पर्यावरण पर शहरीकरण का प्रभाव | Paryaavaran Par Shahareekaran Ka Prabhaav | Essay on the Impact of Urbanization on Environment in Hindi!

शहरीकरण को विकास के प्रतीक के रूप में वर्णित किया जाता है । वास्तव में शहरीकरण वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत नगरों का अधिकतम विकास एवं विस्तार हो रहा है तथा आर्थिक क्रियाओं का केन्द्रीकरण हो रहा है ।

शहरीकरण का एक कारण जनसंख्या की तीव्र वृद्धि एवं नगरों में नियोजन की अधिक संभावनाओं के कारण उनमें जनसंख्या का केन्द्रीकरण होता जा रहा है, साथ ही उद्योग, परिवहन आदि का भी वहाँ अत्यधिक प्रभाव होता है, फलस्वरूप पर्यावरण पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

वास्तव में ग्रामीण अंचल जहाँ शुद्ध पर्यावरण का प्रतीक है वहीं नगरीय या शहरीकरण के साथ पर्यावरण प्रदूषण जुड़ गया है जो पारिस्थितिक-संकट का कारण बनता है । प्रारंभ में नगर छोटे थे, उनका विस्तार सीमित था और वहाँ संपादित होने वाली आर्थिक क्रियाओं की संख्या सीमित थी जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण को किसी प्रकार का संकट नहीं था ।

किंतु कालांतर में नगरों का न केवल विकास अपितु अनियोजित विकास होने लगा तथा यहाँ प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी विकास के साथ ही उद्योगों का केन्द्रीकरण होना प्रारंभ हो गया । नगरों से महानगर विकसित हो गये, परिवहन के विविध साधनों का जाल इनमें फैल गया और आज विश्व के जो नगर जितने अधिक बड़े हैं उतने ही अधिक समस्याओं से ग्रसित हैं और ये समस्यायें दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही हैं । नगरीकरण के परिणामस्वरूप जिन प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं का उद्भव हुआ है ।

वे हैं:

(i) उद्योगों के केन्द्रीकरण से वायु प्रदूषण में वृद्धि,

(ii) औद्योगिक अपशिष्टों के निष्कासन से प्रदूषण,

(iii) वाहनों द्वारा छोड़े जाने वाले धुएँ का विषैला प्रभाव,

(iv) घरेलू कचरे एवं गंदे जल-मल निकास की समस्या एवं उससे प्रदूषण,

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(v) नगरों में गंदी बस्तियों का विकास,

(vi) वाहनों, मशीनों एवं अन्य वाद्यों द्वारा शोर प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि एवं

(vii) नगरों के विस्तार के साथ-साथ कृषि भूमि एवं वन प्रदेशों का विनाश आदि ।

इनका प्रभाव एक ओर पारिस्थितिकी-तंत्र पर विपरीत रूप से हो रहा है तो दूसरी ओर यहाँ के निवासी टी.बी., अल्सर, कैंसर, सिरदर्द, उच्च रक्त चाप, हृदय एवं अन्य श्वास रोगों तथा अन्य प्राणघातक बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं ।

विश्व के महानगरों की समस्याओं का चित्रण संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में इस प्रकार हल किया गया है- “हाल के दशकों में जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ शहरीकरण भी तीव्र हुआ है । विश्व के 80 प्रतिशत लोग शहरी क्षेत्रों में निवास करते हैं ।

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यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो लगभग अर्द्ध शतक की अवधि में शहरीकरण अपनी चरम सीमा पर पहुँच जायेगा तथा अधिकांश लोग कस्बों और शहरों में रहने लगेंगे । विकासशील देशों में शहरीकरण की दर और भी तीव्र है । राष्ट्रीय आकलनों के अनुसार अमेरिका से इतर देशों में वर्ष 1920 में शहरी आबादी एक करोड़ थी । वर्ष 2000 तक यह 20 गुना हो गई ।

विकसित देशों में शहरी आबादी में चार गुना वृद्धि होगी ।— शहरी क्षेत्रों में जल, वायु तथा भूमि प्रदूषण की अभिवृद्धि की ऐसी विश्वव्यापी समस्या बन गई है जिससे मानव स्वास्थ्य को खतरा है । औषध विज्ञान में हुई प्रगति के बावजूद विकासशील देशों में शहरी जीवन से संबंधित बीमारियों में अभिवृद्धि हुई है ।—- नगरीय स्थलों की अति संकुलता सामान्य बात है ।

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आवास स्थानों की अपर्याप्तता निम्न कोटि के आवासों के निर्माण को प्रोत्साहन देती है तथा जल प्रदाय एवं अपशिष्ट समापन सुविधाओं की असंतृप्तेय आवश्यकताओं में वृद्धि करता है । कुपोषण होना असामान्य बात नहीं है तथा उसके साथ-साथ अंतड़ियों का संक्रमण इन अस्वस्थ परिस्थितियों में जन्मे तथा पले नवजात शिशुओं की मृत्यु का एक सामान्य कारण होती है ।— कुछ विकासशील देशों में इस समस्या का परिणाम इतना विस्तृत है कि उसके सुलझने की कोई आशा तब तक नहीं है जब तक कि वृहद् राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास नहीं होते हैं ।”

स्पष्ट है कि तीव्र नगरीकरण से पर्यावरण की अनेक समस्याओं का जन्म हुआ है, किंतु इससे यह तात्पर्य नहीं है कि नगरों का विकास बुरा है या इसे रोका जाये । अपितु यह एक सतत् विकासशील प्रक्रिया है जिसमें अभिवृद्धि स्वाभाविक है, आवश्यकता है, उन उपायों को ढूँढने की, जिससे नगरीकरण के साथ-साथ पर्यावरण भी शुद्ध रह सके और पारिस्थितिकी-तंत्र में अवरोध उपस्थित न हो ।

इसके लिए आवश्यकता है:

(i) नगरों का नियोजित विकास हो,

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(ii) अनधिकृत बस्तियों का विकास न हो,

(iii) उद्येगों को नगरीय क्षेत्रों से दूर इस प्रकार स्थापित किया जाए कि उनका प्रभाव सीधा नगरों पर न हो,

(iv) जल-मल निकास एवं उसे शुद्ध करने की पर्याप्त समुचित व्यवस्था हो,

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(v) महानगरों के स्थान पर मध्यम श्रेणी के नगरों का विकास किया जाए,

(vi) वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण की व्यवस्था हो,

(vii) नगरों में पार्कों का समुचित विकास हो,

(viii) नगरों के चारों ओर हरित पेटी का विकास हो एवं

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(ix) उचित पर्यावरण प्रबंधन, निरंतर देखभाल एवं अनियमित कार्यों हेतु समुचित दण्ड की व्यवस्था आदि द्वारा नगरीकरण से पर्यावरण को होने वाली हानि से बचाया जा सकता है ।

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