जनगणना-२०११ पर निबंध | Essay on Census-2011 in Hindi!

देश की 15वीं जनगणना के अनंतिम आंकड़े देश के महापंजीयक व जनगणना आयुक्त सी. चंद्रमौली और गृह सचिव जी.के. पिल्लई ने 31 मार्च, 2011 को जारी कर दिया है । इस बार की जनसंख्या के आकड़ों ने देश की बदलती तस्वीर को पेश किया है ।

जनसंख्या बड़ी जरूर है, लेकिन उसके बढ़ने की दर कम हुई है । नई जनगणना के मुताबिक 1 मार्च. 2011 को देश की आबादी 1,21,01,93,422 करोड़ हो गई है । इस प्रकार देश की जनसंख्या में 18.15 करोड़ (17.64 प्रतिशत) की वृद्धि 2001-11 के दौरान हुई ।

जनगणना 2011 के आकड़ों के अनुसार देश में पुरुषों की संख्या अब 62,37,24,248 और महिलाओं की संख्या 58,64,69,174 पहुंच गई है । वर्ष 2001 के मुकाबले वृद्धि की दर में 3.90 फीसदी की कमी आई है । इस बार राष्ट्रीय स्तर पर लिंगानुपात में सुधार हुआ है, लेकिन छह साल की उम्र तक बाल लिंगानुपात में चिंताजनक कमी आई है । यह अनुपात प्रति 1000 लडुकों पर 927 से घटकर 914 हो गया है । हालांकि, देश में प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 933 से बढ्‌कर अब 940 हो गई है ।

देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला प्रदेश उत्तर प्रदेश (19.95) करोड़ तथा सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम (6.07) लाख है । उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की आबादी मिलकर अमेरिका से अधिक है । भारत की वर्तमान 1 अरब 21 करोड़ की आबादी अमरीका, इण्डोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान, बांग्लादेश और जापान की कुल आबादी के बराबर है ।

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यही नहीं दुनिया की 17.5 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है । इस प्रकार आबादी के मामले में भारत विश्व में चीन के बाद नम्बर दो पर है और यह कहने में संकोच नहीं है कि आने वाले समय में भारत चीन से आगे निकल जाएगा ।

मौजूदा जनगणना के आकड़ों का एक महत्वपूर्ण पक्ष प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या में सुधार होना है और यह पिछले दशक के 933 के मुकाबले इस दशक के दौरान 940 है । कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम हो चुके हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और चंडीगढ़ में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या बढ़ना भी देश के लिए एक सुखद स्थिति है । सर्वाधिक लिंगानुपात वाला राज्य केरल (1084) और सबसे कम लिंगानुपात वाला राज्य हरियाणा (877) है ।

राष्ट्रीय साक्षरता की दर पर यदि गौर करें तो यह पिछले दशक की तुलना में करीब 10 प्रतिशत बड़ी है । देश में इस समय करीब 82.2 प्रतिशत पुरुष एवं 65.5 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं । इस दौरान महिला साक्षरता दर 11.8 प्रतिशत और पुरुष साक्षरता दर 6.9 प्रतिशत की दर से बढ़ी है । सर्वाधिक साक्षर राज्य केरल (93.91%) है, जबकि सबसे कम साक्षरता वाला राज्य बिहार (63.82%) है ।

देश में घटता बाल लिंगानुपात निश्चित रूप से चिंता का विषय बन गया है । 2001 में कुल जनसंख्या का करीब 16 प्रतिशत बच्चे 0-6 आयु वर्ग मे थे, लेकिन 2011 में यह संख्या घटकर 13 प्रतिशत रह गई है । जनगणना के ये कड़े अभी अनंतिम हैं । 15वीं जनगणना के वास्तविक कड़े 2012 में प्राप्त होंगे ।

