जैव विविधता को कैसे संरक्षित करें Jaiv Vividhata Ko Kaise Sanrakshit Karen. Read this article in Hindi to learn about how to conserve biodiversity.

विश्व में जैव विविधता का निरन्तर हास हो रहा है, अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और अनेक संकटग्रस्त हैं । जैव विविधता का बने रहना पारिस्थितिक तन्त्रों की क्रियाशीलता एवं पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आवश्यक है । आज सम्पूर्ण विश्व जैव विविधता के प्रति सचेष्ट है तथा अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर इसे संरक्षित करने का प्रयत्न हो रहा है ।

जैव विविधता को संरक्षित करने की दो पद्धतियां हैं:

1. स्वस्थाने या स्व-आवासीय संरक्षण

2. बहिस्थाने संरक्षण

1. स्वस्थाने या स्व-आवासीय संरक्षण:

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने स्वास्थाने संरक्षण को परिभाषित करते हुए स्पष्ट किया है कि ‘पारिस्थितिक तन्त्र एवं प्राकृतिक आवासीय स्थलों का इस प्रकार संरक्षण करना है जिससे विभिन्न प्रजातियाँ प्राकृतिक पर्यावरण में विकसित हो सकें ।’

यह संरक्षण का एक उचित माध्यम है क्योंकि इसमें चारों ओर के प्राकृतिक वातावरण को संरक्षित किया जाता है जो जीवों को विकसित होने तथा उनके अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक होता है । यह संरक्षण जैव विविधता प्रधान स्थलों में ही किया जाता है ।

सर्वप्रथम इस प्रकार के विशिष्ट स्थलों का चयन किया जाता है तथा उनमें विशिष्ट प्रजातियों का संरक्षण प्राकृतिक रूप से किया जाता है । इसके लिए जीव मण्डल रिजर्व अभयारण्य राष्ट्रीय पार्क आदि की स्थापना की जाती है ।

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विश्व के सभी देश इनके प्रति ध्यान देने लगे हैं और अपने-अपने देश में उन्होंने इसकी स्थापना की है । ये स्थल न केवल जैव विविधता को संरक्षित करते हैं अपितु प्राकृतिक स्थल के साथ विशिष्ट प्रजातियों के आश्रय स्थल होने के कारण पर्यटकों के भी आकर्षण का केन्द्र होते हैं ।

जीव मण्डल रिजर्व की स्थापना का कार्यक्रम यूनेस्को द्वारा (1971) ‘मानव एवं जीवमण्डल कार्यक्रम’ के अन्तर्गत प्रारम्भ किया गया । भारत में नीलगिरी, नंदा देवी, नोकरेक (मेघालय) मानस, सुन्दरवन (प.बंगाल), मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु) ग्रेटनिकोबार, सिमिलीपाल (उड़ीसा), डिब्रु साईखोवा (असम), देहंग देवांग (अरुणाचल प्रदेश), पचमढ़ी (मध्य प्रदेश), कंचनजंघा (सिक्किम) में स्थापित किए गए ।

राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्यों की स्थापना देश के विभिन्न विशिष्ट क्षेत्रों में की गई है । बाघ परियोजना, सिंह परियोजना, मगरमच्छ परियोजना, गैण्डा परियोजना, हाथी परियोजना, पक्षी विहार, सेतली संरक्षण गृह भी स्वस्थानिक जैव विविधता संरक्षण के अन्तर्गत किया जा रहा है ।

2. बहिर्स्थाने संरक्षण:

जैव विविधता को उनके प्राकृतिक आवास स्थलों से बाहर संरक्षण करना भी आवश्यक है जो बहिस्थाने संरक्षण द्वारा किया जाता है । यह जीव विज्ञान पार्क, पादपीय उद्यान, वन संस्थानों एवं कृषि शोध केन्द्रों द्वारा किया जाता है । इसमें आनुवंशिक संसाधन केन्द्रों की स्थापना कर जैव तकनीक से जीवों की संख्या को बनाये रखा जाता है प्राकृतिक आवास स्थलों के नष्ट होने से कृत्रिम आवासीय क्षेत्रों को विकसित कर जैव विविधता को संरक्षित किया जाता है ।

भारत में हिमालय की तलहटी, पश्चिमी घाटी, दक्षिण की पहाड़ियों एवं पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में इस प्रकार के स्थलों का विकास किया गया है । औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए पाँच हर्बल उद्यान 135 एकड़ भूमि में स्थापित किए गए है ।

मानस राष्ट्रीय उद्यान में को संरक्षित करने का कार्यक्रम तथा मद्रास मगरमच्छ बैंकों की स्थापना इसी प्रकार के कार्यक्रम हैं । भारत सरकार द्वार स्थापित ‘National Bureau of Plant Genetic Resources (NBGR)’ नई दिल्ली तथा ‘National of Animal Genetic Resources’ (NBAGRS) करनाल इस दिशा में महत्वपूर्ण शोध कार्य कर रहे हैं ।

