जनलोकपाल विधेयक पर दो निबंध | Read These Two Essays on Janlokpal Bill in Hindi Language.

#Essay 1: लोकपाल विधेयक-2011 पर निबंध | Essay on Lokpal Ordinance -2011 in Hindi!

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धान्तों को एक बार पुन: स्थापित करने वाले रालेगण सिद्धि (महाराष्ट्र) के सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे (किसन बाबुराव हजारे) ने यह साबित कर दिया है कि शांतिपूर्ण जन-आदोलन के जरिए सरकार को किसी भी सीमा तक झुकाया जा सकता है ।

सिविल सोसायटी द्वारा तैयार किए गए ‘जनलोकपाल विधेयक’ को ठुकरा कर जिस सरकारी लोकपाल विधेयक को संसद में 4 अगस्त, 2011 को सरकार ने लोकसभा में प्रस्तुत किया था उसके विरोध में 16 अगस्त, 2011 से अनशन करने की घोषणा अन्ना हजारे ने की थी ।

यह अनशन शुरू होने से चार घंटे पूर्व ही सरकार ने अन्ना हजारे को 16 अगस्त को हिरासत में लेकर तिहाड़ जेल भेज दिया, जिसके विरोध में देश भर में जनता सड़कों पर आ गई थी । भारी जन दबाव देखते हुए अन्ना की रिहाई के आदेश उसी दिन जारी हो गए, किन्तु अन्ना रामलीला मैदान में अनशन जारी रखने की अनुमति मिलने के पश्चात् ही 19 अगस्त को जेल से बाहर निकले । आदोलन के लिए अडिग अन्ना ने अपना अनशन जेल में ही शुरू कर दिया था जिसे उन्होंने रिहाई के बाद रामलीला मैदान में जारी रखा ।

भ्रष्टाचार के विरोध में अन्ना द्वारा शुरू की गई इस मुहिम को जो देशव्यापी समर्थन इस बार प्राप्त हुआ उसने स्वाधीनता के लिए महात्मा गांधी के आन्दोलन की यादें ताजा करा दीं । एक ओर दिल्ली में रामलीला मैदान में अन्ना के आदोलन के समर्थन में जनसैलाब जहाँ दिनों-दिन बढ़ता गया, वहीं दूसरी ओर देश भर में गली-गली में व्यापक स्तर पर नुक्कड़ सभाएं व प्रदर्शन इस आदोलन के समर्थन में होने लगे ।

सभी राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार करते हुए तिरंगे के तले चलाए गए इस दोलन को मिले जनसमर्थन को देखते हुए सरकार को आखिर झुकना ही पड़ा तथा अन्ना टीम द्वारा पेश की गई तीन प्रमुख माँगों के प्रति सैद्धान्तिक सहमति का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में 27 अगस्त, 2011 को (अन्ना के अनशन के 12वें दिन) सर्वसम्मति से पारित किया गया । इस प्रस्ताव को पारित कराने के लिए छुट्‌टी के दिन ही संसद की बैठक आहूत की गई थी ।

अन्ना की तीन प्रमुख माँगों में सबसे पहली थी कि राज्यों में भी लोकपाल की ही तर्ज पर लोकायुक्त कायम हो । दूसरे, सभी केन्द्रीय कर्मचारी लोकपाल के और राज्य सरकार के सभी कर्मचारी सम्बन्धित राज्य के लोकायुक्त के दायरे में आएं । अन्ना की तीसरी माँग थी कि नागरिक घोषणा-पत्र (citizen charter) के जरिए जनता के सारे काम तय समय सीमा में हों ।

संसद के दोनों सदनों द्वारा स्वीकार किए उपर्युक्त प्रस्ताव को संसद की इस स्थायी समिति को भेजा गया है, जिसे लोक सभा में 4 अगस्त, 2011 को लाया गया लोकपाल विधेयक सन्दर्भित किया गया था । संसद द्वारा स्वीकारे गए उपर्युक्त प्रस्ताव की भावना को ध्यान में रखते हुए ही लोकपाल विधेयक को अंतिम रूप स्थायी समिति द्वारा दिया जाएगा ।

