राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक आदर्श पर निबन्ध | Essay on Utopias-Political, Social and Economic in Hindi!

चिरकाल से दार्शनिक संसार को और अच्छा बनाने के माध्यमों और साधनों की कल्पना करते रहे हैं । जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों आनंदपूर्वक जीवन बिता सकें ।

प्लेटो से लेकर आज तक मनुष्य अपने सपनों के संसार की कल्पना और व्याख्या करता रहा है । अपने जीवनक्रम से असन्तुष्ट मनुष्य सुन्दर और रमणीय लोक के स्वप्न देखता है जहाँ पीड़ा, दुखदर्द, अत्याचार, गरीबी, बीमारी का नामोनिशान नही होगा । शेक्सपियर के शब्दों में वहाँ मानव ”स्वर्ग के समान आनंदमय जीवन व्यतीत करेगा ।”

प्लेटो ने अपने दार्शनिक ग्रंथ ‘रिपब्लिक’ में आदर्श राज्य की कल्पना की है । उनका आदर्श-राज्य आदर्शवादी साम्यवाद पर आधारित है, जहाँ का शासक दार्शनिक है । जहाँ स्त्री और पुरुष सभी कानून के सम्मुख समान है, सभी को शिक्षा का अधिकार है । इस आदर्श राज्य में कवियों और चिन्तनशील विचारकों का प्रवेश निषेध है ।

इस ग्रंथ की महत्ता इसकी मस्तिष्क को आदर्श मानने और सामाजिक एवं राजनैतिक बुराइयों की समाप्ति की संभावनाओं की कल्पना है । इस ग्रंथ में प्लेटों ने स्वयं को किसी भी प्रकार के शोषण और तानाशाही के विरोधी के रूप में चित्रित किया । उनका मत है कि तानाशाही का उदय प्रजातंत्र के अनुचित प्रयोग से होता है । प्लेटो के अनुसार आदर्श राज्य में तीन प्रकार के नागरिक होने चाहिए । पहले शासक, जो शासन चलाते और आदेश देते है ।

दूसरे, सहायक, जो राज्य को सैनिक सुरक्षा प्रदान करते है और तीसरा कर्मचारी-वर्ग जो राज्य को खाने-पीने, वस्त्र आदि की सुविधाएं प्रदान करते हैं । आदर्श राज्य में तीनों नागरिक वर्ग एक साथ मिलकर बिना किसी प्रकार के हस्तक्षेप के अपने-अपने कार्य निभाते हैं ।

इस आदर्श की कल्पना को प्लेटो ने वैयक्तिक रूप में भी लागू करने का प्रयास किया है । उनके अनुसार जिस प्रकार राज्य के तीन विशेष तत्व शासन, संरक्षण और उत्पादक है उसी प्रकार आदर्श नागरिक में भी बुद्धि, उत्साह और अभिलाषा तीन विशेषताएं अवश्य होनी चाहिए । उत्साही प्रकृति से प्लेटों का तात्पर्य मनुष्य के भावात्मक पक्ष से है । बुद्धि तत्व का संबंध मानव स्वभाव के आलोचनात्मक और विश्लेषणात्मक पक्ष से है, इसके द्वारा मनुष्य में अच्छाई और विध्यक्षता आती है ।

मनुष्य की अभिलाषी प्रवृति का संबंध एक वस्तु की अपेक्षा दूसरी वस्तु को प्राथमिकता देने की अभिरुचि से है । वही आदर्श व्यक्ति है, जो इन तीनों विशेषताओं को उचित दिशा की ओर उन्मुख करने में समर्थ होता है । आदर्श व्यक्ति के सभी निर्णय बुद्धि पर आधारित होते है । उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व इससे प्रभावित होता है ।

सर थॉमस मूर ने 1516 में ‘यूटोपीय’ नामक पुस्तक की रचना की थी । ‘यूटोपिया’ शब्द का उद्‌भव ग्रीक भाषा से हुआ है । ‘यू’ का अर्थ है ‘नही’ और ‘टोपिया’ का अर्थ है स्थान । इसका शाब्दिक अर्थ है, वह स्थान जो कहीं नहीं है । सूर ने प्लेटो का अनुकरण किया है और साथ ही अपने मतों एवं सिद्धांतो का प्रतिवादन भी किया है ।

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उनके द्वारा मान्य आदर्श राज्य में प्रत्येक नागरिक के लिए कोई-न-कोई कार्य अथवा उद्योग निर्धारित हैं । असाधारण क्षमताओं वाले नागरिक प्रशिक्षित करने और ज्ञान प्रदान करने का कार्य करते हैं । चूँकि, इस राज्य में सभी कार्य करते हैं, इसलिए यहाँ पर किसी भी प्रकार के अनाचार की संभावना नही है ।

अमीर व्यक्ति गरीबों के शोषण पर जीवन निर्वाह नहीं करते, आलसी परजीवी नहीं है, किसी प्रकार के अनियमित अपव्यय का विधान भी नहीं है, तथा यहाँ निष्किय उपदेशक, साधु-संत भी नहीं रहते है । इस पुस्तक का सबसे प्रभावशाली मत युद्ध की भर्त्सना है । ‘यूटोपिया’ में युद्ध को पशुत्व माना है, और इससे दूर रहने का समर्थन किया है ।

यदि युद्ध को जनता पर थोप दिया जाए, तो वे उसे अनैतिक और अशौर्यपूर्ण सभी तरीकों से जीतना चाहते हैं । आदर्श राज्य हिंसा, रक्तपात और अनाचार से रहता है । आदर्श राज्य के नागरिक अपने श्रम को युद्ध की बजाय बागों की सजावट, घरों की स्थिति में सुधार, मानवीय भाषणों को सुनने, संगीत आदि का रसास्वादन करने आदि में लगते हैं ।

