पर्यावरण प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण Paryaavaran Prabandhan Aur Pradooshan Niyantran! Read this article in Hindi to learn about Environmental Management and Pollution Control.

पर्यावरण प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष प्रदूषण नियंत्रण है । प्रदूषण वर्तमान विश्व की एक ऐसी समस्या है जिसका प्रभाव मानव, जीव-जंतुओं, वनस्पति के साथ-साथ पर्यावरण के सभी घटकों पर पड़ता है और इसका रूप दिन-प्रतिदिन विकराल होता जा रहा है ।

जल, वायु, भूमि, शोर, रेडियोधर्मिता प्रदूषण की प्रकृति एवं प्रभाव तथा उसके नियंत्रण के कतिपय उपायों का विस्तार से विवेचन विगत अध्यायों में किया जा चुका है । संपूर्ण विवेचन से यह स्पष्ट है कि विकसित एवं विकासशील सभी देश प्रदूषण की चपेट में हैं और इसके प्रति सचेष्ट भी हैं ।

आवश्यकता है एक समन्वित प्रयास की और वह प्रयास है उचित प्रबंधन अर्थात् सभी प्रकार के प्रदूषणों पर नियंत्रण हेतु एक क्रमबद्ध प्रक्रिया को अपनाया जाये, तभी इस दिशा में सफलता प्राप्त की जा सकती है । अनेक देशों में प्रदूषण नियंत्रण हेतु अधिनियम बने हैं, हमारे देश में भी जल और वायु प्रदूषण को नियंत्रण में करने हेतु कानूनी प्रावधान हैं और एक विशद् अधिनियम पर्यावरण संरक्षण एक्ट, 1986 है । किंतु हम देख रहे हैं कि प्रदूषण पर नियंत्रण प्रभावशाली नहीं हो पा रहा है ।

इसे प्रभावशाली बनाने हेतु न केवल भारत अपितु विकासशील देशों को निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:

(i) सभी पर्यावरण अधिनियमों को सफलतापूर्वक लागू करने हेतु पर्याप्त संख्या में वैज्ञानिकों एवं तकनीकी विशेषज्ञों का होना आवश्यक है

(ii) प्रदूषण कर्त्ताओं को उनके सामाजिक दायित्वों के प्रति जाग्रत करना आवश्यक है । उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि स्वयं के लाभ हेतु सामाजिक उत्तरदायित्व से विमुख न हों

(iii) प्रदूषण के प्रति जन जागृति अति आवश्यक है जिससे वे प्रदूषणकर्त्ता न बनें तथा प्रदूषण के विरुद्ध आवाज उठा सकें

(iv) प्रदूषण संबंधी मामलों में न्यायालय को शीघ्र निर्णय देने तथा उन्हें प्रचारित करने की आवश्यकता है

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(v) प्रदूषण नियंत्रक उपायों को सस्ता एवं सुगम बनाया जाये तथा

(vi) राजनीतिक इच्छाशक्ति ।

इन सभी के द्वारा प्रदूषण नियंत्रण की उपयुक्त व्यवस्था में योग दिया जा सकता है । अधिकांशतः प्रदूषणकर्त्ता उद्योगपति अथवा समर्थ व्यक्ति होते हैं जो अपनी सामर्थ्य का दुरुपयोग कर पर्यावरण प्रबंधन में बाधा डालते हैं । दूसरी ओर एक विशाल सामान्य जन होता है जिसे इसकी समुचित जानकारी नहीं होती और वह उनके कुप्रभावों से अनभिज्ञ रहकर प्रदूषण में वृद्धि करता रहता है ।

इस प्रकार के समुदाय हेतु जन-जागरण एवं प्रदूषण नियंत्रण के साधारण उपायों की जानकारी के कार्यक्रम आवश्यक हैं । ये दोनों ही कार्य प्रबंधन में सम्मिलित हैं । एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य है पुनरीक्षण अर्थात् जो कार्य किये जा रहे हैं वे ठीक से किये जा रहे हैं या नहीं एवं उनके परिणाम क्या हैं? क्योंकि पर्यावरण के नाम पर आज व्यापार चल रहा है जिसमें सभी वर्ग के व्यक्ति यहाँ तक कि विशेषज्ञ भी सम्मिलित हैं ।

प्रदूषण नियंत्रण के प्रबंधन के अंतर्गत राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय निगमों एवं संस्थाओं, स्वशासी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यों का पुनरीक्षण एवं सुधार हेतु निम्नांकित कदम उठाने चाहियें:

(i) उनके द्वारा अपनायी गई कार्य प्रणाली की क्षमता का आकलन,

(ii) जल, वायु, भूमि प्रदूषण को रोकने में सफलता का प्रतिशत,

(iii) वित्तीय संसाधनों के अनुपात के किये गये कार्यों का आकलन,

(iv) उनके द्वारा शोध एवं विकास (R & D) में योगदान,

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(v) वे पक्ष जहाँ ये असफल हुए हैं असफलता के कारण एवं विश्लेषण,

(vi) उनके प्रति जनता की प्रतिक्रिया,

(vii) उनकी जन जागरण की क्षमता एवं उसका उपयोग,

(viii) भावी योजना के आधार पर क्या उन निगमों एवं संस्थाओं को चलाया जाये अथवा नई संस्थाओं का गठन किया जाये ।

