पंचायती राज विधेयक (तिहत्तरवाँ संविधान संशोधन विधेयक) पर निबंध!

देश में पंचायती राज व्यवस्था को लाने हेतु पं० नेहरू के समय से ही बात चल रही थी परंतु उसे ठोस आधार प्रदान करने की कार्रवाई आधे – अधूरे ढंग से ही हो पाई थी। इस कमी की पूर्ति के लिए एक विधेयक को लोकसभा में पारित होने के लिए 24 अप्रैल, 1993 को रखा गया ।

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पंचायती राज विधेयक पारित करने का प्रमुख उद्‌देश्य लोगों को अधिक सामर्थ्यवान बनाना था । उन्हें वह मूलभूत अधिकार प्रदान करना था जिससे वे स्वयं अपना विकास कर सकें । देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू करने के अनेक कारण हैं । हमारे देश की राजनीति आज भी सांप्रदायिकता व जातिवाद से ऊपर नहीं उठ सकी है ।

कई ऐसे राज्य हैं जहाँ एक विशेष वर्ग व समुदाय के लोग वर्षों से सत्ता में बने हुए हैं जिससे संसद में समाज के पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि सामने नहीं आ पाते हैं । इसके अतिरिक्त कुछ राज्यों में निरंतर चुनावों का होना तथा उनके पास पर्याप्त धन की कमी एवं शक्ति आबंटन की असामनता आदि के चलते पंचायती राज व्यवस्था को लाना देश की आवश्यकता बन चुकी थी ।

हमारे संविधान की धारा – 40 में ‘ राज्य के नीति निर्देशक तत्व ‘ के अंतर्गत इस बात का स्पष्ट प्रावधान है कि केंद्रीय सरकार ग्राम पंचायत के गठन की प्रक्रिया प्रारंभ कर सकती है तथा उन्हें वे अधिकार प्रदान कर सकती है जिससे वे एक स्वतंत्र इकाई के रूप में कार्य कर सकें तथा अपने विकास हेतु आवश्यक कदम उठाने के बारे में स्वयं निर्णय ले सकें । इन स्थानीय स्वतंत्र इकाइयों को अधिकार प्रदान करने हेतु संविधान की धारा 368 में विशेष रूप से उल्लेख है ।

पंचायती राज विधेयक की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं:

1. सभी राज्य तीन स्तर – ग्राम, अंचल तथा जिला स्तर पंचायत की स्थापना करेंगे। परंतु वे राज्य जिनकी जनसंख्या 20 लाख से कम है वे ग्राम तथा जिला स्तर पर ही पंचायत का गठन कर सकते हैं ।

2. उसमें पदों की भरती सीधे चुनावों द्‌वारा ही की जाएगी ।

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3. पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा । यदि किसी कारणवश इसे निश्चित अवधि से पूर्व ही समाप्त करना पड़ता है तो यह आवश्यक है कि पुन: नए चुनाव छ: महीनों के अंदर ही कराए जाएँ ।

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4. चुनाव आयोग को पंचायतों के दिशा-निर्देशन व नियंत्रण का पूरा अधिकार होगा ।

5. सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास हेतु पंचायत योजना तैयार करेगी । इन योजनाओं के अंतर्गत कृषि, सिंचाई, भूमि का विकास तथा विकास के नए उपाय आदि विषय हो सकते हैं ।

बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में पंचायती राज को अधिक प्रभावी बनाने पर जोर दिया जा रहा है । देश के कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे नागालैंड, मेघालय, मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश आदि को पंचायती राज्य व्यवस्था को स्वीकार करने हेतु छूट दी गई है क्योंकि इन राज्यों में उनकी भी पारंपरिक व्यवस्था चल रही है जिसका आधार पंचायती राज व्यवस्था के ही समान है ।

लेकिन इस विधेयक को पारित हुए एक दशक से अधिक का समय बीत चुका है । अत: वर्तमान आवश्यकता के अनुसार अब उक्त विधेयक के प्रावधानों में अपेक्षित संशोधन की आवश्यकता है ताकि पूरे देश में पंचायती राज प्रणाली को और अधिक कारगर बनाया जा सके ।

हमारी पंचायती राज प्रणाली में अभी भी कुछ कमियाँ हैं जिन्हें दूर करना आवश्यक है । उसी स्थिति में हमारे गाँवों में विकास की गति तीव्र हो सकती है जबकि ग्राम पंचायतों को वास्तविक स्वायत्तता प्राप्त हो ।

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