Here is an essay on ‘Feminism’ in Hindi language!

वर्तमान समाज के निर्माण में महिलाओं के योगदान का आंकलन एक महत्वपूर्ण विषय है । महिला सशक्तीकरण आज का सच है । यह समय की माँग है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि कोई भी राष्ट्र महिलाओं के योगदान को महत्व दिए बना अपने आपको बनाए नहीं रख सकता । विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक कार्यों के विकास उनके सहयोग के बिना सम्भव नहीं है ।

पुरुष प्रधान समाज में महिला वर्ग की अनदेखी की जाती है । समाज से यदि गरीबी को मिटाना है, असमानता को समाज करना है तो आवश्यक है कि नारियों के योगदान की अवहेलना न की जाए । बल्कि इस तथ्य को स्वीकार किया जाए कि नारी के सहयोग के बिना पुरुष अपने-अपने कार्य क्षेत्र में कुशलता से कार्य नहीं कर सकता ।

भारत जैसे देश में जहाँ की अर्थव्यवस्था में कृषि आज भी प्रधानता रखती है, महिलाओं के योगदान को नकारा सकता । आज भी महिला को उपभोक्ता के रूप में देखा जाता है । विश्व का कोई भी देश चाहे वह विकसित हो या अविकसित, महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपना रचनात्मक योगदान दे रही हैं । आज कोई भी कार्य उनके सहयोग के बिना अधूरा है, चाहे वह प्राथमिक व्यवसाय को क्षेत्र हो, या द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसायों का ।

उदाहरणत: घान की खेती में महिलाओं की भूमिका अत्यन्त प्रभावी है, वह पौधों का पुन: रोपण करने में पुरुष से कहीं अधिक कुशल है । धान प्रधान क्षेत्रों का भूगोल उनके सहयोग की अनदेखी करके नहीं लिखा जा सकता । नारी को मात्र पुरुषों को आराम प्रदान करने, घर के वातावरण को सुखमय बनाने, उनको सहायक के रूप में मानने का प्रतीक नहीं माना जा सकता ।

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आज की नारी उपभोक्ता नहीं उत्पादक है । नारीत्व भूगोल नारी को इसी दृष्टि से देखता है । वह प्रादेशिक असमानताओं को मिटाने, गरीबी, भुखभरी जैसी समस्याओं को हल करने, पर्यावरण का संतुलित विकास करने, संसाधनों का समुचित दोहन एवं वितरण में नारी की भूमिका को उतना ही महत्व देने लगा है, जितना कि पुरुषों को दिया जाता है ।

यद्यपि आज भी प्रत्येक भौगोलिक वर्णन से पुरुष प्रधान समाज की बू आती है । मानव शब्द का प्रयोग भूगोल में पुरुष के संदर्भ में होता रहा है । आदि मानव से लेकर वर्तमान मानव तक के कार्यों में महिलाओं की भूमिका को या तो नकारा गया है, या फिर उसे गौण माना गया है ।

आदि मानव द्वारा पशुओं का शिकार करना को, पुरुष प्रधान कार्य कहा गया, लेकिन उसके अस्त्र-शस्त्र बनाना, शिकार से प्राप्त मांस को भक्षण योग्य बनाना, महिलाओं का ही कार्य रहा । आज भी आदिम जनजातियाँ, चाहें वह पिग्मी हों, या बुशमैन, भारतीय नागा ही या थारूं, सभी में महिलाएं आर्थिक कार्यों में बराबर की जिम्मेदारी निभाती हैं ।

आज का कृषि व्यवसाय उनके सहयोग ही नहीं, बल्कि उनके कार्यों की गुणवत्ता के बिना अधूरा है । उनको सस्ते श्रम का पर्याय माना जाता है । घर की अर्थव्यवस्था को चलाने में सहायक माना जाता हैं । चाय, धान, जूट, कहवा, फसलों के उत्पादन में उनकी विशिष्ट भूमिका है ।

