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रेल दुर्घटना पर निबंध | Essay on Train Accident in Hindi!

मनुष्य ने यातायात के अनेक साधन विकसित किए हैं । रेलगाड़ी आवागमन का एक प्रमुख साधन है । रेलगाड़ी द्‌वारा यात्रा करने का अपना अलग ही आनंद है । परंतु कभी-कभी लोगों की थोड़ी-सी असावधानी इस आनंद को एक बड़ी दुर्घटना का रूप दे देती है ।

यह बात पिछले वर्ष जनवरी माह की है जब मैं कालका मेल द्‌वारा इलाहाबाद से टुंडला की ओर यात्रा कर रहा था । रात्रि का पहला पहर था आधे लोग सो चुके थे तथा अन्य भी नींद लेने का प्रयास कर रहे थे । अचानक सभी ने एक बहुत जोर का झटका महसूस किया । क्षण भर में पूरा डिब्बा अस्त-व्यस्त हो गया ।

झटका इतना तीव्र था कि किसी का सिर दीवार से टकराकर लहूलुहान हो गया था तो कई सामानों के नीचे दबे पड़े थे । एक वृद्‌धा तो ऊपर की बर्थ से नीचे गिरकर बेहोश हो गई थी । सौभाग्य से मैं अभी जाग ही रहा था अत: मेरी चोट हल्की ही थी । इस अचानक आए संकट से कुछ क्षण के लिए मैं विचलित हो उठा । काफी देर बाद हमें पता चला कि हमारी ट्रेन किसी अन्य ट्रेन से टकरा गई है ।

अन्य लोगों के साथ मैं भी वास्तविकता को जानने के लिए अपने डिब्बे से बाहर आया। बाहर आकर मैंने जो हृदय विदारक दृश्य देखा उससे मेरा रोम-रोम सिहर उठा । हमारी गाड़ी का इंजन सहित अन्य चार डिब्बा पटरी से उतर चुका था । हमारी गाड़ी जिस अन्य गाड़ी से टकराई थी वह सवारी गाड़ी थी । सवारी गाड़ी के भी 3 डिब्बे क्षतिग्रस्त हो गए थे जिसमें से 3 पटरी से उतर गए थे ।

चारों ओर अफरा-तफरी मची हुई थी । लोगों की चीख-पुकार से सारा आकाश गूँज उठा था । कोई इधर भाग रहा था तो कोई उधर । अधिकांश लोग अब भी असमंजस की स्थिति में थे कि वे क्या करें । मैं अपने सहयोगी यात्री के साथ दुर्घटनाग्रस्त डिब्बों के समीप गया । वहाँ का दृश्य तो रोंगटे खड़े कर देने वाला था ।

बहुत से यात्री स्वयं सहायता कार्य में जुटे थे । संयोग से सेना की एक टुकड़ी भी उस गाड़ी में यात्रा कर रही थी । वे भी पूर्णरूप से बचाव कार्य में लगे थे । पल भर में वहाँ लाशों के ढेर लग गए । कई लोग दुर्घटनाग्रस्त डिब्बे के भीतर लहूलुहान फँसे पड़े थे । मैं भी अन्य लोगों के साथ एक-एक कर फँसे यात्रियों को निकालने लगा ।

अचानक मेरी दृष्टि एक बच्चे पर पड़ी जो अपनी माता का दूध पी रहा था । हम सभी लोग दर्द में डूब गए जब हमें पता चला कि उसकी माँ मर चुकी है । हमने बच्चे को निकाला तथा अन्य लोगों को भी बचाने लगे ।

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सेना के वारयलैस की सहायता से डॉक्टरों की टुकड़ी को वहा बुला लिया गया था । उसने बिना कोई देरी किए लोगों का प्राथमिक उपचार करने के पश्चात् घायलों को अस्पतालों की ओर भेजना प्रारंभ किया । लगभग चार घंटे तक लगे फँसे हुए लोगों को बचाने का प्रयास करते रहे ।

इसके पश्चात् भी वहाँ ऐसी व्यवस्था नहीं बन पाई कि लोग आगे जा सकें । लगभग 7 घंटे की प्रतीक्षा के बाद एक विशेष गाड़ी द्वारा मैं अपने गंतव्य तक पहुँचा । दूसरे दिन दूरदर्शन समाचार व समाचार-पत्रों द्वारा यह पता लगा कि रेल कर्मचारी ने भूल से हमारी गाड़ी की दिशा गलत लाइन की ओर कर दी थी ।

उस व्यक्ति की एक छोटी सी भूल ने न जाने कितने लोगों का घर तबाह कर दिया । एक भूल कितनी बड़ी दुर्घटना में बदल सकती है इसको मैंने अपनी आँखों से देखा और अनुभव किया । हम सभी को सीख लेनी चाहिए कि जीवन में जो भी कार्य करें मन से, लगन से तथा सावधानीपूर्वक करें ताकि हम स्वयं एक स्वस्थ व सुंदर जीवन व्यतीत कर सकें व दूसरों को भी वैसा ही जीवन प्रदान कर सकें ।

ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अधिकतर रेल दुर्घटनाएँ मानवीय भूलों का परिणाम होती हैं । इसके अतिरिक्त कुछ रेल दुर्घटनाओं का कारण तोड़-फोड़, फिश प्लेटों को उखाड़ना तथा अन्य आतंकवादी हरकतें होती हैं । हालाँकि भारतीय रेलवे के पास अपना सुरक्षा तंत्र है, पर कभी-कभी सारी निगरानी व्यवस्था असफल हो जाती है ।

कई बार रेलवे सुरक्षाकर्मी लापरवाही बरतते हैं जिससे उग्र तत्वों की बन अति है तो कई बार रेल-चालक की थकान आदि के कारण भी वे भूलें कर बैठते हैं । इस प्रकार रेलयात्रा जो कि यातायात का एक अनिवार्य साधन है, असुरक्षित होकर यात्रियों के लिए प्राणघातक बन जाती है । रेल विभाग को यात्रियों की अधिकतम सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए ।

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