संसद में उपयुक्त प्रस्ताव पारित हो जाने के पश्चात् ही अन्ना हजारे ने अपना अनशन 13वें दिन 28 अगस्त, 2011 को तोड़ा, जिसके साथ ही अत्यधिक शांतिपूर्ण व अहिंसात्मक तरीके से चलाए गए इस आदोलन का समापन 28 अगस्त, 2011 को हुआ ।

ADVERTISEMENTS:

उल्लेखनीय है कि 43 साल में संसद में आठ बार लोकपाल बिल पेश किए जा चुके हैं । लेकिन एक भी बार ऐसा नहीं हुआ कि इस पर आम सहमति बनाई जा सके । 4 अगस्त, 2011 को लोकसभा में जो बिल पेश किया गया, वह संसद के सामने रखा गया नवीं वर्जन है ।

पहली बार लोकपाल बिल 1968 में चौथी लोकसभा में लाया गया था और 1969 में इसे पास कर दिया गया, लेकिन लोकसभा भंग हो गई और यह बिल बेकार हो गया । 1968 के इस लोकपाल और लोकायुक्त बिल के दायरे में न तो प्रधानमंत्री को रखा गया था और न सांसदों को ।

1971 में इंदिरा गांधी ने फिर इस बिल को पेश किया । इसे किसी कमिटी को नहीं सौंपा गया और पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद यह एक बार फिर रद्द हो गया । तीसरी कोशिश मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी ने की 1 जुलाई, 1977 में पेश किए गए इस बिल में प्रधानमंत्री को तो नहीं रखा गया था, लेकिन सांसदों को इसके दायरे में लाया गया । जॉइंट सिलेक्ट कमिटी ने इस बिल पर अपनी सिफारिशें दीं, लेकिन इसके बाद छठी लोकसभा भंग हो गई ।

1985 में राजीव गांधी के कार्यकाल में एक बार फिर लोकसभा में यह बिल आया और जॉइंट सिलेक्ट कमिटी के पास भेजा गया । बाद में सरकार ने इस बिल को वापस ले लिया । 1989 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार ने इस बिल को रखा और इसे संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया गया । लेकिन लोकसभा भंग हो जाने के कारण एक बार फिर यह बिल लटक गया ।

देवगौड़ा के नेतृत्व में 1996 में तीसरे मोर्चे की सरकार ने इस बिल को पेश किया । 1997 में संसदीय स्थायी समिति ने इस बिल पर अपनी कुछ सिफारिशें भेजीं । लोकसभा भंग होने के कारण बिल एक बार फिर बेकार हो गया । अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इस बिल को दो बार पेश किया-एक बार 12वीं लोकसंभा में और दोबारा 13वीं लोकसभा में ।

इससे पहले कि संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों पर गौर किया जाता, 12वीं लोकसभा भंग हो गई । 13वीं लोकसभा में भी बिल का ऐसा ही हश्र हुआ ।वीपी. सिंह, देवगौड़ा और वाजपेयी प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने के हिमायती थे । इनमें से किसी भी बिल में न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने का प्रस्ताव नहीं किया गया ।

लोकसभा में अन्ना हजारे की तीनों मांगों पर सैद्धांतिक रूप से सहमति बन जाने के बाद इन मांगों को लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया । हालांकि समिति के पास जन लोकपाल बिल पहले से ही विचार के लिए मौजूद है, इसलिए उसके सामने ये तीनों मांगें भी हैं । अब स्थिति में फर्क यह आया है कि स्थायी समिति के पास ये तीनों मांगें पूरी लोकसभा की इस सिफारिश के साथ जा रही हैं कि इन पर गंभीरता से विचार किया जाए ।

अगले कदम के तहत, स्थायी समिति अपने पास पहुँच चुके सरकारी लोकपाल और जन लोकपाल बिलों के अलावा अरुणा रॉय, डॉ. जयप्रकाश नारायण और टी.एन. शेषन के लोकपाल बिल के मसौदों पर विचार करेगी ।

जन लोकपाल:

I. प्रधानमंत्री से लेकर पटवारी यानी जनप्रतिनिधि तथा हर स्तर के जनसेवक तक की शिकायत की जांच का अधिकार जन लोकपाल को दिया जाए ।

ADVERTISEMENTS:

II. न्यायपालिका को इसके दायरे में लाया जाए ।

III. राज्य तथा जिला स्तर पर लोकायुक्त बनाए जाएं जो स्थानीय समस्याओं को सुनें।

IV. यह सरकार के अधीन न हो तथा पारदर्शी तरीके से काम करे ।

V. उसके पास भ्रष्टाचार की जांच तथा दंड देने की शक्तियां हों । सीबीआई को इसके अधीन किया जाए ।

ADVERTISEMENTS:

VI. लोकपाल के खिलाफ शिकायत का आधार आम आदमी हो जिस पर सुप्रीम कोर्ट फैसला लेगा ।

VII. 10 सदस्यीय लोकपाल में सिर्फ चार ही न्यायिक पृष्ठभूमि के हों ।

VIII. इसका चयन कई स्तर पर बनी समितियों के द्वारा हो ।

सरकारी लोकपाल (4 अगस्त, 2011 को संसद में पेश):

I. लोकपाल को स्वत: संज्ञान के आधार पर जांच का अधिकार होगा और वह भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत ही शिकायतें सुनेगा ।

ADVERTISEMENTS:

II. न्यायपालिका, प्रधानमंत्री तथा सांसद इसके अधीन नहीं होंगे ।

III. लोकपाल को हटाने के लिए आम आदमी को शिकायत का अधिकार नहीं होगा।

IV. उसे राष्ट्रपति की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट हटा सकेगा, जिसके लिए 100 सांसदों के हस्ताक्षर वाला पत्र जरूरी होगा ।

V. लोकपाल के जांच अधिकारी को पुलिस की शक्तियां होंगी, लेकिन अभियोजन सीबीआई करेगी ।

ADVERTISEMENTS:

VI. लोकपाल अध्यक्ष समेत 9 सदस्यों का होगा जिसमें आधे न्यायिक पृष्ठभूमि के होंगे।

VII. इसके अधीन एनजीओ (गैर सरकारी संगठन), ट्रस्ट और रिजस्टर्ड सोसायटियां भी होंगी ।

कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी की अध्यक्षता वाली स्थाई समिति में सभी दलों

के सदस्य शामिल हैं । समिति अपनी सिफारिशें लोकसभा को देगी । वहां चर्चा के बाद ये बिल पास किया जाएगा । वहीं से राज्यसभा में पास होगा । फिर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद बिल कानून की शक्ल ले लेगा । स्थायी समिति के सामने कोई भी अपने सुझाव लेकर जा सकता है । अन्ना भी अनशन पर बैठने से पहले समिति के सामने अपनी बात रख चुके हैं एवं फिर रखेंगे ।


# Essay 2: जनलोकपाल विधेयक पर निबंध | Essay on Janlokpal Bill

अन्ना हजारे, किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश, अरविन्द केजरीवाल आदि भ्रष्टाचार विरोधी नेताओं की अगुवाई में जनता के दबाव को देखते हुए अन्ततः 18 दिसम्बर, 2013 को लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक संसद में पारित हो गया ।

हालांकि इस बिल को कानून का रूप देने में काफी वक्त लगा और बहुत सारे समाज सेवकों ने इस कानून को बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । ‘जनलोकपाल विधेयक’ में प्रयुक्त हुआ शब्द ‘लोकपाल’ मूलतः संस्कृत भाषा का शब्द है । इसमें ‘लोक’ का अर्थ है- लोग और ‘पाल’ का अर्थ है- संरक्षक ।

इस प्रकार लोकपाल का अर्थ हुआ ‘लोगों का संरक्षक’ । सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग सांसद एल एम सिंदवी द्वारा किया गया था । पहला जनलोकपाल बिल बर्ष 1968 में शान्ति भूषण द्वारा पेश किया गया था और चौथी लोकसभा ने वर्ष 1969 में इसे पारित भी कर दिया था, लेकिन इस बिल को राज्यसभा में स्वीकृति नहीं मिल पाई ।

इसके बाद, वर्ष 1971,1977,1985,1989,1996 और 2001 में इस बिल को संसद में पेश किया गया, लेकिन विभिन्न राजनीतिक कारणों से यह पारित न हो सका । इस बिल को संसद में पारित होने में जितनी देर हो रही थी सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनता का गुस्सा उतना ही बढ़ रहा था ।