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वनों से विभिन्न वस्तुओं का संग्रह करके उनसे अनेक उत्पाद तैयार करना जैसे बान, टोकरे बनाना, चटाई बुनना, बीड़ी तैयार करना, आदि कार्य उन्हीं के द्वारा सम्पादित किये जाते हैं । पशुपालन उद्योग में भी उनकी अहार भूमिका है । पुरुष तो पशुओं से प्राप्त उत्पाद का विक्रय करने में अपने आपको व्यस्त रखते है, वहीं नारी पशुओं की देखभाल, दूध दुहना आदि कार्यों को करती है । अत: नारी के महत्व को झुठलाया नहीं जा सकता ।

औद्योगिक व्यवसाय तो नारी व पुरुष के कार्यों में कोई विभक्तीकरण नहीं करता । वहाँ नारियाँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सभी प्रकार के कार्यों को कुशलता से अंजाम देती है । अनेक उद्योग ऐसे हैं, जिनमें वह प्रभावी भूमिका निभाती है जैसे वस्त्र उद्योग, रंगाई, छपाई, डिजाइनिंग, कढ़ाई, ऐसे कार्य है, जिनके लिए उनकी विशेष पहचान है । स्पष्ट है वस्त्र उद्योग पुरुष एवं नारी दोनों के सम्मिलन एवं सहयोग का परिणाम है ।

आज प्रत्येक कार्य क्षेत्र नारी की भूमिका को पहचानने लगा है । प्रशासकीय, शैक्षिक, व्यापार, परिवहन, संचार अंतरिक्ष, आदि क्षेत्रों में उसकी भूमिका प्रभावी होती जा रही है । वह नये-नये परिदृश्यों का निर्माण कर रही हैं । वर्तमान में भौगोलिक दृश्य। की संरचना में उनकी विशेष भूमिका है ।

भूगोल में जबसे मानववादी विचारधारा का पदार्पण हुआ है, तब से मानव समाज में असमानताओं को मिटाने में नारी की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाने लगा है । नारी का योगदान आज शोध का विषय बन चुका है । वह सीमांत कार्यकर्ता नहीं है, बल्कि पूर्णकालिक कार्यकर्ता है ।

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नारीवाद भूगोल महिलाओं की कुशलता व विशेषज्ञता को पहचानने पर जोर देता है । वह उनको विकास का नाभि केन्द्र (Nodal Centre) मानता है । वह उनको हाशिए (Periphery) पर रखकर नहीं देखता । वह नारी की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर प्रादेशिक विकास को योजनाएँ प्रस्तुत करता है ।

साक्षरता व उसके स्तर में वृद्धि, मातृत्व कल्याण की योजनाएँ, शिशु मृत्यु दर को कम करना, महिलाओं के स्वास्थय एवं चिकित्सा पर ध्यान देना आदि ऐसे कार्य है, जिन पर ध्यान दिए बिना प्रदेश का विकास संभव नहीं है । ग्रामीण समन्वित विकास, संपोषित विकास (Sustainable Development) के विचार की कल्पना उनकी सामाजिक आर्थिक दशा में सुधार के बिना अधूरी है ।

उपरोक्त चिन्तन के समय के साथ प्रभावी होते हुए भी आज भी भूगोल पुरुष प्रधान (Masculinist) दिखाई पड़ता है । प्रत्येक भौगोलिक दृश्य को पुरुष की सोच व समझ का प्रतीक माना जाता है । उसमें महिला से सम्बन्धित सोच की उपेक्षा है । लिंग के आधार पर भेदभाव मानव की सोच का परिणाम है । वह पुरुषों को ही वर्तमान परिदृश्य को विकसित करने का श्रेय देता है ।

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समाज का प्रभावशाली वर्ग उनकी आज भी उपेक्षा करता है । लेकिन इतना स्पष्ट है प्रदेश के भौगोलिक विकास की संतुलित अवस्था को उनके सहयोग के बिना नहीं पाया जा सकता । मानव शरीर का यदि दाँया हाथ पुरुष है तो बाँया हाथ नारी, और दोनों का एक-दूसरे से मिले बिना कार्य करना संभव नहीं है ।

आज भूगोल में नारी के अध्ययन से सम्बन्धित शोध कार्यों को बढ़ावा मिलने लगा है । भूगोल की विशेषत: मानव भूगोल की नवीन शाखाओं जैसे अति सुधारवाद भूगोल, आचरण भूगोल, का विकास समाज में उनके महत्व को स्वीकार कराने की दिशा में एक मील का पत्थर प्रतीत सिद्ध हो रहा है ।

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