नगरपालिका पर अनुच्छेद | Paragraph on Municipality in Hindi

प्रस्तावना:

नगर पालिकायें बीसवीं सदी की देन नहीं हैं । इनका गठन और उत्थान मध्य युग या इससे भी पूर्व हुआ था । ही, आजकल इनका गठन और कार्यशैली बहुत-कुछ बदल गई है ।

प्राचीन भारत, ग्रीस, रोमन साम्राज्य तथा मध्ययुगीन यूरोप में बहुत-से ऐसे नगर और शहर थे, जिनका स्थानीय प्रबन्ध वहां की नगरपालिकाओं जैसी संस्था देखती थीं । भारत के नगरों और शहरों में वर्तमान ढंग की नगरपालिकाओं के गठन का श्रेय भारत के ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड रिपन को दिया जा सकता है ।

नगरपालिका का गठन:

ब्रिटिश शासन के दौरान नगरपालिका के अधिकांश सदस्य सरकारी अधिकारी या सरकार द्वारा मनोनीत किए जाते थे । केवल थोड़े-से सदस्यों का चुनाव नगर या शहर के संभ्रान्त लोग करते थे । स्वतंत्रता के बाद से इनके अधिकांश सदस्यों का चुनाव शहर या नगर के सभी वयस्क नागरिक करते हैं ।

सदस्य अपने में से ही स्वय अपना अध्यक्ष चुनते हैं । चुनाव के उद्देश्य से नगर या शहर को कई वार्डों में बाट दिया जाता है । मतपत्र के द्वारा प्रत्येक वार्ड के नागरिक अपने लिए एक सदस्य का चुनाव करते हैं । इन सभी सदस्यों को मिलाकर नगरपालिका का गठन होता है ।

नगरपालिका के कार्य:

नगर पालिका का मुख्य कार्य शहर के निवासियों को सामान्य सुविधायें उपलब्ध कराना तथा उनके कल्याण के कार्यों को सम्पन्न करना है । इनमें मुख्य रूप से पीने के पानी की व्यवस्था करना, सफाई और जल-निकासी का प्रबन्ध करना, सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर रोशनी की व्यवस्था करना है ।

इसके अलावा शहर की सडकों का निर्माण और रख-रखाव, शिक्षा का प्रबन्ध और नगरवासियों के स्वास्थ्य की देखभाल करना भी इन्हीं का काम है । महामारियों की रोकथाम, रोगों से बचाने के लिये टीकों का प्रबन्ध, प्रसूति-गृहों और शिशु-कल्याण केन्द्रों का प्रबन्ध जैसे अनेक जनकल्याणकारी कार्य नगरपालिकाओं के कार्यक्षेत्र में आते है ।

आमदनी के साधन:

नगरपालिकायें शहर के निवासियों पर स्थानीय कर लगाती है । थोडे-से अति निर्धन लोगों को छोड़कर प्रत्येक निवासी को कुछ-न-कुछ कर इन नगरपालिकाओं को देना पड़ता है । गृह कर, जल कर, वाहनों पर कर आदि इनकी आमदनी का मुख्य स्रोत हैं ।

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कुछ नगरपालिकायें अग्नि शमन कर, शिक्षा कर और व्यवसाय कर भी लगाती हैं । इसके अलावा नगर की सीमा मेरव्यौपार के लिए लाई गई वस्तुओं पर चुंगी कर द्वारा नगरपालिकाओं को काफी आमदनी हो जाती है ।

नगर पालिकाओं की समस्याएं और त्रुटियाँ:

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नगरपालिकाओं को मुख्य रूप से धन की कमी का सामना करना पड़ता है । उन्हें शहरों की सफाई, सड़कों के निर्माण और रख-रखाव, अस्पतालो का प्रबन्ध, जल की व्यवस्था तथा जल-मल की निकासी के प्रबन्ध पर बड़ी धनराशि व्यय करनी पड़ती है, लेकिन उनकी आमदनी नागरिक जीवन की इन न्यूनतम सुविधाओं तक के लिए पर्याप्त नहीं होती ।

लोगों पर करों का भार पहले ही बहुत अधिक है, इसलिये अतिरिक्त कर लगाने या करों की दर बढ़ाने की बहुत कम गुंजाइश है । प्राय: सभी नगरपालिकायें गुटबन्दी और दलगत राजनीति के पचड़े में फंसी रहती हैं और आए दिन सदस्यों के बीच तरह-तरह के झगड़े और मतभेद होने के कारण ठीक से काम नहीं हो पाता ।

म्युनिसिपल कमिश्नर और नगरपालिका के सदस्यों के बीच निजी मतभेदों के कारण भी समिति की प्रगति में बाधा पड़ती हैं । कुछ ईमानदार सदस्य जो वास्तव में शहर की सेवा के लिए उत्सुक होते है, इन झगडों से ऊबकर अक्सर इस्तीफा दे बैठते हैं ।

उपसंहार:

जब तक नगरपालिकाओं की आमदनी की समुचित व्यवस्था नहीं की जाती, तब तक वे अपने उत्तरदायित्वों को भली-भाति नहीं निभा सकतीं । राज्य सरकारों को नगर की आवश्यकताओं के अनुरूप इनकी समुचित आर्थिक सहायता का प्रबन्ध करना चाहिये । नगरवासियों को भी इनके कार्यों की देखभाल में सक्रिय योगदान करना चाहिये और केवल योग्य व्यक्तियों को ही वोट देकर इनका सदस्य निर्वाचित करना चाहिये ।