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अक्लमंद को इशारा काफी है |

जंगल का राजा शेर बूढ़ा हो चुका था । उसकी शक्ति क्षीण हो गई थी । अब उसमें पहले जैसी फुर्ती भी नहीं रही थी । वह शिकार करने में भी असमर्थ था । कोई शिकार उसकी पकड़ में ही नहीं आता था । कछुआ तक उसके सामने से गुजर जाता था । वह असहाय देखता ही रह जाता था ।

इस प्रकार वह सूखकर पिंजर हो गया था । उसे लगा कि वह भूखा ही मर जाएगा । वह अपनी गुफा में ही पड़ा रहता था । अब वह पड़ा-पड़ा भोजन कि प्राप्ति के लिए उपाय सोचता रहता था । अंतत: उसे एक उपाय सूझ गया । एक दिन एक चिड़िया उसकी गुफा के सामने पेड़ पर बैठी थी ।

”अरी चिड़िया रानी, जरा इधर तो आना ।” शेर ने उसे पुकारा । चिड़िया उड़ती हुई उससे कुछ दूर एक पत्थर पर आ बैठी । ”क्या बात है महाराज? आप तो बड़े दुर्बल दिख रहे हैं ।” चिड़िया ने पूछा । ”अब मेरा अंत समय निकट आ गया है ।”

शेर लम्बी सांस छोड़कर बोला- ”मृत्यु मुझे पुकार रही है । वैसे भी मृत्यु तो जीवन का कटु सत्य है ।” ”सत्य कह रहे हैं महाराज!” चिड़िया ने कहा । ”जब मैं शक्तिशाली था, तो वन के जीवों की रक्षा में तत्पर रहता था । मैं सभी के सुख-दुख में सम्मिलित था, परंतु सब स्वार्थी निकले ।

मैं यहां अकेला पड़ा रहता हूं । कोई मेरा समाचार लेने तक नहीं आता ।” ”यह उनकी भूल है महाराज ।” ”उन्हें चाहिए कि मेरे अंत समय में वे मुझसे मिलें । इससे मुझे मृत्यु का भय नहीं लगेगा । तुम यह बात उन्हें समझाओ ।” ”अवश्य महाराज! मैं आज ही सबको यह खबर सुनाती हूं ।” ”धन्यवाद चिड़िया रानी ।” चिड़िया उड़ गई ।

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उसने जंगल के सभी जीवों को शेर की व्यथा सुनाई । इस तरह एक-एक करके सभी पशु शेर को देखने जाने लगे । शेर से जो भी मिलने आता, शेर उसे मार डालता । इस तरह उसका उपाय कारगर रहा । उसे भोजन मिलने लगा । अब उसकी हालत भी सुधरने लगी । वह दिन-प्रतिदिन मोटा और बलवान हो रहा था ।

एक दिन एक गीदड़ शेर से मिलने जा रहा था । वह गुफा के पास पहुंचा ही था कि उसने एक खरगोश को अंदर जाते देखा । वह सोचने लगा कि पहले खरगोश शेर से मिल आए, तब वह जाएगा । वह वहीं बैठ गया । उसे बैठे-बैठे शाम हो गई । खरगोश वापस नहीं लौटा ।

गीदड़ संदेह में पड़ गया । गीदड़ कई दिनों से देख रहा था । जो भी शेर से मिलने गया, वह फिर कभी नजर नहीं आया । उसका संदेह और गहरा हो गया । वह गुफा के, सामने पहुंच गया, परंतु अंदर नहीं घुसा । ”महाराज, क्या आप अंदर हैं?” उसने बाहर से ही पूछा ।

”कौन? क्या तुम गीदड़ भाई हो?” शेर की आवाज आई- ”बहुत दिन बाद आए, बाहर क्यों खड़े हो? अंदर आओ । मैं तुमसे मिलकर बहुत प्रसन्न होऊंगा । मेरा अंत समय निकट है । तुम सबसे मिलकर मरूं, यही मेरी अन्तिम इच्छा है, आओ ।”

गीदड़ सारी बात समझ गया । ”महाराज, ईश्वर करे आप जल्द ठीक हो जाएं, परंतु क्षमा कीजिए, मैं अंदर नहीं आ सकता । मैं मूर्ख नहीं हूं, मुझे गुफा के बाहर बने पद-चिन्ह संकेत कर रहे हैं । यहां अंदर जाने वाले के पद-चिन्ह तो हैं, परंतु बाहर आने वाला एक भी पद-चिन्ह नहीं दिखई दे रहा ।

मैं खतरा भांप गया हूं, इसलिए मैं चलता हूं । मेरा प्रणाम स्वीकार करो ।” गीदड़ वहां से भाग गया । इस तरह उसने बुद्धिमानी से अपनी जान बचाई । सत्य ही है कि बुद्धिमान खतरा भांप जाता है, अक्लमंद इशारा समझ लेता है ।

सीख:

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बच्चो! यह कहानी कहती है कि प्रत्येक कार्य बुद्धिमानी से करो । बुद्धिमान व्यक्ति कभी धोखा नहीं खाता ।

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