दीपावली |Dewali in Hindi!

‘जगमग-जगमग दीप जले’, यही दीपावली की शोभा है । दीपावली प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है । ‘दीपावली’ शब्द का यदि संधि-विच्छेद किया जाए तो हमें इस शब्द का अर्थ स्पष्ट हो जाएगा ।

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दीपावली अर्थात् दीप + अवली । ‘दीप’ का अर्थ दीपक तथा ‘अवली’ का अर्थ पंक्ति है । इस प्रकार दीपावली का अर्थ हुआ- दीपों की पंक्ति । इस त्योहार में प्रत्येक घर में दीपों की पंक्तियाँ सजाई जाती हैं, इसलिए इसका नाम ‘दीपावली ‘ पड़ा ।

वास्तव में, हम भारतीयों के प्रत्येक त्योहार का कोई-न-कोई सामाजिक या ऐतिहासिक आधार होता है । दीपावली का आधार ऐतिहासिक और सामाजिक दोनों ही है । कहा जाता है कि जिस दिन दशरथ-पुत्र श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास की अवधि समाप्त करके अयोध्या लौटे थे उस दिन अयोध्यावासियों ने प्रसन्न होकर असंख्य दीप जलाए थे । इसी दिन की पुण्य स्मृति में आज भी भारतवासी प्रतिवर्ष दीपावली का त्योहार मनाते हैं ।

दीपावली का त्योहार लक्ष्मी-पूजन से संबंधित है । ‘लक्ष्मी’ विष्णु की आदि शक्ति हैं । वे श्री-संपदा तथा धन-ऐश्वर्य की देवी मानी जाती हैं । इस पुण्य त्योहार के अवसर पर समस्त भारतवासी लक्ष्मीजी की पूजा करके अपनी मनोकामना व्यक्त करते हैं कि लक्ष्मी उन पर प्रसन्न होकर दुःख- कलेश दूर करें और उनके घर को धन-धान्य परिपूर्ण करें । हिंदूसमाज में यह त्योहार मुख्यत: वैश्यों का माना जाता है, किंतु साधारणत: समस्त हिंदू इसे श्रद्धाभाव से मनाने हैं ।

दीपावली का त्योहार प्रमुख रूप से पाँच दिनों तक मनाया जाता है । सर्वप्रथम कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन ‘धननेरस’ मनाया गई है । इस दिन सभी हिंदू अपनी स्थिति के अनुसार चाँदी, पीतल, काँसे आदि के बरतन खरीदते हैं । ये नए बरतन सुरक्षित रख दिए जाते हैं और दीपावली के दिन लक्ष्मी-पूजन के स्थान पर इन्हें रखकर इनकी पूजा की जाती है ।

धनतेरस के दूसरे दिन ‘छोटी दीपावली’ मनाई जाती है । इस दिन प्रत्येक घर में देवताओं के नाम पर घी के दीये जलाए जाते हैं और ‘यम देवता’ के नाम पर प्रमुख रूप से एक दीया जलाया जाता है, इसको ‘यम दीप’ कहा जाता है । तीसरे दिन दीपावली का मुख्य त्योहार मनाया जाता है ।

सायंकाल लक्ष्मी और गणेशजी का पूजन होता है । चौथे दिन गोवर्धन की पूजा होती है और पाँचवें दिन भ्रातृ-द्वितीया मनाई जाती है । गोधन के दिन गोबर की गाय एवं ग्वाला बनाकर उसे पूजते हैं और भ्रातृ द्वितीया के दिन समस्त बहनें अपने भाई की मंगल-कामना करती हुई उनकी दीर्घायु के लिए पूजा करती हैं तथा रोली, अक्षत आदि से टीका लगाकर उन्हें फल-मिष्टान्न खिलाती हैं । इस प्रकार दीपावली का आनंद-उल्लास भरा त्योहार पाँच दिनों में समाप्त हो जाता है ।

दीपावली के आगमन के सप्ताहों पूर्व प्रत्येक हिंदू अपना घर-द्वार स्वच्छ करता है । निर्धन व्यक्ति भी इस अवसर पर अपने घरों को लीप-पोतकर साफ-सुथरा बना लेते हैं । दीपावली का त्योहार मनाने के लिए घर-घर खील, मिठाई, चीनी के खिलौने, पूजन के लिए लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति तथा जलाने के लिए नई रुई, सरसों का तेल एवं मिट्‌टी के दीये खरीदे जाते हैं ।

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बहुत से व्यक्ति घर में प्रकाश करने के लिए मिट्‌टी के दीयों के स्थान पर मोमबत्तियाँ खरीदते हैं । धनी व्यक्ति विद्युत् के बल्व से अपना घर सजाते हैं । इस अवसर पर बालक-बालिकाएँ बड़े उत्साह से अपना घर सजाने के लिए रंग-बिरंगे पतंगी कागजों की झड़ियों बंदनवार, कंडील आदि बनाते हैं । दीपावली की रात्रि में बच्चे एवं बड़े फुलझड़ियों तथा अन्य प्रकार की आतिशबाजी चलाते हैं ।

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दीपावली के दिन प्रातःकाल से ही घर को धो-पोंछकर स्वच्छ कर दिया जाता है तथा रसोईघर में विभिन्न प्रकार के रुचिकर, सुगंधित व्यंजन बनाने आरंभ हो जाते हैं । घर की महिलाएँ रसोईघर में जुटी रहती हैं ।

दीपावली की रात्रि में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है । व्यापारी वर्ग इस दिन से अपना नया साल शुरू करते हैं । इसी दिन नए बही-खाते बनाए जाते हैं । हिंदू जन अपने नाते-रिश्तेदारों, मित्रों आदि को मिठाई और उपहार भेंट करके दीपावली की शुभकामनाएँ देते हैं ।

दीपावली के त्योहार से कई लाभ हैं । सर्वप्रमुख लाभ तो हमें यही होता है कि यह त्योहार हमें आनंद प्रदान कर हमारे जीवन की एकरसता को दूर करने में सहायक होता है । जो व्यक्ति कभी घर-द्वार की सफाई की ओर ध्यान नहीं देते, वे भी इस अवसर पर अपना घर साफ-सफाई करके स्वच्छ कर लेते हैं । वर्षा ऋतु में जितने कीट-पतंगे उत्पन्न हो जाते हैं वे सब मिट्‌टी के दीयों पर मँडराकर नष्ट हो जाते हैं, अधिकांश तो घर की साफ-सफाई में ही नष्ट हो जाते हैं ।

जहाँ दीपावली का त्योहार हमारे लिए इतना लाभदायक है वहीं इसमें कुछ दोष भी आ गए हैं । कुछ व्यक्ति इस दिन जुआ खेलते हैं । इस प्रकार भाग्य आजमाने की प्रवृत्ति से बड़ा दुष्परिणाम भोगना पड़ता है । इसलिए दीपावली के पावन पर्व पर जुआ कभी नहीं खेलना चाहिए । दीपावली तो प्रकाश का पर्व है । हम अपने हृदय को ज्ञान के आलोक से प्रकाशित करने की चेष्टा करें ।

दीपावली के शुभ अवसर पर अधिक मात्रा में आतिशबाजी चलाकर वातावरण को जहरीला न बनाएँ । कानफोड़ू बम-पटाखे न चलाएँ क्योंकि धुएँ के कारण वीमार, साँस के रोगियों तथा बुजुर्गों को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है । आतिशबाजी से अनेक जगह आग भी लग जाती है तथा असावधानी के कारण बच्चे पटाखों से जल जाते हैं ।