जैव विविधता संरक्षण के अन्तर्राष्ट्रीय प्रयत्न:

जैव विविधता किसी एक देश से सम्बन्धित नहीं अपितु यह विश्वव्यापी है अतः इसके संरक्षण में वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है ।

इसी को दृष्टिगत रखते हुए अनेक अन्तर्यष्ट्रीय संगठन (जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ भी सम्मिलित है) कार्यरत हैं, जिनमें प्रमुख का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है:

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प्रकृति संरक्षण का अन्तर्राष्ट्रीय संघ:

इसे अब ‘विश्व संरक्षण संघ’ के नाम से जाना जाता है । यह संगठन ‘Red List of Threatened Species’ जिसे “Red Data Book” भी कहते हैं उसे तैयार करता है । इसमें विश्व की संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं । इसका प्रतिवर्ष नवीनीकरण किया जाता है ।

वर्तमान में इस सूची में 11,167 जीव एवं पादपों की प्रजातियाँ सम्मिलित हैं । प्रत्येक सूचीबद्ध प्रजाति का सम्पूर्ण वर्णन दिया गया है तथा उसके संरक्षण के विश्वव्यापी उपाय किए जाते है । CITES अर्थात “Convention on Trade in Endangered Species” एक विश्व संगठन अमरीकी अगुवाई में है ।

यह 1970 में गठित किया गया जिसके 118 देश सदस्य हैं । यह जंगली जन्तुओं और पादपों की रक्षा में संलग्न है । इसके अन्तर्गत लगभग 30,000 प्रजातियों की पहचान की गई है जिनका व्यापार प्रतिबन्धित है । इसको प्रभावी बनाने हेतु नियमित सम्मेलन किया जाता है, वर्ष 2002 नवम्बर में चिली के सेन्टीयागो शहर में इसका सम्मेलन किया गया था ।

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जैविकीय विविधता संघ:

1992 के पृथ्वी सम्मेलन में जैविकीय विविधता संघ का गठन किया गया तथा दिसम्बर, 1993 में की गई जो वर्तमान में जैव विविधता संरक्षण का अग्रणी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है ।

इसमें जैव विविधता संरक्षण हेतु चार प्रमुख सिद्धान्त स्वीकार किए गए:

(1) आक्रामक प्रजातियों के विरुद्ध युद्धस्तर पर कार्यवाही करना,

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(2) अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों को एक निर्देशिका देना जिससे वे जैव विविधता को बनाए रखें और इस दिशा में वित्तीय सहायता दें,

(3) वनोन्मूलन को रोकने के उपाय करना तथा वन प्रबन्ध को सतत विकासोन्मुख बनाना, और

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(4) जैव विविधता संरक्षण की योजना तैयार करना और 2010 से उसे पूर्ण प्रभावशाली बनाना ।

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संगठन ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सुरक्षा (UNEP) के साथ मिलकर “Global Biodiversity Outlook, 2001” भी प्रकाशित किया । Critical Ecosystem Partnership Fund का गठन अगस्त, 2000 में विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ द्वारा किया गया ।

यह जैव विविधता के संरक्षण हेतु विशेषकर ‘संवेदनशील क्षेत्र’ (हॉट स्पॉट्) के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है । इसके अतिरिक नम भूमि की जैव विविधता संरक्षण हेतु और भी जैव विविधता संरक्षण “The World Heritage Convention” भी जैव विविधता संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

राष्ट्रीय स्तर पर जैव विविधता संरक्षण:

भारत में जैव विविधता के संरक्षण पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है । यहाँ जीव मण्डल रिजर्व, राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्यों की पूर्ण श्रृंखला विकसित की गई है, जिनसे विभिन्न पारिस्थितिक तन्त्रों में जैव विविधता संरक्षण सरकारी स्तर पर किया जा रहा है । राज्य स्तर पर भी इसके लिए विभागीय स्तर पर कार्य किया जाता है । अनेक स्वयंसेवी संगठन भी इस दिशा में कार्यशील हैं । इसके लिए अनेक कानून भी बनाए गए हैं, जिन्हें समय-समय पर संशोधित किया जाता है ।

प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियमों के अतिरिक्त प्रमुख अधिनियम निम्न हैं:

1. The Environment Protection Act, 1986

2. The Fisheries Act, 1897

3. The Forest Act, 1927

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4. The Wildlife Protection Act, 1972

5. The Wildlife (Protection) Amendment Act, 1991

6. The Wildlife (Protection) Amendment Act, 2002

7. The Biodiversity Act, 2002

जैव विविधता अधिनियम, 2002 अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता संघ के प्रस्तावों के अनुरूप गठित किया गया है । एक्ट के तहत राष्ट्रीय जैव विविधता अभिकरण (National Biodiversity Authority, NBA) का भी गठन किया गया है । यह अभिकरण केन्द्र सरकार को जैव विविधता संरक्षण की दिशा में सलाह देता है । साथ ही देश में जैव विविधता बनाए रखने में सहयोग करता है ।

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