लोगों में पढ़ने की ललक तेजी से बढ़ रही है । सीमित संसाधनों के बावजूद साक्षरता दर में इजाफा हुआ है । दूसरे हमारे देश में साक्षरता में महिलाओं एवं पुरुषों के बीच काफी गैप था, लेकिन पिछले दस सालों में यह अन्तर 21 फीसदी से घट कर 16 फीसदी रह गया है । यद्यपि इसे दस फीसदी से भी नीचे लाना है ।

इसमें अभी समय लगेगा, लेकिन यह सही दिशा में बढ़ने का संकेत है । पिछले दस सालों में देश में कुल साक्षरता दर 64.83 फीसदी से बढ़ कर 74.09 फीसदी की है । यह वृद्धि अच्छा संकेत है, लेकिन तबियत यह जानकर बाग-बाग हो जाती है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं करीब-करीब दो गुनी रपतार से बढ रही हैं ।

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पुराष साक्षरता 75.26 फीसदी से बढ़कर 82.14 फीसदी हुई है । यानी बढ़ोतरी 6.9 फीसदी की, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 53.67 फीसदी से 65.46 फीसदी बड़ी है । यह बढ़ोतरी 11.8 फीसदी की है । इतना ही नहीं, दस राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों दिल्ली, त्रिपुरा, गोआ, केरल, लक्षद्वीप, मिजोरम, दमनदीव, पुदुचेरी, चण्डीगढ़ तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह ने 85 फीसदी साक्षरता का लक्ष्य समय से एक साल पूर्व ही हासिल कर लिया है ।

जनगणना के यह परिणाम मानव विकास के सम्बन्ध में क्षेत्रीय असमानताओं में कमी और पिछड़े राज्यों के बेहतर परिणामों की ओर भी कुछ हद तक इंगित करते हैं । उदाहरण के लिए 2001 में केवल 15 राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में जनसंख्या वृद्धि दर 2 प्रतिशत से कम थी, जबकि अब यह 25 प्रान्तों में 2 प्रतिशत से कम है यानी पूर्व में बडी संख्या में प्रान्त जनसंख्या वृद्धि दर के हिसाब से पिछड़े थे, अब ऐसा कम प्रान्तों मेरह गया है । 6 प्रमुख राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में स्त्री-पुरुष अनुपात बढ़ा है।

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पूर्व में बदनाम राज्यों जैसे पंजाब और हरियाणा सहित सात राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में छ: वर्ष से कम आयु के बच्चों में लड़कियों का अनुपात पहले से बेहतर हुआ है । यही नहीं, साक्षरता की दृष्टि से भी पूर्व में अच्छा प्रदर्शन न करने वाले राज्यों जैसे-बिहार, झारखण्ड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ओडिसा इत्यादि के परिणाम भी पहले से बेहतर हैं ।

उदाहरण के लिए बिहार में जहाँ 2001 में साक्षरता दर मात्र 47 प्रतिशत थी, वहीं 2011 में बढ्‌कर 64 प्रतिशत हो गई है । झारखण्ड में यह 53.6 प्रतिशत से बढ्‌कर 67.6 प्रतिशत हो गई है । अन्य प्रान्त भी, जिनकी साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है, में छ: प्रतिशत से 24 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है ।

इस प्रकार वर्तमान जनसंख्या के परिणाम उत्साहवर्द्धक है, क्योंकि वे हमारी महिला जनसंख्या जो शिक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से वंचित मानी जाती रही है, उसमें बेहतरी की ओर इंगित कर रहे है ।

पिछले दस सालों में देश की आबादी करीब 17 करोड़ बढी है । इसका मतलब क्या हुआ । उत्तर प्रदेश के बराबर एक राज्य या पाकिस्तान के बराबर एक देश या आस्ट्रेलिया के बराबर दो देश हमारी आबादी में पिछले दस सालों में और जुड़ गए हैं, लेकिन फिर भी उम्मीद की किरण इसलिए पैदा होती है कि आबादी बढ़ने की रफ्तार घटी है ।