सर थॉमस मूर ने अपनी पुस्तक ‘यूटोपिया’ की रचना चौथी और पाँचवी सदी में की थी । उसमें व्यक्त विचारों का प्रभाव किसी न किसी रूप में पड़ा है । आज हम इन आदर्शो के सर्वाधिक निकट हैं । संभवत: इसका श्रेय सर थॉमस मूर को जाता है ।

उन्नसवीं सदी के अंत में सैमुअल बटलर ने ‘एरवॉन’ नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने आधुनिक आदर्शो पर विचार व्यक्त किया है । इसमें अभिव्यक्त विचार रूढ़िवादिता, समझौतावादी प्रवृत्ति और मानसिक जड़ता पर तीव्र व्यंग्य प्रहार है ।

एखानियन प्रणाली की प्रमुख विशिष्टता अपराध करने पर शारीरिक प्रताड़ना के दंड को अपने आप में अपराध मानना है । इस के अनुसार गबन जैसे अपराध पर सहानुभूति पूर्वक विचार करना चाहिए । इस पुस्तक में मशीनीकरण के दोषों की उत्तम व्याख्या हुई है ।

बीसवीं शताब्दी में भी आदर्शो की चर्चा हुई है । एलडोस हक्सले ने अपनी पुस्तक ‘ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ में सुजनन विज्ञान के नए आदर्श की व्याख्या की है । इसमें सुजनन विज्ञान अर्थात् मनुष्य सृजन से संबंधित विज्ञान के परिष्कृत रूप को प्रस्तुत किया है । पूर्व निर्धारित सामाजिक स्तरों और कार्यो से संबंधित पांच प्रकार की मानव श्रेणियाँ – एल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, इप्सीलोन बनाई ।

एल्फा बौद्धिक और मानसिक कार्य करने वाले हैं; इप्सीलोन कठोर शारीरिक श्रम वाले कार्यो को करने के लिए बना है । ऐसे मनुष्यों में फूल, पुस्तक जैसी वस्तुओं से अरुचि की प्रवृत्ति उत्पन्न करवाई जाती है ताकि वे श्रम से दूर भागकर सौंदर्य अथवा आनंद मे न डूब जाए । यह नया वैज्ञानिक आदर्श विश्व सन्तुलन की स्थिति को सूचित करता है ।

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यहाँ लोग खुश है; उनकी मांग की पूर्ति हो जाती है और वे उस वस्तु की आकांक्षा नहीं करते जो पूरी नही हो सकती है । उनका जीवन-स्तर ऊँचा है; वे सुरक्षित हैं; वे कभी बीमार नहीं पड़ते; उन्हें मौत का भय नहीं है; वो उत्तेजना और बुढ़ापे से पूर्णत: अनभिज्ञ है; उनके माता-पिता नहीं हैं; उनकी कोई पत्नी या बच्चे या प्रेमी नहीं है; वे नियमों से इस प्रकार बंधे हुए हैं कि अपनी प्रतिक्रिया को रोकने में सफल नही हो सकते हैं ।

यदि कुछ अनुचित घट भी जाता है, तो उसका निदान सोमा (तनाव की दशा में ली जाने वाली एक प्रशान्तक दवा) से किया जाता है । ‘ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ पुस्तक की रचना निर्विवाद रूप से महान एवं अद्वितीय कार्य है । इससे लोगो में आत्मसन्तुष्टि की सहयोगी प्रवृत्तियों के प्रति प्रश्नात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिला । इसका अध्ययन करके विचारकों ने इस बात पर सोचना शुरू कर दिया था कि समाज, किस प्रकार का है और कैसा होना चाहिए ।

राजनैतिक और सामाजिक आदर्शो ने सदैव विचारकों, चिन्तकों का ध्यान आकर्षित किया है । 19वीं शताब्दी के मध्य में जर्मन दार्शनिक मार्क्स ने मजदूरों के स्वर्ग समान ‘आर्थिक आदर्श’ को प्रस्तुत किया । ‘साम्यवादी घोषणापत्र’ में उन्होंने सर्वहारा-वर्ग के अधिकारों का समर्थन किया है ।

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मार्क्स के अनुसार पूँजीवादी वर्ग का पतन मजदूर वर्ग में जागरण से ही संभव है । पूँजीवादी वर्ग के अत्याचार और शोषण के कारण मजदूर वर्ग की दशा शोचनीय हो गई थी । उनके अनुसार सर्वहारा वर्ग में एकता से पूँजीपति सम्राज्य का विनाश हो जाएगा । लाखों मजदूरों की सम्पत्ति पर कुछ पूँजीपतियों के अधिकार से कुछ पूँजीवादियों की सम्पत्ति पर लाखों मजदूरों का अधिकार बेहतर है ।

इन आदर्शो का निर्माण कल्पना के आधार पर हुआ था । लेकिन कल की कल्पनाएं आज के सच में परिवर्तित हो गई । प्लेटो व मूर के मतों की आलोचना उनके समकालीन और उत्तरोत्तर विचारकों ने की, लेकिन समय ने उन काल्पनिक अवास्तविकताओं को रूप और नाम प्रदान किया । आज हम जो कल्पनाएं करते हैं, जैसे विभिन्न ग्रहों तक पहुँचने की उड़ान, असाध्य रोगों और यहाँ तक कि मृत्यु पर विजय आदि सभी आज मात्र स्वप्न हैं, लेकिन कुछ शताब्दियों बाद संभवत: ये सच्चाइयाँ बन जाए ।

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