलोकतांत्रिक है यही कारण है कि भारतवर्ष मे लोकतांत्रिक व्यवस्था का ढांचा लगभग विफल है जो अपनी औपचारिकता मात्र पूरी कर रहा है ।

लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का पूर्ण अधिकार है लेकिन भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी बात कहने की, अपने अधिकारों को मांगने की, सच्चाई की, आवाज उठाने की और जुर्म का साथ न देने की भी सजा भुगतनी पड़ती है तभी तो भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक में सहनशीलता जुर्म व अत्याचारों को सहने की, मौन रहने की, अधिकारों को न मांगने की आदत सी बन गई है और बिना अधिकारों के जीने की अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था है ।

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का जो सबसे महत्वपूर्ण और अहम पहलू है वह यह है कि मतदान के समय अधिकतर मतदान केंदों पर शाम मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाता और उनके मतों को डालने का कार्य दबंग करते हैं जो प्रत्याशी के एजेंट होते हैं जिनका कार्य केवल यही होता है कि गरीब व कमजोर वर्ग के मतदाताओं को मताधिकार से वंचित रखना तभी तो उनके प्रिय नेताजी चुनाव जीत पाते     हैं ।

यह भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का ऐसा अनछुआ पहलू है जिसको जानकर कुछ को तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है लेकिन कुछ अपने इस कार्य के विषय में पढ़कर अपने आप को गौरवान्वित अवश्य महसूस कर रहे होंगे ।

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जबकि एक मजबूत लोकतंत्र के लिए यह बहुत ही दुखद है कि लोकतंत्र की नींव कहे जाने वाले मतदाता को ही उसके अधिकारों से वंचित कर दिया जाए उसको मताधिकार का प्रयोग करने से रोका जाए तो क्या हम कह सकते हैं कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था महान है ।

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था वर्तमान समय में एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह हो गई है जिसमें कम्पनी एक्ट के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति कम्पनी रजिस्ट्रार के पास अपनी कम्पनी रजिस्टर्ड कराकर अपना व्यवसाय शुरू कर अपनी दाल रोटी निकाल ही लेता है और जब कम्पनी में उत्पादन होना बंद हो जाता है जब कोई आय कम्पनी से नहीं होती तो कम्पनी का मालिक अपनी कम्पनी को अन्य किसी कम्पनी में या तो विलय कर देता है या कम्पनी को पूर्णत: बेचकर किसी अन्य कम्पनी में स्वयं नौकरी शुरू कर देता है ।

कुछ ऐसा ही हाल वर्तमान समय में भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का है जिनमें कोई भी व्यक्ति चुनाव आयोग जाकर राजनीतिक पार्टी के रजिस्ट्रेशन का प्रार्थना पत्र देकर राजनीति करना शुरू कर देता है भारत में जनसंख्या इतनी है कि सौ-दो सौं कार्यकर्ता सबको मिल ही जाते हैं ।

जिनके बल पर सम्बंधित राजनीतिक पार्टी को राजनीति चमकाने का मौका मिल जाता है और तथाकथित पार्टी अध्यक्ष का रोजगार भी चल ही जाता है और जब तथाकथित पार्टी अध्यक्ष को आभास होता है कि रोजगार भी नहीं चल रहा है और जनता भी साथ नहीं दे रही है तो उक्त महोदय अपनी पार्टी का विलय किसी जनाधार वाली पार्टी में कर देता है । सम्बंधित पार्टी का कोई पद लेकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करता है । कुछ इसी तरह भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का चक्र घूमता रहता है ।

लोकतंत्र का जो सबसे महत्वपूर्ण लाभ है वह यह है कि एक आम आदमी की पहुंच सत्ता के शीर्ष तक हो सकती है ओर वह उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ लेने से पीछे नहीं रह सकता है तभी तो एक रोडपति को रातों-रात करोड़पति बनते देखा जा सकता है और ऐसा केवल भारतवर्ष में ही होता है जहां सत्ता के शीर्ष से नजदीकी के कारण रातों-रात करोड़पति बनने के उदाहरणों की भरमार है ऐसे लोग जो दो वक्त की रोटी को मोहताज थे और सत्ता की नजदीकी के कारण करोड़ों अरबों की सम्पत्ति के मालिक बन गये ऐसा केवल लोकतांत्रिक व्यवरथा के कारण ही हो पाया ।