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दशकीय वृद्धि दर में 3.90 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है । इसके लिए हमें पिछले तीन-चार दशकों की आबादी पर नजर डालनी होगी । 1971-81 के बीच 14 करोड़, 1981-1991 में 16 करोड़, 1991-2001 के बीच 18 करोड़ आबादी बढ़ी ।

यदि पिछले तीन दशकों की आबादी की बढ़ोतरी को देखें तो हर दशक में दो करोड़ का इजाफा होता आया है । इस हिसाब से इस बार करीब 20 करोड़ की आबादी तो बढ़नी ही चाहिए थी, लेकिन इस दशक में 18 करोड़ ही बढ़ी । हम यूँ कह सकते हैं कि वृद्धि दर में मामूली गिरावट से हमने दस सालों में करीब दो करोड की आबादी बढने से रोक ली । अगले दशक में जब जनगणना होगी, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वृद्धि और कम होगी । बड़ी बात यह है कि यह सब स्वत: हो रहा है ।

स्वभाविक ही है कि जनसंख्या वृद्धि दर के कारण छ: वर्ष से कम आयु के बच्चे 2001 की तुलना में 50 लाख कम हैं और इस कारण से छ: वर्ष से कम आयु के बच्चों की जनसंख्या में वृद्धि दर ऋणात्मक रही, लेकिन इस आयु वर्ग में चिन्ता का विषय यह है कि पूर्व में जहाँ 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में प्रति हजार लडकों की तुलना में 927 लड़कियाँ होती थीं, वह घट कर अब 914 रह गई है, लेकिन साथ ही साथ यह भी देखने में आया है कि कुल जनसंख्या में स्त्री-पुरुष अनुपात 2001 में 933 से बढ़कर 2011 में 940 तक पहुँच गया है ।

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जनगणना से जुड़ी एक बात और, पिछले दस सालों में शहरीकरण तेजी से बढ़ा है । इस दौरान देश में 2775 शहर और कस्बे और बस गए है । 2001 की जनगणना में शहर-कस्बों की कुल संख्या 5161 थी, जो अब बढ़कर 7936 हो गई है । शहरीकरण

में वृद्धि विकास का प्रतीक है । यद्यपि एक वर्ग इसका विरोधी भी है, लेकिन विकास का जो वैश्विक मॉडल पूरी दुनिया में इस समय चल रहा है, उसमें शहरीकरण को तरजीह दी गई है ।

भारत में अब तक शहरी आबादी महज 28 फीसदी थी, तो अब बढ़कर 31 प्रतिशत हो गई है । गाँवों की संख्या में भी इजाफा हुआ है । पिछले दस सालों में करीब 48 हजार गाँव बड़े हैं । 2001 में गाँवों की संख्या 5.93 लाख थी, जो अब बढ्‌कर 641 लाख हो गई है ।

इन आकड़ों के क्या संकेत और संदेश हैं? शायद यही कि बेटियों से प्रेम का मामला न तो शिक्षा से जुड़ा है और न ही सम्पन्नता से । शिक्षित होना इस बात की गारंटी नहीं कि कोई बेटियों से प्रेम करने लगेगा और स्कूल-कॉलेज नहीं जाने का अर्थ यह नहीं है कि कोई बेटियों को दुत्कारने लगेगा ।

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यह तो अहसास का संचार है । हमारे जहेन में जब तक यह अहसास बोझ बना रहेगा तब तक बेटियाँ मारी जाती रहेंगी । जिस दिन यह अहसाकहक्खुश करने लगेगा, स्त्री-पुरुष लिंग अनुपात पर चर्चा करने की जरूरत ही नहीं रहेगी । निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हमारी यह आबादी राष्ट्र के लिए बोझ नहीं, बल्कि एक स्थायी सम्पत्ति है । यही मानसिकता बनाकर ही हम प्रगति पथ पर आगे बढ़ सकते हैं ।

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