सरकार पर जनलोकपाल विधेयक को पारित करने का दबाव बनाने हेतु वर्ष 2011 में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर अनशन किया । उनके इस आन्दोलन को देशव्यापी समर्थन मिला । तब लोकसभा में तो यह बिल पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में फिर से अटक गया और वर्ष 2013 तक इस पर कोई फैसला न लिया जा सका ।

अतः अन्ना हज़ारे को दिसम्बर, 2013 में फिर से अनशन का सहारा लेना पड़ा । इस बार उन्हें युवाओं का सहयोग भी विशेष रूप से मिला । इन सबका परिणाम यह हुआ कि 17 दिसम्बर, 2013 को 15 संशोधनों के साथ जनलोकपाल बिल राज्यसभा में पारित हो गया ।

फिर इसे 18 दिसम्बर, 2013 को लोकसभा में पुन: पेश किया गया, जहाँ इसे ध्वनिमत से स्वीकृति मिल के पास भेजा गया । राष्ट्रपति ने 1 जनवरी, 2014 को इस विधेयक को स्वीकृति देकर । जनलोकपाल कानून, 2013 एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी कानून है ।

यह एक सशक्त जनलोकपाल का स्थापना का प्रावधान करता है । यह चुनाव आयोग की तरह स्वतंत्र संस्था होगी । जनलोकपाल के पास भ्रष्ट राजनेताओं एवं नौकरशाहों पर बिना किसी अनुमति के अभियोग चलाने की शक्ति होगी ।

इस बिल को तैयार करने में अन्ना हजारे सन्तोष हेगडे प्रशान्त भूषण, अरविन्द केजरीवाल आदि सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है सामाजिक संगठनों और जनता के साथ व्यापक विचार-विमर्श करने के बाद तैयार किया गया है ।

जनलोकपाल विधेयक की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1. इस विधेयक के अनुसार, केन्द्र में भ्रष्टाचार विरोधी संस्था ‘लोकपाल’ और राज्यों में लोकायुक्त का गठन किया जाएगा ।

2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार के प्रभाव से मुक्त होगी, जिससे यह स्वतन्त्र रहकर निष्पक्षतापूर्वक अपना कार्य कर सकेगी ।

3. लोकपाल संस्था के सदस्यों का चुनाव न्यायाधीशों तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों द्वारा किया जाएगा ।

4. चयन प्रक्रिया को बहुत ही पारदर्शी बनाया जाएगा तथा चयन प्रक्रिया से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण गतिविधियों की वीडियो रिकॉर्डिंग बनाकर उन्हें सार्वजनिक किया जाएगा ।

5. लोकायुक्त को प्रत्येक माह में निपटाए गए मामलों की संक्षिप्त जानकारी, प्रस्तावित कार्रवाई अथवा परिणाम की सूची प्रकाशित करनी होगी । साथ ही उसे लम्बित मामलों का ब्यौरा भी प्रस्तुत करना होगा ।

6. इस विधेयक के अंतर्गत किसी भी मामले की जाँच के लिए दो महीने तथा सुनवाई के लिए अधिकतम 6 महीने की अवधि निश्चित की गई है ।

7. भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को एक साल के भीतर जेल भेजा जाएगा ।

8. भ्रष्टाचार के कारण सरकार को जो हानि होगी, उसकी क्षतिपूर्ति अपराध साबित होने पर अपराधी को अनिवार्य रूप से करनी होगी ।

9. अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता, तो लोकपाल दोषी अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा, जो शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति के तौर पर मिलेगा ।

10. लोकपाल के सदस्यों के चयन में नेताओं का किसी भी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा ।

11. लोकपाल और लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा । लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जाँच दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा ।

12. इस विधेयक के तहत, सीबीसी, विजिलेन्स विभाग और सीबीआई के एण्टी-करप्शन विभागों का लोकपाल में विलय हो जाएगा ।

ADVERTISEMENTS:

13. लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अधिकारी के खिलाफ जाँच करने और मुकदमा चलाने की पूरी स्वतन्त्रता होगी ।

14. लोकपाल से किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत की जा सकती है; जैसे-सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग, पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न करना इत्यादि ।

