Snitcher always Falls in the Ditch (With Picture)!

कांटे बोने वाला शूलों पर गिरता है |

सिंहाराज बीमार पड़ गए । वे अपनी गुफा में ही पड़े रहते थे । जंगल के सभी पशु-पक्षी चिंतित थे । सभी शेर की खोज-खबर लेने प्रतिदिन उसके पास आते थे । पशुओं ने उसकी दवा-दारू की व्यवस्था भी की । वैद्य भालूराम ने नाना प्रकार की दवाएं दी ।

सैकड़ों प्रकार के इंजेक्शन लगाए, परंतु यह उपचार किसी काम नहीं आ रहा था । सभी पशु-पक्षी शेर की टहल में लगे थे, परंतु शेर को कोई लाभ नहीं हुआ । वह ज्यों-का-त्यों बीमार पड़ा रहा । एक दिन शेर ने सभी पशुओं पर नजर डाली । वह रोज देख रहा था कि गीदड़ उसे देखने तक नहीं आया ।

”गीदड़ दिखाई नहीं देता ।” शेर बोला- ”वह एक दिन आया था, तब से फिर नहीं आया । किसी को उसका पता है?” भेड़िया गीदड़ से जलता था, क्योंकि गीदड़ शेर का प्रिय था । वह सदैव गीदड़ को शेर से अलग करने की युक्ति सोचता रहता था ।

”महाराज उसका नाम न लीजिए ।” भेडिया बोला- ”वह तो बड़ा घमंडी हो गया है । किसी से सीधे मुंह बात भी नहीं करता ।” ”अच्छा! उसकी यह हिम्मत!” शेर क्रोध से बोला । ”बस पूछिए मत सरकार । कल मुझे मिला था । मैंने कहा कि तुम्हें यहां घूमने से क्या मिलता है ।

महाराज के पास चलो । वे बीमार हैं ।” ”क्या कहा उसने?” ”कहने लगा- ‘मैं पागल नहीं हूं । मरीज के पास रहकर बीमार नहीं होना चाहता । मैं तो शेर के मरने की प्रतीक्षा में हूं । उसके बाद मैं जंगल का राजा बनूगा ।’ मैं तो उसकी बात सुनकर सन्न रह गया ।”

”उसे पकड़कर मेरे सामने लाओ ।” शेर ने आदेश दिया- ”मैं उसे दंड दूंगा ।” भेड़िया प्रसन्न हो गया । अब उस गीदड़ की खैर नहीं थी, परंतु वह नहीं जानना था कि गीदड़ वहीं छुपा उसकी बातें सुन रहा था । उसे भेड़िए की मक्कारी पर बहुत गुस्सा आया ।

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वह डरता हुआ शेर के सामने पहुंच गया । शेर उसे देखते ही भड़क उठा- ”क्यों रे बदमाश गीदड़! मैं तुझे अपना मित्र समझता था, तू तो बड़ा स्वार्थी निकला । मैं कितने दिनों से बीमार हूं, मेरे लिए तू चिंतित भी नहीं है । सुना है तू बड़ा घमंडी हो गया है, उल्टी-सीधी बात करता है ।

शेर की गरज सुनकर गीदड़ थर-थर कांपने लगा- ”क्षमा करें महाराज! मैं तो सदैव आपका सेवक हूं । आप जिस दिन से बीमार पड़े हैं, मैं उसी दिन से आराम से नहीं बैठा । यह सत्य है कि मैं अन्य साथियों की तरह आपकी सेवा-टहल में नहीं रहा, परंतु इसका भी एक कारण है ।

मैं अकारण ही आपसे दूर नहीं रहा ।” ”कैसा कारण? शीघ्र बता ।” शेर जरा नरम पड़ा । ”महाराज, मैं आपके रोग की दवा खोजने के लिए जंगलों में भटकता फिर रहा था । भूख-प्यास से लड़ता हुआ मैं मीलों दूर जंगल पार एक बस्ती में पहुंचा । वहां मुझे एक वैद्य मिले ।

वे बहुत योग्य वैद्य हैं ।” ”अच्छा तो यह कारण था ।” ”हां सरकार । मैंने वैद्यजी के हाथ-पांव जोड़े । उनसे आपकी बीमारी का निदान पूछा । महाराज वैद्य ने हंसते हुए कहा कि यह बीमारी तो मामूली है । इसकी दवा तो जरा-सी है ।” सिंह की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा, बोला- ”देखा, मैं न कहता था कि गीदड़ मेरा शुभचिंतक है ।

वह अकारण ही मुझसे दूर नहीं रह सकता ।” भेड़िया मन मसोसकर रह गया । ”सरकार, पहले तो वैद्यजी टालते रहे ।” गीदड़ ने कहा- ”वे कहते थे कि मैं मनुष्यों का वैद्य हूं, पशुओं का नहीं, परंतु मैं भला कहां मानता, मैं उनके पैरों में गिर गया, रोने लगा, धरती पर सिर पटकने लगा ।

तब जाकर उन्होंने मुझे वह दवा बताई ।” ”अब हमें वह दवा बताओ ।” शेर ने कहा । ”वैद्य ने कहा कि आपको निमोनिया नाम की बीमारी है । यदि आप किसी भेड़िए की ताजा खाल ओढ़ लें तो स्वस्थ हो जाएंगे । यह इस रोग की उत्तम दवा है ।

ताजा चमड़ा ओढ़ते ही आपकी बीमारी दूर हो जाएगी ।” भेड़िए ने जब यह सुना तो सन्न रह गया । उसे भय सताने लगा । वह उछलकर वहां से भागा, परंतु सिंहराज ने उसे दबोच लिया । सिंह ने अपने नुकीले पंजों से उसकी खाल उतारनी शुरू की । गीदड़ मन-ही-मन प्रसन्न हो रहा था ।

‘चला था मेरी बुराई करने!’ गीदड़ मन में कहने लगा- ‘यह नहीं जानता था कि दूसरों के लिए कांटे बोने वाला, स्वयं शूलों पर गिरता है ।’ सत्य ही है, जो दूसरे के लिए गड्‌ढा खोदता है वह खुद उसमें गिर जाता है ।

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सीख:

बच्चो! हमें किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए । इससे हमारी ही हानि होती है । चुगली करना अक्षम्य अपराध है । चुगलखोर का अंत बुरा होता है ।

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