लेकिन इसके लिए व्यक्ति को थोड़ा क्रियाशील वाकपटु निर्भिक व चापलूसी के गुणों से भरपूर होना चाहिए फिर उसको आगे बढ़ने से रोकने वाला कोई नहीं है । एक उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण एक आम आदमी रातों-रात करोड़पति बन जाता है एक व्यक्ति जो एक साधारण सा किसान था उसको नेतागिरी करने की मन में आया वह वाकपटु, क्रियाशील निर्भीक व चापलूसी के गुणों से परिपूर्ण था उसने क्षेत्र के सांसद के घर पर आना-जाना शुरू किया ।

काफी दिनों के बाद सांसद जी की दृष्टि में उस व्यक्ति ने थोड़ा अपनी पहचान इतनी बना ली कि अमुख व्यक्ति अमुख गांव का रहने वाला है जब उस व्यक्ति की पहचान सांसद जी की नजरों में इतनी हो गई कि वह जान गये कि अमुख गांव में इस व्यक्ति से अधिक क्रियाशील व्यक्ति कोई नहीं है क्योंकि यह व्यक्ति अपना सर्वाधिक समय सांसद जी के साथ व्यतीत कर रहा है तो इससे अधिक क्रियाशील तो कोई हो ही नहीं सकता । तो अब सांसद जी के दष्टि में वह व्यक्ति अपना स्थान बनाने, में सफल हो गया ।

एक दिन सांसद जी ने बातों-बातों में ही गांव के विकास की बात की तो तथाकथित नेताजी भी पीछे नहीं रहे वाकपटुता में निपुणता का लाभ उठाते हुए सांसद महोदय से गांव के रास्तों का विकास कराने के लिए पन्द्रह लाख रूपये मंजूर करा लिया ।

उक्त व्यक्ति वाकपटुता और अपनी चालाकी का प्रयोग करते हुए सम्बंधित गांव के प्रधान पर भी भारी था उसने गांव प्रधान पर भी अपनी चालाकी का इस्तेमाल कर उसको अगली योजना का पुन: प्रधान बनवाने का सपना दिखाकर गांव के रास्तों का विकास करा दिया और जो पैसा सांसद महोदय ने गांव विकास के लिए दिया ।

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उसको अपना ठेकेदारी का लाईसेंस लेकर स्वयं के माध्यम से गांव के रास्तों का विकास दिखाकर डकार लिया जो भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक पहलू है अब दूसरे पहलू पर यदि गौर करें तो अब वह व्यक्ति आर्थिक रूप से मजबूत स्थिति में पहुंच गया ।

उसने एक नई कार ली और अपनी नेतागिरी में और अधिक चार चांद लगाने के लिए निकल लिये अब राज्य विधान परिषद के चुनावो का समय आ गया तो तथाकथित नेताजी ने जीताऊ उम्मीदवार से सम्पर्क साधकर उससे अपनी नजदीकीयां बढ़ाई अपने प्रभाव को बताया और यह भी बताया कि उसके पास कितने गांवों के प्रधान व क्षेत्र पंचायत सदस्य हैं ।

जो विधान परिषद चुनाव में आपके पक्ष में वोट डालने के लिए कितना पैसा माग रहे हैं और यदि इतना पैसा आप नहीं देते हैं तो दूसरा उम्मीदवार भी इन लोगों से सम्पर्क कर रहा है इसलिए यदि आप उन लोगों का वोट अपने पक्ष में चाहते हैं । तो में आपकी मदद कराने को तैयार हूं ।

सम्बंधित उम्मीदवार ने प्रति पचास हजार रूपये वोट देने के लिए पैसा उपलब्ध करा दिया अब तथाकथित नेताजी ने उम्मीदवार को पूरा सहयोग दिया और अपनी चालाकी व वाकपटुता का परिचय देते हुए वोट देने वाले ग्राम प्रधानों व क्षेत्र पंचायत सदस्य को बीस हजार रूपये में वोट देने के लिए तैयार कर लिया और तीस हजार प्रति मतदाता ग्राम प्रधान व क्षेत्र पंचायत सदस्य बचत कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमियों का लाभ उठाकर उक्त उम्मीदवार को विजयी बनवाया ।

विजयी होने पर उक्त विधान परिषद सदस्य से अन्य प्रकार के लाभ भी तथाकथित नेताजी अर्जित कर अपनी स्थिति मजबूत करने में लगे हुए हैं । ऐसे स्वार्थ की व्यवस्था ही वर्तमान समय में भारतीय लोकतांत्रितक व्यवस्था है । जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना हित तलाश करता रहता है ।

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