15. लोकपाल के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाई जाएँगी या चिह्नित की जाएगी । अदालतों को एक साल में मुकदमे की सुनवाई पूरी करनी होगी । यदि किसी मामले की सुनवाई एक साल में पूरी नहीं हो पाती, तो अदालत को इसका कारण रिकार्ड करना होगा और समयावधि बढ़ानी होगी ।

16. लोकपाल की जांच के दायरे में प्रधानमन्त्री, न्यायपालिका तथा सांसद सहित सभी सरकारी कर्मचारी सम्मिलित हैं । हालाँकि प्रधानमन्त्री, न्यायपालिका तथा सांसदों पर कोई भी कार्रवाई करने से पूर्व लोकपाल बैंच के सदस्यों की मंजूरी आवश्यक होगी ।

17. जो व्यक्ति भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठा रहा है उसकी रक्षा करना, उसकी रक्षा करना लोकपाल का कर्तव्य होगा ।

जनलोकपाल विधेयक का प्रमुख उद्देश्य सरकारी तन्त्र में फैले भ्रष्टाचार पर रोक लगाना है । विभिन्न विश्लेषणों तथा चर्चाओं में यह बात उभरकर सामने आई है कि भ्रष्टाचार की वैतरणी ऊपर से नीचे की ओर बहती है ।

कहने का तात्पर्य है कि भ्रष्टाचार को शीर्ष स्तर के राजनेताओं और अधिकारियों द्वारा प्रोत्साहन मिलता है, जिससे प्रेरित होकर निम्न स्तर के कर्मचारी भी भ्रष्टाचार में लिए जनलोकपाल विधेयक उच्च स्तर के भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं ।

जनलोकपाल विधेयक उच्च स्तर के भ्रष्टाचार को रोकने में काफी हद तक सक्षम है, जिससे निम्न स्तर के भ्रष्टाचार पर भी रोक लग पाएगी । जनलोकपाल की जांच के दायरे में स्वयं प्रधानमन्त्री भी शामिल है अर्थात् अब कोई भी राजनेता भ्रष्टाचार करने के लिए स्वतन्त्र नहा ह ।

इस प्रकार यह उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में जनलोकपाल कानून के प्रभाव के कारण भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आएगी और भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने बाले कर्मचारियों पर निश्चित अवधि में कार्रवाई की जाएगी ।

ADVERTISEMENTS:

जनलोकपाल विधेयक का पारित होना भारतीय जनता की एक बड़ी जीत है और माना जा रहा है कि इसके आने के बाद सरकारी कर्मचारियों की कार्यशैली में थोड़ा-बहुत सुधार होने लगा है, लेकिन बुद्धिजीवियों का एक वर्ग अभी भी जनलोकपाल विधेयक की संस्तुतियों से सन्तुष्ट नहीं है ।

रमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरुन्धती रॉय का मानना है कि लोकपाल के रूप में किसी भी एक संस्था को बहुत अधिक शक्ति प्रदान करना ठीक नहीं है । साथ ही उनका कहना है कि इस संस्था के पास बहुत काम होगा, जिसके कारण इसे अपना काम करने में काफी मुश्किलें होगी ।

इसके अतिरिक्त, सीबीआई ने भी लोकपाल की आलोचना करते हुए कहा है कि सीबीआई के एण्टी-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय करने से सीबीआई के कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और उसकी उपयोगिता कम हो जाएगी ।

यह सत्य है कि काफी प्रयासों के बाद भी लोकपाल विधेयक में कुछ कमी रह गई है, लेकिन फिर भी यह काफी मजबूत जनलोकपाल विधेयक है । प्रधानमन्त्री का भी इसमें शामिल होना इस बात को सिद्ध करता है । इसके प्रभाव से न केवल भ्रष्टाचार पर रोक लग पाएगी, बल्कि देश का धन पूर्ण रूप से बिकास कार्यों में प्रयोग किया जाएगा इससे टैक्स चोरी पर रोक लगेगी और स्वदेशी मुद्रा देश में ही रहेगी ।

भ्रष्टाचार पर से पारदर्शिता बदेगा, जिससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में अधिक-से-अधिक निवेश करने के लिए आकर्षित होगी । कुल मिलाकर जनलोकपाल विधेयक देश की आर्थिक, नैतिक और सामाजिक स्थिति सुधारने में बहुत सहायक सिद्ध होगा ।

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