सब दिन जात न एक समान अथवा समय-चक्र पर निबंध | Essay on Different Phases of Time in Hindi!

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समय परिवर्तनशील है । समय के अनुसार प्रकृति में परिवर्तन आते हैं । इसी प्रकार मनुष्य के जीवन में कभी-भी समय एक-सा नहीं रहता है । कभी वह सुख का आनन्द उठाता है तो कभी दु:ख व अवसादों से घिरा होता है । जन्म-मृत्यु, उत्थान-पतन, उदय-अस्त, आगमन-प्रस्थान आदि सभी परिवर्तन को ही व्यक्त करते हैं ।

हमारे जीवन काल में समय-परिवर्तन अनेक रूपों में दिखाई पड़ता है । यह समय परिवर्तन अथवा समय-चक्र की ही देन है कि राजा रंक में बदल जाता है और रंक राजा में । सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की प्रसिद्‌ध कहानी इसका प्रमाण है । जब उनकी परीक्षा ली गई तब वे सत्य की कसौटी पर खरे उतरे । उन्होंने सारी विपदाओं को झेला पर सत्य का दामन न छोड़ा ।

जहाँ कभी भयावह जंगल हुआ करते थे आज उन्हें काटकर महानगरों में बदल दिया गया । वे पर्वत जिन्हें लाँघना असंभव था उन्हें काटकर उनके मध्य से सड़कें निकाल दी गई । अथाह सागर जिसके गर्त में अनेकों भेद छिपे थे मनुष्य ने उनमें गोता लगाकर उनका भेद जान लिया ।

अंतरिक्ष में विचरण करता हुआ मनुष्य, चंद्रमा की उसकी यात्रा, आकाश पर उसकी उड़ान यह सभी समय की ही तो देन है । समय के साथ मनुष्य ने वह सब कुछ कर दिखाया है जिसकी कभी परिकल्पना भी नहीं की जा सकती थी ।

सभी कुछ समय के साथ गतिमान व परिवर्तनशील है । यह किसी कवि द्‌वारा सत्य ही कहा गया है कि ‘सब दिन जात न एक समान’ । यह समय की ही तो विडंबना है कि रावण जैसे पराक्रमी व बलशाली व्यक्ति का अभिमान स्थिर नहीं रह सका । अत: व्यक्ति को कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए ।

इतिहास ऐसे अनगिनत तथ्यों और घटनाओं से परिपूरित है जिनकी सामान्य परिस्थितियों में मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता है । यह समय की ही देन है जिसके कारण भगवान राम को चौदह वर्षो तक सीता व लक्ष्मण सहित जंगलों में भटकना पड़ा । इसी क्रम में देवी सीता को अपहृत कर राक्षसराज रावण श्रीलंका ले गया ।

सीता के वियोग में राम विक्षिप्त होकर वन में भटकने लगे । दूसरी ओर रावण का बुरा समय आ गया था अत: वह मृत्यु को प्राप्त हुआ । समय परिवर्तन में ही महाभारत का युद्‌ध हुआ । द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित होना पड़ा था । यह समय-चक्र की ही देन है कि ईसा मसीह को सूली पर लटकना पड़ा ।

व्यक्तिगत जीवन में भी समय कभी एक-सा नहीं रहता । मनुष्य के बीच पारस्परिक प्रेम कभी तो अपनी चरम सीमा पर दिखाई देता है तो कभी छोटी-छोटी घटनाएँ इतना भयंकर रूप ले लेती हैं कि वे सदा के लिए एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं । आज उसके पास सुख के समस्त साधन उपलब्ध हैं तो कल उसे ऐसे क्षणों का भी सामना करना पड़ सकता है जब वह उन सभी सुखों से वंचित हो ।

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प्रकृति भी परिवर्तनशील है । सूर्य, चंद्रमा, तारे, वायु, जल सभी में परिवर्तन आते हैं । समय की महानता को सभी स्वीकार करते हैं और जो नहीं करते हैं उन्हें समय स्वीकार करने के लिए बाध्य कर देता है क्योंकि वही सबसे अधिक शक्तिशाली है । समय के माध्यम से ही सही और गलत की परख भी होती है । सत्य समय-चक्र के साथ स्वत: व मनुष्य के सम्मुख आ जाता है ।

कविवर रहीमदास जी ने सच ही कहा है :

“रहिमन विपदा हू भली, जो थोड़े दिन होय ।

हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय ।।”

अत: यह आवश्यक है कि हम सभी समय के महत्व को समझें । उसकी परिवर्तन की प्रकृति को स्वीकार करें । दु:ख आने पर वीरतापूर्वक उसका सामना करें तथा सुख मिलने पर अपना संयम व सतुलन न खोएँ । समय-चक्र के अनुसार स्वयं को ढालते हुए हर्ष और उल्लास के साथ प्रगतिशील जीवन व्यतीत करें । समय-चक्र जिस प्रकार प्रगतिवान है उसी प्रकार हम भी निरंतर प्रगति की और अग्रसर रहें एवं परिवर्तन का आनंद उठाएँ ।

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