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प्रत्येक देश को अपने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में तथा राज्यों को क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में अपनी पर्यावरण नीतियों का निरंतर पुनरीक्षण करना चाहिये तथा प्राथमिकता वाले क्षेत्रों/ पक्षों में उचित प्रबंधन के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण को प्रभावशाली बनाना चाहिए ।

इसके लिये आवश्यक है:

(i) पुनरीक्षण जाल को सक्षम, उपादेय एवं प्रभावशाली बनाना,

(ii) समयानुसार विविध प्रदूषण स्तरों की जानकारी देना,

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(iii) वर्तमान अधिनियमों का कहाँ तक पालन किया जा रहा है तथा उनमें क्या कमियाँ हैं,

(iv) पर्यावरण सूचना तंत्र को स्थापित करना तथा सभी प्रकार के तथ्यों, आँकडों आदि को शोधार्थियों एवं सामान्य लोगों तक पहुँचाना,

(v) पर्यावरण शोध एवं विकास क्रियाओं को प्राथमिकता देना,

(vi) पर्यावरण शिक्षा, जन जागरण को एक आंदोलन के रूप में चला कर प्रदूषण के खतरों से सचेत कर, सामान्य जनमानस को इसके नियंत्रण हेतु प्रेरित करना,

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(vii) पर्यावरण प्रदूषण की समस्या के निराकरण हेतु मानव-शक्ति जुटाना अर्थात् वैज्ञानिक, तकनीशियन, कार्यकर्ता आदि उपलब्ध कराना एवं

(viii) वित्तीय प्रावधान कराना ।

वास्तव में प्रदूषण नियंत्रण हेतु निरंतर प्रयास की आवश्यकता है । इसका प्रबंधन कभी समाप्त नहीं होता, उसका कार्यरूप परिवर्तित हो सकता है । प्रदूषण नियंत्रण हेतु जहाँ वायु, जल, भूमि आदि हेतु पृथक प्रबंधन की आवश्यकता है वहीं इसके समग्र प्रबंध की भी आवश्यकता है ।

इसके लिये यह जानना अथवा निर्धारित करना आवश्यक है कि:

(i) क्या नियंत्रित किया जाये?

(ii) कितना नियंत्रित किया जाये?

(iii) किस गति से नियंत्रित किया जाये?

(iv) कहाँ नियंत्रित किया जाये? ओर

(v) कैसे नियंत्रित किया जाये?

नियंत्रण का मानदण्ड निर्धारण, प्रयोगशालाओं की व्यवस्था, उपकरणों की व्यवस्था तथा समुचित वित्त व्यवस्था करना आवश्यक है । सरकार के साथ निजी संस्थाओं एवं संस्थानों की भी इसमें महती भूमिका है ।

जल प्रदूषण प्रबंधन के प्रमुख पक्ष हैं:

(i) अपशिष्ट पदार्थों को जल राशियों में नहीं मिलने दिया जाये,

(ii) घरों से निकलने वाले जल-मल का निस्तारण जलाशयों में न हो,

(iii) जल-मल को उपचारित कर उसके पुन: उपयोग (सिंचाई हेतु) व्यवस्था की जाये,

(iv) पेयजल स्रोतों के निकट गंदा पानी एकत्र नहीं होना चाहिये, न उन्हें गंदा किया जाये,

(v) उद्योगों से रसायन मिश्रित जल को जल राशियों में छोड़ने पर प्रतिबंध होना चाहिये ।

(vi) कृषि कार्यों में अत्यधिक कीटनाशकों के प्रयोग में कमी की जाये,

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(vii) जलाशयों के जल का परीक्षण एवं नियमित सफाई,

(viii) जन साधारण में जल प्रदूषण के प्रति जागति,

(ix) वर्तमान में प्रदूषित जल को शुद्ध करने की समुचित व्यवस्था,

(x) राष्ट्रीय स्तर पर जल प्रदूषण की योजना बनाना एवं उसका क्रियान्वयन आदि ।

वायु प्रदूषण के प्रबंधन के प्रमुख तथ्य हैं:

(i) घरों में धुआंरिहित ईंधनों के उपयोग का प्रचलन,

(ii) स्वचालित वाहनों से उत्पन्न धुएँ को इंजन में सुधार एवं रख-रखाव से कम करना,

(iii) कोयला चालित इंजनों के स्थान पर डीजल एवं विद्युत चालित इंजन का प्रयोग,

(iv) उद्योगों से निकलने वाले जहरीले धुएँ को मार्जकों तथा निस्यंदकों

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से नियंत्रित करना,

(v) उद्योगों को बस्ती से दूर स्थापित करना,

(vi) उच्च आकाश में गैसों का विसर्जन,

(vii) उद्योगों पर प्रदूषण नियंत्रण के अधिनियमों का सख्ती से पालन करना ।

जल एवं वायु के समान ही भूमि एवं शोर प्रदूषण हेतु भी उचित प्रबंधन प्रणाली आवश्यक है । सर्वाधिक सक्षम प्रबंधन रेडियोधर्मी प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु चाहिये, अन्यथा तनिक सी चूक से चेरेनोबिल जैसी दुर्घटना हो सकती है और लाखों लोगों का जीवन पलों में समाप्त हो सकता है । वास्तव में पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने का एक सक्षम माध्यम उचित एवं प्रभावशाली प्रबंधन व्यवस्था है । समुचित प्रबंधन के अभाव में अच्छी योजना भी असफल हो सकती है ।

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